बिलकिस बानो केस से लेकर आहूजा 'ज्ञान' देव तक - किरदार अलग, पर कहानी एक जैसी है!
बीजेपी नेता ज्ञानदेव आहूजा (Gyandev Ahuja) के वायरल वीडियो ने पहलू खान (Pehlu Khan) केस की अचानक याद तो दिलायी ही है - लगे हाथ ये भ्रम भी तोड़ दिया है कि बिलकिस बानो केस (Bilkis Bano Case) के बलात्कारियों को जेल से छुड़ा लिया जाना कोई अचानक हुई घटना नहीं है.
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राजनाथ सिंह ने बीजेपी के लिए एक बार फिर 'पार्टी विद डिफरेंस' होने का दावा किया है, जबकि बाकी सभी राजनीतिक दलों को 'पार्टी विद डिफरेंसेज' बताया है. बीजेपी को लेकर ये पुराना विमर्श है, लेकिन 2014 में नया वर्जन लांच होने के बाद ऐसी छोटी मोटी बातों की चर्चा न के बराबर ही हुआ करती है.
तो पार्टी विद डिफरेंस का हाल ये है कि बवाल होने पर बीजेपी फटाफट पल्ला झाड़ लेने लगी है - और ये सिर्फ नुपुर शर्मा के केस में ही नहीं हुआ है, जब पार्टी के अधिकृत कार्यकर्ता को सरेआम फ्रिंज एलिमेंट घोषित कर दिया जाता है - वो भी तब जबकि वो महिला नेता एक गर्मागर्म बहस में विचारधारा और पार्टीलाइन के साथ चलते हुए आक्रामक विरोधियों से लाइव टीवी पर जूझ रही होती है. अगर कहीं से बचाव की कोई आवाज सुनने को मिलती है तो सिर्फ केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की. नुपुर शर्मा की हिम्मत बढ़ाते हुए अजय मिश्रा ने दावा किया था कि पार्टी अपने कार्यकर्ता को यूं ही नहीं छोड़ देती. बाकियों का जो भी हाल होता हो, उनके साथ तो ऐसा ही हुआ है. हालांकि, लखीमपुर खीरी के किसान एक बार फिर उनको मोदी कैबिनेट से हटाये जाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
नोएडा वाले श्रीकांत त्यागी के सपोर्टर भी इसी बात से खफा हैं कि मुसीबत की घड़ी में बीजेपी ने पल्ला झाड़ लिया. श्रीकांत त्यागी को जेल तो भेजा ही गया, घर पर बुलडोजर भी चला दिया गया - और यही वजह है नोएडा में गेझा के रामलीला मैदान में त्यागी समाज ने 21 अगस्त को महापंचायत बुलायी गयी है. बाबू सिंह कुशवाहा को भी बीजेपी ने अपना ही लिया होता, अगर पार्टी में ही विरोध न शुरू हुआ होता. तब तो बीजेपी सांसद रहे योगी आदित्यनाथ ने भी सरेआम धमका दिया था. आखिरकार बीच का रास्ता निकाला गया और बाबू सिंह कुशवाहा को समझाया गया कि वो खुद ही बीजेपी से अलग हो जाने की घोषणा कर दें.
असल में श्रीकांत त्यागी का दावा था कि वो बीजेपी का नेता है, लेकिन बीजेपी की तरफ से आधिकारिक तौर पर बताया गया कि श्रीकांत त्यागी का पार्टी से कोई संबंध नहीं है. जहां तक समर्थकों की बात है, वे तो वही मानेंगे जो श्रीकांत त्यागी के मुंह से सुनते रहे होंगे. हो सकता है वे सुख-दुख में श्रीकांत त्यागी को साथ खड़े पाते रहे हों, फिर ऐसे लोगों की तो हजार गलतियां भी माफ समझी जाती हैं.
श्रीकांत त्यागी की एक गाड़ी पर लगे स्टीकर पर सवाल उठे तो पुलिस ने बताया कि समाजवादी पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने मुहैया कराया था. लेकिन ये तभी की बात है जब वो बीजेपी सरकार में मंत्री हुआ करते थे. स्वामी प्रसाद मौर्य ने मीडिया को ये जानकारी देने वाले पुलिस अफसर को मानहानि का नोटिस भेजा है.
बीजेपी के इनकार के बावजूद श्रीकांत त्यागी के समर्थक ऐसी कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं हैं. आलम ये है कि एक महिला से अभद्रता करने के आरोपी श्रीकांत त्यागी के समर्थकों की वजह से पुलिस प्रशासन तमाम एहतियाती इंतजामों में लगा हुआ है. रूट डायवर्ट करने की खबरें मीडिया को पहले से ही दे दी गयी हैं. महापंचायत के लिए हजारों की संख्या में त्यागी समाज के लोग मेरठ, मुजफ्फरनगर और हापुड़ सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग अलग हिस्सों से शिरकत कर रहे हैं. अलावा इसके आसपाल के और भी इलाकों से लोगों को बुलाया गया है. त्यागी समाज के लोग अपने अपने इलाकों से जुलूस निकाल कर पहुंच रहे हैं और पूरे रास्ते पुलिस वाले यातायात इंतजामों का अलग से प्रेशर झेल रहे हैं.
त्यागी समाज का कहना है कि महापंचायत का मकसद एकजुटता दिखाना भी है. मीडिया से बातचीत में त्यागी समाज के लोग कह रहे हैं कि वो चाहते हैं कि बीजेपी के स्थानीय नेताओं का ये भ्रम टूट जाये कि सरकार त्यागी समाज के वोट से भी बनी है. त्यागी समाज का मानना है कि बीजेपी स्थानीय नेताओं के दबाव में पुलिस अधिकारियों ने श्रीकांत त्यागी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है.
और इसी बीच राजस्थान में बीजेपी के एक विवादित नेता ज्ञानदेव आहूजा (Gyandev Ahuja) का वीडियो सामने आया है. ये ज्ञानदेव आहूजा वही बीजेपी नेता हैं जिन्होंने एक बार जेएनयू में रोजाना तीन हजार कंडोम मिलने का दावा किया था. वीडियो में ज्ञानदेव आहूजा गौरक्षकों को खुली छूट देने और उनकी जमानत से लेकर अदालत से बरी तक करा डालने के दावे कर रहे हैं - और खास बात ये है कि बात बात में ही वो अलवर के पहलू खान केस की तरफ भी इशारा कर रहे हैं जिसके सभी आरोपी अदालत से बरी हो गये थे.
ज्ञानदेव आहूजा और बीजेपी के रिश्ते का स्टेटस अपडेट जो भी हो, लेकिन उनकी बातें सुन कर ये तो समझ आ ही रहा है कि चाहे वो पहलू खान (Pehlu Khan) हों या बिलकिस बानो (Bilkis Bano Case), टारगेट कर हमला करने से लेकर मुकदमे की पैरवी और सजा हो जाने पर जेल से छुड़ा लेने तक का पूरा इंतजाम है - और ये काम करने वाले का नाम कहीं ज्ञानदेव आहूजा है तो कहीं कुछ और.
बचने और बचाने की बेलगाम कवायद
श्रीकांत त्यागी की करतूत पूरा देश देख चुका है - और कानून की नजर में भी वो अपराधी है, लेकिन उसकी बिरादरी के लोगों को वो बेकसूर ही लगता है. हो सकता है बिरादरी में भी कुछ लोग बाकियों से इत्तेफाक न रखते हों, लेकिन लगता है कि वो उनके हक के लिए लड़ता है तो उसके बचाव के लिए लड़ना चाहिये. वैसे एक बात और मालूम हुई है कि लोग श्रीकांत त्यागी के साथ पुलिस एक्शन से ज्यादा परिवार के साथ हुए दुर्व्यवहार से खफा हैं.
बीजेपी नेता ज्ञानदेव आहूजा का दावा अगर सही है तो पहलू खान केस में इंसाफ की गुंजाइश तो बनी ही है, बिलकिस बानो केस को लेकर भी निराश नहीं होना चाहिये.
दरअसल, ये बचने और बचाने की लड़ाई चल रही है और श्रीकांत त्यागी केस कोई अलग मामला नहीं है. राजस्थान के बीजेपी नेता ज्ञानदेव आहूजा तो खुलेआम कह रहे हैं कि वो अपने लोगों को खुली छूट दे रखे हैं - और उनके बचाव का हर इंतजाम भी करते रहे हैं. बीती घटनाएं ज्ञानदेव आहूजा की बातों को वेरीफाई भी करती हैं. ज्ञानदेव आहूजा भी अदालत से बरी कराने के दावे वैसे ही कर रहे हैं जैसे अयोध्या केस में फैसला आने से पहले यूपी बीजेपी के एक नेता का दावा रहा कि सुप्रीम कोर्ट भी अपना ही है.
दिल्ली का मामला ही देख लीजिये. दिल्ली के डिप्टी सीएम खुद को कट्टर ईमानदार बता रहे हैं. अपने नेता अरविंद केजरीवाल को भी उतना ही कट्टर ईमानदार बता रहे हैं. दूसरी तरफ, बीजेपी नेता मनीष सिसोदिया के साथ साथ अरविंद केजरीवाल को भी जांच के दायरे में लाने की सीबीआई से मांग कर रहे हैं. बीजेपी नेताओं का दावा है कि दिल्ली में भ्रष्टाचार के मास्टरमाइंड अरविंद केजरीवाल ही हैं. लिहाजा पूरी जांच होनी चाहिये. ये भी दिलचस्प है कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए राजनीति में आये अरविंद केजरीवाल के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हो गयी है. सही गलत अपनी जगह है, लेकिन राजनीतिक लड़ाई में वही जीतेगा जो राजनीति का भी मास्टर होगा.
ज्ञानदेव आहूजा का वीडियो सही भी हो सकता है और गलत भी, लेकिन उनके दावे तो गुजरात के बिलकिस बानो केस तक सही नजर आ रहे हैं. जमानत और बरी कराने की कौन कहे, वहां तो सजा काट रहे बलात्कारियों को जेल से भी छुड़ा लिया जाता है - और बाहर आने पर लड्डू और फूल माला के साथ वैसे ही स्वागत किया जाता है जैसे रांची में बीजेपी के एक बड़े नेता ने मॉब लिंचिंग के आरोपियों के जेल से रिहा होने पर किया था.
बिलकिस केस के बलात्कारियों को लेकर गुजरात के बीजेपी विधायक सीके राउलजी एक टिप्पणी पर काफी विवाद हुआ. बीजेपी विधायक उस कमेटी में शामिल रहे जिसने बिलकुल बानो गैंगरेप के 11 सजायाफ्ता कैदियों को माफी देने का फैसला किया. बीजेपी विधायक राउलजी का कहना रहा, "दोषी ब्राह्मण और संस्कारी थे... जेल में उनका व्यवहार अच्छा था."
बिलकिस बानो केस में आजीवन कारावास की सजा सुनाने वाले स्पेशल कोर्ट के जज जस्टिस यूडी साल्वी ने भी रिहाई पर हैरानी जतायी है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत जस्टिस साल्वी ने दो बातें कही. एक तो ये कि जिस पर बीतता है वो पीड़ित ही जानता है - और दूसरी ये कि ऐसी चीजों के लिए दिशानिर्देश हैं और राज्य खुद इसे निर्धारित करते हैं.
ये भी विडंबना ही है कि जिस कमेटी ने बलात्कारियों को आजादी देने का फैसला किया उसमें एक सदस्य प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट और सेशंस जज भी शामिल थे, जबकि पंचमहल के जिला कलक्टर कमेटी के अध्यक्ष थे.
सबसे बड़ा ताज्जुब तो इसलिए हो रहा है कि ऐसे मामलों के लिए केंद्र सरकार की गाइडलाइन को गुजरात की बीजेपी सरकार ने ही नजरअंदाज किया है - क्या डबल इंजिन की सरकार में यही सब होता है?
असल में, आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर कैदियों को रिहा करने के दिशानिर्देशों के साथ केंद्र की मोदी सरकार ने राज्यों को जून, 2022 में ही एक पत्र लिखा था, जिसमें कई संगीन जुर्म वाले कैदियों के साथ साथ बड़े ही साफ शब्दों में लिखा है कि बलात्कार और उम्रकैद की सजा पाये हुए कैदियों को रिहा नहीं करना है. सीनियर पत्रकार श्रीनिवासन जैन ने ट्विटर पर ये पत्र शेयर किया है.
In June this year, the Centre issued guidelines to states on a prisoner release policy to coincide with Azadi Amrit Mahotsav. Amongst the categories *not* eligible for special release: rape convicts. And those convicted for life. @MariyamAlavi @OnReality_Check #Bilkis pic.twitter.com/y5fcCfvs7X
— Sreenivasan Jain (@SreenivasanJain) August 16, 2022
श्रीकांत त्यागी, ज्ञानदेव आहूजा और बिलकिस केस वाले विधायक सीके राउलजी... सभी के बारे में अगर बीजेपी की तरफ से ये बोल दिया जाता है कि वे लोग जो कुछ कह रहे हैं या दावे कर रहे हैं, सब उनके निजी विचार हैं या उनका पार्टी से कोई नाता नहीं है - मानना तो पड़ेगा ही, लेकिन ये भी मानना पड़ेगा कि ये सभी समर्थक तो उसी के हैं. उसी विचारधारा के हैं. सिर्फ पल्ला झाड़ लेने से काम नहीं चलेगा.
जैसे श्रीकांत त्यागी के घर पर बुलडोजर चलाया गया, ऐसे सभी लोगों के खिलाफ वैसा ही एक्शन होना चाहिये ताकि आगे से ऐसी जुर्रत करने से पहले ये लोग दो बार सोचें जरूर. गुजरात के बीजेपी विधायक अगर केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों को नजरअंदाज करने के दोषी हैं तो राजस्थान के पूर्व बीजेपी विधायक की बातों से लगता है कि वो लंबे अरसे से कानून हाथ में लेते आ रहे हैं - और कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार भी ऐसी चीजों से आंख मूंदे हुए है.
जिस तरीके से ज्ञानदेव आहूजा दावे कर रहे हैं या सीके राउलजी की दलील सुनने को मिलती है... कुल मिला कर पाते तो हम यही हैं कि देश, काल और परिस्थितियां भले ही अलग हों, लेकिन नैरेटिव एक है, तेवर एक है, तौर तरीका भी एक ही है - और पीड़ित पक्ष की दास्तां भी एक जैसी ही है. सत्यमेव जयते तो अब संतोष का संबल बन कर रह गया है - क्योंकि बारी बारी हर कोई इसे विक्ट्री साइन के तौर पर इस्तेमाल और प्रदर्शित जो करने लगा है.
ज्ञानदेव आहूजा ने पहलू खान केस में इंसाफ की उम्मीद जगायी
हाल ही में कांग्रेस ने बीजेपी के आतंकवादियों से संबंध होने के दावे के साथ देश भर में कैंपेन चलाया था. जम्मू-कश्मीर की एक घटना और उदयपुर में कन्हैयालाल साहू की हत्या के आरोपियों का बीजेपी से संबंध होने का दावा किया गया था - राजस्थान की कांग्रेस सरकार के पास अभी ये मौका है कि ज्ञानदेव आहूजा के वीडियो की सच्चाई जानने के साथ साथ बीजेपी के पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा के दावों की भी जांच कराये और पहलू खान केस की अच्छे से पैरवी कर हत्यारों को सजा मिल सके, ये सुनिश्चित कराये.
फिलहाल बीट कॉन्स्टेबल की शिकायत पर ज्ञानदेव आहूजा के खिलाफ राजस्थान के गोविंदगढ़ थाने में FIR दर्ज कर ली गई है. बताते हैं कि ज्ञानदेव आहूजा के खिलाफ IPC की धारा 153(A) के तहत केस दर्ज किया गया है.
दरअसल, ज्ञानदेव आहूजा, चिरंजीलाल सैनी के घर शोक व्यक्त करने गये हुए थे और वहीं पर आपसी बातचीत में बहुत सारी बातें बता डाली. इसी बीच कोई रिकॉर्ड भी कर लिया. अलवर जिले के गोविंदगढ़ इलाके के चिरंजीलाल की 14 अगस्त को कुछ लोगों ने चोरी के शक में बुरी तरह पिटाई कर दी थी और अगले दिन अस्पताल में उनकी मौत हो गयी. हमलावरों की संख्या तो करीब दो दर्जन बतायी जा रही है, लेकिन पुलिस ने 10 लोगों को हिरासत में लिया है.
वीडियों के मुताबिक, चिरंजीलाल के घर पर जमा लोगों के बीच बैठे हुए ज्ञानदेव आहूजा अपने बगल में बैठे व्यक्ति से कहते सुने जाते हैं, 'पंडित जी, अब तक तो पांच हमने मारे हैं... लालवंडी में मारा... चाहे बहरोड़ में मारा... अब तक तो पांच हमने मारे हैं. इस इलाके में पहली बार हुआ है कि उन्होंने मारा है.'
ज्ञानदेव आहूजा की बातें यहीं नहीं खत्म होतीं, वो कह रहे हैं, 'मैंने खुल्लम खुल्ला छूट दे रखी है कार्यकर्ताओं को... मारो, जो गौकशी करे... जमानत भी कराएंगे... बरी भी करवाएंगे.'
राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने ट्विटर पर ज्ञानदेव आहूजा का वीडियो शेयर किया था और फिर ये वायरल हो गया. डोटासरा ने ट्विटर पर लिखा है कि बीजेपी का असली चेहरा पूरी दुनिया के सामने आ गया है - और वही वीडियो टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी शेयर किया है.
Abh tak toh paanch humne maare hai..humne toh chhooot de rakhe hai karyakarto ko.. ki maaro saalo koThis mustachioed BJP monster is boasting of lynching 5 people to death. If pure evil had a face this is it. pic.twitter.com/W32NN8sb99
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) August 20, 2022
और जैसी अपेक्षा रही, बीजेपी ने खुद को ज्ञानदेव आहूजा के बयान से अलग कर लिया है. राजस्थान बीजेपी के प्रवक्ता रामलाल शर्मा कहते हैं, 'बीजेपी लोकतंत्र और संविधान पर भरोसा करती है... अगर कोई अपराध करता है तो उसे कानून के तहत सजा दी जानी चाहिये... ज्ञानदेव जी ने जो कहा वो उनका निजी बयान था... वो ही स्पष्ट कर सकते हैं कि वो किस संदर्भ में बात कह रहे थे.'
बहरहाल, वीडियो में ज्ञानदेव आहूजा ने लालवंडी और बहरोड़ की घटनाओं का जिक्र किया है. आपको याद होगा बहरोड़ की पुलिया के पास 2017 में पहलू खान की पीट पीट कर हत्या कर दी गयी थी. लालवंडी से ज्ञानदेव आहूजा का मतलब 2018 के रकबर खान केस से है. ये दोनों ही घटनाएं उसी रामगढ़ इलाके की हैं जहां से वो विधायक रहे हैं जब बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार का शासन था.
पहलू खान केस के सभी 6 आरोपियों को स्थानीय अदालत ने संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया था, लेकिन बाद में हाईकोर्ट में अपील हुई जहां केस की सुनवाई हो रही है. रकबर खान का मामला अभी स्थानीय अदालत में ही है.
हरियाणा में मेवात के रहने वाले पहलू खान एक अप्रैल, 2017 को अपने बेटों के साथ जयपुर से लौट रहे थे तभी अलवर में बहरोड़ पुलिया के पास खुद के गौरक्षक होने का दावा करने वालों कुछ लोगों ने पहलू खान और उनके बेटों की बुरी तरह पिटायी कर दी थी. पुलिस ने पहलू खान को अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन इलाज के दौरान 4 अप्रैल, 2017 को उनकी मौत हो गई थी.
गलती से मिस्टेक ही सही, लेकिन अब तो लगता है ज्ञानदेव आहूजा के बयान के बाद पहलू खान केस की जांच हुई तो इंसाफ जरूर मिलेगा - बशर्ते, आगे चल कर बिलकिस बानो केस के गुनहगारों की तरह उनको भी आजादी न दे दी जाये!
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