कर्नाटक से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं होगा कैराना का कोहराम
बीजेपी उपचुनावों को मुख्यमंत्रियों के भरोसे छोड़ देती रही है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बागपत रैली बता रही है कि बीजेपी को कैराना की कितनी फिक्र है.
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सिद्धारमैया का ताना सुन कर योगी आदित्यनाथ को बीच में यूपी लौटना पड़ा था. योगी कर्नाटक चुनाव प्रचार में व्यस्त थे तभी यूपी में तूफान आया और सिद्धारमैया ने ट्वीट पर ट्वीट दे मारे. योगी को मजबूरन बीजेपी को बीच मझधार में छोड़ कर लौटना पड़ा था, लेकिन पार्टी नेतृत्व कैराना में उन्हें अकेला नहीं छोड़ने वाला. हो सकता है इसके पीछे गोरखपुर और फूलपुर की सीटें गंवाने का डर भी हो. वैसे भी चार साल में बीजेपी लोक सभा में 282 से 272 पर पहुंच चुकी है.
कैराना उपचुनाव के लिए वोटिंग 28 मई को होनी है. ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैली करने जा रहे हैं, लेकिन कैराना में नहीं - बल्कि, बगल के इलाके बागपत में. रैली का आयोजन बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह कर रहे हैं जिन्होंने 2014 में आरएलडी नेता अजीत सिंह को हराया था. बागपत रैली के पीछे भी निशाने पर एक बार फिर अजीत सिंह और उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोक दल ही है.
बागपत से कैराना पर नजर
बागपत पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का इलाका रहा है और उनके बाद विरासत उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह के हवाले रही है. माना जा रहा है कि अगली बार जयंत चौधरी अपने दादा की विरासत पर दावा ठोक सकते हैं. कैराना से उनके मैदान में न उतरने के पीछे भी यही चर्चा है.
विपक्ष की साझा उम्मीदवार हैं तबस्सुम बेगम
कैराना उपचुनाव में विपक्ष की साझा उम्मीदवार तबस्सुम बेगम हैं. तबस्सुम बेगम की उम्मीदवारी भी बेहद दिलचस्प है. तबस्सुम आधिकारिक रूप से अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी की उम्मीदवार हैं, जबकि हकीकत में वो समाजवादी पार्टी की नेता हैं. साझा समझौते के तहत अखिलेश यादव के कहने पर अजीत सिंह ने तबस्सुम को टिकट दिया है. तबस्सुम को सपोर्ट करते हुए मायावती की पार्टी बीएसपी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है. फूलपुर और गोरखपुर के प्रायश्चित स्वरूप कांग्रेस ने भी कैराना से अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है.
बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई सीट पर पार्टी ने उनकी बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिया है. कैराना में कुल 17 लाख वोटर हैं जिनमें तकरीबन एक तिहाई मुस्लिम हैं. करीब 5 लाख की मुस्लिम आबादी वाले कैराना में दो लाख जाट, दो लाख दलित और दो लाख ही ओबीसी वोटर हैं.
मोदी की रैली की जगह जरूर बागपत है मगर निशाने पर जाहिर है कैराना ही होगा - वैसे भी बागपत में जब अजीत सिंह पर हमले होंगे तो असर कैराना तक महसूस किया ही जा सकेगा.
तारीख पे तारीख...
प्रधानमंत्री मोदी की इस रैली में तारीखों की बड़ी अहमियत नजर आ रही है. ऐसी कई तारीखें हैं जो इस रैली के आगे भी हैं और पीछे भी - और अति महत्वपूर्ण भी हैं.
बागपत की रैली से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 मई को दिल्ली में रोड शो भी करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी का ये रोड शो सात किलोमीटर लंबा होगा. प्रगति मैदान से शुरू होकर खुली जीप में मोदी का ये शो यूपी गेट तक चलेगा. आगे का रास्ता बागपत तक प्रधानमंत्री हेलीकॉप्टर से तय करेंगे.
मृगांका को मिली है पिता की विरासत और बीजेपी का टिकट
बागपत के खेकड़ा में प्रधानमंत्री 135 किमी लंबे ईस्टर्न पेरिफेरल एक्स्पेस-वे का उद्घाटन करेंगे. खास बात ये है कि इसी एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन के लिए 10 मई को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि हार हाल में मई के आखिर तक इसका उद्घाटन किया जाये. पहले प्रधानमंत्री मोदी 29 अप्रैल को इसका उद्घाटन करने वाले थे, लेकिन कर्नाटक चुनाव प्रचार में व्यस्त होने के कारण ऐसा नहीं हो सका. सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर नाराजगी जाहिर की थी.
26 मई को नरेंद्र मोदी सरकार की चौथी सालगिरह है. 27 को मोदी बागपत में रैली कर रहे हैं और 28 को कैराना में वोटिंग होनी है. चौधरी चरण की पुण्यतिथि 29 मई से एक दिन पहले वोटिंग है और दो दिन पहले मोदी की रैली.
माना जाता है कि 2014 के लोक सभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जाटों का भरपूर सहयोग मिला - और प्रधानमंत्री मोदी कैराना के लोगों से समर्थन बरकरार रखने की अपील करेंगे. हालांकि, साझा विपक्ष की उम्मीदवार तबस्सुम हसन का दावा है कि जाट बीजेपी से नाराज हैं. इसकी वजह गन्ने का बकाया बताया जा रहा है. इस बात का अहसास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी है. तभी तो पहली ही रैली में योगी ने घोषणा की कि अगर चीनी मिलें किसानों के बकाये का भुगतान नहीं करतीं तो सरकार उनके लिए विशेष पैकेज लाएगी.
इकनॉमिक टाइम्स से बातचीत में तबस्सुम हसन कहती हैं, "ये पहली बार होगा जब जाट, मुस्लिम और दलित मिलकर हमें वोट करेंगे. यहां कोई मुकाबला नहीं है. ये पहले हुए दंगे की कड़वाहट को समाप्त कर देगा."
कर्नाटक में बीजेपी के खिलाफ जो विपक्षी एकजुटता देखने को मिली है, यूपी में भी वो बरकरार रही तो योगी और मोदी सरकार के लिए खतरे की घंटी समझी जानी चाहिये. गोरखपुर और फूलपुर में तो कांग्रेस अलग थी, लेकिन कर्नाटक में सोनिया गांधी और मायावती को काफी देर तक साथ बातचीत करते देखा गया. वैसे मायावती दिल्ली में भी सोनिया के लंच में अखिलेश यादव से मिली थीं. किसी सार्वजनिक मंच पर अखिलेश और मायावती को पहली बार साथ देखा गया. वैसे फूलपुर और गोरखपुर उपचुनावों में जीत के बाद अखिलेश यादव आभार प्रकट करने मायावती के घर भी गये थे.
बीजेपी के खिलाफ विपक्ष ने बेंगलुरू में जो एकता दिखायी है - अगर 2019 तक कायम रही तो बीजेपी को मान कर चलना होगा कि खतरे की घंटी बज चुकी है.
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