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Updated: 19 जुलाई, 2020 07:29 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अशोक गहलोत को अपने जादू पर भरोसा है - और उसी भरोसे वो राज भवन तक जा पहुंचे हैं. अशोक गहलोत अपने लंबे अनुभव का इस्तेमाल करते हुए अब सियासी मायाजाल फैलाते हैं और उसके बाद उनका शिकार वही करने लगता है जैसा वो चाहते हैं. मुश्किल ये है कि ये जादू सभी पर नहीं चल पाता. वसुंधरा राजे पर तो कुछ दिन चल गया लेकिन बीजेपी पर नहीं चला. सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर तो चल गया, लेकिन सचिन पायलट पर नहीं चला.

अशोक गहलोत से गलती बस ये हो गयी है कि अपने जादू के भरोसे कांग्रेस के झगड़े में सचिन पायलट को किनारे लगाने की कोशिश में बीजेपी (BJP) को घसीट लिये - और वो भी ऐसे वैसे नहीं बल्कि मामला पुलिस तक पहुंचा दिया. ऐसे में फोन टैपिंग (Phone Tapping) को मुद्दा तो बनना ही था.

राज्य सभा चुनाव के पहले भी अशोक गहलोत ने कम नुमाईश नहीं की, लेकिन फिर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ केस दर्ज करा कर ऐसी मुसीबत मोल ली है जैसे कोई बर्रे के छत्ते में हाथ डाल देता है.

फोन टैपिंग पर केंद्र को जवाब देना होगा

राजस्थान की राजनीति में पुलिस बुलाकर अशोक गहलोत ने मुफ्त की मुसीबत बटोर ली है. ऑडियो टेप आने के बाद भी जब तक एसओजी ने केस दर्ज नहीं किया था, बीजेपी भी कोई खास दिलचस्पी नहीं ले रही थी - न ही ऑपरेशन लोटस जैसी उसकी कोई मंशा ही जाहिर हो रही थी. वो तो राजस्थान में भी इंतजार कर रही थी कि मध्य प्रदेश की तरह ही किसी दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के पुराने दोस्त सचिन पायलट सदल बल पहुंचेंगे तो मौके पर ही फैसला लिया जाएगा और फिर उसी हिसाब से एक्शन होगा.

अब तो अशोक गहलोत की हालत उस पुलिस की तरह हो गयी है जो केस सॉल्व करने के चक्कर में चार्जशीट तो फाइल कर देती है, लेकिन अदालत में सबूत पेश करने में पसीने छूट जाते हैं. अशोक गहलोत ने चार्जशीट तो पहले से ही तैयार कर रखी थी, धीरे धीरे एक एक पैरा पेश भी करते गये. पहले खुद दावा किया कि सरकार गिराने की डील में सचिन पायलट भी शामिल हैं - और फिर उनके जूनियर वकील बताने लगे कि सचिन पायलट खेमे के विधायकों ने बीजेपी के केंद्रीय मंत्री से बात भी की है. तभी एक ऑडियो वायरल हो गया. बीजेपी नेता गजेंद्र सिंह शेखावत ने ऑडियो क्लिप को फर्जी भी करार दिया. दलील भी दी कि आवाज तो उनकी है ही नहीं क्योंकि वो राजस्थान की जो भाषा बोलते हैं ऑडियो में किसी और इलाके का टच है. राजनीति में ये सब आगे नहीं बढ़ता. आरोप प्रत्यारोप के बाद मामला शांत हो जाता है, लेकिन अशोक गहलोत तो इसे अंजाम तक पहुंचाने का फैसला कर चुके थे.

kalraj mishra, ashok gehlotअशोक गहलोत को बहुमत साबित करने की जल्दबाजी क्यों है?

जब तक बीजेपी नेता के खिलाफ केस दर्ज नहीं हुआ था, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी खामोश ही बैठी रहीं, भले ही ये आरोप लगते रहे हैं कि वो अशोक गहलोत सरकार को बचाने में लगी हैं. गजेंद्र सिंह शेखावत के कट्टर राजनीतिक विरोधी होने के बावजूद वसुंधरा को चुप्पी तोड़ कर मैदान में उतरना पड़ा - और अब तय है कि बात निकली है तो दूर तलक जाएगी भी.

वसुंधरा राजे ने पहले तो #RajasthanFirst हैशटैग के साथ ट्विटर पर अपना बयान जारी किया, फिर एक और ट्वीट कर ये भी कहा कि वो बीजेपी और उसकी विचारधारा के साथ खड़ी हैं.

अशोक गहलोत लगता है कुछ ज्यादा ही हड़बड़ी में हैं और पूरी दुनिया मुट्ठी में करने की कोशिश कर रहे हैं. ये तो उनको भी मालूम होगा ही कि जादू परफॉर्म करते वक्त भी मुट्ठी को बहुत देर तक बंद नहीं रखा जा सकता. अशोक गहलोत पहले बीजेपी को सिर्फ ललकार रहे थे - अब वो उस घर पर पत्थर मार चुके हैं जहां से वो टकराकर अशोक गहलोत के आंगन में गिरने वाला है. लगता है अशोक गहलोत शीशे के घर वाला किस्सा भी भूल चुके हैं. वैसे वे पत्थर तो नहीं ही भूले होंगे जो इनकम टैक्स के छापों के रूप में करीबियों पर पड़े थे - और बीच में खबर आयी है कि छापेमारी में काफी मात्रा में ऐसे सामान मिले हैं जिनके बारे में सही तरीके से दावा करना मुश्किल हो सकता है.

बहरहाल, अब मामला जब थाने पहुंचा ही है तो जांच पड़ताल और पूछताछ भी होगी और कोर्ट में सबूत भी पेश करने होंगे. हो सकता है अशोक गहलोत ने सबूत भी पक्के जुटा रखे हों, लेकिन उससे पहले सबूत जुटाने के तरीके पर सवाल खड़ा हो गया है. और मामला एक थाने का हो तो कोई बात नहीं लेकिन कई थानों का हो जाये तो मुश्किल तो होगी ही. आखिर, इनकम टैक्स किसी थाने से कम है क्या?

अशोक गहलोत को अब जवाब तो इस बात का भी देना होगा कि सबूत जुटाने का जो तरीका अपनाया वो सभी भी था या नहीं?

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राजस्थान के मुख्य सचिव को पत्र भेज कर फोन टैपिंग के आरोपों पर रिपोर्ट तलब किया है - जवाब तो देना ही होगा. कानून तो सबके लिए बराबर है.

कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस का झगड़ा सुलझाने में अशोक गहलोत ने बीजेपी को सरपंच बनने का मौका दे डाला है?

सरकार तो दांव पर अब लगी है

देखा जाये तो अशोक गहलोत भी कमलनाथ वाली स्थिति से ही गुजर रहे हैं, लेकिन फर्क देखिये - मध्य प्रदेश में बीजेपी की तरफ से लगतार दबाव बनाये जाने के बावजूद कमलनाथ विधानसभा का सत्र कोरोना वायरस के नाम पर आखिर तक टालते रहे - लेकिन ऐसी स्थिति में जब कोरोना चरम पर है, अशोक गहलोत खुद आगे बढ़ कर विधानसभा का स्पेशल सत्र बुलाने और बहुमत साबित करने का प्रयास कर रहे हैं. हो सकता है कमलनाथ को गणित पर भरोसा हो और अशोक गहलोत को अपने जादू पर - दावा तो अशोक गहलोत का भी विधायकों का बहुमत अपने पक्ष में होने का है, लेकिन स्थिति करीब करीब नुक्तों के हेर फेर से मतलब बदलने वाली ही है.

अशोक गहलोत को ये भी मालूम था कि जितना सब हो रहा है, राजभवन से भी बुलावा आज नहीं तो कल तो आना निश्चित ही है. बुलावा आये तब जाने से बेहतर है, पहले ही वो काम भी कर लिया जाये. लिहाजा अशोक गहलोत ने इस काम में भी देर नही लगायी और राजभवन पहुंच कर राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात भी कर डाली है. मुलाकात के बारे बताया वही गया है जैसी परंपरा रही है - एक शिष्टाचार मुलाकात.

और जैसा कि शिष्टाचार मुलाकातों में अब होता है, अशोक गहलोत ने भी राज्यपाल के सामने 102 विधायकों का समर्थन हासिल होने का दावा पेश कर दिया है. अभी तक तो सचिन पायलट ही अशोक गहलोत की सरकार के अल्पमत में होने का दावा कर रहे थे, लेकिन बीजपी की मांग तो अभी कुछ और है - फोन टैपिंग की सीबीआई जांच. एक माहिर खिलाड़ी की तरह अशोक गहलोत ने ये ताना बाना भी पहले ही बुन लिया है. हालांकि, अशोक गहलोत को ये ताकत मिली है भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायकों के सपोर्ट जताने के बाद.

अशोक गहलोत ने राज्यपाल से मुलाकात ऐसे वक्त की है जब राजस्थान हाई कोर्ट में बागी विधायकों की याचिका पर सुनवाई चल रही है. सुनवाई होने तक विधायकों के खिलाफ किसी भी तरह के एक्शन पर कोर्ट ने रोक लगा दी है.

माना जा रहा है कि अशोक गहलोत की राज्यपाल से मुलाकात का मकसद विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाना भी रहा. खबर है कि 22 जुलाई को राजस्थान विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाया जा सकता है - और एजेंडा भी विधायकों के बहुमत का सपोर्ट साबित करना ही होगा.

सवाल ये है कि अशोक गहलोत को विधानसभा में बहुमत साबित करने की जल्दबाजी क्यों है, बीजेपी ने तो ऐसी कोई मांग भी नहीं की है.

नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने और मामले के अदालत तक पहुंचने का माहौल तैयार करने वाले अशोक गहलोत कोई पहले नेता नहीं हैं. कुछ समय पहले तक आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी कुछ कुछ ऐसा ही शौक पाल रखा था - रास्ते में जो मिल जाये उसी पर आरोप जड़ दिया करते रहे. तभी हड़बड़ी में रास्ते में बीजेपी के कानूनविद नेता अरुण जेटली से भेंट हो गयी. अरविंद केजरीवाल ने ताबड़तोड़ आरोप जड़ डाले - और जब मामला अदालत पहुंचा तो माफी मांगने के सिवा कोई चारा भी नहीं बचा था. देखना है अशोक गहलोत ने जो मुसीबत मोल ली है वो अरविंद केजरीवाल जैसा ही है या अलग?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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