Kejriwal की दिलचस्पी शाहीन बाग से ज्यादा सुंदरकांड में यूं ही नहीं है!
अरविंद केजरीवाल की अमित शाह (Arvind Kejriwal-Amit Shah meeting) से बातचीत में शाहीन बाग (Shaheen Bagh) का जिक्र तक न होना क्या इशारा करता है? क्या अरविंद केजरीवाल अब शाहीन बाग को पीछे छोड़ सुंदरकांड (Sundarkand) वाली राजनीतिक राह अख्तियार कर चुके हैं?
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गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से शाहीन बाग (Shaheen Bagh) के लोग मिलना चाहते थे, लेकिन अनुमति नहीं मिली. दिल्ली पुलिस ने अमित शाह से मिलने वालों की लिस्ट मांगी थी और प्रदर्शनकारियों की जिद थी कि सभी मिलेंगे क्योंकि उनमें कुछ लोग नहीं बल्कि सभी नेता हैं. हो सकता है जब शाहीन बाग के लोगों ने अरविंद केजरीवाल के अमित शाह (Arvind Kejriwal-Amit Shah meeting) से मिलने की खबर सुनी हो तो कुछ उम्मीदें भी लगायी हों. ऐसा उनका हक भी बनता है. बीजेपी उम्मीदवार के मुकाबले भारी मात्रा में अमानतुल्ला खान को वोट जो दिया था. अरविंद केजरीवाल के लिहाज से अमित शाह के साथ उनकी मुलाकात तो अच्छी रही, लेकिन बीस मिनट की बातचीत में शाहीन बाग का कोई जिक्र नहीं हुआ और ये बात भी खुद अरविंद केजरीवाल ने ही बतायी.
चुनावों के दरम्यान तो अरविंद केजरीवाल का शाहीन बाग न जाना राजनीतिक रणनीति समझ में आती है, लेकिन भारी जीत और फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद भी अरविंद केजरीवाल को शाहीन बाग से इतना परहेज क्यों है?
आखिर अरविंद केजरीवाल के साथी मनीष सिसोदिया ने भी तो कहा था कि वो शाहीन बाग के लोगों के साथ खड़ें हैं - क्या अरविंद केजरीवाल ये मैसेज देना चाहते हैं कि वो मनीष सिसोदिया की उस बात से इत्तेफाक नहीं रखते या फिर वो उनकी निजी राय रही होगी, ऐसा कुछ बताना चाहते हैं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों को सुंदरकांड (Sundarkand by Saurabh Bhardwaj) ज्यादा सूट करने लगा है और ये वो पॉलिटिकल लाइन है जिसमें शाहीन बाग से दिलचस्पी खत्म हो जाना भी स्वाभाविक है.
शाहीन बाग एजेंडे में नहीं
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात भी करीब करीब उसी वक्त हुई जब शाहीन बाग में सुप्रीम कोर्ट के वार्ताकार संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन शाहीन बाग पहुंचे थे.
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में ये शाहीन बाग का ही मुद्दा रहा जिसकी एक तरफ अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम और दूसरी तरफ अमित शाह और उनके साथी खड़े थे. एक तरफ अरविंद केजरीवाल शाहीन बाग से लगातार बचते रहे और दूसरी तरफ अमित शाह और उनके साथी लगाातार ललकारते रहे. अमित शाह चाहते थे कि अरविंद केजरीवाल शाहीन बाग पर कुछ तो बोलें, लेकिन अरविंद केजरीवाल बस एक दो शब्द बोल कर निकल जाते - जरूरत ही क्या है? अमित शाह पूछा करते अरविंद केजरीवाल शाहीन बाग क्यों नहीं गये, लेकिन अरविंद केजरीवाल अपने मुद्दों के साथ डटे रहे. एक बार शाहीन बाग को सपोर्ट कर मनीष सिसोदिया जरूर लपेटे में आ गये - लेकिन अरविंद केजरीवाल तब भी बच कर निकल लिये.
क्या केजरीवाल-शाह मुलाकात की तस्वीरों से मनीष सिसोदिया के गायब रहने कोई वजह शाहीन बाग ही हो सकता है क्या?
अमित शाह से मुलाकात में अरविंद केजरीवाल शाहीन बाग का जिक्र न कर टकराव टालने की कोशिश कर रहे हैं या फिर इरादा कुछ और ही है?
एक बात तो साफ है शाहीन बाग अरविंद केजरीवाल और अमित शाह के बीच टकराव की वजह फिर से बन सकता है. शाहीन बाग, देश में लागू नागरिकता संशोधन कानून (CAA) की ही उपज है. CAA के विरोध में ही शाहीन बाग में प्रदर्शकारी जमे हुए हैं. शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों से मिल कर संजय हेगड़े ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश सुनाया और उनके बीच खुद के होने की वजह भी बतायी. ये भी साफ करने की कोशिश की कि प्रदर्शन करना उनका हक है लेकिन वहीं तक वो किसी और का हक न मार रहा हो. रास्ता बंद होने से दूसरों का हक मारा जाता है. साथ ही, ये भी साफ किया कि कोई जल्दी नहीं है वो समाधान खोजने निकले हैं और कोई फैसला सुनाने नहीं.
देश की कई विधानसभाओं में जहां गैर बीजेपी सरकारें हैं नागरिकता कानून के विरोध में प्रस्ताव पास किये जा चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट में अपील तक पहुंच चुकी है. वैसे ये भी सुनने में आ रहा है कि विधायकों की बगावत से जूझ रही कर्नाटक CAA के पक्ष में प्रस्ताव पारित करने पर भी विचार कर रही है.
देखा जाये तो शाहीन बाग का पूरा फायदा अरविंद केजरीवाल अकेले उठा चुके हैं. अगर चुनावों में बीजेपी का नुकसान हुआ तो सीधा फायदा तो अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को ही मिला. ये भी तो हो सकता था अगर बीजेपी शाहीन बाग को छोड़ कर दूसरे स्थानीय मुद्दों पर ध्यान दी होती तो AAP का नंबर कम भी तो आ सकता था. मेल टुडे में एक लेख में बताया गया है कि किस तरह बदरपुर और लक्ष्मीनगर से बीजेपी उम्मीदवारों ने शाहीन बाग को पीछे छोड़ स्थानीय मुद्दों पर फोकस किया और दोनों सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी.
अरविंद केजरीवाल के शाहीन बाग की तरफ नजर डालने का भी मतलब साफ साफ नागरिकता कानून का कड़ा विरोध होगा, जो अब तक वो टालते आये हैं. अब ऐसा तो है नहीं कि नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे की तरह वो नागरिकता कानून पर सरकार का सपोर्ट कर दें - केजरीवाल को अपनी अलग लाइन की राजनीति करनी है. तभी तो केजरीवाल और शाह की मुलाकात में भी शाहीन बाग का जिक्र तक नहीं हुआ.
अमित शाह से मुलाकात के बाद अरविंद केजरीवाल ने जानकारी दी - 'गृह मंत्री अमित शाह जी से मिला. बहुत ही अच्छी मुलाकात रही. दिल्ली से जुड़े तमाम मुद्दों पर चर्चा हुई. हम दोनों सहमत हुए कि दिल्ली के विकास के लिए मिलकर काम करेंगे.' अरविंद केजरीवाल के मुताबिक दोनों इस बार पर सहमत रहे कि दिल्ली को बेहतर बनाने में एक दूसरे का सहयोग करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बधाई वाले ट्वीट के जवाब में भी अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने में केंद्र के सहयोग की ही बात की थी. अमित शाह से मुलाकात के बाद भी बताने का लहजा वैसा ही रहा.
अरविंद केजरीवाल ने मुलाकात को लेकर जो सबसे खास बात बतायी वो रही - शाहीन बाग के मुद्दे को मुलाकात में जगह न मिलना.
अमित शाह को तो जितना कुछ कहना था शाहीन बाग पर बोल ही चुके हैं. अरविंद केजरीवाल भी शाहीन बाग पर खामोश रहकर ओखला सीट भी अपने नाम कर ही ली है. अब सवाल ये उठता है कि क्या शाहीन बाग अरविंद केजरीवाल के लिए कोई मायने नहीं रखता?
अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP ही शाहीन बाग का विधानसभा में प्रतिनिधित्व करती है. विधानसभा का सत्र भी 24 फरवरी से तीन दिन के लिए बुलाया जा रहा है. मान कर चलिये कि वहां भी शाहीन बाग की कोई चर्चा नहीं होने वाली है.
शाहीन बाग को लेकर राजनीति अपनी जगह है. दिल्ली पुलिस का जिम्मा और कानून भी अपनी जगह है - क्या अरविंद केजरीवाल को शाहीन बाग के लोगों की समस्याओं से कोई फर्क नहीं पड़ता?
सुंदरकांड नया प्रयोग है
अरविंद केजरीवाल शाहीन बाग से बचते बचाते आगे बढ़ जा रहे हैं. अब समझने वाली बात है कि वो किस रास्ते पर आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं. दरअसल, अरविंद केजरीवाल अब हनुमान मंदिर वाली सड़क छोड़ने के मूड में नहीं हैं - और उनके सबसे भरोसेमंद विधायक सौरभ भारद्वाज ने नया प्रयोग भी शुरू कर दिया है - मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ
हो सकता है अरविंद केजरीवाल के लिए टीवी इंटरव्यू में हनुमान चालीसा पढ़ना एक संयोग रहा हो, लेकिन हनुमान जी का नाम लेकर वो खूब प्रयोग करते जा रहे हैं. वोटिंग से ठीक पहले हनुमान मंदिर में दर्शन और फिर नतीजे आने के बाद भगवान का धन्यवाद. अब मंगलवार को सुंदरकांड का पाठ - आखिर ये सब प्रयोग नहीं तो और क्या है?
अरविंद केजरीवाल की पिछली पारी में तमाम तरह के प्रयोगों में से EVM भी एक रहा - और ये सौरभ भारद्वाज ही रहे जो डेमो देते रहे कि EVM कैसे हैक की जा सकती है. ये बात अलग है कि जिस दिन चुनाव आयोग ने चैलेंज के लिए बुलाया तो सभी भाग खड़े हुए. EVM के नाम पर अच्छा खासा टाइम काट चुके वही सौरभ भारद्वाज अब सुंदरकांड का प्रयोग कर रहे हैं. सुंदरकांड के पाठ को असल में राम भक्त हनुमान से जोड़ा कर देखा जाता है.
दिल्ली चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने अरविंद केजरीवाल को सलाह दी थी कि वो दिल्ली के सभी स्कूलों और मदरसों में हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करायें. कैलाश विजयवर्गीय का कहना रहा कि आखिर बजरंगबली की कृपा से अब 'दिल्लीवासी' बच्चे क्यों वंचित रहें?
.@ArvindKejriwal जी को जीत की बधाई !
निश्चित ही जो हनुमानजी की शरण में आता है उसे आशीर्वाद मिलता है। अब समय आ गया है कि हनुमान चालीसा का पाठ दिल्ली के सभी विद्यालयों, मदरसो सहित सभी शैक्षणिक संस्थानों में भी जरूरी हो।
बजरंगबली की कृपा से अब 'दिल्लीवासी' बच्चे क्यों वंचित रहे❓
— Kailash Vijayvargiya (@KailashOnline) February 12, 2020
हर महीने के पहले मंगलवार को सुन्दर कांड का पाठ अलग अलग इलाकों में किया जाएगा।
निमंत्रण- सुन्दर काण्डशाम 4:30 बजे18 फरवरी, मंगलवारप्राचीन शिव मंदिर, चिराग दिल्ली
(निकट चिराग दिल्ली मेट्रो स्टेशन गेट नo1) pic.twitter.com/CwGAXzAW5r
— Saurabh Bharadwaj (@Saurabh_MLAgk) February 18, 2020
अगर अपने इलाके में सौरभ भारद्वाज घोषणा के पीछे कैलाश विजयवर्गीय ही प्रेरणास्रोत हैं तो मान कर चलना होगा स्कूलों को लेकर भी ऐसी कोई पहल हो सकती है. स्कूलों में तो चल जाएगा क्या कैलाश विजयवर्गीय की सलाह अरविंद केजरीवाल उससे आगे भी मान पाएंगे? जिस रास्ते पर अरविंद केजरीवाल आगे बढ़ रहे हैं उसमें अगला पड़ाव तो वही है. फिर तो साफ है भला शाहीन बाग में अरविंद केजरीवाल की दिलचस्पी क्यों हो?
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