Agnipath Row: बिहार में बवाल के बीच जेडीयू-बीजेपी आमने-सामने क्यों?
अग्निपथ को लेकर जेडीयू बीजेपी के बीच के मतभेद को समझा जा सकता है. एक ओर जहां बीजेपी शासित राज्यों ने अग्निवीरों के लिए केंद्र की नौकरी के बाद राज्य सरकारों की सेवा में प्राथमिकता देने का ऑफर दिया है, तो वहीं बिहार में छात्रों के प्रदर्शन के बाद भी बीजेपी की गठबंधन साथी जेडीयू ने छात्रों के लिए ऐसी कोई घोषणा नहीं की है.
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सेना में भर्ती के लिए केंद्र सरकार की नई योजना (अग्निपथ) का विरोध तो पूरे देश में हो रहा है लेकिन सबसे ज्यादा विरोध बिहार में देखने को मिला है. राज्य के कई जिलों में हिंसक प्रदर्शन हुए हैं और कई ट्रेनों और वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया. प्रदर्शनकारियों ने बीजेपी के नेताओं और पार्टी के दफ्तरों को भी निशाना बनाया है जिसके बाद से बिहार बीजेपी के कुछ नेताओं को केंद्र सरकार ने सीआरपीएफ सुरक्षा मुहैया कराई है. बता दें कि नवादा और सासाराम में भाजपा के दफ्तरों में तोड़फोड़ और आगजनी की खबर आयी तो वहीँ डिप्टी सीएम रेणु देवी के घर पर भी तोड़फोड़ हुई थी साथ ही बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल भी गुस्से से अछूते नहीं रहे. इन सब के बीच ऐसे आरोप लगे हैं कि प्रदर्शन के दौरान बिहार पुलिस बहुत सक्रिय नहीं दिखी है. राज्य में बीजेपी और जेडीयू की साझा सरकार है लेकिन राज्य में मौजूदा बवाल के बाद ऐसी अटकलें लगायी जा रही हैं कि ये गठबंधन आखिर कब तक चलेगा?
पीएम मोदी की अग्निपथ योजना और उसपर उठे बवाल पर जो रवैया नीतीश कुमार का है वो कई मायनों में हैरान करने वाला है
शनिवार को बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई करने का आरोप नीतीश कुमार की सरकार पर लगाया तो वहीं जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी बीजेपी के आरोपों का जवाब दिया और कहा है कि नीतीश कुमार प्रशासन चलाने में सक्षम हैं. दोनों दलों के बीच इस योजना को लेकर सहमति नहीं दिखती है, वैसे नीतीश कुमार ने तो इसपर अब तक कुछ नहीं कहा है लेकिन जेडीयू के दूसरे नेताओं ने भारत सरकार से इसपर पुनर्विचार करने की बात कही है.
अग्निपथ को लेकर जेडीयू बीजेपी के बीच के मतभेद को इससे भी समझा जा सकता है कि एक ओर जहां बीजेपी ने पार्टी शासित राज्यों में अग्निवीरों के लिए केंद्र की नौकरी के बाद राज्य सरकारों की सेवा में प्राथमिकता देने का ऑफर दिया है, तो वहीँ बिहार में छात्रों के प्रदर्शन के बाद भी बीजेपी की गठबंधन साथी जेडीयू ने छात्रों के लिए ऐसी कोई घोषणा नहीं की है.
मतभेद की बात नयी नहीं है
दोनों दलों के बीच के मौजूदा खटपट की तह में जाएं तो ये अचानक से हुई घटना नहीं है क्योंकि अग्निपथ योजना का विरोध तो उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में भी खूब हो रहा रहा है और बिहार सहित इन राज्यों में ज्यादा प्रदर्शन होना कोई हैरानी की बात नहीं है क्योंकि इन राज्यों से ही ज्यादा लोग सेना में भर्ती की लिए जाते हैं साथ ही उत्तर प्रदेश और पंजाब को छोड़ बाकि तीनो राज्यों में बेरोजगारी दर भी 10 प्रतिशत के ऊपर है.
ऐसे में कइयों का मानना है कि अग्निपथ योजना के बहाने नीतीश कुमार बीजेपी को दबाव में बनाये रखने की राजनीति कर रहे हैं. यह देखना होगा कि आने वाले दिनों में बिहार की सियासत में इसका क्या असर देखने को मिलेगा. इतना तो तय है कि जिस तरह दोनों पार्टियों के नेता एक-दूसरे पर हमले करने में लगे हैं वो दिखाता है कि देर-सवेर बीजेपी-जेडीयू का रिश्ता खत्म होने वाला है क्योंकि हाल में तकरीबन हर मुद्दे पर दोनों की असहमति और नेताओं की तीखी बयानबाजी से माहौल उसी दिशा में बन रहा है.
हाल ही में, गृह मंत्री अमित शाह की ओर से इतिहास को लेकर दिए गए बयान पर नीतीश कुमार ने पलटवार किया. नीतीश कुमार ने कहा कि देश के इतिहास को कोई कैसे बदल सकता है? इतिहास तो इतिहास है. इसे बदला नहीं जा सकता. उन्होंने कहा कि इतिहास को कैसे बदला जा सकता है? ये मेरी समझ से परे है. नीतीश कुमार ने ये बातें जनता दरबार के बाद कहीं.
दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जनता दरबारके बाद पत्रकारों ने सवाल किया था. केंद्र सरकार में गृह मंत्री अमित शाह के बयान को लेकर पूछे गए सवाल पर नीतीश कुमार ने ये बातें कहीं थी. बता दें कि गृह मंत्री अमित शाह ने देश के इतिहास को सही तरीके से दोबारा लिखे जाने की वकालत की थी. अमित शाह ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि देश में इतिहासकारों ने मुगलों के इतिहास को ज्यादा तवज्जो दी.
देश के राजवंशों, राजा-महाराजाओं को इतिहासकारों ने उतनी तरजीह नहीं दी जितनी दी जानी चाहिए थी. इससे करीब हफ्ते भर पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र कहे जाने वाले ऑर्गनाइजर में नीतीश कुमार के शासन पर एक लेख छपा था जिसमें नीतीश कुमार सरकार की आलोचना की गई थी. नीतीश सरकार को स्वास्थ्य, शिक्षा, कानून, रोजगार सृजन सहित कई मोर्चों पर नाकाम बताया गया.
पिछले महीने अचानक मीडिया में खबरें आईं कि राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश कुमार विपक्ष का उम्मीदवार बन सकते हैं. इसके बाद तो जैसे बयानबाजी की बाढ़ आ गई थी. खुद नीतीश कुमार ने इन खबरों का खंडन किया लेकिन यह कहा जाने लगा कि बिहार में मुख्यमंत्री बदला जा सकता है. यूपी चुनाव के दौरान बीजेपी से दुश्मनी मोल लेने वाले विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को झटका देते हुए बीजेपी ने उनके तीनों विधायकों को अपनी पार्टी में मिला लिया.
इस बीच ऐसी रिपोर्ट्स भी आती रहती हैं जिनमें ये दावे होते रहे हैं कि बिहार में कानून व्यवस्था और शराबबंदी के मुद्दे को लेकर लगातार नीतीश कुमार का ग्राफ गिर ताजा रहा है और राज्य में बीजेपी अब अपना सीएम बनाने की सोच रही है. वैसे भी 243 सदस्यों वाले विधानसभा में 77 विधायकों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है जबकि सहयोगी जेडीयू के 45 विधायक हैं.
हाल के लाउड स्पीकर विवाद को लेकर भी नीतीश कुमार का बयान आया था. श्री कुमार ने तब बीजेपी से अलग रुख अख्तियार करते हुए लाउडस्पीकर विवाद को फालतू का मुद्दा बताया था. उन्होंने कहा था, 'ये फालतू की चीज है, जिसे जैसे मन करता है, वो वैसे चलता है. सबकी अपनी इच्छा है. ये सब चीजों पर कहीं कोई खतरा नहीं है'. यही नहीं समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर भी जेडीयू की बीजेपी से अलग राय है.
इससे पहले केंद्रीय मंत्री और जेडीयू नेता आर सीपी सिंह के मसले पर भी नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच मतभेद देखने को मिले थे. नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को राज्यसभा का टिकट नहीं दिया था. हाल ही में जेडीयू ने आरसीपी सिंह के कुछ करीबी नेताओं को भी पार्टी से निकाला है. माना जा रहा थाकि जेडीयू में गुटबाजी को बढ़ावा देने और बीजेपी से नजदीकियों को लेकर आरसीपी सिंह नीतीश कुमार के निशाने पर थे.
अप्रैल में मुख्य विपक्षी दल आरजेडी की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया था जिसमें सीएम नीतीश कुमार भी शामिल हुएथे. इफ्तार के बहाने राबड़ी के घर नीतीश कुमार लगभग 5 साल बाद पहुंचे थे जिसके कई सियासी मायने निकाले गए.कुछ महीनों पहले बिहार विधानसभा के उस वाकये को कैसे भूल सकते हैं जब में गुस्से में तमतमाए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पीकर को संविधान देखने की नसीहत तक दे डाली थी.
जिसके बाद जेडीयू और बीजेपी में सियासी खींचतान देखने को मिली थी लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने खुद आगे आकर ये विवाद खत्म कर दिया था.
जेडीयू और बीजेपी के रिश्तों का इतिहास
जुलाई 2017- 2015 में जेडीयू ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी और बीजेपी गठबंधन को मात देकर सत्ता हासिल की थी. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे तो तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने थे, लेकिन दो साल के बाद जेडीयू और आरजेडी में रिश्ते बिगड़ गए थे. ऐसे में नीतीश कुमार ने जुलाई 2017 में आरजेडी-कांग्रेस से नाता तोड़कर फिर एक बार बीजेपी,के साथ हाथ मिलाकर मुख्यमंत्री बने थे.
जून 2013- बीजेपी और जेडीयू का 17 साल पुराना रिश्ता टूट गया था. इसकी औपचारिक घोषणा खुद जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव ने की थी. इस दौरान उनके साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद थे. गठबंधन तोड़ने का ऐलान करते हुए शरद यादव ने कहा था कि 'हमारा गठबंधन 17 साल पुराना है. अटल जी और आडवाणी जी के साथ मिलकर एनडीए बनाया. पर पिछले 6-7 महीने में हालात बिगड़ गए. एनडीए अपने नेशनल एजेंडे से भटक गया. ऐसे में हमारी पार्टी का बीजेपी के साथ चल पाना मुश्किल है.'
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