अमित शाह की असली ताकत छुपी है 'सोनू यादव' में
तीन दिनों के उत्तर प्रदेश प्रवास में अमित शाह ने लगातार लगभग 25 बैठकें कीं. ज्यादातर छोटे बड़े कार्यकर्ताओं से मिले. खुल कर उनसे बात की. अमित शाह की यूपी प्रवास डायरी पर एक नजर.
-
Total Shares
सोनू यादव. यूपी तो छोड़िए, लखनऊ के उस इलाके के लिए भी ये नाम अनजान ही था जहां ये रहते हैं, और तो और भारतीय जनता पार्टी में काम करने वाले ज्यादातर लोग भी शायद ही इस नाम से परिचित थे. पर अब सोनू यादव का नाम मीडिया से लेकर सियासत के गलियारों तक में चर्चा की वजह है. लोगों में उनके साथ सेल्फी लेने की होड़ है. वे दरअसल भारतीय जनता पार्टी में लखनऊ के एक छोटे से इलाके जुगौली के बूथ कार्यकर्ता हैं. और रातों रात उनके चर्चा में आने का कारण है भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का उनके घर भोजन पर जाना.
फेमस हो गए हैं सोनू यादव
एक बेहद संकरे से इलाके में बने छोटे से घर में राष्ट्रीय अध्यक्ष का आना सोनू यादव के लिए किसी सपने से कम नहीं था. मीडिया से बात करते हुए वे कई बार भावुक हुए. कहा कि हर कार्यकर्ता का सपना होता है कि शीर्ष नेता उसके घर आए, उसके साथ तस्वीरें खिंचवाएं पर कितने लोगों के सपने पूरे होते हैं. वे खुद को सौभाग्यशाली बताते हैं, साथ ही ये भी कि अमित शाह के आने खबर लगते ही पूरा घर खुशी से झूम उठा.
मां और पत्नी के साथ ही साथ पास पड़ोस के लोग भी खातिरदारी में जुट गए. अमित शाह को भिंडी-परवल की सब्जी के अलावा खास तौर पर दही और छाछ खिलाई गई. छाछ यदुवंशी परिवारों में हमेशा से स्वागत की परंपरा में रहा है.
घर में बना खाना ही परोसा गया
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत केशव मौर्य, दिनेश शर्मा, ओम माथुर, अरूण सिंह, अनिल जैन और तमाम वरिष्ठ नेता भी इस पल के गवाह बने. पर सिर्फ सोनू यादव ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का यूं एक छोटे से कार्यकर्ता के घर जाना, जमीन पर बैठकर भोजन करना और पूरे परिवार के साथ तस्वीरें खिंचवाने का अंदाज करोड़ों भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह भर गया. वहीं शाह के इस अंदाज से विपक्ष और उसमें भी खासतौर पर सपा में सियापा पसर गया. जिस प्रदेश में लोगों ने आमतौर पर बड़े नेताओं के घरों के बाहर जमीनी कार्यकर्ताओं को धक्के खाते ही देखा हो वहां ऐसी तस्वीरें सुर्खियों में रही.
अपने तीन दिनों के प्रवास के दौरान अमित शाह ने कई नजीर पेश की. मसलन, उत्तर प्रदेश में भारी भरकम बहुमत से सत्ता पाने के बाद वे जब प्रवास पर लखनऊ पहुंचे तब उनके दौरे में वैसा सरकारी तामझाम कतई नजर नहीं आया, जैसा आमतौर पर सत्ताधारी दलों के बड़े नेताओं की अगवानी पर दिखता है. अगवानी से लेकर वापसी तक के कार्यक्रमों में सरकारी तंत्र दूर रखा गया. ना तो पोस्टर बैनरों की भरमार दिखी ना ही पुलिस और प्रशासन का बेजां इस्तेमाल. कुछ नेताओं ने जरूर स्वागत के पोस्टर लगा रखे थे. पर सादगी के उदाहरण के बीच कार्यकर्ताओं का जबरदस्त जोश जरूर नजर आया.
शाह ने भी पूरी गर्मजोशी से कार्यकर्ताओं का जवाब दिया. सादगी का एक उदाहरण तब भी देखने को मिला जब सत्ताधारी दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद बजाए किसी पंचसितारा होटल या फिर आलीशान सरकारी गेस्ट हाउसों में रूकने की बजाए अमित शाह ने भाजपा के प्रदेश कार्यालय के ही एक सामान्य से कमरे में रूकना पसंद किया.
तीन दिनों के प्रवास में उन्होंने लगातार लगभग 25 बैठकें कीं. ज्यादातर छोटे बड़े कार्यकर्ताओं से मिले. खुल कर उनसे बात की. उनकी परेशानियों के बारे में पूछा और तत्काल उसका समाधान भी कराया. इस बीच कभी प्यार के साथ तो कभी नसीहत भरे अंदाज में इस बात का एहसास भी कराया कि अब सरकार हमारी है तो जिम्मेदारी भी हमारी ही है. ये भी कहा कि जनता ने ये बहुमत बहुत अपेक्षा के साथ दिया है और हमें हर हाल में जनता की कसौटी पर खरा उतरना ही है. सरकार और संगठन कैसे उत्तर प्रदेश की 22 करोड़ जनता के सुख की दिन रात चिंता करे, इसका मूल मंत्र भी बताया. ये कह कर कार्यकर्ताओं का दिल भी जीता कि ये जीत आपकी मेहनत का नतीजा है. वे जब ये बोल रहे थे तब लगातार बज रही तालियां इस बात की ताकीद कर रही थीं कि तारीफ के ये शब्द एक कार्यकर्ता के लिए कितने अनमोल होते हैं.
इस दौरान वे शायद ही कभी थके दिखे. बिहार में तेजी से बदल रही राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखने के साथ ही वे पूरे मनोयोग से उत्तर प्रदेश के अपने प्रवास को भी सार्थक करते नजर आए. अति व्यस्त कार्यक्रमों के बीच वे प्रबुद्ध लोगों से भी मिले. उनको भाजपा के बारे में बताया, भाजपा की नीतियों की जानकारी दी. देश प्रधामनंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में कैसे शानदार काम कर रहा है इसका हवाला दिया.
प्रबुद्ध सम्मेलन में पहुंचे युवा व्यवसाई मयूर टंडन मंत्रमुग्ध होकर लौटे. बकौल मयूर, पार्टियों के भीतर लोकतंत्र और अच्छी पार्टी खराब पार्टी का जो फर्क अमित शाह ने बताया वो शानदार था. उन्होंने कहा कि मेरे बाद भाजपा अध्यक्ष कौन होगा ये किसी को नहीं पता, पर कांग्रेस में सोनिया के बाद अगला अध्यक्ष कौन होगा, ये हर किसी को पता है. युवा उधोगपति रजत भी शाह के आत्मविश्वास और लोगों से सीधे संवाद के उनके अंदाज से खासे प्रभावित हुए. पार्टी के भीतर भी जो लोग उनकी बैठकों में शामिल हुए, वे गर्व के साथ ये कहते हुए दिखे कि आज तो सब देखते हैं, अमित शाह तीन दशक बाद की भाजपा के बारे में भी सोच रहे हैं. ई लाइब्रेरी, पंडित दीन दयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी वर्ष से जुड़े कार्यक्रम और सामाजिक समरसता से जुड़े आयोजन इसी का हिस्सा है.
शायद इसीलिए अब उन्हें राजनीति का चाणक्य कहा जाने लगा है. इसका उदाहरण भी तब देखने को मिला जब शाह एक तरफ लखनऊ की धरती पर कदम रख रहे थे, तो दूसरी तरफ सपा-बसपा में भगदड मची हुई थी. पार्टी के तीन कद्दावर नेताओं ने एक साथ पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए. कहा जा रहा है कि ये तो अभी पहली किश्त है, अभी और भी कई नेता लाइन में हैं, ऐसे में अब लोगों की नजर अमित शाह के अगले यूपी दौरे पर है. फिलहाल शाह भाजपा को अजेय बनाने की तपस्या में देश भर के प्रवास पर हैं.
ये भी पढ़ें-
अमित शाह के 'स्वर्णिम काल' का मतलब 'बीजेपी शासन की सिल्वर जुबली' है
बिहार में आंधी और गुजरात में तूफान लाने के बाद यूपी पहुंची बीजेपी की सुनामी
आपकी राय