आर्टिकल 15 में है अखिलेश यादव के पतन और भाजपा के उभार की कहानी!
2014 में हुए बदायूं रेप रेस के बाद जैसे जांच चली और जिस तरह अखिलेश यादव की किरकिरी हुई उसका पूरा फायदा भाजपा ने उठाया जिसने अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास किये ताकि सूबे के बिखरे हुए सवर्ण उसके पाले में आ सकें.
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उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार घिर गई थी. दलित लड़कियों की लाश पेड़ में लटकी मिली थी. चर्चाएं थी कि दलित लड़कियों के साथ सवर्ण जाति के लोगों ने बलात्कार किया और फिर मार कर लाश पेड़ में टांग दी. कहा ये जा रहा था कि ये तो एक नज़ीर है. उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे ज़ुल्म होते रहते हैं जिन्हें समाज की ताकत़वर ताक़तें दबा देती हैं. इतने संजीदा आरोपों से घबरायी अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार ने आनन-फानन में सीबीआई जांच की सिफारिश की. आनन फानन में ही जांच रिपोर्ट भी आ गई. जिसमें शक, आरोप और चर्चाएं झूठी साबित हुईं. उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार ने चैन की सांस ली. क्योंकि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई की जांच रिपोर्ट के मुताबिक दोनों लड़कियां बदचलन थी इसलिए पिता ने उनकी हत्या कर शवों को पेड़ में लटका दिया था.
बदायूं रेप रेस के बाद विपक्ष ने अखिलेश यादव की जमकर किरकिरी की थी
इस थ्योरी को सिरे से खारिज करते हुए एक खोजी रिपोर्ट जैसी खबर की तरह फिल्म आर्टिकल 15 में संकेतों ये भी बताने की कोशिश की है कि भाजपा देश में क्यों उभरी और सपा उत्तर प्रदेश में कैसे डूबी?
बात आठ-दस बरस पुरानी है
यूपी में मायावती सरकार को सवर्ण वर्ग उखाड़ फेकना चाहता था. लेकिन उन दिनो यहां भाजपा बेहद कमजोर थी, बसपा से सीधी लड़ाई सपा की थी. बसपा को सत्ता से बाहर करने का रास्ता यही था कि सपा को वोट दिया जाये. इसलिए सपा को सवर्ण वर्ग के भी वोट मिल गये थे. जब विधानसभा चुनाव में सपा जीती और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्हें ये गुमान होने लगा कि वो सर्व समाज के नेता हैं. सर्वसमाज का लोकप्रिय नेता होने की गलतफहमी का शिकार अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव ने सपा को जिस जातीय गणित की ताकत दी थी उसे कमजोर करने लगे. अगड़ों को अपना बनाने के चक्कर में सपा के हाथ से पिछड़े फिसलने लगे.
उधर भाजपा के रणनीतिकार जानते थे कि उसे बहुमत हासिल करने या बर्खरार रखने के लिए किसी भी तरह से हिन्दू समाज में जातिगत दूरियों कम करके सबको एक करना है. जातिगत नफरत का उत्सर्जन परिवर्तित होकर जाति के बजाय धार्मिक नफरत की तरफ बढ़े. इस दिशा मे ही काम हो रहा था. किसी हद तक हिन्दू- मुस्लिम नफरते पैदा करने में जातिगत दूरियां कम हो रही थी.
बदायूं रेप केस को दर्शाती अनुभव सिन्हा की फिल्म आर्टिकल 15
अखिलेश यादव के कार्यकाल में जब दो दलित लड़कियों की लाश पेड़ में लटकी मिली तो तत्कालीन मुख्यमंत्री को लगा कि अब दलित-पिछड़ा बनाम सवर्ण की खाई बढ़ने का खतरा है.अखिलेश को लगा कि ऐसी घटना सवर्ण वर्ग को उनसे दूर कर देगी. इससे भी ज्मादा खतरा ये कि दलित लड़कियों का बलात्कार और फिर हत्या की घटना सपा की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी बसपा को सबसे ज्यादा ताकत देगी. बस यहीं से भाजपा और सपा की मिलीभगत ने दलित लड़कियों वाले कांड के सच को झूठ और झूठ को सच बना दिया.
अखिलेश यादव जैसे नयी पीढ़ी के नेता अपरिपक्वता का शिकार हो कर भाजपा का साथ देते रहे. और दलितों-पिछड़ों के दर्द-दुख और ज़ुल्मों पर इस तरह पर्दे पड़ते है. ये कोई नया अनुभव नहीं है. देश और पूरी कायनात का पुराना अनुभव है. बुराई के खिलाफ हमेशा से ही अच्छे चेहरे उभरते रहे हैं. जब देश ग़ुलाम हो गया, आज़ाद हुआ तो नफरत की आग लगा दी गई. ये कठिन समय नहीं होता तो राष्ट्रपिता महत्मा गांधी कहां मिलते? हज़ारो साल पहले जब पाप का सैलाब उबलने लगा तो नूह की कश्ती दिखाई दी. मानवता और मानव को बचा लिया गया.
समय-समय पर ऐसे अनुभव हुए हैं. बीमारी पैदा हुई है तो दवा भी इजाद हुई है. इस मुल्क के भी अलग-अलग अनुभव रहे हैं. हर अनुभव यही सिखाता है कि इंसान इंसान में फर्ख करने वाला इंसान नहीं हो सकता. संविधान के खिलाफ चलने वाला राष्ट्रभक्त नहीं हो सकता. आर्टिकल 15 के अधिकार छीनने वाला कम से कम भारतीय कहलाने लायक नहीं.
जातिवाद के ज़हर को पहचानो जो तुम्हारे ज़मीर को मार रहा है
मुल्कपरस्ती और राष्ट्रवाद की भावना को दिगभ्रमित करने वाले दौर में मुल्क की नब्ज़ पकड़ कर फिल्म मुल्क की सफलता के बाद लेखक, निर्माता-निदेशक अनुभव सिन्हा ने एक हमे एक और एहसास अनुभव कराया है. हमारे अंदर पनपते जातिवाद के आगे भारतीय संविधान को सिसकते दिखाया है. संविधान के आर्टिकल 15 को संविधान के सफों से निकलकर अमल में आने की सख्त जरूरत ज़ाहिर की है. अनुभव की फिल्म- आर्टिकल 15 देखियेगा तो ये आपको झंकझोर देगी.
सब बराबर हो जायेंगे तो राजा कौन बनेगा...
ब्रहमा जी की बनाई हुई व्यवस्था है. कोई राजा, कोई सैनिक, कोई सेवक, कोई दास... वर्ण व्यवस्था पर कटाक्ष करते ऐसे संवाद धर्म की चरखी पर लिपटी जहालत का आईना दिखाते हैं. फिल्म को बैलेंस करने के लिए फिल्म का मुख्य किरदार (आयुष्मान खुराना) ब्राह्मण जाति का दिखाया गया है. ज़िया, राजू और नवल जैसे लखनऊ के रंगमंच कलाकारों को फिल्म के छोटे पर बेहद अहम किरदर निभाना का मौक़ा मिला है.
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