केजरीवाल की फ्यूचर पॉलिटिक्स: न काम की, न राम की !
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भविष्य में बीजेपी (BJP) से भिड़ने के लिए हिंदुत्व की राजनीतिक (Hindutva Politics) लाइन के साथ आगे बढ़ रहे हैं जो काफी मुश्किल है - कहीं ऐसा न हो राम के चक्कर में माया भी गंवा बैठें?
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दिल्ली कोरोना वायरस का प्रकोप फिर से विस्फोटक रूप ले चुका है. आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में औसतन हर घंटे कम से कम चार लोगों की कोरोना से मौत हो रही है. ऐसी ही हालत जून में हुई थी, जब केंद्र सरकार को मदद के लिए आगे आना पड़ा था - और तब दिल्ली और केंद्र दोनों ही सरकारें मिल कर कोरोना से जंग लड़ रही हैं.
कोरोना वायरस पैदा हुए हालात पर चर्चा के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने सर्वदलीय बैठक बुलायी है जिसमें बीजेपी (BJP) और कांग्रेस को भी न्योता दिया है. जून में ऐसी ही बैठक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से बुलायी गयी थी - और उसके बाद से दिल्ली को कोरोना संकट से उबारने के लिए केंद्र सरकार ने कमान अपने हाथ में ले ली थी. सवाल ये है कि जब दोनों सरकारें मिल कर कोरोना को काबू करने में लगी हुई हैं तो हालात क्यों बेकाबू हो गये? अगर कोई चूक हुई है तो इसकी जिम्मेदारी किस पर आती है - केंद्र सरकार या दिल्ली सरकार?
फिलहाल तो सवाल का जवाब मिलने से रहा - और ये भी जरूरी नहीं कि बाद में भी मिल ही जाएगा, लेकिन एक बात तो तय है कि यही सवाल भविष्य में आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच टकराव का कारण बनेगा.
खास बात ये है कि 2022 में जिन चार राज्यों में अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, उनमें से तीन राज्यों में अभी बीजेपी की सरकारें हैं. अभी तो ऐसा लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल काम की राजनीति से राम की राजनीति (Hindutva Politics) पर शिफ्ट होने की कोशिश कर रहे हों - कहीं ऐसा न हो कि न माया मिले, न राम मिलें?
कोरोना वायरस, छठ और राजनीति
दिल्ली हाई कोर्ट से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सही मौके पर बहुत बड़ा सपोर्ट मिला है. हाई कोर्ट ने साफ तौर पर कह दिया है कि किसी भी धर्म का त्योहार मनाने के लिए सबसे पहले जिंदा रहना जरूरी है.
दरअसल, दिल्ली सरकार ने किसी भी सार्वजनिक स्थान पर छठ पूजा का आयोजन न करने का फरमान जारी किया हुआ है. छठ पूजा का आयोजन करने वाली समितियों ने दिल्ली सरकार के इस आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट का कहना रहा कि याचिकाकर्ता को दिल्ली में कोरोना की स्थिति की सही जानकारी नहीं है और फिर सार्वजनिक स्थान पर पूजा की इजाजत देने से इनकार कर दिया. सरकारी फरमान का विरोध करने वालों को बीजेपी का सपोर्ट हासिल रहा.
दिल्ली में बाहर निकल कर छठ पूजा न करने देने पर बीजेपी सांसद मनोज तिवारी गुस्से से आग बबूला हो उठे और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 'नमकहराम' तक कह डाला. मनोज तिवारी लोगों को ये समझाना चाह रहे हैं कि पूर्वांचल के लोगों के वोट से सत्ता में लौटने के बाद अरविंद केजरीवाल उनके साथ धोखा कर रहे हैं.
अरविंद केजरीवाल के बीजेपी से भविष्य के टकराव का ट्रेलर दिखने लगा है
चुनावों तक दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष रहे मनोज तिवारी बोले, 'कमाल के नमकहराम मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं. कोरोना के सोशल डिस्टेंसिंग नियमों का पालन कर आप छठ नहीं करने देंगे - और गाइडलाइंस सेंटर से मांगने का झूठा ड्रामा अपने लोगों से करवाते है... वो बताएं ये 24 घंटे शराब परोसने के लिए परमिशन कौन से गाइडलाइंस को फॉलो कर ली थी, बोलो CM!'
पूरे देश की ही कौन कहे, पूरी दुनिया कोरोना वायरस की मुश्किल से जूझ रही है, लेकिन अरविंद केजरीवाल के सामने ये राजनीतिक चुनौती भी पेश कर रहा है. कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे बीजेपी नेता अमित शाह, अरविंद केजरीवाल को इशारों पर नचा रहे हों. वैसे भी अरविंद केजरीवाल खुद ही स्वीकार कर चुके हैं कि केंद्र सरकार के साथ काम करके काफी कुछ उनको सीखने को मिला है. कई बार दोहरा चुके हैं कि उनकी सरकार केंद्र के साथ मिल कर कोरोना पर काबू पाने की कोशिश कर रही है.
क्या होगा जब केजरीवाल और बीजेपी आमने सामने होंगे
दिवाली के मौके पर अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में काफी बड़ा आयोजन किया था. दीपोत्सव कार्यक्रम के लिए काफी दिनों से टीवी पर विज्ञापन दिये जा रहे थे जिसमें भगवान श्रीराम के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या वापसी का काफी जोर देकर जिक्र किया जा रहा था.
दिल्ली चुनाव के बाद अरविंद केजरीवाल ने हनुमान चालीसा पाठ को आगे बढ़ाने की कोशिश तो की ही थी, आगे चल कर योगी आदित्यनाथ की अयोध्या वाली दिवाली के समानांतर दिल्ली में दिवाली का आयोजन शुरू कर दिया है. लंबा भले न चले लेकिन ये सिलसिला कम से कम 2022 तक तो चलेगा ही, ये तो मान कर चलना चाहिये.
अगर किसी को अरविंद केजरीवाल के भविष्य की राजनीति को लेकर कोई शक शुबहा बचा हो तो उसे एक बार पुराने साथियों की राय पर भी गौर करना चाहिये. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के टिकट दिल्ली से लोक सभा का चुनाव लड़ने वाले आशुतोष ने तो उनको नयी राजनीतिक लाइन की बधायी भी दे डाली है.
@ArvindKejriwal को बहुत बहुत बधाई हिंदू नेता होने पर !!!
— ashutosh (@ashutosh83B) November 15, 2020
ध्यान देने वाली बात ये है कि जिन चार राज्यों में विधानसभा चुनावों की आम आदमी पार्टी तैयारी में जुटी है, उनमें से तीन में फिलहाल भारतीय जनता पार्टी ही सत्ता में हैं - और 2022 में अरविंद केजरीवाल और बीजेपी फिर से आमने सामने होंगे. ऐसे अरविंद केजरीवाल को ये भी मान कर चलना चाहिये कि चुनावों में जब गवर्नेंस की बात होगी तो दिल्ली में कोरोना के बेकाबू हो जाने का मामला भी उठेगा ही.
लॉकडाउन के वक्त से ही अरविंद केजरीवाल ये राय जाहिर करते रहे हैं कि जो केंद्र सरकार की गाइडलाइन होगी वो उसी को फॉलो करते रहेंगे. यहां तक कि अनलॉक को लेकर एक बार जब केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से राय मांगी थी तो अरविंद केजरीवाल ने दिल्लीवासियों की राय लेकर केंद्र को भी भेज दिया था.
क्या अरविंद केजरीवाल ये मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं कि दिल्ली में कोरोना के बेकाबू हालात के लिए दिल्ली की उनकी सरकार नहीं बल्कि केंद्र की बीजेपी सरकार जिम्मेदार है. ठीक वैसे जैसे कानून व्यवस्था के मामलों में दिल्ली पुलिस केंद्र के कंट्रोल में होने की दुहाई देकर अरविंद केजरीवाल बच निकलने की कोशिश करते हैं - दिल्ली के दंगे ताजातरीन मिसाल हैं.
2022 में अरविंद केजरीवाल की आप ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में चुनाव लड़ने की बात कही है. पंजाब में तो आप ने इतने पांव तो जमा ही लिये हैं कि कांग्रेस के साथ दोबारा दो-दो हाथ करने की बात मान कर चलनी चाहिये.
गोवा को लेकर कुछ दिनों से बीजेपी के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और अरविंद केजरीवाल के साथ ट्विटर पर जंग चल रही है - और अब केजरीवाल के साथ साथ उनके बाकी साथी भी दावा करने लगे हैं कि गोवा में आप की सरकार बनी तो बिजली मुफ्त मिलेगी.
बिजली भले मुफ्त मिले, लेकिन गोवा के लोगों के मन में ये सवाल तो होगा ही कि कोरोना जैसी मुसीबत में अरविंद केजरीवाल और उनके साथी कहीं केंद्र सरकार पर तोहमत डालने के बाद किनारे खड़े होकर तमाशा तो नहीं देखने लगेंगे. दिल्ली दंगे जैसी स्थिति में भी घर बैठ कर तमाशे तो नहीं देखेंगे. निश्चित तौर पर ये सवाल सिर्फ गोवा ही नहीं, पंजाब के साथ साथ यूपी और उत्तराखंड के लोगों के मन में भी उठेगा ही - और अगर ऐसा हुआ तो लेने के देने तो नहीं पड़ जाएंगे?
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