मोदी से लड़ने वालों के चेहरे तो देखिए...
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को गिराने का इरादा रखने वाले शरद पवार जरा यह भी बता दें कि महाराष्ट्र की जिस सरकार को बनाने में उनका खसम खास रोल रहा है, वह किस हद तक करप्शन से लड़ रही है ? शरद पवार क्या बताएंगे कि उनकी पार्टी के नेता और महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के घरों पर हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापेमारी क्यों की ?
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भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सशक्त विपक्ष का होना अनिवार्य है. लोकतंत्र का मतलब ही वाद-विवाद-संवाद के द्वारा जनता की समस्याओं का करना होगा. जिन देशों में जिम्मेदार और जुझारू विपक्ष दल होते हैं, वहां पर सरकार हमेशा ही जनता के हक में काम करने के लिये प्रतिबद्ध रहती है. उस सरकार को यह अच्छी तरह मालूम होता है कि उसकी तरफ से कोई भी लापरवाही हुई तो विपक्ष उसे छोड़ेगा नहीं. पर हमारे यहां पर विपक्ष तो कई वर्षों से लगभग मृतप्राय: हो रहा है. उसी विपक्ष में अब बूढ़े और असमर्थ नेताओं के जरिये जान फूंकने की कोशिशें हो रही है ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरपरस्ती में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक (एनडीए) गठबंधन को साल 2024 में चुनौती दी जा सके. यहां तक सब ठीक है. लेकिन दिक्कत यही है कि एनसीपी नेता शरद पवार,शेख अब्दुल्ला और यशवंत सिन्हा की पहल पर, जो तीसरा मोर्चा शक्ल ले रहा है, उसमें थके हुए और चल चुके कारतूस या बुझे हुये दीपक जैसे नेता हैं. कुछ नेता इस तरह के भी हैं, जिन्हें घर से बाहर कोई पहचानता भी नहीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी नेताओं का सामने आना बता रहा है कि 24 की तैयारी अभी से शुरू हो गयी है
पवार के साथ भाजपा से टीएमसी का दामन थाम चुके यशवंत सिन्हा, कभी आम आदमी पार्टी ( आप) में रहे आशुतोष, आप के राज्य सभा सदस्य संजय सिंह तथा भाकपा के डी.राजा वगैरह भी हैं. शरद पवार के घर में हुई बैठक में कऱण थापर और प्रीतीश नंदी जैसे पत्रकारों और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त वाई.सी. कुरैशी को भी बुलाया गया था. इस बैठक में चुनाव ऱणनीतिकार प्रशांत किशोर भी आए थे. वे आजकल कई नेताओं को भावी प्रधानमंत्री बनाने का वादा कर रहे हैं.
लेकिन, यह समझने की जरूरत है कि 2024 में जहां सर्वथा निरोग और तंदुरुस्त नरेन्द्र मोदी का 74 वा साल चल रहा होगा, जबकि कैंसर के मरीज पवार 84 वर्ष और अस्वस्थ चल रहे यशवंत सिन्हा और फारुख अब्दुल्ला 87 पूरे कर चुके होंगे. अब बताएं कि क्या इन कथित और स्वयंभू नेताओं के सहारे मोदी जी को चुनौती दी भी जा सकेगी या नहीं? शरद पवार के साथ गीतकार 76 वर्षीय जावेद अख्तर भी आ गए हैं.
No, our meeting was not about creating an anti-#Modi front.Under the guidance of #SharadPawar ji and #YashwantSinha ji, we discussed how to awaken the people on the major issues before the nation.#Congress & other parties too will be part of future meetings.I too spoke. pic.twitter.com/axvZVhCpbx
— Sudheendra Kulkarni (@SudheenKulkarni) June 22, 2021
यह वही जावेद अख्तर हैं जिन्होंने हाल ही में गाजियाबाद में एक दाढ़ी वाले शख्स के साथ हुई मारपीट की घटना को सांप्रदायिक रंग देने की चेष्टा की थी. हालांकि बाद में जब पुलिस अनुसन्धान से खुलासा हुआ कि वह सारा मामला आपसी रंजिश का था. उसमें सांप्रदायिकता का कोण लाना या देखना सरासर गलत था. लेकिन जब सारा मामला शीशे की तरफ साफ हुआ तो जावेद अख्तर चुप रहे.
शरद पवार के साथ तो सहानुभति जताई जा सकती है. वे देश का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब गुजरे कई दशकों से पाले हुए हैं. पर अफसोस कि उन्हें हर बार असफलता ही मिलती है. अब उन्होंने अपने साथ प्रशांत किशोर को जोड़ लिया है. यानी उन्होंने कभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी है. उनकी जिजिविषा को सलाम करने का मन करता है. शरद पवार के साथ य़शवंत सिन्हा का विपक्षी एकता के लिए काम करने का मतलब है कि उन्हें अपनी नेता ममता बनर्जी का समर्थन मिल रहा है.
य़शवंत सिन्हा पहले भाजपा में थे. इस बीच, ममता बनर्जी को लगता है कि पश्चिम बंगाल का विधान सभा चुनाव जीतने के बाद उनका अगला लक्ष्य दिल्ली होना चाहिए. यानी उनकी निगाह भी अब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है. संभावित तीसरे मोर्चे से नेशनल कांफ्रेंस के नेता एवं जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला भी जुड़े हैं. याद रख लें कि फारूक अब्दुल्ला के साथ अब उनके पुत्र उमर अब्दुल्ला भी नहीं है.
जम्मू-कश्मीर के भविष्य को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से हाल ही में राजधानी में बुलाई गई बैठक में उमर अब्दुल्ला ने यहां तक कहा था कि अब धारा 370 की बहाली मुद्धा नहीं रहा. उन्होंने इस तरफ की टिप्पणी तब की थी जब पीडीपी महबूबा मुफ्ती ने धारा 370 की बहाली की मांग की थी. क्या फारूक अब्दुल्ला धारा 370 की बहाली के लिए बोलेंगे शरद पवार के साथ रहते हुए? याद रख लें कि अब जो भी इस देश में धारा 370 की बहाली की मांग करेगा उसे तो देश की जनता कभी माफ नहीं करेगी.
उसे देश का अवाम चुनावों में सिरे से खारिज कर देगा. उमर अब्दुल्ला अपने पिता की अपेक्षा राजनीतिक रूप से कहीं अधिक व्यवहारिक और परिपक्व हैं. वे परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से मोदी सरकार के करीब आने की कोशिश भी कर सकते हैं. वे जानते हैं कि फिलहाल इस देश में मोदी जी का दूर-दूर तक कोई विकल्प नहीं है. वे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में 23 जुलाई 2001 से 23 दिसंबर 2002 तक विदेश राज्य मंत्री रहे हैं.
साफ है कि वे भाजपा और एनडीए के चरित्र और व्यवहार को जानते हैं. जरा यह भी देखिए कि शरद पवार की सरपरस्ती में हुई राष्ट्र मंच की पहली बैठक से पता नहीं क्यूँ कांग्रेस को दूर रखा गया,पर बैठक के बाद कहा जाने लगा कि कांग्रेस के बिना राष्ट्र मंच नहीं बन सकता. यहां पर कई बातें साफ हो गईँ. राष्ट्र मंच को समझ आ गया कि उनके तिलों में तेल नहीं है कि वे नरेन्द्र मोदी जैसे दिग्गज लोकप्रिय जन नेता के नेतृत्व में चल रही एनडीए सरकार को चुनौती दे सकें.
इसलिए राष्ट्र मंच नेता भी बैठक के बाद कांग्रेस को याद करने लगे. अगर कांग्रेस इस मोर्चे से जुड़ गई तो इसका नेता कौन होगा ? ये आगामी चुनावों में अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार किसे घोषित करेंगे ? पवार को या राहुल गांधी को? क्या कांग्रेस राहुल के दावे को खारिज करेगी ? शरद पवार के लिए या शरद पवार राहुल गांधी को ही देश का अगल प्रधानमंत्री बनाने के लिए ही राष्ट्र मंच बना रहे हैं? इन सवालों के उत्तर देश की आम जनता को तो अवश्य ही चाहिए.
यशवंत सिन्हा कह रहे हैं कि राष्ट्र मंच के सामने मोदी मुद्दा नहीं है. राष्ट्र के सामने जो मुद्दे हैं, वे ही मुद्दे हैं. तो बात ये है कि मोदी जी से लड़ने वालों के पास यह बताने के लिए कुछ नहीं है कि वे किन मुद्दों पर मोदी जी से मुकाबला करेंगे. वे देश के सामने उन बिन्दुओं को यदि विस्तार से रखें तो सही जिनको लेकर वे 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी जी से दो-दो हाथ करना चाहेंगे.
जानकारों का कहन है कि ईडी की जांच से 4 करोड़ रुपए के हेरफेर का पता चला है, जो कथित तौर पर मुंबई में लगभग 10 बार मालिकों ने अनिल देशमुख को दिए थे. शरद पवार जी को तो एनडीए सरकार के खिलाफ किसी भी हद तक जाने का अधिकार है. पर वे जरा अपनी गिरेबान में भी झांक लें. कभी फुर्सत मिले तो वे बताएं कि ईमानदारी और पारदर्शिता जैसे मसलों पर उनकी क्या राय है?
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