आशुतोष का इस्तीफे फिर एक इमोशनल 'यू-टर्न ड्रामा'
आशुतोष का इस्तीफा पूरी तरह अस्वीकार करते हुए केजरीवाल ने साफ कर दिया कि अगले जन्म का नहीं मालूम, लेकिन इस जन्म में तो यह हरगिज संभव नहीं है.
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हाल ही में हुए एक मीडिया बोल कार्यक्रम में सीनियर पत्रकार उर्मिलेश के सामने दो मेहमान थे - एक आशुतोष और दूसरे नीरेंद्र नागर. उर्मिलेश ने आशुतोष के राजनीतिक जुड़ाव का जिक्र तो किया लेकिन कहा कि वो कार्यक्रम में एक पत्रकार की हैसियत से ही हिस्सा ले रहे हैं. मीडिया के ताजा हलचलों को लेकर कार्यक्रम में आशुतोष ने भी अपने पत्रकारीय दृष्टिकोण ही रखे. जब तक कोई ये कयास लगाता कि इस्तीफा देकर आशुतोष आगे के लिए क्या प्लान करेंगे, अरविंद केजरीवाल अचानक राहुल गांधी वाले कागज फाड़ अंदाज में प्रकट हुए और बोल दिये - ना भई ना, बिलकुल ना.
आशुतोष के इस्तीफे को नाटकीय बनाया 'आप' ने !
आम आदमी पार्टी के अंदर भले ही हड़कंप मचा रखा हो, लेकिन आशुतोष का इस्तीफा बड़ा ही सीधा, सरल और नपे तुले शब्दों में था. जब तक आशुतोष कुछ समझ पाते अरविंद केजरीवाल ने उनसे बड़ा सियासी बम फोड़ दिया. अरविंद केजरीवाल ने 'हम बने तुम बने एक दूजे के लिए' वाली स्टाइल में रिश्तों की चाशनी चढ़ाते हुए आशुतोष के इस्तीफे को बेहद नाटकीय बना दिया. आशुतोष का इस्तीफा पूरी तरह अस्वीकार करते हुए केजरीवाल ने साफ कर दिया कि अगले जन्म का नहीं मालूम, लेकिन इस जन्म में तो हरगिज संभव नहीं है.
How can we ever accept ur resignation?
ना, इस जनम में तो नहीं। https://t.co/r7Y3tTcIOZ
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) August 15, 2018
नेताओं का हर अंदाज पेशेवराना होता है. यहां तक कि इस्तीफा देने का मौका भी सोच समझ कर चुनते हैं. इस लिहाज से देखा जाये तो आशुतोष ने तो महज तारीख चुनी - 15 अगस्त, 2018. अपने इस्तीफे में आशुतोष ने न इधर उधर की बात की न ही किसी तरह का दोषारोपण या आरोप प्रत्यारोप का सहारा लिया. बीते दिनों को खूबसूरत लम्हों वाला सफर बताते हुए निजी कारणों से ट्विटर पर इस्तीफे की घोषणा कर दी, 'हर सफर का एक अंत होता है. मेरा आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ाव अच्छा और क्रांतिकारी था, इसका भी अंत हो गया. मैंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और पीएसी से इसे स्वीकार करने की अपील की है. ये पूर्णतया, बेहद व्यक्तिगत फैसला है. पार्टी और सहयोग देने वालों को धन्यवाद.'
लगे हाथ आशुतोष ने अपनी ओर से मीडिया में साफ सफाई की संभावना को भी खत्म करने की कोशिश की. आशुतोष ने निजता का हवाला देते हुए मीडिया के साथियों से बाइट लेने के लिए आग्रह न करने की अपील भी कर डाली. यानी इस्तीफे के कारणों का सारा सस्पेंस सिर्फ चर्चाओं तक ही कायम रहा. नतीजा ये हुआ कि 15 अगस्त को एक प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों पर चर्चा चल रही थी, तो दूसरी तरफ आशुतोष के इस्तीफे की. ये दोनों चर्चाएं दोपहर में जाकर लगभग एकसाथ ही खत्म भी हुईं.
आशुतोष के राजनीतिक मिशन की नींव अन्ना हजारे के आजादी के दूसरे आंदोलन के दौरान पड़ी थी. आशुतोष ने खुद को आजादी का तोहफा देना भी चाहा लेकिन आप नेता अरविंद केजरीवाल ने उन्हें एक झटके में वंचित कर दिया. आशुतोष ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के रामलीला आंदोलन पर एक किताब भी लिखी है. आजादी के इस अधूरे सफर को लेकर आशुतोष के दो राजनीतिक साथियों ने उन्हें बधाई भी उसी अंदाज में दी. इस बात का ध्यान भी रखा कि निशाना सीधे केजरीवाल पर लगे.
हर प्रतिभासम्पन्न साथी की षड्यंत्रपूर्वक निर्मम राजनैतिक हत्या के बाद एक आत्ममुग्ध असुरक्षित बौने और उसके सत्ता-पालित, 2G धन लाभित चिंटुओं को एक और “आत्मसमर्पित-क़ुरबानी” मुबारक हो ! इतिहास शिशुपाल की गालियाँ गिन रहा है ???? आज़ादी मुबारक
— Dr Kumar Vishvas (@DrKumarVishwas) August 15, 2018
Happy Independence Day @ashutosh83B Ji
आशुतोष जी को आज़ादी की मुबारक़बाद
— Kapil Mishra (@KapilMishra_IND) August 15, 2018
आशुतोष का शुमार उन लोगों में है जो अरविंद केजरीवाल के विश्वासपात्र हैं
ज्यादा दिन नहीं हुआ जब आप के आशीष खेतान ने अपने नये धंधे की जानकारी दी. पत्रकारिता से आप की राजनीति में आये आशीष खेतान ने काला गाउन पहन कर वकालत का फैसला कर लिया. दिल्ली से लोक सभा का चुनाव हार चुके आशीष खेतान केजरीवाल के दिल्ली डायलॉग कमीशन के प्रमुख थे.
आशुतोष के इस्तीफे की वजह जो भी रही हो ये तो वही जानें. कयास तो पहले से ही लगाये जा रहे थे कि राज्य सभा का टिकट न मिलने से वो खासे नाराज रहे. बाकियों ने तो नाराजगी खुल कर जाहिर कर दी, लेकिन वो सीने से लगाये रहे. हो सकता है अंदर ही अंदर घुट भी रहे होंगे.
आम आदमी पार्टी की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी के सदस्य गोपाल राय ने आशुतोष के फैसले को दुखद बताया था, जबकि एक अन्य सदस्य संजय सिंह ने भी ट्विटर पर उनसे मिल कर फैसला वापस लेने की अपील की बात कही थी.
लगता है योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के चले जाने का भी केजरीवाल को मलाल जरूर होता होगा. तो क्या आशुतोष का इस्तीफा अस्वीकार होने के बाद योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की घर वापसी की राह खुल गयी है?
अब तो केजरीवाल ही बतायें - आशुतोष की दलील सही है या नरेश बलियान की बातें?
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विपश्यना के बाद कमल को तौल रहे हैं या तराजू पर खुद ही बैठे हैं केजरीवाल?
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