बैरिया में सुरेंद्र सिंह हुए बागी तो बीजेपी के लिए मददगार बनीं मायावती
बागी बैरिया विधायक सुरेंद्र सिंह (Rebel BJP MLA Surendra Singh) के चलते बीजेपी उम्मीदवार आनंद स्वरूप शुक्ला (Anand Swaroop Shukla) की राह थोड़ी मुश्किल तो है, मायावती (Mayawati) की मदद से मुश्किल कम हो सकती है.
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गोरखपुर सदर अगर पूर्वांचल की वीवीआईपी सीट है, तो बैरिया को सबसे हॉट सीट समझा जाना चाहिये - और बैरिया को ऐसा बनाने वाले बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह ही हैं जो अक्सर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह ही भगवाधारी नजर आते हैं.
संयोग ये है कि योगी आदित्यनाथ की तरह ही सुरेंद्र सिंह भी ठाकुर समुदाय से आते हैं - और प्रयोग ये कि बीजेपी नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को को तो गोरखपुर सीट से विधानसभा चुनाव में उतार दिया - लेकिन सुरेंद्र सिंह का टिकट काट कर पैदल कर दिया.
फर्क ये जरूर है कि ठाकुरवाद के तमाम आरोपों के बावजूद योगी आदित्यनाथ कश्मीर, केरल और बंगाल के नाम पर डराते हुए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास' की माला जपते रहते हैं, जबकि सुरेंद्र सिंह खुलेआम ठाकुरवाद करते रहे हैं - अक्टूबर, 2020 का बैरिया गोलीकांड बेहतरीन मिसाल है.
टिकट काटे जाने पर बागी बने सुरेंद्र सिंह (Rebel BJP MLA Surendra Singh) को बिहार के नेता मुकेश सहनी ने अपनी पार्टी VIP का टिकट दे दिया है - और नामांकन के बाद सुरेंद्र सिंह चुनाव प्रचार में जुट गये हैं.
बयानबाजी के मामले में तो सुरेंद्र सिंह का कोई सानी भी नहीं. अभी से वो बीजेपी की बलिया से ही विदाई कर देने का दावा करते फिर रहे हैं - लेकिन ये तो है ही कि बैरिया में बीजेपी उम्मीदवार आनंद स्वरूप शुक्ला (Anand Swaroop Shukla) के लिए वो मुश्किलें खड़ी करने वाले हैं, कोई दो राय नहीं होनी चाहिये.
वैसे बीजेपी चाहे तो थोड़ी राहत की सांस ले सकती हैं क्योंकि पूरे यूपी में मददगार मानी जा रहीं बीएसपी नेता मायावती (Mayawati) ने बैरिया में भी अपना खेल दिखा दिया है - और प्रत्याशी बदल कर बीजेपी के लिए राह आसान करने की कोशिश की है.
फिर भी बैरिया सीट पर लड़ाई दिलचस्प लग रही है क्योंकि मुकाबला सिर्फ बीजेपी और समाजवादी पार्टी में या त्रिकोणीय तक ही सीमित नहीं है. एक कोण से मोर्चा सुरेंद्र सिंह भी जोरदार ढंग से संभाले हुए हैं - देखना है कि योगी आदित्यनाथ की सत्ता वापसी की मुहिम में मायवती बैरिया में भी मददगार साबित होती हैं या फिर सुरेंद्र सिंह का ठाकुरवाद भारी पड़ता है?
बैरिया में चतुष्कोणीय लड़ाई
बड़बोलेपन की वजह से ही सही, लेकिन साल के पूरे बारह महीने बलिया को सुर्खियों में रखने वाले सुरेंद्र सिंह बीजेपी में कोई अकेले नेता नहीं थे. साक्षी महाराज या अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा जैसे नेताओं से वो ज्यादा अलग भी नहीं थे - कई बार तो गिरिराज सिंह को भी टक्कर देते नजर आये, लेकिन बीजेपी सरकार मंत्री बनना तो दूर, विधानसभा चुनाव आते आते टिकट के भी लाले पड़ गये.
बैरिया में भी बीेजेपी को बीजेपी से ही बड़ी मदद की उम्मीद होगी!
फिलहाल स्थिति ये है कि बैरिया सीट पर एक मौजूदा मंत्री और एक विधायक के अलावा दो पूर्व विधायकों के बीच मुकाबला है - हालांकि, अपने अपने हिसाब से प्रत्याशी इसे स्थानीय बनाम बाहरी की लड़ाई बनाने की भी कोशिश कर रहे हैं.
आनंद स्वरूप की चुनौतियां: बीजेपी ने सुरेंद्र सिंह की जगह बैरिया विधानसभा सीट पर योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है. अभी तक वो यूपी विधानसभा में बलिया सदर सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. बलिया सदर से बीजेपी उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह चुनाव मैदान में हैं.
बीजेपी ने टिकट भले काट दिया हो, लेकिन सुरेंद्र सिंह का केस काफी अलग है. आनंद स्वरूप शुक्ला के खिलाफ बीजेपी को जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर की आशंका रही - और ऐसे में सीनियर बीजेपी नेता अपने आजमाये हुए नुस्खे पर भी भरोसा करते हैं.
ऐसे में मौजूदा विधायक का टिकट काटना संभव न हो तो उसका इलाका बदल दिया जाता है - क्योंकि विधायक के मुकाबले किसी मंत्री के टिकट काट देने पर लोगों के बीच गलत संदेश जाता है.
साथ में, अमित शाह एक और उपाय कर रहे हैं. पश्चिम यूपी में तो अमित शाह ने साफ साफ कह दिया कि यूपी के लोग नेता, विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं बल्कि सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दें - दरअसल, ये सत्ता विरोधी लहर और कुछ खास रणनीतियों का कंप्लीट पैकेज है, जिसके केंद्र में योगी आदित्यनाथ भी स्वाभाविक रूप से मौजूद होते हैं.
आनंद स्वरूप शुक्ला के साथ भी सुरेंद्र सिंह जैसा ही सलूक हो सकता था, अगर वो मंत्री नहीं होते. स्थानीय लोगों से बात करने पर मालूम होता है कि जिस ब्राह्मण समुदाय से वो आते हैं, वे ही शुक्ला को वोट देने के खिलाफ मन बना चुके थे. हालांकि, पूरे यूपी चुनाव में ब्राह्मणों की मजबूरी है कि अगर कोई नजदीकी रिश्ता नहीं हो तो बीएसपी या सपा उम्मीदवार को तो वे वोट देने से रहे. चूंकि ब्राह्मण वोटर को भी बीजेपी नाराज नहीं करना चाहती थी, इसलिए आनंद स्वरूप शुक्ला को बैरिया भेजा गया है.
अंचल की नयी मुश्किल: जो पूरे यूपी चुनाव में महसूस किया जा रहा है, बैरिया सीट पर भी बीजेपी का मुख्य मुकाबला तो समाजवादी पार्टी से ही है - और बैरिया से पहले विधायक रह चुके जय प्रकाश अंचल पर ही अखिलेश यादव ने फिर से भरोसा जताया है. वो समाजवादी पार्टी के नेता रहे शारदानंद अंचल के बेटे भी हैं.
जय प्रकाश अंचल तो यही मान कर चल रहे थे कि सुरेंद्र सिंह का बगावत का वो पूरा फायदा उठा सकेंगे. बेशक आनंद स्वरूप शुक्ला को बीजेपी के वोट तो मिलेंगे ही, लेकिन सुरेंद्र सिंह के जो समर्थक हैं, वे तो उनके साथ जा ही सकते हैं - ऐसे में मुकाबले में आगे होने के अनुमान से वो समाजवादी पार्टी का पलड़ा भारी देख रहे थे.
बैरिया विधानसभा क्षेत्र में साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटर हैं - करीब 80 हजार क्षत्रीय, करीब 85 हजार यादव, करीब 60 हजार दलित और 40 हजार ब्राह्मण वोटर हैं.
जय प्रकाश अंचल के लिए तब तक कोई दिक्कत वाली बात नहीं थी, जब तक बीएसपी ने अपना उम्मीदवार नहीं बदला था - क्योंकि अब तो मायावती ने अखिलेश यादव के वोट बैंक में ही हिस्सेदारी जता दी है.
मायावती अपने मिशन पर हैं: बदले हालात में बीएसपी ने भी अपना प्रत्याशी बदल दिया है. पहले बीएसपी ने सामाजिक कार्यों में एक्टिव रिटायर्ड फौजी अंगद मिश्र को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन अब फिर से सुभाष यादव को टिकट दे दिया है - सुभाष यादव पहले भी बैरिया से विधायक रह चुके हैं.
मायावती की ये चाल आसानी से समझी जा सकती है. बिलकुल ऐसा ही पश्चिम यूपी की ज्यादातर सीटों पर महसूस किया गया है. जहां कहीं भी समाजवादी पार्टी या जयंत चौधरी के आरएलडी का उम्मीदवार मजबूत दिखा, बीएसपी ने धीरे से पेंच फंसा दिया - और आम वोटर से बातचीत में ये चीजें मालूम हो जाती हैं.
सुरेंद्र सिंह की बगावत को देखते हुए बीजेपी के लिए डैमेज कंट्रोल काफी मुश्किल लग रहा था, लेकिन ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ा और मायावती ने फटाफट प्रत्याशी बदल कर बीजेपी की चिंता काफी हद तक कम कर डाली है.
अब बीएसपी के सुभाष यादव, शारदानंद अंचल को मिलने वाले समाजवादी पार्टी के यादव वोट बैंक में आराम से घुसपैठ कर सकते हैं - फिर तो सीधे फायदे में बीजेपी ही रहेगी शक शुबहे वाली कोई बात ही नहीं लगती.
स्थानीय पत्रकार वीरेंद्र नाथ मिश्र कहते हैं, 'बैरिया पूर्वांचल की सबसे हॉट सीट बन गयी है - क्योंकि यहां चतुष्कोणीय लड़ाई हो रही है. लड़ाई तो बैरिया में भी मुख्य तौर पर बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच समझी जा रही है, लेकिन बीजेपी का वोटर भी दो हिस्सों में विभाजित है और सपा का मतदाता भी बीएसपी उम्मीदवार सुभाष यादव की तरफ देखने लगा है.'
अक्सर चुनावों में लोकल बनाम बाहरी की जंग छेड़ने की कोशिश की जाती रही है. पश्चिम बंगाल चुनाव में तो ये दिखा ही, हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने इंटरव्यू में भी इस बात का जिक्र किया था.
जयंत चौधरी और अखिलेश यादव का नाम लिये बिना ही प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वो पहले भी 'दो लड़कों' वाला खेल देख चुके हैं. बोले - उनमें इतना अहंकार था कि उन्होंने ‘गुजरात के दो गधे’ का प्रयोग किया था.
2017 सपा और कांग्रेस के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन हुआ था और तब चुनाव कैंपेन संभाल रहे प्रशांत किशोर ने स्लोगन दिया था - यूपी को ये साथ पसंद है. अखिलेश यादव और राहुल गांधी को तब 'यूपी के लड़के' कह कर पेश किया गया था. दरअसल, ये भी चुनाव को लोकल बनाम बाहरी बनाने की कोशिश थी. प्रशांत किशोर ने ये प्रयोग 2015 के बिहार चुनाव में भी किया था और बंगाल में भी दोहरा दिया - क्योंकि निशाने पर तो गुजरात से आने वाले ही दोनों नेता थे. एक प्रधानमंत्री मोदी और दूसरे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह.
पत्रकार वीरेंद्र मिश्रा बताते हैं कि बैरिया में भी बीएसपी उम्मीदवार सुभाष यादव के चुनाव प्रचार में जय प्रकाश अंचल को बाहरी उम्मीदवार के तौर पर पेश करने की कोशिश लग रही है.
कांग्रेस की तरफ से बैरिया में रस्मअदायगी ही समझ में आती है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने बैरिया को भी लड़की हूं लड़ सकती हूं स्लोगन के साथ 40 फीसदी वाले महिला कोटे में रखा है - बैरिया में कांग्रेस के टिकट पर सोनम बिंद चुनाव मैदान में हैं. हालांकि, वो भी बांसडीह से आती हैं - विरोधी उनको भी बाहरी बता कर अपना हित साधने की कोशिश कर सकते हैं.
सुरेंद्र सिंह अब VIP उम्मीदवार
चर्चित और विवादित बयानों के मामले में सुरेंद्र सिंह अक्सर ही राष्ट्रीय मीडिया में छाये रहे हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे बीजेपी नेताओं को बहुत पहले ही 'मुंह के लाल' करार दिया था - और संयम बरतने की सलाह दी थी. बीजेपी में रहते भले ही सुरेंद्र सिंह, मोदी को अवतारी पुरुष बताते रहे हों, लेकिन उनकी नसीहत को कभी करीब फटकने तक नहीं दिया.
उन्नाव गैंगरेप केस में जब तत्कालीन बीजेपी के ठाकुर विधायक कुलदीप सिंह सेंगर घिरे तो सुरेंद्र सिंह बयानबाजी के मामले में सीधे मुलायम सिंह यादव को टक्कर देते नजर आये थे.
तब सुरेंद्र सिंह के बयान पर काफी विवाद भी हुआ था, 'मनोवैज्ञानिक आधार पर कह सकता हूं कि कोई भी तीन चार बच्चों की मां से दुष्कर्म नहीं कर सकता है... धारा 324, 325 में आसानी से जमानत मिल जाती है, इस मामले में महिला उत्पीड़न का आरोप लगाया ताकि बेल ना मिल सके.' हालांकि, बाद में सुरेंद्र सिंह ने सफाई भी दी थी, लेकिन लहजा नहीं बदला था, 'मुझे किसी ने जानकारी दी थी कि वो महिला है और तीन बच्चों की मां है लेकिन ऐसा नहीं है.'
अजीब बात है. बीजेपी विधायक को अपनी बात पर गलत लगी क्योंकि रेप की शिकार युवती की उम्र वो नहीं थी जो वो पहले समझ रहे थे. बांगरमऊ के विधायक रहे कुलदीप सिंह सेंगर 17 साल की युवती के साथ बलात्कार के लिए जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. ये बात अलग है कि कुलदीप सेंगर से सहानुभूत रखने वाले सुरेंद्र सिंह अकेले नहीं हैं, बीजेपी के एक और बयान बहादुर सांसद साक्षी महाराज उनसे मिलने जेल तक पहुंच जाते हैं.
1. सुरेंद्र सिंह को वीआईपी का टिकट क्यों मिला: सुरेंद्र सिंह ने बीजेपी में टिकट काटे जाने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. फिर भी किसी राजनीतिक दल का सिंबल तो मायने रखता ही है.
खुद को सन ऑफ मल्लाह कहने वाले वीआईपी नेता मुकेश सहनी भी यूपी चुनाव में काफी दिनों से हाथ पैर मार रहे हैं - और बिहार में नीतीश कुमार की सरकार गिराने की ताकत होने के साथ साथ यूपी को लेकर भी बड़े बड़े दावे करते रहे हैं.
यूपी में बीजेपी ने निषाद पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया है - और मुकेश सहनी के बार बार योगी आदित्यनाथ को टारगेट किये जाने के लेकर बिहार में भी बीजेपी नेता मुकेश सहनी को सबक सिखाने की मांग करने लगे हैं.
ऐसे में सुरेंद्र सिंह और मुकेश सहनी, दरअसल, एक दूसरे की जरूरत बन गये - और उम्मीदवारी तय हो गयी. सुरेंद्र सिंह ने भी वीआईपी ज्वाइन करते ही नया तर्क गढ़ लिया - वो उन लोगों के साथ हैं जिस समाज ने भगवान राम की नैया पार लगाई थी. सुरेंद्र सिंह ने ये भी दावा किया कि वो मुकेश सहनी के नेतृत्व में बैरिया में सारे विरोधी दलों के उम्मीदवारों की जमानत जब्त कराएंगे.
2. योगी के खिलाफ सुरेंद्र सिंह का ठाकुरवाद कितना कारगर होगा: सुरेंद्र सिंह का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह को बीजेपी विधायक पर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाते देखा गया था.
ये तभी की बात है जब बैरिया के दुर्जनपुर गांव में गोली मार कर हुई हत्या के आरोपी के पक्ष में सुरेंद्र सिंह खड़े हो गये थे - और उसका सरेआम बचाव करने के बाद जब बीजेपी की फजीहत होने लगी तो लखनऊ तलब किया गया था.
लखनऊ में पेशी पर जाने से पहले सुरेंद्र सिंह ने मीडिया से बातचीत में आरोपी का नाम लेकर बचाव किया था, 'धीरेंद्र प्रताप सिंह ने आत्मरक्षार्थ और परिवार की सुरक्षा में गोली चलाई... मैं हमेशा न्याय के पक्ष में हूं... जहां तक जातीय बयान का सवाल है तो समाजवादी पार्टी अगर यादव के साथ है तो मैं क्षत्रिय के साथ खड़ा रहूंगा.'
यही वो बयान है जिसने स्थानीय स्तर पर सुरेंद्र सिंह को ठाकुरों का नेता बना दिया. सुरेंद्र सिंह ने ये भी बताया था कि धीरेंद्र सिंह ने 2017 के विधानसभा और 2019 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी के लिए काम किया था.
असल में सुरेंद्र सिंह के अलावा बलिया से मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त और पूर्व सांसद भरत सिंह भी ठाकुरों के नेता हैं. वीरेंद्र सिंह के साथ तो सुरेंद्र सिंह की कभी नहीं बन सकी. जब बीजेपी ने वीरेंद्र सिंह को भदोही से बलिया भेजा तब तक सुरेंद्र सिंह विधायक बन चुके थे - और तब उनकी दोस्ती भरत सिंह से रही जिनका टिकट काट कर 2019 वीरेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया गया.
शुरू से ही संघ से जुड़े रहे सुरेंद्र सिंह कुछ दिन के लिए कांग्रेसी बने थे और तब 'सोनिया माता' कहा करते थे - और एक बार भरत सिंह से खटपट हुई तो अपना मंच बनाकर उनके खिलाफ उम्मीवार भी उतार दिये थे. सुरेंद्र सिंह समर्थित उम्मीदवार को तो 10 हजार ही वोट मिले थे, लेकिन भरत सिंह चुनाव हार गये थे. भरत सिंह भी वहां से विधायक रह चुके हैं, जब विधानसभा का नाम द्वाबा हुआ करता था.
माना जाता है कि 2014 में सुरेंद्र सिंह की मदद के एवज में ही भरत सिंह के प्रयासों से सुरेंद्र सिंह को बीजेपी का टिकट मिला था - और ये सुनिश्चित करने के लिए मुंबई से भरत सिंह फौरन दिल्ली पहुंच गये थे - लेकिन बाद में एक कार्यक्रम के दौरान दोनों में विवाद हुआ और धीरे धीरे झगड़ा बढ़ता ही गया.
माना जा रहा है कि सुरेंद्र सिंह का टिकट कटवाने भले ही सांसद वीरेंद्र सिंह की प्रभावी भूमिका रही, लेकिन ऐसा करने वाले वो अकेले नहीं थे. असल में तो भरत सिंह भी चाहते थे कि भले ही किसी को बीजेपी का टिकट दे दिया जाये - लेकिन सुरेंद्र सिंह को तो किसी सूरत में न मिल पाये.
ये तो साफ है कि बीजेपी ने सुरेंद्र सिंह का टिकट उनके बड़बोलेपन के लिए नहीं काटा है, बल्कि इलाके के ही दो मजबूत ठाकुर नेताओं के विरोध के चलते ऐसा हुआ है.
बलिया के ही एक पत्रकार बताते हैं कि दोनों में से कोई खुल कर तो सुरेंद्र सिंह के खिलाफ सामने नहीं आया था, लेकिन ब्लॉक स्तर पर बीजेपी के प्रमुखों के तरफ से सुरेंद्र सिंह के खिलाफ फीडबैक दिया गया था - और एक सुर में टिकट न देने की पैरवी की गयी थी. जाहिर है, ऐसा होने के पीछे सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त का ही प्रभाव रहा होगा. वैसे भी कई सरकारी बैठकों में दोनों के खुल कर लड़ते और बाहर निकल कर एक दूसरे पर आरोप लगाते हुए बयान देते देखा जा चुका है.
अब सवाल है कि क्या सुरेंद्र सिंह ठाकुर वोटों के बीजेपी के खाते में जाने से रोक पाएंगे?
बलिया में सीनियर पत्रकार कृष्णकांत पाठक ऐसी संभावना से पूरी तरह इनकार नहीं कर रहे हैं - लेकिन ये पूछे जाने पर कि क्या वीरेंद्र सिंह और भरत सिंह बीजेपी के ठाकुर वोटर को सुरेंद्र सिंह के पक्ष में जाने से रोक पाएंगे, कृष्णकांत पाठक कहते हैं, 'सीधे सीधे कोई ऐसा करेगा, ये संभव नहीं लगता - और अगर ऐसी कोशिश भी हो तो कोई मतदाता किसी की बात मानेगा भी, ये भी नहीं संभव है.'
कृष्णकांत पाठक समझाते हैं, अगर सुरेंद्र सिंह से विरोध के चलते कोई अपने लिये वोट मांगता तो लोग एक बार जरूर सोचते, लेकिन किसी को वोट मत देना... आज के जमाने में ऐसी सलाहियत कौन मानने वाला है... बशर्ते बात विरोधी पार्टी को वोट देने की न हो रही हो.'
आखिर सुरेंद्र सिंह बीजेपी उम्मीदवार आनंद स्वरूप शुक्ला को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं, बैरिया के पत्रकार वीरेंद्र मिश्र कहते हैं, 'देखिये... ठाकुर वोटों का विभाजन तो निश्चित है - और बीजेपी को बहुत नुकसान भी हो सकता है, लेकिन अभी स्थानीय राजनीति कई करवटें बदलने वाली है.'
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