Bhagwant Mann एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री बन गये हैं या Kejriwal सुपर सीएम?
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) दिल्ली में उपराज्यपाल के दखल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गये हैं, लेकिन पंजाब के आला अफसरों (Punjab Government Officials) को तलब कर खुद मीटिंग भी ले लेते हैं - ऐसे में भगवंत मान (Bhagwant Mann) पंजाब के विपक्षी नेताओं को भला क्या जवाब दें?
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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को जो बात बिलकुल नहीं पसंद है, वही काम वो खुद करने लगे हैं. दिल्ली सरकार के कामकाज में उपराज्यपाल के हस्तक्षेप के खिलाफ अरविंद केजरीवाल शुरू से ही लड़ाई लड़ रहे हैं - और अब तो सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुके हैं, लेकिन पंजाब के मामले में वो अधिकारियों को तलब कर मीटिंग ले रहे हैं.
असल में बवाल मच रहा है दिल्ली के मुख्यमंत्री की पंजाब के मुख्य सचिव के साथ मीटिंग की. बताते हैं कि मीटिंग में बिजली विभाग के भी बड़े अधिकारी शामिल हुए हैं. सबसे अजीब बात ये है कि आला अधिकारियों की मीटिंग (Punjab Government Officials) में न तो पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान (Bhagwant Mann) मौजूद थे, न ही बिजली मंत्री हरभजन सिंह - ऊपर से आम आदमी पार्टी प्रवक्ता राघव चड्ढा और दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन भी मीटिंग में शामिल हुए बताये जाते हैं. राघव चड्ढा पार्टी के पंजाब प्रभारी भी हैं.
अरविंद केजरीवाल ने ऐसा करके पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की फजीहत बढ़ा दी है. मान को कोई रबर स्टांप मुख्यमंत्री बता रहा है तो कोई पंजाब के लोगों से माफी मांगने को कह रहा है. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह सहित पूरे विपक्ष के निशाने पर अचानक मुख्यमंत्री मान आ गये हैं. आम आदमी पार्टी की तरफ ले इसे व्यापक जनहित में उठाया गया कदम बताने की कोशिश हो रही है.
अरविंद केजरीवाल का ये एक्ट वैसा ही लगता है जैसे संजय बारू की किताब एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर में किये गये थे. संजय बारू पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे और ये किताब वो अपने कार्यकाल के अनुभवों पर लिखे थे. किताब में दावा कुछ ऐसा था कि केंद्र सरकार की हर तरह की महत्वपूर्ण फाइलें पहले सोनिया गांधी के पास जाती थीं और उसके बाद ही कोई फैसला लिया जाता रहा.
तब सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष और यूपीए की चेयरपर्सन होने के साथ साथ राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष भी रहीं. संजय बारू की किताब आने के बाद कांग्रेस नेतृत्व पर बीजेपी काफी हमलावर रही - 2019 के आम चुनाव से पहले किताब के टाइटल से ही हंसल मेहता ने एक फिल्म भी बनायी थी जिसमें मुख्य किरदार अनुपम खेर ने निभाया था.
मनमोहन सरकार को लेकर बीजेपी रिमोट कंट्रोल से चलाये जाने का आरोप लगाती रही. कहने को तो ये भी कहा जाता है कि एनसीपी नेता शरद पवार के पास ही महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार की चाबी रहती है - और बिहार में 2015 में बनी महागठबंधन सरकार के दौरान लालू यादव को लेकर भी ऐसी खबरें आयी थीं.
सवाल ये है कि अगर ऐसा होना गलत है, संवैधानिक नियमों का उल्लंघन है तो कोई एक्शन क्यों नहीं होता?
मुख्यमंत्री दिल्ली के, अधिकारी पंजाब के!
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ हुई मीटिंग में शामिल लोगों की सूची पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा ने ट्विटर पर डाली है. राजा का कहना है कि अरविंद केजरीवाल के साथ मीटिंग में पंजाब के मुख्य सचिव अनिरुद्ध तिवारी, बिचली सचिव दलीप कुमार और पीएसपीसीएल के चेयरमैन बलदेव सिंह सरन भी शामिल हुए. राजा के मुताबिक, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और बिजली मंत्री हरभजन सिंह जहां मीटिंग में नहीं थे, वहीं आप के राज्य सभा सांसद राघव चड्ढा और दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी बैठक में हिस्सा लिया था.
CS Anirudh Tewari, Secy Power Dalip Kumar ,Delhi CM @ArvindKejriwal ,MP @raghav_chadha Delhi Minister Satyender Jain ,Chairman pspcl Baldev singh Saran hv held official meeting in the absence of CM BHAGWANT MANN @BhagwantMann and Power Minister Harbhjan Singh...
— Amarinder Singh Raja (@RajaBrar_INC) April 11, 2022
आम आदमी पार्टी की पंजाब इकाई की तरफ से सूबे के आला अधिकारियों की अरविंद केजरीवाल के साथ हुई मीटिंग का बचाव किया गया है. पार्टी प्रवक्ता का कहना है कि आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के सीएम ने कुछ भी गलत नहीं किया है, बल्कि जो किया है वो व्यापक जनहित में किया है.
सबसे बड़ा सवाल - पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान हैं या अरविंद केजरीवाल?
AAP प्रवक्ता एमएस कंग कहते हैं, 'हम उनका मार्गदर्शन लेते हैं... इसलिए इसमें कुछ भी गलत नहीं है... पंजाब और कई राज्य केजरीवाल शासन के मॉडल को समझने के लिए दिल्ली जाते हैं.'
अच्छी बात ये है कि आप के प्रवक्ता ने मीटिंग की बात को खारिज नहीं किया है. एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर किताब के दावों को कांग्रेस की तरफ से मनगढ़ंत बताकर खारिज करने की कोशिश की गयी थी. आप प्रवक्ता लगता है तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के दिल्ली दौरे की तरफ इशारा कर रहे हैं जब वो दिल्ली के मॉडल स्कूल और मोहल्ला क्लिनिक देखने गये थे.
अब सवाल ये है कि जिस मीटिंग को लेकर अरविंद केजरीवाल के विरोधी बवाल मचा रहे हैं वो महज राजनीतिक है या फिर गंभीर मामला? और सवाल ये भी है अगर संविधान के लिहाज से ये गलत है तो कहीं से कोई एक्शन भी होगा या पहले की ही तरह बात आई-गई हो जाएगी?
व्यापक हित या संवैधानिक नियमों का उल्लंघन: सही और गलत तय करने का आधार ये होगा कि मीटिंग में हुआ क्या? अगर सिर्फ बातें हुईं. मौखिक चर्चाएं हुईं और अनधिकृत व्यक्ति के साथ कोई गोपनीय जानकारी शेयर नहीं की गयी तो मामला गंभीर नहीं भी माना जा सकता है, लेकिन अगर मीटिंग में पंजाब के अधिकारियों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री को अपनी सरकार की फाइलें दिखायी हैं तो ये गंभीर माना जाना चाहिये.
ऐसी कोई भी मीटिंग बुलाने के लिए वह सक्षम व्यक्ति ही अधिकृत है जिसने पद विशेष और उसकी गोपनीयता की शपथ ली हुई है. जैसे मुख्यमंत्री के शपथग्रहण के दौरान अपना नाम लेकर साफ तौर पर कहा जाता है, "मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा. मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखूंगा. मैं राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंत:करण से निर्वहन करूंगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा.
और शपथ के दूसरे हिस्से में कहा जाता है, "जो विषय राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा, उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाए जबकि ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूंगा."
अब सवाल ये है कि जो मीटिंग हुई है, उसके लिए जिम्मेदार कौन है? अरविंद केजरीवाल या भगवंत मान?
जिम्मेदारी तो भगवंत मान की ही बनती है क्योंकि पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले भी वहीं हैं. अब अगर पंजाब सरकार से जुड़े दस्तावेज किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री के साथ शेयर किये गये हैं तो ये पूरी तरह गलत है. ये मुख्यमंत्री पद की शपथ का सरासर उल्लंघन है.
तो क्या भगवंत मान ने शपथ का उल्लंघन किया है? अगर वास्तव में ऐसा ही हुआ है तो उल्लंघन ही माना जाएगा - और हां, अगर एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर किताब के दावे सही हैं तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भी वैसी ही जिम्मेदारी समझी जानी चाहिये.
ये तो अपराध हुआ, फिर एक्शन क्यों नहीं: ऐसे मामले कभी भी बयानबाजी से आगे नहीं बढ़ते. न तो ऐसे वाकयों के खिलाफ सदन में कोई प्रस्ताव लाया जाता है, न ही गंभीर होकर कोई अदालत का रुख करता है - अगर छोटी मोटी कोशिशें होती भी हैं तो वो प्रचार पाने के मकसद भर से ही, उससे ज्यादा नहीं होतीं.
जो राजनीतिक दल कठघरे में खड़ा किया जाता है, वो अपनी तरफ से बयान जारी कर सिरे से खारिज कर देता है - और आरोप लगाने वाले या तो माफी मांगने की मांग करके रस्मअदायगी निभा लेते हैं या इस्तीफा मांग लेते हैं.
जो भी तात्कालिक नफा नुकसान होता है उसके अलावा कुछ भी नहीं होता. धीरे धीरे पब्लिक भी सब जानते समझते हुए भूल ही जाती है. या फिर उसे नये मुद्दे थमा दिये जाते हैं. बात खत्म हो जाती है.
ये डबल स्टैंडर्ड क्यों?
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पूरे विपक्ष के निशाने पर हैं. कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष से लेकर पूर्व प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह तक भगवंत मान को रबर स्टांप सीएम बताने लगे हैं - ताज्जुब की बात ये है कि भगवंत मान के सामने भी वैसी ही स्थिति बन गयी है जैसा अरविंद केजरीवाल तब महसूस करते हैं जब दिल्ली के उपराज्यपाल उनके फैसलों को नामंजूर कर देते हैं. भगवंत मान की मुश्किल है कि वो उसी के खिलाफ कैसे बोलें जिसके वो सरेआम पैर छूते हैं.
बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा पूछते हैं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किस हैसियत से किसके साथ बैठक की? पंजाब सरकार के अधिकारी मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति में कैसे गये? क्या मुख्यमंत्री भगवंत मान को इस बैठक की जानकारी थी? अगर हां, तो भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल दोनों को पंजाब के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए पंजाबियों से माफी मांगनी चाहिये.
अरविंद केजरीवाल और पंजाब सरकार के अधिकारियों की बैठक को लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्विटर पर लिखा है, 'इसी बात का डर था, हुआ भी सबसे बुरा...भगवंत मान रबर स्टांप हैं... ये पहले से ही तय था... केजरीवाल ने दिल्ली में पंजाब अधिकारियों की बैठक की अध्यक्षता करके ये सही साबित कर दिया है.'
Worst was feared, worst happened. @ArvindKejriwal has taken over Punjab much before it was expected to happen. That @BhagwantMann is a rubber stamp was a foregone conclusion already, now Kejriwal has proved it right by chairing Punjab officers' meeting in Delhi.
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) April 12, 2022
कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू का रिएक्शन है, 'चलने दो आंधियां हकीकत की, न जाने कौन से झोंके से बहरूपियों के मुखौटे उड़ जाएं...' साथ ही, सिद्धू ने अरविंद केजरीवाल पर डबल स्टैंडर्ड अपनाने का आरोप भी लगाया है.
… Double standards !!@ArvindKejriwal, Under which provision of the constitution does Chief Minister of Delhi has power to chair meeting of Chief Secretary and other senior IAS officers of Punjab ? Has @BhagwantMann authorised you or he is just a symbolic CM ? https://t.co/n89Ve3cPNq
— Navjot Singh Sidhu (@sherryontopp) April 12, 2022
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की प्रशासनिक सेवाओं को नियंत्रित करने के मुद्दे पर सुनवाई होने वाली है. आप सरकार का आरोप है कि केंद्र ट्रांसफर और पोस्टिंग की उसकी शक्ति को छीनकर संघवाद को नकार रहा है. अदालत ने केंद्र की तरफ से दी गयी दलीलों पर संज्ञान लिया है, जिसमें इस मुद्दे पर संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई करने की गुजारिश की गयी है.
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