नागालैंड, महिला आरक्षण, हिंसा और फिर सेना...
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि सेना का इस्तेमाल कुछ इस रुप में हुआ हो. महिलाओं का इस तरह से प्रदर्शन करना सच में कल्पना से परे है.
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देश में पहले ही आरक्षण की मांग को लेकर अलग-अलग राज्यों में आंदोलन होते रहे हैं. हरियाणा का जाट आंदोलन तो आपको याद ही होगा. 27 लोगों का मौत हो गई. महिलाओं के साथ रेप भी हुए, मगर कोई नहीं पकड़ा गया. ऐसे ही आरक्षण की मांग को लेकर गुजरात में भी आंदोलन देखा गया. हार्दिक पटेल को तो अब आरक्षण का नेता ही कहा जाता है. हालांकि वो आरक्षण कुछ और था. नागालैंड में स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के खिलाफ आदिवासी भड़क गए और आखिरकार हिंसक प्रदर्शन ने जन्म लिया.
नागालैंड भारत का एक उत्तर पूर्वी राज्य है. इसकी राजधानी कोहिमा है. नागालैंड की सीमा पश्चिम में असम से, पूर्व में बर्मा से और दक्षिण में मणिपुर से मिलती है. यहां पर महिलाओं को मिल रहे आरक्षण के खिलाफ हिंसा भड़की हुई है. दरअसल अर्बन लोकल बॉडी में महिलाओं के लिए 33 फीसद आरक्षण देने का प्रस्ताव नगालैंड सरकार ने पेश किया है. 2012 में नागा मदर्स संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट से ये मांग की गई कि वो नागालैंड सरकार को अर्बन लोकल बॉडी में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण मुहैया कराने के लिये निर्देश जारी करे. अप्रैल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने नागा मदर्स संगठन के पक्ष में फैसला सुनाया.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुपालन में नागालैंड सरकार ने 16 साल से लंबित अर्बन लोकल बॉडी में चुनाव कराने का फैसला किया.
अगर कुछ वर्ष पीछे जाएं तो 2006 में नगालैंड की एक सशक्त जनजातीय परिषद ने अर्बन लोकल बॉडी में चुनाव कराए जाने का विरोध किया था. दरअसल उनकी शिकायत थी कि जिस आरक्षण व्यवस्था के तहत चुनाव कराए जाने थे उनमें सही ढंग से आरक्षण के बारे में जानकारी नहीं थी. ऐसे ही कुछ मुद्दे थे जिस पर विरोध चलता रहा. देश में आखिरी नतीजा सुप्रीम कोर्ट का ही माना जाता है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद नगालैंड सरकार ने अर्बन लोकल बॉडी में 33 फीसद महिला आरक्षण को पेश किया. लेकिन नगालैंड की कई जनजातीय परिषदों का कहना है कि ये प्रावधान अनुच्छेद 371A के तहत नागा लोगों को जो अधिकार मिले हैं, उसका उल्लंघन हो रहा है.
30 जनवरी 2017 को नगालैंड बैपटिस्ट काउंसिल ने नगालैंड सरकार और ज्वाइंट कोआर्डिनेशन कमेटी के बीच मध्यस्ता की. दोनों पक्षों के बीच बचाव का रास्ता ये निकाला गया कि जनजातीय परिषदें अपनी विरोध प्रदर्शन बंद कर देंगी और सरकार चुनावों को दो महीनों के लिए टाल देगी. लेकिन गुवाहाटी कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने चुनावों को टालने से इंकार कर दिया.
उसके बाद से ही नागालैंड ने हिंसा को जन्म दे दिया और आखिरकार कई लोगों की इस हिंसा में मौत भी हो गई. मगर ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि सेना का इस्तेमाल कुछ इस रुप में हुआ हो. महिलाओं का इस तरह से प्रदर्शन करना सच में कल्पना से परे है.
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