जम्मू से शाह ने 2019 आम चुनाव का एजेंडा सामने रख दिया
बीजेपी के 'संपर्क फॉर समर्थन' अभियान के दरम्यान ही अमित शाह ने 2019 का एजेंडा बता दिया है. शाह ने इसके लिए वो मंच चुना जहां से जम्मू और लद्धाख के लोगों की 'मन की बात' की जा सके - और मैसेज पूरे देश में डिलीवर हो जाये.
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जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के मौके को अमित शाह के जम्मू दौरे के लिए बहुत सोच समझ कर प्लान किया गया था. मंच से अमित शाह ने महबूबा को खरी खोटी सुनाकर जम्मू और लद्दाख के लोगों को तो संदेश दिया ही, एनडीए के साथियों को भी जरूरी मैसेज दे डाला. जब कार्यकर्ताओं से मुखातिब हुए तब टिप्स तो दिये ही, वो मंत्र भी दिया जो 2019 में बीजेपी का एजेंडा होगा.
क्या है शाह का 2019 का मंत्र
बीजेपी का संपर्क फॉर समर्थन अभियान जारी है जिसमें उन लोगों को टारगेट किया जा रहा है जो समाज में अपने बात-व्यवहार से लोगों के बीच ओपिनियन तैयार करते हैं. बीजेपी और संघ नेताओं की सूरजकुंड बैठक में भी मंथन इन्हीं बातों पर फोकस रहा. लेकिन एजेंडे के लांचपैड के तौर पर अमित शाह ने वो मंच चुना जहां से जम्मू और लद्धाख के लोगों की 'मन की बात' की जा सके और पूरे देश को मैसेज दिया जा सके. कुछ कुछ बारी बारी उछल रहे और जब तब जरूरत से ज्यादा कुलांचे भर रहे सहयोगी दलों तक भी पहुंच जाये तो कहना ही क्या.
'ऑपरेशन राष्ट्रवाद'...
महबूबा मुफ्ती के नाम पर विरोधियों पर हमले के साथ ही, अमित शाह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी साफ कर दिया कि पार्टी राष्ट्रहित से कोई समझौता नहीं करेगी. समझाने की कोशिश भी यही रही कि सबको साफ साफ समझ लेना चाहिये कि राष्ट्रहित से जुड़े मामले पार्टी के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं और बीजेपी 2019 का चुनाव इसी एजेंडे के साथ लड़ेगी.
अमित शाह के भाषण से ये भी साबित हो गया कि वास्तव में बीजेपी जम्मू, ऊधमपुर और लद्दाख को लेकर खासी चिंतित थी. इनपुट मिले थे कि बीजेपी का इन इलाकों में जनाधार कमजोर हो रहा है. खास बात ये रही कि बीजेपी इन्हीं इलाकों के भरोसे जम्मू कश्मीर में सरकार में साझीदार बनने में कामयाब हो पायी थी. महबूबा पर जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में विकास को लेकर भेदभाव बरतने की बातों की वजह भी यही रही.
तो अब मान कर चलना चाहिये कि 2019 के लिए बीजेपी जम्मू कश्मीर से 'ऑपरेशन राष्ट्रवाद' भी शुरू कर चुकी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंडा भी तो यही है.
'ऑपरेशन राष्ट्रवाद'
जम्मू कश्मीर में ऑपरेशन ऑल आउट में पहले के मुकाबले कहीं और ज्यादा सख्ती भी ऑपरेशन राष्ट्रवाद का ही हिस्सा है. विरोधियों को राष्ट्रवाद के नाम पर उकसा कर उन्हें गलती का मौका देना भी इसी एजेंडे का हिस्सा है. महबूबा मुफ्ती, गुलाम नबी आजाद और सैफुद्दीन सोज के बयान और कांग्रेस का अब तक का स्टैंड ठीक उसी दिशा में बढ़ रहा है जैसा बीजेपी चाह रही है. जम्मू-कश्मीर के नाम पर बीजेपी अपने वोट बैंक में देशभक्ति का भाव भर कर उन्हें पूरी तरह एकजुट करने की कोशिश कर रही है. इतना एकजुट कि विरोधी दल चाह कर भी उन्हें बरगला न पायें.
महबूबा के बहाने एनडीए नेताओँ को बीजेपी दे रही है मैसेज
सूत्रों के हवाले आ रही खबरें बताती हैं कि बीजेपी की रणनीति ये है कि ऑपरेशन राष्ट्रवाद के साथ-साथ जम्मू, उधमपुर और लद्दाख रीजन में अधिक से अधिक विकास के काम हों. विकास के काम होने का मतलब चुनाव से पहले जितने भी संभव हों पूरे हो जायें. अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो जिस तरह 2014 में गुजरात मॉडल चला था - 2019 में संभव है जम्मू-कश्मीर मॉडल चुनावी मार्केट में कूद पड़े. याद कीजिए जब जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनी ही थी कि बीजेपी नेताओं की ओर से धारा 370 की समीक्षा को लेकर बयानबाजी शुरू हो गयी थी. बाद में रुक गयी. मतलब साफ है, महबूबा ने कड़ी आपत्ति जतायी होगी. तब तो सरकार को समर्थन जारी रखना भी जरूरी था.
पिछले साल धारा 35A को लेकर भी खूब चर्चा हुई. दरअसल, धारा 35A के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों को विशेष हक हासिल है. इस मसले पर कश्मीरी पार्टियों के साथ महबूबा मुफ्ती भी डटी रहीं. तब ऐसी आशंका जतायी जा रही थी कि केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी राजनीतिक तरीके से समाप्त करने में असफल रहने पर कानूनी तरीके से खत्म करने की रणनीति बना सकती है और एक दिन उसे रद्द किया जा सकता है.
ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है. तब मोदी सरकार ने इस पर सावधानी के साथ कोर्ट में अपना पक्ष रखा था. अब खबर ये आ रही है कि इस स्टैंड में तब्दीली हो सकती है. तर्क ये है कि बीजेपी मानती है कि धारा 35A के हटने से सूबे की तकरीबन आधी समस्याएं खत्म हो सकती हैं.
जम्मू और कश्मीर होने वाले ये प्रयोग पूरे देश में जोर शोर से प्रचारित किये जाएंगे - और फिर संघ के राष्ट्रवाद का एजेंडा चल पड़ेगा.
महबूबा के बहाने एनडीए के साथियों को मैसेज
महागठबंधन छोड़ कर नीतीश कुमार के बीजेपी से हाथ मिलाने पर सवाल उठा तो जेडीयू की ओर से जो बयान आया उसमें एक उदाहरण धारा 370 भी रहा. जेडीयू की दलील थी कि धारा 370 पर जो स्टैंड बाकी दलों का है बीजेपी का भी तो वही है. फिर संघ के एजेंडा का सवाल कहां से पैदा होता है? अगर बीजेपी ने स्टैंड बदला फिर तो सबसे ज्यादा मुश्किल में जो आएंगे उनमें सबसे पहले नंबर पर तो नीतीश कुमार ही होंगे.
जो समझ ले उसके लिए भी संदेश...
नीतीश कुमार वैसे भी इन दिनों सांप्रदायिकता से कभी समझौता न करने की बात बहुत जोर देकर कह रहे हैं. फिर तो अमित शाह का मैसेज उन्हें भी मालूम हो जाना चाहिये.
महबूबा सरकार से सपोर्ट वापस लेने की बात को सही ठहराते हुए अमित शाह का ये कहना कि सरकार बीजेपी के लिए बहुत मायने नहीं रखती. यही बात नीतीश कुमार पर भी तो लागू होती है. मुद्दे की बात एक और भी थी कि बीजेपी नेतृत्व को पता लग चुका था कि अगर कोई फैसला नहीं लिया तो महबूबा खुद साझा सरकार से हट सकती हैं. महबूबा ऐसा कुछ कर पातीं उससे पहले ही बीजेपी ने धोबीपाट दाव चल दिया. कश्मीर के लोगों को महबूबा जो भी समझायें, देश के बाकी हिस्सों के लिए बीजेपी ने ही मैदान जीता है. अगर नीतीश खेमे में भी ऐसी किसी तैयारी की बात बीजेपी को पता चली, फिर तो क्या होगा अंदाजा लगाया जा सकता है. फर्क बस ये है कि महबूबा और नीतीश कुमार में भी बहुत बड़ा फर्क है. देखा जाये तो लालू प्रसाद के साथ नीतीश ने भी ऐसा ही खेल खेला था.
सकारात्मक साइड इफेक्ट ये होगा कि शिवसेना जैसी सहयोगी पार्टी जो इन दिनों खूब उछल रही है, खुद ही शांत हो जाएगी. जिस लाइन पर उद्धव ठाकरे की राजनीति चलती है, बीजेपी का भी वही ट्रैक है. बीजेपी ऑपरेशन राष्ट्रवाद की राह में बाधा बन शिवसेना भी आने से रही. बीजेपी तो पहले ही शिवसेना की कई जड़ें काट चुकी है. हालिया उपचुनावों के नतीजे लेटेस्ट सबूत हैं.
शिवसेना के लिए अलर्ट!
दायरा थोड़ा बढ़ा कर सोचें तो ये सब बीजेपी के मुख्यमंत्रियों के लिए भी अलर्ट है. अगर गठबंधन की महबूबा सरकार को अमित शाह इस तरह ट्रीट कर सकते हैं जैसे कोई कांग्रेसी सरकार रही हो. अब अगर किसी बीजेपी मुख्यमंत्री के साथ भी ऐसा हो तो हैरानी नहीं होनी चाहिये. क्या पता कभी वसुंधरा राजे या योगी आदित्यनाथ के बारे में भी सुनने को मिले - "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो इतने पैसे भेजे, लेकिन विकास का कोई काम ही नहीं हुआ... "
एक सवाल और - बीजेपी के ऑपरेशन राष्ट्रवाद में और क्या क्या हो सकता है? कहीं वो सब भी तो नहीं जो बीजेपी एमएलए चौधरी लाल सिंह खुलेआम दहाड़ते फिर रहे हैं!
लाल सिंह की ललकार!
कठुआ के बशोली से विधायक चौधरी लाल सिंह मीडिया की सुर्खियों का पूरा लुत्फ उठाने लगे हैं. अगर ये बीजेपी के एजेंडे का हिस्सा नहीं है तो लाल सिंह की बातों को भी बलिया के बैरिया से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह की ही तरह लिया जाना चाहिये. या साक्षी महाराज जैसे 'मुंह के लाल' नेताओं की तरह.
चौधरी लाल सिंह कठुआ रेप केस को मचे बवाल के बीच ही सुर्खियों में दाखिल हुए थे. तब वो महबूबा सरकार में मंत्री हुआ करते थे, लेकिन उनकी हरकतों से बवाल मचा तो इस्तीफा देना पड़ा था. अब तो बात ही अलग है.
अमित शाह ने भले ही पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या के बहाने महबूबा सरकार पर नाकामियों का ठीकरा फोड़ा हो. भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीजफायर आगे बढ़ाने का फैसला उस जघन्य हत्या के बाद लिया हो, लेकिन लाल सिंह ने तो उसमें अपने असलहों के लिए गोला बारूद ही खोज निकाला है.
जम्मू-कश्मीर के पत्रकारों को सरेआम धमकाते हुए लाल सिंह आगाह कर रहे हैं, "कश्मीर के पत्रकारों ने गलत माहौल पैदा कर दिया था उधर. अब तो मैं कश्मीर के पत्रकारों से कहूंगा कि आप भी अपनी पत्रकारिता की लाइन तय कर लें कि कैसे रहना है... वैसे रहना जैसे शुजात बुखारी के साथ हुआ है? अपने आपको संभालें - और एक लाइन खींचे ताकि यह भाईचारा न टूटे और ये बना रहे."
लाल सिंह की बातों ने जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को बीजेपी पर हमला बोलने का माकूल मौका दे डाला है. असदुद्दीन ओवैसी ने तो जांच और लाल सिंह से पूछताछ तक की मांग कर डाली है.
Dear journalists, your colleagues in Kashmir just got threatened by a @BJP4India MLA. It seems Shujaat’s death is now a tool for goons to use to threaten other journalists. https://t.co/LCLeWnHAK7
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) June 23, 2018
Dear journalists, your colleagues in Kashmir just got threatened by a @BJP4India MLA. It seems Shujaat’s death is now a tool for goons to use to threaten other journalists. https://t.co/LCLeWnHAK7
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) June 23, 2018
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