Andhra Pradesh का 'तीन राजधानी' वाला प्लान जवाब है जमीन घोटालों का
तमाम विरोधों को सिरे से खारिज करते हुए मुख्यमंत्री Jagan Mohan Reddy ने विशाखापट्टनम, कुर्नूल और अमरावती को Andhra Pardesh की राजधानी बनाया है. मुख्यमंत्री इस पर कुछ भी तर्क दे मगर माना यही जा रहा है कि ऐसा उन्होंने Chandrababu Naidu से बदला लेने के लिए किया है.
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विपक्ष के गतिरोध और कवायदों की कोई परवाह न करते हुए आंध्र प्रदेश (Andhra Pardesh) में वो फैसला ले लिया गया जिसने एक नई बहस की शुरुआत कर दी है. आंध्र प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है जिसकी एक या दो नहीं बल्कि तीन राजधानियां (Andhra Pradesh to have three capitals) होंगी. ध्यान रहे कि इससे पहले हम उत्तर प्रदेश में एक मुख्यमंत्री के अलावा दो उप मुख्यमंत्रियों को देख चुके थे. मगर ये पहली बार हुआ है जब हालिया वक़्त में किसी राज्य ने एक से ज्यादा राजधानियों की घोषणा की है. विपक्ष के विरोध को खारिज करते हुए आंध्र प्रदेश विधानसभा (Andhra Pradesh Assembly) में राज्य में तीन राजधानियां बनाए जाने के प्रस्ताव को पारित कर दिया गया है. विशाखापट्टनम, कुर्नूल और अमरावती (Amravati,Visakhapatnam and Kurnool three capitals of Andhra Pradesh ), आंध्र प्रदेश के ये तीनों ही शहर अब राज्य की राजधानी के तौर पर जाने जाएंगे. ये अनोखा फैसला क्यों लिया गया इसकी वजह भी दिलचस्प बताई जा रही है. मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी (Andhra Pradesh CM Jagan Mohan Reddy) चाहते हैं कि तीनों ही शहरों को समानता की नजरों से देखा जाए. मामले में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू (Jagan Reddy allegation on Chandrababu Naidu) का भी रवैया मजेदार हैं. नायडू राज्य सरकार के इस फैसले के पक्ष में नहीं हैं और इसे लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी पर अलग अलग आरोप लगा रहे हैं.
आंध्र प्रदेश की तीन राजधानियों के फैसले पर सीएम जगन मोहन इसे तीन बड़े जिलों की समानता से जोड़कर देख रहे हैं
बता दें कि इस फैसले से पहले विधानसभा में म्यूनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन और अर्बन डेवलपमेंट मंत्री बी सत्यनारायण द्वारा आंध्र प्रदेश विकेंद्रीकरण और सभी क्षेत्रों के समान विकास के लिए एक्ट 2020 की पेशकश की गई थी. साथ ही राज्य के वित्त मंत्री ने इसपर चर्चा का प्रस्ताव रखते हुए कहा था कि सरकार राज्य को चार भागों में विभाजित करके जोनल डेवलपमेंट लागू करना चाहती है. हर जोन में तीन-चार जिले होंगे जो हर क्षेत्र में समान विकास कार्य को सुनिश्चित करेंगे. सदन में वित्त मंत्री ने इस बात का आश्वासन दिया है कि हम राज्य के विकास के लिए जोनल डेवलपमेंट बोर्ड स्थापित करेंगे.
#AndhraPradesh Cabinet approves four bills to be placed in the House. The cabinet also gives nod to the recommendations of the high power committee on state's all round development and decentralization of governance. pic.twitter.com/e6TyoOh249
— ANI (@ANI) January 20, 2020
आंध्र के वित्त मंत्री के अनुसार जोनल डेवलपमेंट बोर्ड विकासकार्यों को गति देने का काम करेगा. साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि सरकार अमरावती मेट्रोपोलिटन रीजन बना रही है जिसके अंतर्गत यहां विधि संबंधी निर्णय लिए जाएंगे. यानी अमरावती आंध्र प्रदेश की विधि राजधानी होगी. वहीँ बात अगर विशाखापट्टनम की हो तो इसे कार्यकारी राजधानी बनाया जाएगा. बात अगर राज्य के तीसरे बड़े शहर कुर्नूल की हो तो इसे अर्बन डेवलपमेंट एरिया बनाया गया है और यह राज्य की न्यायिक राजधानी होगा, बताया ये भी जा रहा है कि अब आंध्र का राज भवन और सचिवालय विशाखापट्टनम में स्थानांतरित होगा.
सरकार के इस फैसले के बाद राज्य में विरोध के स्वर बुलंद हो गए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू तो इसका विरोध कर ही रहे हैं. बात अगर स्थनीय नागरिकों की हो तो टीडीपी समर्थकों की एक बड़ी आबादी ऐसी है जो राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ सड़कों पर है और जगह जगह प्रदर्शन कर रही है.
Former Andhra Pradesh CM & TDP Chief N Chandrababu Naidu: House arrest of party leaders & Amaravati JAC leaders condemnable. Suppression of public voice is undemocratic & against the constitution. Even during the Emergency it was much better. #AndhraPradesh (file pic) pic.twitter.com/J4uiWCoIPW
— ANI (@ANI) January 20, 2020
अमरावती, विजयवाड़ा और गंटूर में नेताओं को हिरासत में लिया गया. वहीं बात अगर किसानों की हो तो किसान भी सरकार के इस फैसले से खासे आवेशित नजर आ रहे हैं और इनके भी बागी तेवर रेड्डी सरकार की मुसीबतों में इजाफा कर सकती है.
तो क्या तीन राजधानियों की वजह विकास ही है?
राज्य के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी विशाखापट्टनम, कुर्नूल और अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाने की वजह समानता और विकास को बता रहे हैं. मगर क्या वाकई ऐसा है? सवाल का जवाब है नहीं. सरकार ने ये फैसला क्यों लिया इसकी वजह है राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्र बाबू नायडू. ध्यान रहे कि जगन मोहन रेड्डी ने पूर्व में टीडीपी नेता चन्द्र बाबू नायडू पर इनसाइडर ट्रेडिंग का आरोप लगाया था. साथ ही उन्होंने इसके लिए एक हाई पावर कमिटी का भी गठन किया था. जिसके निर्माण का उदेश्य उन घोटालों को लोकायुक्त के सामने रखना था जो चन्द्र बाबू नायडू और उनके लोगों ने राज्य में सस्ती जमीनों के नाम पर किये थे.
बता दें कि जगन मोहन सरकार ने टीडीपी नेता नारा लोकेश, पी नारायण समेत अन्य लोगों पर ये आरोप लगाए थे कि ये गुंटूर में इनसाइडर ट्रेडिंग में शामिल हैं. कमिटी का मानना था कि इन सभी नेताओं ने मिलकर गुंटूर में 4,070 एकड़ की जमीनें इनसाइडर ट्रेडिंग के तहत पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू के दिशा निर्देशों में ये सब किया था. ज्ञात हो कि जगन मोहन के इन आरोपों को टीडीपी ने सिरे से खारिज किया था और चन्द्र बाबू नायडू की छवि ख़राब करने की दिशा में इसे एक बड़ी साजिश करार दिया था.
क्या है आंध्र प्रदेश की ये इनसाइडर ट्रेडिंग
बता दें कि जिस समय आंध्र प्रदेश में चन्द्र बाबू की सरकार थी और गुंटूर को राजधानी बनाने की बात आई थी. उनके करीबियों ने उस घोषणा से पहले ही किसानों के साथ बड़ा छल करते हुए जमीनों को औने पौने दामों पर खरीदा था. पिछली सरकार के घोटालों की जांच के लिए जो उपसमिति निर्मित की गई है उसने अपनी रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया है कि टीडीपी के नेताओं ने 900 एकड़ भूमि को एससी और एसटी समूदाय से जबरन ख़रीदा है. साथ ही इस घोटाले में उन लोगों के भी नाम सामने आ रहे हैं जो हैदराबाद के थे और जो सफेद राशन कार्ड धारक थे.
गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश में राजधानी क्या होगी? इस खेल में अगर किसी का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है तो वो किसान हैं जिनकी जमीने तो गयीं साथ ही उन्हें उचित मुआवजा भी नहीं दिया गया. कुल मिलाकर ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि आंध्र प्रदेश में राजधानी बनाया तो बहाना है. दरअसल वर्तमान सरकार उस नैक्सस का भंडाफोड़ करना चाहती है जो चंद्रबाबू के टाइम पर आंध्र प्रदेश में था और जिसने आंध्र प्रदेश जैसे राज्य को दशकों पीछे किया.
जगन की देख रेख में चंद्रबाबू का आने वाला वक़्त कैसा होगा? इसका अंदाजा हम मौजूदा राजनीतिक समीकरण देख कर लगा सकते हैं मगर जो रुख या ये कहें कि जो सख्ती जगन दिखा रहे हैं, सवाल ये है कि कहीं वही सख्ती आने वाले वक़्त में खुद उनके लिए सिरदर्द न बन जाए.
बहरहाल आंध्र की लड़ाई जमीनों की है और साथ ही जमीन बचाने की है. अब बात अगर चंद्रबाबू नायडू की हो तो वो क्षेत्रीय राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं उन्हें पता है जमीनें कैसे बचाई जाती हैं.
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