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Updated: 23 मार्च, 2021 10:17 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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एंटीलिया केस (Antilia Case) की आंच का असर अब महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख (Anil Deshmukh) पर भी होने लगा है. हालत ये हो गयी है कि API सचिन वाजे की गिरफ्तारी और आईपीएस अफसर परमवीर सिंह से होते हुए ये मामला अब अनिल देशमुख की कुर्सी पर भी खतरा बन कर मंडराने लगा है.

मुंबई में उद्धव ठाकरे और शरद पवार की मुलाकात और एनसीपी प्रमुख के पास अनिल देशमुख की हाजिरी लगाने के बाद महाराष्ट्र में सत्ता के गलियारों में हलचल तेज हो चली है.

महाराष्ट्र एनसीपी प्रमुख जयंत पाटिल भले ही अनिल देशमुख को हटाये जाने की चर्चाओं को खारिज कर रहे हों, लेकिन सुनने में तो यही आ रहा है कि पाटिल ही देशमुख को रिप्लेस करने वाले हैं. जयंत पाटिल फिलहाल उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली महाविकास आघाड़ी सरकार में जल संसाधन मंत्री हैं.

जैसे जैसे मुकेश अंबानी के एंटीलिया बंगले के बाहर विस्फोटकों से भरी गाड़ी रखने और उसमें धमकी भरा पत्र रखने के मामले की जांच आगे बढ़ रही है, एनसीपी कोटे से मंत्री बने अनिल देशमुख की काबिलियत पर सवाल उठने लगा है - और एनसीपी प्रमुख शरद पवार को भी यही चीज साल रही है.

कानून व्यवस्था को लेकर जब भी चुनौतियां सामने आएंगी, सरकार का गृह विभाग तो स्वाभाविक तौर पर निशाने पर आएगा, लेकिन अनावश्यक विवाद होने लगे तो सवाल तो खड़े होंगे ही. अनिल देशमुख ने जब से गृह मंत्रालय का कार्यभार संभाला है, ऐसे कई गैर-जरूरी विवाद सामने आये हैं - ये समझना भी मुश्किल हो रहा है कि ये अंधेरगर्दी खुद अनिल देशमुख के कामकाज के तरीके के चलते है या महाराष्ट्र सरकार ने भस्मासुर पाल रखे हैं या फिर सचिन वाजे (Sachin Waze) जैसे पुलिस अफसर ही इतने निरंकुश हो चले हैं कि मनमानी पर लगाम कस पाना किसी के वश का नहीं रह गया है?

अभी ये सब चल ही रहा है कि शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता अलग ही राग अलापने लगे हैं - ऐसा क्यों लगता है जैसे अनिल देशमुख को हटाये जाने की मांग और शरद पवार को यूपीए का चेयरमैन बनाये जाने की संजय राउत की डिमांड में भी कोई कनेक्शन है?

एंटीलिया केस क्या सिर्फ सचिन वाजे के दिमाग की उपज है?

घटना कोई भी हो, अगर उसके पीछे कोई मकसद न छिपा हो तो वो सिर्फ हादसा होती है - अगर ये कोई पैरामीटर है तो एंटीलिया केस को किस कैटेगरी में रखेंगे?

शुरुआती दौर में तो विस्फोटकों से भरी गाड़ी और उसमें धमकी भरा पत्र पाये जाने की खबर से लगा था कि एंटीलिया केस किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है. जैसे जैसे जांच आगे बढ़ी और केस एनआईए के हाथ में लेने के बाद परद दर परत खुलती गयी - कहानी में नये नये ट्विस्ट भी आने लगे.

फिर लगने लगा कि मामले का पूरा ताना बाना सचिन वाजे के इर्द गिर्द ही बुना हुआ है. मनसुख हिरेन की हत्या से लेकर जितनी भी गाड़ियां बरामद हुई हैं और जितने भी सीसीटीवी फुटेज मिल रहे हैं सभी के तार सीधे सीधे सचिन वाजे से ही जुड़ते जा रहे हैं.

अब सवाल ये उठता है कि सचिन वाजे एंटीलिया केस का सूत्रधार है या मोहरा?

सचिन वाजे के पुराने ट्रैक रिकॉर्ड, एक इंटरव्यू में कही हुई बात और एनआईए जांच से सामने आ रही घटनाओं का क्रमवार विश्लेषण तो ऐसे ही संकेत देता है कि पूरे खेल के मास्टरमाइंड खुद सचिन वाजे हैं - और सचिन वाजे की लाइम लाइट में आने की महत्वाकांक्षा की वजह से ही गृह मंत्री अनिल देशमुख की कुर्सी खतरे में है और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की नये सिरे से फजीहत हो रही है.

anil deshmukh, sachin wazeसचिन वाजे सूत्रधार हों या मोहरा, गृह मंत्री अनिल देशमुख तक झुलसने लगे हैं

जांच से तो लगता है जैसे 16 साल बाद शिवसेना की राजनीति से गुजरते हुए पुलिस सेवा में लौटे सचिन वाजे अपने लिए सुर्खियां बटोरने के इवेंट मैनेजमेंट में लगे थे, लेकिन एक के बाद एक गलतियां करते गये और पूरा का पूरा प्लान चौपट हो गया.

सुर्खियों में आने के लिए सचिन वाजे ने लांच पैड तो सोच समझ कर ही चुना होगा, लेकिन अपने ही बिछाये जाल में वो फंसते गये और बच कर निकलने की कोशिश में उनकी भी गर्दन नप गयी.

चूंकि सचिन वाजे अपने हिसाब से किसी नये प्रोजेक्ट पर काम करने की बजाय, पुराने कारनामों को ही नये तरीके से अंजाम देने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मामला खुल गया और फौरन ही उनके कंट्रोल से फिसल कर एनआईए के पाले में जा गिरा. सचिन वाजे को तो लगा होगा कि पहले की ही तरह वो इसे भी मैनेज कर लेंगे, लेकिन दांव उलटा पड़ गया. जब जांच एनआईए को सौंप दी गयी तो वो सबूत मिटाने की कोशिश में जुट गये और फिर बारी बारी वो सारी गलतियां कर डाले जो सोचा भी न होगा.

चूंकि सचिन वाजे को पुलिस महकमे में तत्कालीन मुंबई पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह के अंडर में लाया गया था, इसलिए बवाल होने की सूरत में भरपाई भी तो उनको ही करनी थी, किया भी. फजीहत से बचने के लिए उनका तबादला तो कर दिया गया लेकिन जांच के दायरे में तो वो आ ही चुके हैं.

ये सारा खेल अनिल देशमुख के नाक के नीचे हो रहा था, इसलिए पूरी जिम्मेदारी तो उनकी बनती ही है. ऐसा भी नहीं कि किसी पुलिस अफसर की हरकतों के चलते अनिल देशमुख की फजीहत पहली बार हो रही हो. सुशांत सिंह राजपूत केस हो और पालघर में साधुओं की हत्या के मामले में अनिल देशमुख निशाने पर तो रहे ही, लॉकडाउन के दौरान एक उद्योगपति परिवार को एक आईपीएस ने सैर सपाटे के लिए पास देकर अनिल देशमुख की कम फजीहत नहीं करायी थी.

जब भी महाराष्ट्र में कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ता है, ना जाने कैसे अनिल देशमुख की मुसीबतें भी अपने आप बढ़ जाती हैं. पिछले साल कोरोना वायरस के चलते जब देश भर में संपूर्ण लॉकडाउन लागू था, अनिल देशमुख के गृह मंत्रालय के ही एक आईपीएस अफसर अमिताभ गुप्ता ने वधावन बंधुओं को परिवार सहित महाबलेश्वर जाने के लिए पास जारी कर दिया था. ये वही वधावन बंधु थे जिनका नाम येस बैंक घोटाले में आया था और ED की पूछताछ से बचने के लिए कोरोना वायरस का बहाना बना रहे थे. वधावन बंधुओं का काफिला खंडाला से निकल कर महाबलेश्वर की मंजिल तक पहुंचता उससे पहले ही गाड़ियों का काफिला देख कर लोगों ने पुलिस से शिकायत कर दी और लाव लश्कर के साथ पूरा परिवार और नौकर-चाकर धर लिये गये. सारी बहानेबाजी धरी की धरी रह गयी और आसानी से जांच एजेंसी के हत्थे भी चढ़ गये.

विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस की नजर में सचिन वाजे एंटीलिया केस का सूत्रधार नहीं बल्कि एक मोहरा भर है - और वो सचिन वाजे के आकाओं की तरफ इशारा कर रहे हैं.

महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे आने के बाद जब शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया तो अचानक देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी नेता अजीत पवार की मदद से रात भर की मेहनत में सुबह सुबह मुख्यमंत्री बन गये थे, लेकिन 72 घंटे में ही कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. इस वाकये का असर ये हुआ कि जब भी उद्धव सरकार गिराने को लेकर बीजेपी से जुड़ा सवाल पूछा जाता देवेंद्र फडणवीस बड़ा ही नपा-तुला जवाब देते. ज्यादातर तो यही कहते कि बीजेपी ऐसा कुछ नहीं करने वाली सरकार अपनेआप गिर जाएगी.

सुशांत राजपूत केस हो या कंगना रनौत के दफ्तर में तोड़ फोड़ का मामला, देखने को तो यही मिला कि देवेंद्र फडणवीस बड़े ही संभल कर वार करते रहे. ऐसा पहली बार हुआ है कि देवेंद्र फडणवीस इतने आक्रामक नजर आ रहे हैं - और सबसे बड़ी बात तो ये है कि देवेंद्र फडणवीस के हर कदम पर उद्धव ठाकरे सरकार बैकफुट पर जाती नजर आ रही है.

अब तक तो यही कहा जाता रहा है कि शरद पवार रिमोट कंट्रोल से ही गठबंधन सरकार चलाते हैं और उद्धव ठाकरे तो मुखौटा भर हैं, लेकिन अनिल देशमुख के एनसीपी का नेता होने के कारण शरद पवार भी बचाव की मुद्रा में नजर आ रहे हैं और जैसे भी संभव हो सेफ पैसेज की तलाश में हैं.

शरद पवार को यूपीए चेयरमैन बनाने की मांग अभी क्यों?

महाराष्ट्र सरकार चला रहे गठबंधन के ज्यादातर नेता इसी बात से हैरान परेशान हैं कि एंटीलिया केस की जांच से जुड़ी छोटी छोटी बातें सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तक कैसे पहुंच जा रही हैं. अपने सूत्रों के जरिये नयी नयी जानकारियां जुटा कर देवेंद्र फडणवीस सीधे विधानसभा में सरकार को घेर ले रहे हैं - और उद्धव ठाकरे एंड कंपनी की खामोशी के बीच अनिल देशमुख को ही अकेले मोर्चे पर छोड़ दिया जा रहा है.

गठबंधन के सीनियर नेताओं को ताज्जुब इस बात पर हुआ कि मनसुख हिरेन की पत्नी का बयान सबसे पहले देवेंद्र फडणवीस तक कैसे पहुंच गया - और वो उसके हवाले ले मनसुख हिरेन की हत्या का आरोप लगा बैठे. सचिन वाजे की गिरफ्तारी की मांग भी सबसे पहले देवेंद्र फडणवीस ने ही की थी. सरकार के सीनियर नेताओं को मालूम हो चुका है कि पुलिस महकमे में देवेंद्र फडणवीस के मुखबिरों की जबरदस्त पकड़ है और वो इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं.

पूरे बवाल के बीच शरद पवार निकलने का कोई सुरक्षित रास्ता खोज रहे हैं. अनिल देशमुख को हटाया जाना एनसीपी को भी बैकफुट पर ला देगा. खबर है कि शरद पवार पूरा प्रकरण अफसरों के मत्थे मढ़ कर बचाव का रास्ता खोज रहे हैं, लेकिन दिल्ली से कांग्रेस नेताओं का दबाव है कि अनिल देशमुख को ही हटाया जाये.

इसी बीच शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने शरद पवार को यूपीए का चेयरमैन बनाने की मांग शुरू कर दी है. संजय राउत का कहना है कि सोनिया गांधी की जगह शरद पवार को यूपीए का चेयरमैन बनाया जाना चाहिये. संजय राउत की ये मांग तो पुरानी है और इसे लेकर वो अपनी दलीलें पेश करते रहे हैं, लेकिन नये सिरे से ये डिमांड फिर से रखना किसी और राजनीतिक मकसद की तरफ इशारा करता है.

ये तो ऐसा लगता है जैसे अनिल देशमुख को हटाने की कांग्रेस की मांग को काउंटर करने के लिए ही संजय राउत नये सिरे से शिगूफा छेड़ रहे हों. मगर, संजय राउत को मालूम होना चाहिये कि सचिन वाजे की गिरफ्तारी के बाद जो बवाल हो रहा है उसका कांग्रेस पर असर सिर्फ सरकार की हिस्सेदार होने भर ही है, सीधे सीधे वो मामले में फिलहाल तो कहीं भी नहीं फंस रही है. अनिल देशमुख के गृह मंत्री होने के नाते एनसीपी और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे होने के चलते उद्धव ठाकरे की मुश्किल ही बढ़ी है.

ये तो दांव उलटा पड़ गया है कि अपने ही एक अफसर की हरकतों की वजह से अनिल देशमुख और उद्धव ठाकरे फंस गये हैं, वरना जांच के नतीजे कहीं अलग होते तो अब तक कांग्रेस नेता राहुल गांधी दिल्ली से तमिलनाडु और केरल तक बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रोजाना कदम कदम पर कोस रहे होते.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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