किम यदि तानाशाह हैं तो भी इससे 5 सबक सीख लीजिए...
7 साल सत्ता में रहकर किम जोंग उन अभी हाल तक दुनिया के सामने तीसरे विश्वयुद्ध का कारण बने हुए थे. लेकिन उन्होंने डिप्लोमेसी के एक ही झटके में दुनिया को अपना मुरीद भी बना लिया.
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सिंगापुर में डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन की मुलाकात को दुनिया ऐतिहासिक बता रही है. लग रहा है कि जैसे दुनिया में आने वाला प्रलय टल गया है. जैसे कोरियाई प्रायद्वीप में नामुमकिन दिखाई देने वाला अमन अब सपना नहीं रहेगा. इन सभी संभावनाओं के बीच एक हकीकत यह है कि जिस किम जोंग उन को दुनिया कल तक नृशंस कातिल और तानाशाह कह रही थी, आज उसे ही उज्ज्वल संभावनाओं से भरा नेतृत्व कहा जा रहा है.
किम जोंग उन ने पिछले छह महीने में दुनिया के नजरिए को बदलने में जितनी आसानी से कामयाबी पाई है, उससे एक सवाल ये उठता है कि क्या सद्दाम हुसैन और मुअम्मर गद्दाफी बिलकुल ही मूर्ख थे. अरसे तक सीरिया की सत्ता संभालने वाले बशर अल असद से क्या चूक हुई जो आज उनका देश दुनियाभर के बारूद से पट गया है.
किम जोंग उन ने 2011 यानी सात साल पहले ही सत्ता संभाली है. तब से लेकर हाल तक उनके रहस्यमयी शासन के बारे में एक के बाद एक अविश्वसनीय खबरें आईं. कुछ रोंगटे खड़े करने वाली तो कुछ हंसाने वाली. वे अपने विरोधियों को एंटी-एयरक्राफ्ट गन से उड़ा देते हैं. गद्दारों को यातना देने के लिए खास कैंप बने हुए हैं. उत्तर कोरिया से पलायन ख्याल मतलब मौत को बुलावा देना है. कुछ खबरें उनकी पसंद को लेकर भी आईं. जैसे उत्तर कोरिया के सभी पुरुषों को खास तरह के हेयरकट के लिए कहा गया है. कहा तो यहां तक गया कि यदि किम जोंग उन हंसते हैं तो उनके आसपास मौजूद सभी लोगों के लिए हंसना जरूरी होता है. यदि वे ताली बजाते हैं तो सभी के लिए ताली बजाना जरूरी होता है. वगैरह-वगैरह.
लीग ऑफ तानाशाह : सद्दाम और गद्दाफी को छोड़ दीजिए, लेकिन किम तो अपनी तानाशाही में कामयाब हैं.
उत्तर कोरिया को संसार के सबसे रहस्यमय देश के रूप में दिखाने वाला मीडिया अब किम जोंग उन की भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहा है. आखिर उन्होंने कौन-सी जादू की छड़ी घुमाई है. ऐसा क्या किया है, जिससे कल किम जोंग उन को 'रॉकेट मैन' कहकर 'फायर एंड फ्यूरी' की धमकी देने वाले डोनाल्ड ट्रंप आज 'टैलेंटेड' कहकर पुकार रहे हैं. यदि ट्रंप के इस शब्द चयन पर गौर करें तो वाकई पाएंगे कि किम 'टैलेंटेड' हैं. यदि तानाशाहों की लिस्ट में शुमार रखें तो उनमें वो टैलेंट है जो 24 साल सत्ता में रहे सद्दाम हुसैन, 42 साल हुकूमत चलाने वाले गद्दाफी और पिछले 18 साल से सीरिया के राष्ट्रपति असद में नहीं है. किसी राष्ट्राध्यक्ष ही नहीं, आम शख्स को भी किम से कुछ अच्छी बातें सीख लेनी चाहिए. जो लीडरशिप कायम रखने के काम आ सकती हैं.
1. दो नहीं तो कम से कम एक मजबूत दोस्त बनाइए
किम जोंग उन में वो ताकत है, जिसके लिए आज दुनिया के कई ताकतवर देश जूझते दिख रहे हैं. एक सच्चे साथी का साथ. दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों के समूह जी7 के सदस्य भी एक-दूसरे के प्रति अविश्वास से भरे हुए हैं. विपरीत समय पर एक सच्चा साथी ही किसी देश को मुसीबत से उबार सकता है. सद्दाम और गद्दाफी के साथ खड़े रहने वाला कोई नहीं था. उन्होंने अकेले ही युद्ध झेला और मारे गए. रूस और चीन ने सिर्फ नैतिक समर्थन दिया. कभी-कभी तो वो भी नहीं.
इसके उलट यदि उत्तर कोरिया को देखें तो पाएंगे कि उसके पास चीन जैसा सच्चा साथी पड़ोस में मौजूद है. जो उसे न सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन देता है, बल्कि उसकी सुरक्षा की गारंटी भी लेकर बैठा है. सिर्फ चीन ही नहीं, किम जोंग उन को रूस को भी समर्थन हासिल है. इन दो मित्र देशों के भरोसे ही वह आज तक दुनिया भर के प्रतिबंध और घातक हमले की धमकियों से लड़ता आया है. खाद्य आपूर्ति के अलावा दवाएं और हथियार भी उत्तर कोरिया को इन्हीं दो देशों से मिलते रहे हैं. और आखिर में रूस और चीन का ही दबाव था कि अमेरिका को हमले का विचार त्यागना पड़ा और शांति-वार्ता के लिए मजबूर होना पड़ा.
यदि चीन का साथ न होता तो किम जोंग उन का हश्र भी सद्दाम या गद्दाफी जैसा हो जाता.
2. महात्वाकांक्षाओं के पैर क्षमताओं की चादर से बाहर मत निकालिए
ये सिर्फ याद दिलाने के लिए है कि लीबिया के राष्ट्रपति मुअम्मर गद्दाफी अफ्रीका में अपने प्रभुत्व को बढ़ाते हुए एक नया निजाम लाना चाहते थे. वे नए अफ्रीकन यूनियन में'गोल्ड दीनार' को मुद्रा के रूप में लागू कराना चाहते थे. सिर्फ इसलिए कि डॉलर के लेन-देन से छुटकारा पाया जा सके. बिना किसी सामरिक तैयारी के गद्दाफी ने सीधे अमेरिका और फ्रांस को चुनौती देना शुरू की. नतीजा जो हुआ, वह दुनिया के सामने है.
अब इन्हीं दो नेताओं के सामने हम किम को रखते हैं. आपने शायद ही कभी सुना हो कि किम जोंग उन ने अमेरिका या किसी और देश से अपने देश के हितों से हटकर बात की हो. गद्दाफी और इराक ने अपनी रक्षा तैयारियों से आगे जाकर दुनिया को चुनौती दी. लेकिन किम ने पहले खुद को चुनौतियों से निपटने लायक बनाया. खुद को इस लेवल पर लेकर आए, जहां उनसे बातचीत के अलावा कोई चारा न बचा.
किम ने धीरे-धीरे अपने मिसाइलों के जखीरे में इतना इजाफा कर लिया कि उससे अमेरिका की भी नाक में दम होने लगा.
3. घर का भेदी पनपने ही मत दीजिए
लीबिया और इराक पर एकछत्र नेतृत्व करने वाले गद्दाफी और सद्दाम को उनके पद से हटाने में बड़ी भूमिका उन्हीं के देशवासियों ने निभाई. लीबिया में 33 गुट गद्दाफी के खिलाफ एकजुट हो गए थे. विद्रोह होते-होते सबने रेडियो स्टेशन पर कब्जा कर लिया. टैंक हथिया लिए. एक भयंकर सिविल वॉर में हजारों लोग मारे गए. आखिर में नाटो फोर्सेस के जासूसों ने विद्रोहियों को खबर दी कि गद्दाफी उत्तरी लीबिया के शहर सिर्त के नजदीक छुपा हुआ है. जिसे वहां से ढूंढकर सरेआम मौत के घाट उतार दिया गया. इराक में भी सद्दाम के दबदबे के बावजूद एक बड़े इलाके पर उसका हुक्म न के बराबर चलता था. कुर्द समुदाय से तो सद्दाम की पुरानी दश्मनी थी ही, लेकिन सुन्नी समुदाय का होने के कारण वह दक्षिण पश्चिम में मौजूद शिया समुदाय का विश्वास हासिल नहीं कर पाया. 2003 में जब अमेरिकी सेनाओं ने दक्षिण से बगदाद की ओर कूच किया तो इराकी नागरिकों ने विरोध के बजाए इस सेना का स्वागत किया.
सीरिया में असद सरकार की कुछ विश्वासपात्र सेना को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में बगावत चरम पर है. सीरिया के जितने इलाके पर असद का कब्जा है, वह तब तक ही कायम है जब तक कि रूस वहां मौजूद है.
नीली पोशाक पहने तस्वीर में दिखाई दे रहा ये शख्स किम जोंग उन का चाचा है, जिसे गद्दारी के आरोप में मौत की सजा दे दी गई.
लेकिन उत्तर कोरिया के मामले में कहानी बिलकुल अलग है. वैसे तो अपने स्थापना के समय से यह कम्युनिस्ट देश एक ताकतवर सत्ता के हाथ ही रहा, जिसने यहां के लोगों को कभी देश से बाहर झांकने नहीं दिया. किसी पर भी शंका हुई तो उसे खत्म करने में दया नहीं दिखाई. किम ने तो अपने रिश्तेदारों को भी नहीं बख्शा. संभवत: उत्तर कोरिया ऐसा एकमात्र देश हैं, जहां सीमा पर खड़े सैनिकों की बंदूकें दुश्मन सैनिकों की तरफ नहीं बल्कि अपने ही लोगों की तरफ रहती हैं. ताकि यदि कोई सीमा पार करने की कोशिश करे तो उसे गोली से उड़ा दिया जाए. कुल मिलाकर गद्दारी की सजा मौत है. अब ऐसी व्यवस्था में जहां अमेरिका के पास किम के बारे में सूचना देने के लिए चिडि़या भी मौजूद नहीं है, वहां उस पर हमले कैसे किया जाए, ये अमेरिका को आखिरी समय तक समझ नहीं आया.
4. दुश्मन की कमजोर नस पर हमेशा हाथ रखिए
किम जोंग उन ने सीधे अमेरिका को चुनौती देने के बजाए जिस गंभीरता से दक्षिण कोरिया और जापान को अपने निशाने पर रखा, वह रणनीतिक रूप से असाधारण रहा. अब पीछे मुड़कर देखने से लगता है कि यदि उत्तर कोरिया इन दो देशों पर दबाव नहीं बनाता, तो शायद अमेरिका सुलह के लिए मजबूर नहीं होता.
इराक ने तो एक बार कुवैत पर हमला ही बोल दिया था. लेकिन किम जोंग उन ने ऐसी गलती दक्षिण कोरिया या जापान के साथ नहीं की. जब सिर्फ धमकियों से ही काम हो रहा है तो हमले की क्या जरूरत? लीबिया के राष्ट्रपति कर्नल गद्दाफी ने तो बिना किसी सुरक्षा के दुनिया से लोहा ले लिया और पूरी तरह एक्सपोज होने के कारण उतनी ही जल्दी अपने अंत के नजदीक पहुंच गए.
किसी भी विपरीत स्थिति के लिए किम ने अपनी सेना को हमेशा तैयार रखा है.
5. विपरीत समय के लिए एक 'लचीली' खिड़की खुली रखिए
भयंकर युद्ध और फिर भीषण अंत को प्राप्त हुए दुनिया के तानाशाहों की कहानी से एक कॉमन सबक ये है कि जो समय रहते हुए झुका नहीं, उसे टूटना पड़ा है. फिर चाहे वह हिटलर हो, सद्दाम या गद्दाफी. सीरिया के राष्ट्रपति असद के पास तो समय रहते रूसी मदद पहुंच गई, वरना वो भी किसी दर्दनाक अंत को पा चुके होते. लेकिन इन सभी राजनेताओं के विपरीत यदि किम जोंग उन को देखें तो पाएंगे कि महज सात साल सत्ता संभालने का अनुभव और 32 साल की उम्र में उन्होंने जो गंभीरता दिखाई है, वह कम ही दिखाई देती है. अपने देश की सुरक्षा को लेकर उन्होंने जो हठ दिखाया उसे भले दुनिया ने खतरनाक माना हो, लेकिन जब सुलह करने की बात आई तो वे ट्रेन से बीजिंग पहुंच गए. और कदमताल करते हुए वर्षों पुराने दुश्मन देश दक्षिण कोरिया भी.
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डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन के बीच काफी तीखा संवाद हो चुका था, लेकिन जब सिंगापुर में वे मिले तो उस कड़वे अतीत की झलक भी दिखाई नहीं दी. ट्रंप को तो जैसे उन्होंने शीशे में ही उतार लिया. यही वजह है कि 13 जून को अपने ट्वीट में डोनाल्ड ट्रंप लिखते हैं कि ‘लोगों को लगता था कि उत्तर कोरिया से युद्ध होकर रहेगा. राष्ट्रपति ओबामा उसे सबसे बड़ा खतरा मानते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है- चैन से सो जाइए.’ यदि ट्रंप जैसे राष्ट्राध्यक्ष के मन में उत्तर कोरिया को लेकर इतना भरोसा जागा है तो मान लीजिए कि ये किम जोंग उन की ही कामयाबी है. और कामयाब नेता तो प्रेरणा देते ही हैं.
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