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Updated: 16 नवम्बर, 2020 12:18 PM
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पश्चिम बंगाल में 2021 के चुनावी मुकाबले (Bengal Election 2021) की जटिलता का अंदाजा ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को तो पहले से ही रहा, 2019 के आम चुनाव ने सब कुछ साफ साफ दिखा दिया - और तभी से बीजेपी के साथ तृणमूल कांग्रेस टकराने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तकरार तो जैसे सूबे की राजनीति के रूटीन का हिस्सा ही बन चुकी है. कांग्रेस ने अधीर रंजन चौधरी को पश्चिम बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष और जितिन प्रसाद को चुनाव प्रभारी बनाकर पहले से ही साफ कर दिया है कि वो ममता बनर्जी के साथ कोई समझौता नहीं करने वाली है - और उसकी कोशिश बीजेपी बनाम टीएमसी की लड़ाई को त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की है.

बिहार चुनाव के नतीजों के बाद पश्चिम बंगाल में नये समीकरण बनते नजर आ रहे हैं, फिर तो सभी राजनीतिक दलों की चुनावी रणनीतियों पर भी असर देखने को मिलेगा ही. फिलहाल तो लेफ्ट पार्टियों के बीच भी आम सहमति नहीं नजर आ रही है क्योंकि सीपीआई-एमएल वाले दीपंकर भट्टाचार्य बाकियों को भी ममता बनर्जी के साथ और बीजेपी के खिलाफ लामबंद होने की सलाह दे रहे हैं - ऐसे में ममता बनर्जी बनाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सियासी जंग में तीसरे मोर्चे की एंट्री भी करीब करीब पक्की लगने लगी है.

चुनावी मुद्दे क्या होंगे?

लेफ्ट पार्टियां भले ही आपस में ही लड़ रही हों कि बिहार और पश्चिम बंगाल का राजनीतिक मिजाज बिलकुल अलग है, लिहाजा पश्चिम बंगाल में बिहार मॉडल तो चलने से रहा - लेकिन ममता बनर्जी पूरी तरह अलग हट कर सोच रही हैं.

mamata banerjeeबिहार चुनाव के नतीजों ने तो पश्चिम बंगाल में भी मुद्दे बदल डाले

ममता बनर्जी को लगता है कि बीजेपी से बाकी मुद्दों पर टकराने में मुश्किल हो सकती है, लेकिन युवाओं और उनके लिए रोजगार का मुद्दा कारगर हो सकता है. बिहार तो गवाह है ही कि कैसे तेजस्वी यादव के 10 लाख सरकारी नौकरी देने के चुनावी वादे ने एकतरफा चुनाव को कड़े मुकाबले में अचानक ही तब्दील कर दिया. माहौल ऐसा बना कि बीजेपी भी दबाव में आ गयी और उसे दस के बदले 19 लाख रोजगार और फ्री कोरोना वैक्सीन को चुनावी वादों में शामिल करना पड़ा. हालांकि, फ्री वैक्सीन पर चौतरफा हमलों के बाद केंद्रीय मंत्रियों की तरह से सफाई दी जाने लगी कि वैक्सीन आने पर सभी को मिलेगी, सिर्फ बिहार के लोगों को नहीं.

मुफ्त की चीजें बांटने के प्रयोग तो 2016 में भी हुए थे. वैसे ममता बनर्जी के मुकाबले तब तमिलनाडु में एआईएडीएमके नेता जयललिता आगे रहीं और चुनाव जिताने में भी चुनावी वादे की महत्वपूर्ण भूमिका रही. बिहार में भी नीतीश कुमार ने लड़कियों महिलाओं और कुछ जाति विशेष के लोगों के लिए मुफ्त की चीजें बतायी थी, लेकिन ममता बनर्जी ने तो बिलकुल नया ही पासा फेंका है.

ममता बनर्जी की सरकार पश्चिम बंगाल के दो लाख नौजवानों को बाइक देने जा रही है और दावा किया जा रहा है कि सरकार के इस कदम से 10 लाख लोगों को फायदा मिलेगा. ऐसा करके सरकार पश्चिम बंगाल के युवाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रही है.

सरकार की कर्म-साथी स्कीम के तहत युवाओं को बाइक पर एक बॉक्स लगाकर दिया जाएगा जिसमें सामान रख कर वे घूम घूम कर बेच सकें. योजना है कि बेरोजगार नौजवान बाइक पर फल, सब्जियां और कपड़े जैसे सामान घूम घूम कर बेच सकें. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कर्म साथी योजना का मकसद युवाओं को उद्यमी बनाने के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराने की भी कोशिश होगी. ऐसे युवाओं को सब्सिडी और सस्ते कर्ज दिलाने के भी सरकारी तौर पर प्रयास किये जाने की बात बतायी जा रही है.

ये आत्मनिर्भर पश्चिम बंगाल बनाने का तृणमूल तरीका लगता है - अच्छी बात ये है कि जैसे मोबाइल कंपनियों में प्रतियोगिता के चलते उपभोक्ताओं को सस्ती कॉल रेट और और इंटरनेट सुविधा मिली है, कुछ उसी तरह चुनावों में राजनीतिक दलों की होड़ के चलते चीजें बेरोजगारी और युवाओं की तरफ लौटती नजर आ रही है.

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