मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री लोग देख भी लें तो क्या फर्क पड़ने वाला है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर बनायी गयी बीबीसी की डॉक्टूमेंट्री (BBC Documentry) पर कानून के हिसाब से बीजेपी सरकार का एक्शन अपनी जगह सही है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर गुजरात दंगे (Gujarat Riots) की कोई प्रासंगिकता बची है क्या - राजनीतिक तौर पर?
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राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर बीजेपी के रिएक्शन को आखिर कैसे समझा जाये? पहले तो बीजेपी नेता यात्रा के प्रभाव को ही खारिज करते हैं, लेकिन फिर राजनाथ सिंह जैसे सीनियर बीजेपी नेता कह रहे हैं कि राहुल गांधी भारत को बदनाम कर रहे हैं.
जब राहुल गांधी को बीजेपी के हिसाब से कोई पूछता ही नहीं. जब बीजेपी के हिसाब से भारत जोड़ो यात्रा का कोई असर हो ही नहीं सकता, तो भला उसकी ऐसी हैसियत कैसे बन जाती है कि वो भारत को बदनाम कर सके?
सिंगरौली में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि राहुल भारत जोड़ो यात्रा में हमेशा देश में नफरत होने की बात कहकर भारत को बदनाम कर रहे हैं. राजनाथ सिंह का कहना है, राहुल गांधी से मैं पूछना चाहता हूं देश में नफरत को कौन जन्म दे रहा है?
अपनी तरफ से कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राजनाथ सिंह सलाह देते हैं, भारत को अंतर्राष्ट्रीय जगत में बदनाम करने की कोशिश मत करो... अगर भारत की प्रगति में योगदान नहीं कर सकते, तो कम से कम ऐसा काम मत करिये.
और फिर ये दावा भी करते हैं, 'राहुल जी लोगों के बीच जाकर मोदीजी - और भाजपा के प्रति नफरत पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.'
क्या राहुल गांधी का लोगों पर इतना असर हो सकता है? बीजेपी के स्टैंड को देखकर तो ऐसा कभी नहीं लगा - क्या भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी लोगों के बीच एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे हैं?
जिस तरीके से राजनाथ सिंह प्रतिक्रिया दे रहे हैं. जिस तरह से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने पत्र लिख कर राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा रोकने की सलाह दी थी - एकबारगी ऐसा लगता तो है कि बीजेपी अंदर ही अंदर राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा में मिल रहे लोगों के समर्थन से परेशान तो है.
क्या बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री (BBC Documentry) पर सरकारी एक्शन का भी राहुल गांधी की यात्रा से कोई संबंध हो सकता है? ऐसा कोई सीधा कनेक्शन तो नहीं है, लेकिन क्या भारत जोड़ो यात्रा के थोड़े बहुत असर के बीच ऐसी कोई डॉक्यूमेंट्री लोगों के दिमाग पर अपना थोड़ा सा भी असर छोड़ सकती है?
हड़बड़ी में लिया गया फैसला लगता है
भारत में कानून का राज कायम करने के लिए संविधान में भरपूर इंतजाम किये गये हैं. कानूनों को सही तरीके से लागू किये जाने और किसी भी गैर-कानूनी काम की नैसर्गिक पैमाइश के लिए देश भर में अदालतें हैं - और सबसे ऊपर एक सुप्रीम कोर्ट भी है.
जिस मोदी को कानून और जनता की सबसे बड़ी अदालत से क्लीन चिट मिल चुकी हो, एक विदेशी डॉक्यूमेंट्री को मार्केटिंग से ज्यादा क्या फायदा हो सकता है?
कानून की अदालतों के साथ साथ सबसे बड़ी अदालत जनता की अदालत भी तो है - और जब जनता की अदालत में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को बेदाग मान लिया गया हो, तो बाकी फिजूल की बातों का कोई मतलब बचता है क्या?
2002 के गुजरात दंगों (Gujarat Riots) के बाद से अब तक के सभी विधानसभा चुनाव मोदी के चेहरे पर ही बीजेपी जीतती आयी है. और इस बार तो रिकॉर्ड जीत मिली है. गुजरात से बाहर वही मोदी बीजेपी को लगातार दो आम चुनावों में भारी जीत दिला चुके हैं - और आने वाले चुनाव को लेकर भी अभी तक ऐसा कुछ साफ तौर पर नजर नहीं आ रहा है कि कहीं कोई बड़ी चुनौती हो, ऐसे में एक अदना सी डॉक्यूमेंट्री भला क्या नुकसान पहुंचा सकती है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनायी गयी बीबीसी की डॉक्टूमेंट्री पर कानून के हिसाब से केंद्र सरकार का एक्शन अपनी जगह सही माना जा सकता है, लेकिन क्या व्यावहारिक तौर पर भी ऐसी छोटी मोटी चीजों से अब कोई फर्क पड़ सकता है?
अब तक का अपडेट यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बनायी गयी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' के किसी भी हिस्से को सोशल मीडिया पर जारी करने पर केंद्र सरकार की तरफ से रोक लगा दी गयी है. कहते हैं, सरकार ने इसके लिए इमरजेंसी शक्तियों का इस्तेमाल करके ये पाबंदी लगायी है.
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री के पहले एपिसोड को दिखाने वाले तमाम विडियो को यूट्यूब से हटाने का निर्देश दिया है. वीडियो के किसी भी हिस्से को ट्विटर पर भी शेयर करने से रोक भी लगायी गयी है, और ऐसे सारे ही लिंक को ब्लॉक करने को कहा गया है. यूट्यूब और ट्विटर को आईटी नियम, 2021 के तहत ये निर्देश जारी किये गये हैं और वो उस पर अमल भी कर चुके हैं.
सूत्रों के हवाले से आयी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार , विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री की जांच की और माना कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री लोगों के बीच नफरत, सुप्रीम कोर्ट के अधिकार और विश्वसनीयता पर तोहमत लगाने का प्रयास है.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सलाहकार कंचन गुप्ता ने ट्विटर पर अपडेट शेयर किया है. कंचन गुप्ता ने डॉक्यूमेंट्री को बीबीसी का घिनौना प्रचार भारत की संप्रभुता और अखंडता को कमजोर करने वाला बताया है.
ImportantVideos sharing @BBCWorld hostile propaganda and anti-India garbage, disguised as ‘documentary’, on @YouTube and tweets sharing links to the BBC documentary have been blocked under India’s sovereign laws and rules.n1
— Kanchan Gupta ?? (@KanchanGupta) January 21, 2023
रूल बुक के हिसाब से अधिकारियों को ऐसा लगा हो सकता है, लेकिन राजनीतिक नजरिये से देखा जाये तो ये भी हड़बड़ी में लिया गया फैसला लगता है - जैसे बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा को मोहम्मद साहब को लेकर एक टिप्पणी के लिए फटाफट फ्रिंज एलिमेंट बता दिया गया था.
डॉक्यूमेंट्री में कुछ भी तो नया नहीं है
अव्वल तो ये डॉक्यूमेंट्री अभी भारत पहुंची ही नहीं थी, ब्रिटेन में इसका पहला पार्ट 17 जनवरी को दिखाया गया है - और बताते हैं कि 24 जनवरी को डॉक्यूमेंट्री का दूसरा हिस्सा भी दिखाया जाएगा.
1. डॉक्यूमेंट्री में ऐसी कौन सी नयी बात है: बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर जो भी बहस चल रही है या फिर जो रिपोर्ट आयी हैं, अब तक यही समझ में आया है कि पुरानी बातों को ही नयी पैकेजिंग के साथ परोस दिया गया है.
अब तक ऐसी कोई भी बात या इल्जाम सामने नहीं आया है जो पहले न लगाया गया हो. जिस पर सुप्रीम कोर्ट तक बहस न हुई हो - और जो चुनावों में मोदी विरोधियों के भाषणों का हिस्सा न बनी हो.
2. सुप्रीम कोर्ट से सारे ही आरोप खारिज हो चुके हैं: अभी जून, 2022 की ही तो बात है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों की जांच करने वाली एसआईटी की तरफ से मिली क्लीन चिट को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और पुलिस अधिकारी रहे आर श्रीकुमार के खिलाफ जांच की सिफारिश की थी. सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी मिलते ही गुजरात पुलिस ने जांच पड़ताल शुरू कर दी और तीस्ता सीतलवाड़ को जेल जाना पड़ा था.
और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मीडिया के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सारे ही विरोधियों पर फिर से हमला बोला था - और सिर्फ इतना ही नहीं, गुजरात विधानसभा चुनाव में भी खास तौर पर 2002 के गुजरात दंगों का जिक्र भी किया था.
3. राजनीतिक तौर पर बीजेपी को तो फायदा ही होता है: गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान भी अमित शाह लोगों को समझा रहे थे कि कांग्रेस की सरकारों के वोट बैंक की राजनीति से अलग बीजेपी सरकार ने दंगाइयों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया और फिर कभी दंगा नहीं होने दिया.
अमित शाह ने चुनावी माहौल में फिर से यही समझाने की कोशिश की कि बीजेपी शासन में कुछ भी गलत नहीं हुआ, बल्कि जो गलती कांग्रेस सरकारों ने किया उसे रोक दिया. पहले कांग्रेस की सरकारों में दंगाइयों को प्रश्रय दिया जाता रहा, बीजेपी सरकार ने उसे सख्ती से रोक दिया.
सवालों के कठघरे में खड़े होकर भी बीजेपी ने गुजरात दंगे के एक सजायाफ्ता की बेटी को टिकट देने की हिम्मत दिखायी. मनोज कुकरानी सहित 16 आरोपियों को नरोदा पाटिया केस में सजा सुनायी गयी थी, लेकिन चुनावों के दौरान लोगों पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ.
मनोज कुकरानी की बेटी पायल कुकरानी चुनाव जीत कर गुजरात विधानसभा पहुंच की चुकी हैं. चुनावों के दौरान ही बिलकिल बानो के बलात्कारियों को छोड़ने को लेकर गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार निशाने पर थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को गलत नहीं माना है.
देखा जाये तो जब जब बीजेपी के राजनीतिक विरोधी गुजरात दंगों को लेकर मोदी को टारगेट किये हैं, चुनावों में फायदा ही मिला है. वैसे भी जब देश की सबसे बड़ी अदालत क्लीन चिट दे चुकी हो, देश की जनता ऐसे आरोपों को नामंजूर कर चुकी हो तो भला एक डॉक्यूमेंट्री को भाव देने की जरूरत क्या है?
जब केंद्र में सत्ताधारी पार्टी की अध्यक्ष के मोदी पर सबसे बड़े हमले का कोई असर नहीं होता. 2007 के गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष हुआ करती थीं, और केंद्र में यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार थी. तब सोनिया गांधी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर बताया था.
जब देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के चौकीदार चोर है के स्लोगन का देश के लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ता तो भला बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री किस खेत की मूली है?
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