क्या भाजपा अपने तीन बड़े सहयोगियों को मनाने में सफल हो पाएगी !
क्या भाजपा एनडीए के कुनबे को 2019 तक इकट्ठा रख पाएगा? क्या वाकई भाजपा इन दलों को नज़रअंदाज़ कर रही है? क्या भाजपा इनके बगैर अगले आम चुनाव में सरकार बना पाएगी? शायद नहीं. इसीलिए तो अमित शाह ने इन्हें मनाने का ज़िम्मा खुद उठा रखा है.
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हाल में सम्पन्न हुए 11 विधानसभा और 4 लोकसभा चुनावों में भाजपा के फ्लॉप शो के बाद इसके सहयोगी दलों में बढ़ती नाराज़गी के बीच भाजपा इन्हें मनाने में जुट गई है. अब चूंकि आम चुनाव में एक साल से भी कम वक्त बचा है और ऐसे में भाजपा के विरोधी दलों ने मतभेद भुलाकर एक मंच पर आना शुरू कर दिया है तो भाजपा को अपना कुनबा बचाना मजबूरी भी हो गया है. और भाजपा के विरोधी दलों को एक साथ चुनावों में लड़ना कितना फायदे का सौदा हो रहा है इसकी झलक भी भाजपा को मिल चुकी है.
भाजपा के तीन प्रमुख सहयोगी दल- जेडीयू, शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल कुछ न कुछ कारणों को लेकर नाराज़ चल रहे है. ऐसे में इन्हें मनाने का ज़िम्मा खुद भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने लिया है. बुधवार को जहां वो शिवसेना के उद्धव ठाकरे से मिले वहीं उसके अगले दिन यानी बृहस्पतिवार को पटना में एनडीए के साथ और चंडीगढ़ में शिरोमणि अकाली दल के नेताओं से मुलाकात करने वाले हैं.
अमित शाह ने ली है ये जिम्मेदारी
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा एनडीए के कुनबे को 2019 तक इकट्ठा रख पाएगा? क्या वाकई भाजपा इन दलों को नज़रअंदाज़ कर रही है? क्या भाजपा इनके बगैर अगले आम चुनाव में सरकार बना पाएगी? शायद नहीं. इसीलिए तो अमित शाह ने इन्हें मनाने का ज़िम्मा खुद उठा रखा है.
जेडीयू: सबसे पहले बात जेडीयू की. बिहार में नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहते हैं, यानी वो लोक सभा के 40 सीटों में से कम से कम 25 सीटों पर अपना उम्मीदवार चाहते हैं. हालांकि ये बात अलग है कि वो पिछले लोकसभा चुनावों में मात्र 2 सीटें ही जीत पाए थे. फिलहाल बिहार में लोकसभा की 40 सीटों में से भाजपा और उसके पुराने गठबंधन साथी (बीजेपी+एलजेपी+आरएलएसपी) 31 सीटों पर काबिज हैं. नीतीश कुमार बिहार को केंद्र द्वारा स्पेशल राज्य का दर्ज़ा नहीं मिलने से भी नाराज़ हैं तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनकी पार्टी को जगह नहीं मिलने से भी वो नाखुश बताये जाते हैं. लेकिन भाजपा के लिए नीतीश कुमार भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना नीतीश कुमार के लिए भाजपा. इसलिए भाजपा उन्हें मनाने में लगी हुई है.
शिवसेना एनडीए के पुराने सहयोगियों में से एक है
शिवसेना: शिवसेना एनडीए के पुराने सहयोगियों में से एक है लेकिन 2014 के लोक सभा चुनावों के बाद से इनके रिश्तों में खटास बढ़ती चली गई और पालघर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा के हाथों हारने के बाद शिवसेना ने इसे अपना राजनीतिक दुश्मन नंबर एक तक बता दिया. दरअसल यहां भी लड़ाई बिहार की तरह है जहां लड़ाई बड़े भाई के भूमिका में कौन रहेगा के आस-पास घूम रही है. पिछले लोकसभा चुनावों में यहां भाजपा ने 23 सीटें और शिवसेना ने 18 सीटें जीती थी. और विधानसभा में भी भाजपा शिवसेना से अलग होकर चुनाव लड़ा और ने 122 सीटें जीतकर सरकार बनाई. लेकिन अब जिस तरह से महाराष्ट्र में राजनीतिक पार्टियां भाजपा के विरूद्ध एकजुट हो रही हैं, ऐसे में भाजपा नेत्तृत्व शिवसेना को मनाने में जुट गई है.
शिरोमणि अकाली दल: भाजपा के पुराने साथी के रूप में शिरोमणि अकाली दल को माना जाता है लेकिन वो भी भाजपा से इन दिनों खफा चल रहा है. शिरोमणि अकाली दल नो खुद को एनडीए में अलग-थलग करने का आरोप लगाते हुए आने वाले लोकसभा के चुनावों में अकेला चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. हालांकि यहां भी शिरोमणि अकाली दल और भाजपा एक दूसरे के बिना चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकते. इसी के तहत भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह चंडीगढ़ में इनके शीर्ष नेताओं से मिलने वाले हैं.
हालांकि भाजपा नेतृत्व अपने सहयोगी दलों के महत्व को अब समझ रहा है और इन्हें मनाने में जुट गया है, लेकिन इसमें वो कितना सफल हो पायेगा वो तो आने वाला समय ही बताएगा. फिलहाल कोशिशें जारी हैं.
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