भारतीय राजनीति के उपवन में 'सदाबहार-मौसमी' फल हैं अमर सिंह
सबकी हिस्ट्री का पता लगाने का हुनर या राजनेताओं के राज जानना अमर सिंह की काबिलियत हो सकती है, लेकिन चुनावी राजनीति के मैदान में वो खड़े होने की कोशिश भी करें तो औंधे मुंह गिरेंगे.
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देश में आम चुनाव आने वाले हैं और यही कारण है कि अमर सिंह के भी अच्छे दिन आने लगे हैं. हर माहौल में जोड़-तोड़ में माहिर अमर सिंह एक बार फिर चर्चा में हैं. अमर सिंह के लिए जोड़-तोड़ में खुद को जोड़ लेने की कला और जिनसे जुड़े उन्हें तोड़ डालने के हुनर से है - क्योंकि अमर सिंह को जानने वाले उन्हें इसी स्वरूप में लेने लगे हैं.
यूपी चुनावों से पहले नवाबों के शहर लखनऊ के राजनीतिक ठीहों से दूरी बना चुके अमर सिंह फिर से दस्तक देने लगे हैं. माना जाता है कि यूपी चुनाव से पहले ही अमर सिंह अपने खास मिशन को अंजाम दे चुके थे और उसके बाद मीडिया के जरिये लोगों के बीच कभी कभार ही मुखातिब रहे. दो दिन के लिए लखनऊ दौर पर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महफिल में अमर सिंह की जो मजबूत मौजूदगी महसूस की गयी, उससे हर किसी को ये मानने के लिए मजबूर होना पड़ा कि राजनीति में अमर सिंह भले ही मौसमी फलों की तरह अलग अलग मौकों पर अलग अलग रूप में नजर आयें, लेकिन उनकी फितरत बेजोड़ और सियासत सदाबहार है.
अमर सिंह सबकी हिस्ट्री जानते हैं
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर योगी आदित्यनाथ के बैठने के बाद से भगवा किसी न किसी रूप में चर्चा का हिस्सा न रहे, ऐसा कम ही होता है - कभी टॉयलेट तो कभी कोई और इमारत भगवा रंग में रंग दी जाती है. हैरानी की बात तो ये रही कि इस बार अमर सिंह भी भगवा चोले में पहुंचे.
अमर सिंह का भगवा अंदाज भी देखिये!
जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का झगड़ा चल रहा था अमर सिंह के नाम पर हर रोज नये किस्से सामने आते रहे. तब ये भी माना जा रहा था कि अमर किसी खास मिशन पर हैं - और मुलायम सिंह के परिवार में जो कुछ हुआ उसमें कदम कदम पर अमर सिंह का कोई न कोई रोल जरूर समझा गया. तभी अखिलेश यादव ने 'बाहरी आदमी' बोल कर सारे कयासों को ऐसा जामा पहनाया कि लगने लगा अमर सिंह की कलाकारी के जो चर्चे लखनऊ के सियासी गलियारों में तैर रहे हैं वे हवाई नहीं हैं.
चर्चित किस्सों में से एक रहा मुलायम सिंह यादव का अमर सिंह के प्रति एहसानमंद रहने की असली वजह. उन्हीं दिनों अमर सिंह ने खुलासा किया था कि वो अमर सिंह ही रहे जिन्होंने उन्हें बचा लिया वरना सात साल की सजा हो चुकी होती. कानून के जानकार या कानून में दिलचस्पी रखने वाले अपने अपने हिसाब से तब डिकोड भी करते रहे - मगर हकीकत या तो मुलायम सिंह को मालूम है या फिर अमर सिंह के सीने में दफन है.
लखनऊ पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने औद्योगिक घरानों से रिश्तों को लेकर उठाये जाने वाले सवालों पर विपक्ष को निशाना बनाया. महात्मा गांधी और बिड़ला के संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि ये कोई चोर नहीं हैं. साथ ही प्रधानमंत्री ने कहा कि जो लोग सवाल उठाते हैं वे चोरी छिपे मिलते रहते हैं. उद्योगपतियों की उस महफिल में मौजूद अमर सिंग की प्रधानमंत्री मोदी ने खास अंदाज में चर्चा भी की.
प्रधानमंत्री मोदी बोले, "कुछ लोगों को आपने देखा होगा कि उनकी एक फोटो नहीं निकाल सकते किसी उद्योगपति के साथ... लेकिन देश में एक उद्योगपति ऐसा नहीं है जिसने उनके के घरों में जाकर दंड-बैठक ना की हो... यहां अमर सिंह बैठे हैं, वो उनकी सारी हिस्ट्री निकाल देंगे."
प्रधानमंत्री मोदी की ये बात सुनने के बाद कुछ देर के लिए ठहाके रोकना मुश्किल हो चला था. फिर क्या था अमर सिंह ने भी एक एक करके ब्रेकिंग न्यूज की झड़ी लगा दी - और वे बातें सुर्खियों में छा गयीं.
मुलायम के खिलाफ लड़े तो अमर सिंह की जमानत जब्त हो जाएगी
प्रधानमंत्री मोदी ने महफिल में अमर सिंह को तवज्जो जरूर बख्शी, लेकिन इतना भी नहीं कि उनके लिए लोक सभा के टिकट तक बात पहुंच सके. आजमगढ़ से होने के कारण अमर सिंह के दिल में इलाके को लेकर हमेशा ही कुछ कुछ होता रहता है. बीते बरसों में अमर सिंह के आजमगढ़ से चुनाव लड़ने की चर्चाएं कई बार जोर भी पकड़ चुकी हैं. इस बार भी मामला कुछ ऐसा ही है, लेकिन कड़ी शर्तें राह में रोड़ा बन रही हैं.
योगी सरकार में मंत्री और एनडीए में बीजेपी के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर ने अमर सिंह को अपने हिस्से से ऑफर दिया है. राजभर का कहना है कि अगर अमर सिंह चाहें तो उनके लिए लोक सभा चुनाव लड़ने का ऑफर दिया जा सकता है.
राजभर ने कहा है, "अगर अमर सिंह आजमगढ़ से 2019 चुनाव लड़ना चाहते हैं - और वो सीट हमारे कोटा के तहत आती है तो हम खुशी-खुशी उन्हें ऑफर करेंगे."
अभी जो स्थिति है उसमें ये बात न सिर्फ अमर सिंह बल्कि ओम प्रकाश राजभर के लिए भी ख्याली पुलाव से ज्यादा नहीं लगती. पहली बात तो बीजेपी किसी भी सहयोगी दल को आजमगढ़ सीट देने से रही, दूसरी बात अमर सिंह चाहें तो भी मुलायम सिंह को चुनावी मैदान में चुनौती देने की कुव्वत नहीं रखते. उद्योपतियों की हिस्ट्री या राजनेताओं के राज की फेहरिस्त लेकर चलना और भरे मैदान से लोगों के वोट बटोरने में आकाश पाताल का फर्क होता है. समाजवादी विवाद काल में भी दबी जबान अक्सर चर्चा हुआ करती थी कि अमर सिंह के पास मुलायम सिंह के कुछ खास राज हैं और वो उन्हीं की वजह से अहम बने हुए हैं. बहरहाल, फिलहाल वे बातें किसी कोने में दुबकी होंगी. प्रसंग आने पर जो शक्ल अख्तियार करें देखी जाएंगी.
फिलहाल सवाल ये है कि क्या बीजेपी ओम प्रकाश राजभर को मन माफिक सीटें देंगी? अमित शाह के हाल के मिर्जापुर-वाराणसी दौरे से तो यही सामने आया कि अपना दल की अनुप्रिया पटेल के बारे ऐसा भले हो सकता है, लेकिन ओम प्रकाश राजभर के मामले फिलहाल तो संभव नहीं लगता.
रही बात अमर सिंह के मुलायम सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने की - ये वैसे ही है जैसे डॉन को पकड़ना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है.
मोदी लहर की बात और है, वरना अमर सिंह अगर मुलायम सिंह के खिलाफ मैदान में उतरे तो जमानत बचा लें वही बड़ी बात होगी. 2014 की मोदी लहर में मुलायम सिंह यादव यूपी में दो दो सीटों से चुनाव जीते थे. वैसे इस बार मुलायम सिंह के आजमगढ़ छोड़ देने और मैनपुरी से ही चुनाव में लड़ने की चर्चा है.
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