अफगानिस्तान बन रहा है इस्लामिक स्टेट का सॉफ्ट टारगेट
2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के पश्चात अमेरिका ने तालिबानी शासन को उखाड़ फेंका. लेकिन तालिबानी चरमपंथी गुटों का पूर्ण रुप से सफाया करने में असफल रहा.
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16 जून 2017 को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक मस्जिद परिसर में धमाका हुआ. यह मस्जिद काबुल के शिया बहुल इलाके में स्थित है. धमाके में चार लोगों की मौत हो गई है और दस लोग घायल है. अफगानिस्तान के आतंरिक मंत्रालय के अनुसार काबुल के पश्चिम इलाके में स्थित अल ज़हरा मस्जिद पर चरमपंथी हमला हुआ है. हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएस ने लिया है. इससे पहले नवंबर 2016 में मस्जिद पर आतंकी हमले में तीस लोग मारे गए थे.
ऐसा लगता है कि सीरिया, इराक के साथ साथ इस्लामिक स्टेट अफगानिस्तान में भी अपने किले को सुदृढ़ करने में लगा है. इस्लामिक स्टेट ने अफगानिस्तान में हाल में कई धमाकों को अंजाम दिया है, जिसमें एक बड़ा धमाका 31 मई 2017 को किया गया था. यह आत्मघाती धमाका काबुल में विदेशी दूतावासों के पास सुबह 8.32 मिनट पर हुआ. जो काफी चहल-पहल वाला समय था. इस आत्मघाती धमाके में सरकारी आकड़ों के अनुसार लगभग 100 लोग मारे गए हैं और कम से कम 400 लोग घायल हुए हैं. लेकिन गैर-सरकारी आकड़ें इससे कहीं ज्यादा हैं. काबुल में धमाका किसी भूकंप से कम नहीं था.
आतंक का साया
इसमें जर्मन, ईरान, फ्रांसीसी, तुर्की दूतावास को काफी नुकसान पहुंचा था. चूंकि धमाके जर्मन और ईरानी दूतावास के पास किए गए हैं और राष्ट्रपति निवास सहित कई विदेशी दूतावास इसी इलाके में हैं. ऐसे में यह कहना फिलहाल मुश्किल है कि आखिर इनके निशाने पर कौन था. लेकिन कुछ समाचारों के अनुसार आतंकवादियों के निशाने पर ईरान था. दरअसल ईरान भी आंतक की जन्मस्थली पाकिस्तान के आतंक से त्रस्त है. इसी कारण से ईरान, पाकिस्तान के साथ की अपनी 900 किलोमीटर की सीमा पर मौजूद आतंकवादियों पर समय-समय पर कार्रवाई कर रहा है. जैसे हाल में ईरान ने पाकिस्तानी सीमा के अंदर आंतकवादियों पर कार्रवाई करते हुए मोर्टार दागे थे और ईरान ने पाकिस्तान को चेताया था कि यदि पाकिस्तान अपने सरज़मी से ईरान में होने वाले आतंकी घटनाओं पर लगाम नही लगाता तो ईरान उन्हें पाकिस्तान में घुसकर मारेगा. इसलिए आतंकी काफी गुस्से में थे.
अफगानिस्तान में 31 मई वाले धमाके को लेकर जनता में जबरदस्त विरोध दिखाई दिया. 2 जून को विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में पांच लोगों की मृत्यु हो गई. यहाँ तक की स्थानीय नेता के बेटे के जनाज़े में भी बम विस्फोट किया गया, जिसकी मृत्यु विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में हुई थी.
ईरान भी 7 जून को आतंकी घटना के चपेट में आया, जब ईरान के अंदर आतंकवादियों ने दो अलग अलग घटनाओं को अंजाम दिया. एक ईरान की संसद और दूसरा ईरान के धार्मिक गुरु अयातुल्लाह खुमैनी की मज़ार पर आतंकी हमले किए गए. ईरान की संसद में तो लोगों को बंधक बनाने की भी कोशिश की गई. इस हमले में दो सुरक्षाकर्मियों समेत बारह लोगों की मृत्यु हुई. तो संसद पर हमला करने वाले एक व्यक्ति ने स्वयं को उड़ा लिया.
दूसरी तरफ दक्षिणी तेहरान स्थित अयातुल्लाह खुमैनी स्मारक पर हमला के पश्चात एक महिला ने स्वयं को उड़ा दिया. जबकि एक हमलावर को गिरफ्तार किया गया. इस हमले में भी एक की मृत्यु और पांच लोगों के घायल होने की पुष्टि की. इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएस ने ली. दरअसल इस हमले को शिया सुन्नी विवादों के रूप में देखा गया क्योंकि आईएस ने एक 37 मिनट का वीडियो जारी कर ईरान पर हमले की धमकी दी थी. आईएस का ईरान पर आरोप है कि वह लगातार सुन्नीयों को प्रताड़ित कर रहा है.
अफगानिस्तान में मई के महीने में कई विस्फोट हुए हैं. इससे पहले भी एक बड़ा आतंकी हमला "खोस्त" में हुआ था. जिसमें 18 लोग मारे गए थे. लेकिन 31 मई वाले आत्मघाती हमले में काफी जानमाल का नुकसान हुआ है.
अफगानिस्तान में बम धमाकों की बढ़ती आवृत्ति केवल अफगानिस्तान और उसके पड़ोसियों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए खतरे की घंटी है. ज्ञात हो कि अफगानिस्तान 2001 में तालिबानी चरमपंथी गुट के शासन से मुक्त हुआ. इसके बावजूद आज तक वो आंतकवादियों का गढ़ बना हुआ है और आतंकवादी अफगानिस्तान को अस्थिर करने के प्रयास में लगे हैं. अगर अफगानिस्तान अस्थिर होता है तो आतंकवादी अपनी जड़ों को गहरा करने में कामयाब होगें और अपने सुरक्षित ठिकानों से विश्व के किसी भी देश को बम धमाकों से दहलाने को अंजाम देगें. हाल ही में अमेरिका ने अपने एक सैनिक के अफगानिस्तान में मारे जाने पर अफगानिस्तान-पाकिस्तान की सीमावर्ती क्षेत्र में आतंकियों को निशाना बनाते हुए GBU-43/B नामक "मदर ऑफ ऑल बम" को गिराया था. दरअसल अफगानिस्तान में आतंकवाद के पनपने के कारणों में शीत युद्ध काल में विश्व की दो महाशक्तियों के वर्चस्व की लडा़ई में निहित है.
शीत युद्ध काल के दौरान तत्कालीन सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में अपनी पैठ बनाई. इसके परिणामस्वरूप अमेरिका ने सोवियत संघ को अफगानिस्तान से उखाड़ फेंकने के लिए तालिबान नामक संगठन को खड़ा किया. यह बड़ा दुखद है कि शीत युद्ध को समाप्त हुए दशक हो गए, लेकिन अफगानिस्तान में शांति बहाल नहीं हो सकी. शीत युद्ध के पश्चात तालिबान नामक कट्टरपंथी शासकों ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया और अफगानिस्तान के आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक मूल्यों को नष्ट करते रहे. 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के पश्चात अमेरिका ने तालिबानी शासन को उखाड़ फेंका. लेकिन तालिबानी चरमपंथी गुटों का पूर्ण रुप से सफाया करने में असफल रहा. क्योंकि सोवियत संघ के अफगानिस्तान छोड़ने के पश्चात भी इन गुटों को अपने को और मजबूत करने हेतु काफी वक्त मिला और साथ-साथ पाकिस्तान का संरक्षण भी मिलता रहा. वर्तमान में ईरान, अफगानिस्तान, और भारत के तरफ से पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया जा रहा है. ऐसे में आतंकवादी हमला इनके बौखलाहट को ही प्रदर्शित करता है.
अफगानिस्तान जैसा लोकतांत्रिक देश का अस्थिर होना भारत के लिए घातक सिद्ध होगा. क्योंकि भारत वहाँ तमाम विकास के परियोजनाओं में अफगानिस्तान की मदद किया है. जैसे वहाँ की संसद भवन, डेलाराम जंराम सड़क का निर्माण और सिंचाई हेतु सलमा डैम का पुनर्निर्माण भारत की मदद से हुआ है. वर्तमान में भी भारत-अफगानिस्तान के विकास में सक्रिय भूमिका निभा रहा है. अफगानिस्तान में भारत के अपने हित भी हैं. जैसे भारत मध्य एशिया के साथ अपने व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाने हेतु अफगानिस्तान को अहम कड़ी मानता है. चूंकि भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह का विकास कर रहा है ताकि बंदरगाह के माध्यम से वस्तुओं को अफगानिस्तान होते हुए मध्य एशिया के बाजार तक पहुंचाया जा सके. उसी कड़ी में डेलाराम जरांज मार्ग ईरान की सीमा तक मौजूद है, महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करेगा.
सीरिया के संदर्भ में देखें तो आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर अमेरिका और रुस आमने सामने है. जिस प्रकार यह दोनों महाशक्तियां अपना वर्चस्व स्थापित करने को आतुर हैं. यह दुखद है. अमेरिका, सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद को अपदस्थ करने हेतु किसी विद्रोही गुटों के साथ जा सकता है. तो वही रुस बसर की सत्ता को बचाए रखने हेतु चरमपंथियों से किसी हद तक भिड़ने को तैयार है. रुस ने 31 मई 2017 को कहा कि उसके युद्ध पोत और पनडुब्बी ने सीरिया के पालमायरा के इर्द गिर्द आतंकवादी संगठन आईएस के ठिकानों को निशाना बना कर भूमध्य सागर से क्रूज मिसाइलें दागी. रुस ने पूर्वी भूमध्य सागर में नौसेना बेड़ा भी तैनात किया है. इसी प्रकार अफ्रीकी देश लीबिया भी कर्नल गद्दाफी के पश्चात महाशक्तियों के हस्तक्षेप के कारण अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है. इस प्रकार स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है कि जहां ये दोनों महाशक्तियां अपने स्वार्थी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आमने सामने होती हैं, वहां के नागरिकों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है.
आतंकवाद किसी एक देश की समस्या न होकर वैश्विक समस्या बन चुका है. वर्तमान में शायद ही कोई ऐसा मुल्क है जो आतंकवाद से पीड़ित न हो. 23 मई 2017 को ब्रिटेन के मैनचेस्टर में आतंकवादी हमला, मई 2017 में ईरान में आंतकवादी हमला, भारत में 26 नवंबर 2008 को मुंबई में आतंकी हमला, अहमदाबाद में 26 जुलाई 2008 को बम विस्फोट आदि. वर्तमान में भारत का जम्मू कश्मीर राज्य पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जूझ रहा है. हाल के दिनों में कश्मीर में आतंकी हमले हुए है. अतः संपूर्ण विश्व को आतंक के विरुद्ध एकजुट होकर निस्वार्थ, ईमानदारी, अथक परिश्रम से आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई को लड़ना चाहिए न कि मध्य पूर्व देशों की तरह.
हाल में कतर पर चरमपंथी गुटों जैसे हिज्जबुल्ला, हमास को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर छह देशों (सऊदी अरब, यमन, बहरीन, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात) ने कतर से राजनयिक संबंध तोड़ लिए. हालांकि कतर ने आरोपों को खारिज कर दिया है. जबकि सऊदी अरब स्वयं वहाबी कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा देता है. जो इस्लामी कट्टरपंथ के अभ्युदय का कारण है और आईएस आतंकी सगंठन को बढ़ावा देता है. यह आतंकवाद से लड़ने के नाम पर दोहरा मापदंड ही प्रतीत होता है. सऊदी अरब अपने समर्थक देशों की संख्या बढ़ाने हेतु इतना आतुर दिखाई दिया कि अरब देशों की यात्रा पर गए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी दुविधा में डाल दिया. जब सऊदी अरब ने पूछा कि आप किस ओर हो? यानी सऊदी की ओर या कतर की ओर.
आश्चर्य है सऊदी जो आईएस जैसे आतंकी गुट को फंडिग करता है तो दूसरी ओर पाकिस्तान आतंकवादियों की जननी है. दोनों ही दोहरे मापदंड के साथ आतंकियों के विरुद्ध लड़ाई लड़ने के लिए आतुर है. यह सर्वविदित है कि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर दोहरा मापदंड कितना घातक होता है. जैसा अफगानिस्तान, सीरिया, ईराक, लीबिया जैसे देशों की गंभीर स्थिति से स्पष्ट रुप से परिलक्षित है.
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