Covid 19 और 'टूलकिट' से हुए डैमेज को बीजेपी कहां तक कंट्रोल कर पाएगी?
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) ने कोरोना काल में पार्टी और मोदी सरकार की भूमिका पर उठते सवालों के बीच डैमेज कंट्रोल (BJP Damage Control) की कमान अपने हाथ मे ले ली है - क्या बाबा रामदेव (Swamy Ramdev) भी मददगार बन कर सामने आये हैं?
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भारतीय जनता पार्टी महसूस करने लगी है कि वो जनता से कट रही है - और ये पश्चिम बंगाल और यूपी के पंचायत चुनावों के नतीजों से मिला फीडबैक भर नहीं है. सोशल मीडिया के साथ साथ गली-नुक्कड़ों पर होने वाली चर्चाओं में बीजेपी के प्रति बढ़ती निराशा और घटते सपोर्ट पर आधारित आकलन है.
वरना, लंबी खामोशी और गुजरात में वाराणसी मॉडल की चर्चा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने इलाके में जाकर कैमरे पर दुखी होने की जरूरत क्यों आ पड़ी?
काफी लोगों की मौत तो तभी हो चुकी थी जब प्रधानमंत्री मोदी हरिद्वार कुंभ को प्रतीकात्मक बताकर पश्चिम बंगाल की चुनावी रैली में भीड़ देख कर आह्लादित भी हुए थे और दिल की बात जबान पर भी आ ही गयी. मौत के आंकड़े तो तब भी बढ़ते ही जा रहे थे जब वो टीवी पर आकर कोरोना के प्रकोप पर राष्ट्र के नाम संबोधन देकर चले गये - और नदियों में बहती लाशों की तस्वीरें सामने आने, कहीं कुत्तों को बालू के अंदर से खींच कर शवों को खाते और कहीं टायर-पेट्रोल से अंतिम संस्कार की खबरों को बीच भी वो खामोशी ही अख्तियार किये रहे.
बीजेपी की तरफ से डैमेज कंट्रोल (BJP Damage Control) के लिए बीच बीच में तमाम प्रयोग भी होते रहे - टूलकिट विवाद से लेकर पतंजलि कंपनी वाले बाबा रामदेव के विवादित बयानों तक. क्या ऐसा नहीं लगता जैसे बाबा रामदेव (Swamy Ramdev) भी कभी ऑक्सीजन तो कभी एलोपैथी पर मन की बात कर महामारी में बेहाल परेशान लोगों का ध्यान बीजेपी और सरकार की नाकामियों से हटाने की कोशिश कर रहे हैं?
देश की आम जनता महामारी में सरकार से मदद का इंतजार कर रही थी और उसे सड़क पर भटकने के लिए छोड़ दिया गया. ऊपर से धमकाया भी गया कि किसी ने ऑक्सीजन की कमी की शिकायत की तो डॉक्टर कफील खान का हाल कर दिया जाएगा. एनएसए से लेकर प्रॉपर्टी सीज करने तक.
मुसीबत की घड़ी में लोग 'आत्मनिर्भर' होने का सबसे बुरा सबक लेते हुए, मिल जुल कर एक दूसरे की मदद करते रहे - सोशल मीडिया की इसमें सबसे बड़ी भूमिका सामने आयी जब लोग एक दूसरे को बताने लगे कि किस अस्पताल में बेड खाली है और कहां से ऑक्सीजन सिलिंडर भरवाया जा सकता है?
सरकारी मशीनरी को तो ये भी बहुत बाद में मालूम हो पाया कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी के ही सुझाये 'आपदा में अवसर' का मतलब अपने हिसाब से निकालते हुए कुछ लोग ऑक्सीजन कांसेंट्रेटर की जमाखोरी और कालाबाजारी कर रहे हैं. ऐसे लोग पकड़े भी गये तो सरकारी अमला ज्यादातर वक्त ऐसे नैरेटिव में जाया करते पाया गया कि जो पकड़े गये हैं उनका विपक्षी दलों से क्या कनेक्शन है - और वे किस धर्म के लोगों के रिश्तेदार हैं? सोशल मीडिया पर आप सभी ने देखा ही होगा, इसलिए ज्यादा विस्तार में जाने की जरूरत नहीं लगती.
चुनावों और कुंभ के नाम पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने के चक्कर में लेने के देने ही पड़ गये - और ट्विटर के संबित पात्रा के 'टूलकिट' खुलासे को 'मैनिपुलेटेड मीडिया' का ठप्पा लगाने में जरा भी देर नहीं लगायी. उसके बाद तो बीजेपी नेतृत्व ने सरकारी मशीनरी को ही झोंक देने का फैसला कर लिया - क्योंकि जेपी नड्डा (JP Nadda) ने भी हड़बड़ी में ऐसे रिएक्ट कर दिया था जिसमें भूल सुधार की गुंजाइश भी नहीं बची थी - और तब तक मामला पार्टी की शिद्दत से जुटायी गयी साख पर बन आया.
टूलकिट पर ट्विटर से तो सरकार निबट ही रही है, जेपी नड्डा बीजेपी सांसदों को फील्ड में उतर कर और घर घर दस्तक देकर लोगों के साथ रीकनेक्ट होने का माफीनुमा नुस्खा सुझा रहे हैं - और बीजेपी के मुख्यमंत्रियों से कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों के लिए कोई स्कीम लाकर लोगों की सहानुभूति फिर से हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. मार्केटिंग ऐंगल ये है कि सभी मुख्यमंत्रियों के एक साथ ही अपने अपने राज्यों ऐसी स्कीमों को लॉन्च करने का सुझाव दिया गया है, ताकि कम से कम उस दौरान तो बीजेपी और मोदी सरकार को लेकर लोगों में पॉजिटिव अनलिमिटेड संदेश जा सके.
देखा जाये तो डैमेज कंट्रोल की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रूंधे गले से अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ही रख दी थी - और उसी 'वाराणसी मॉडल' को जेपी नड्डा 'सेवा ही संगठन' मंत्र का नाम जपते हुए आगे बढ़ा रहे हैं.
बीजेपी के लिए बेहतर यही होगा कि वो कोविड 19 की तीसरी लहर से मुकाबले के इंतजामों को लेकर मोदी सरकार पर दबाव बनाये, न कि आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए!
बीजेपी के पास फिलहाल बताने के लिए ये भी है कि वो केंद्र में एनडीए शासन के सात साल पूरे होने का जश्न न मनाने का फैसला कर चुकी है - और नड्डा की तरफ से काडर तक ये संदेश पहुंचाया जा चुका है. ये डर तो होगा ही कि कहीं कुछ कार्यकर्ताओं का समूह जोश में आकर कोरोना कर्फ्यू में ही जुलूस न निकालने लगे - या तमंचे पर डिस्को जैसे प्रोग्राम न करा बैठें.
बाकी चीजें तो अपनी जगह बनी हुई हैं ही, फिर भी सहज तौर पर एक ही सवाल रह रह कर गूंज रहा है - कोविड 19 और 'टूलकिट' से हुए डैमेज को बीजेपी कहां तक कंट्रोल कर पाएगी?
महामारी में डैमेज और कंट्रोल का बीमार तरीका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में स्लोगन दिया था - 'जहां बीमार, वहीं उपचार', लेकिन बहुत देर बाद. अगर ये काम पहले ही हो जाता तो न लोग इस कदर बीमार पड़ते और न ही उपचार के लिए अस्पताल दर अस्पताल से ठोकरें खाने के बाद अपनों को गंवा कर घर लौटना पड़ता है - ई रिक्शा पर बेटे के दम तोड़ देने की गवाह बनी बेबस मां का वो वीडियो भी तो किसी न किसी ने प्रधानमंत्री मोदी को दिखाया ही होगा - क्योंकि वो तो उसी इलाके का मामला है जहां से वो लोक सभा में लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
मोदी का जहां बीमार वहीं उपचार का नारा तो बहुत देर से आया ही है, नड्डा का सेवा ही संगठन का नारा तो आउटडेटेड ही लगता है - मुसीबत के गुजर कर उबर जाने के बाद लकीर पीटने जैसा.
जेपी नड्डा बीजेपी सांसदों को तब वे सब काम करने को कह रहे हैं जब लोग महामारी से मुकाबले में अपने हिट एंड ट्रायल तरीके से आत्मनिर्भर बन चुके हैं - अब जबकि कोरोना संक्रमण और इलाज के दौरान ब्लैक फंगस जैसी चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं, नड्डा सांसदों को एडवांस की जगह घिसे पिटे मदद पहुंचाने के तरीके पर अमल करने पर जोर दे रहे हैं.
ये ठीक है कि जेपी नड्डा बीजेपी सांसदों को लोगों के बीच जाकर कोरोना बीमारी को लेकर जागरूक करने मास्क और सेनिटाइजेशन पर जोर देने - और सबसे महत्वपूर्ण बात वैक्सीनेशन के लिए मोटिवेट करने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन अब लोगों की जरूरतें बदल चुकी हैं.
अभी की सबसे बड़ी जरूरत ये है लोगों को कोरोना वायरस की तीसरी लहर से बचाना है. ब्लैक फंगस के खतरे से मुकाबले के लिए हेल्थ सिस्टम को दुरूस्त करना और देश की आबादी के ज्यादातर हिस्से को वैक्सीन देकर कोविड 19 से मुकाबले के लिए पहले से ही तैयार कर लेना.
कितना अच्छा होता अगर जेपी नड्डा केंद्र सरकार पर ट्विटर के खिलाफ एक्शन लेने के लिए दबाव बनाने की जगह वैक्सीन की डिमांड कर रहे राज्यों में सप्लाई सुनिश्चित कराने और संभावित खतरों के मद्देनजर किसी प्रभावी और फुलप्रूफ एक्शन प्लान बनाने के लिए दबाव बनाते!
टूलकिट में डैमेज और ट्विटर पर कंट्रोल की कवायद
द प्रिंट वेबसाइट ने नाम बताये बगैर जानकारी देने वाले एक बीजेपी नेता के हवाले से लिखा है, बीजेपी फिलहाल एक ही वक्त पर दो दो संकटों से मुकाबला करने को मजबूर है - एक तरफ पार्टी लोगों में बन चुकी उस अवधारणा से जूझ रही है जिसमें माना जा रहा है कि कोविड 19 की दूसरी लहर को हैंडल करने में सरकार ने तत्परता बिलकुल नहीं दिखायी - और डर इस बात का भी है कि टूलकिट को लेकर जिस तरह से लोगों को कहानी समझायी जा रही है उससे पार्टी की साख को नुकसान पहुंच सकता है.
बीजेपी की छवि को अब तक हो चुके या निकट भविष्य में नुकसान की आशंका से बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा पार्टी के सभी लोक सभा और राज्य सभा सांसदों से बात वर्चुअल मीटिंग के जरिये बात कर चुके हैं - और इसमें उनको चार दिन लगे हैं. टूलकिट मामले को लेकर द प्रिंट की रिपोर्ट सूत्रों के हवाले से बताती है, मामले को लेकर उच्च स्तर पर चर्चा के बाद आलाकमान ने आईटी मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद को समझाया कि कैसे भी हो इसे बेहतर तरीके से न्यूट्रलाइज करने की कोशिश की जानी चाहिये. माना जा रहा है, रिपोर्ट के मुताबिक, कि रविशंकर प्रसाद ने आईटी सचिव को ट्विटर की ग्लोबल टीम को कड़े लहजे में आगाह करने को कहा.
ये तो पहले से ही मालूम है कि कैसे केंद्र सरकार ने ट्विटर से संबित पात्रा के टूलकिट वाले ट्वीट से मैनिपुलेटेड मीडिया वाला टैग हटाने को कहा है - और दलील दी है कि जब मामले की जांच चल रही हो तो माइक्रो ब्लॉगिंग साइट एकतरफा एक्शन कैसे ले सकती है. ये भी आपको पता ही होगा कि कांग्रेस की तरफ से पुलिस के साथ साथ ट्विटर से भी टूलकिट को लेकर शिकायत की गयी है और संबित पात्रा का ट्विटर अकाउंट हमेशा के लिए सस्पेंड करने की डिमांड भी.
इलाज नहीं मिला तो एलोपैथी बेकार
ज्यादा दिन नहीं हुए, पतंजलि और कोरोना वायरस के लिए कोरोनिल नाम की दवा बनाने का दावा करने वाले स्वामी रामदेव का एक वीडियो खूब वायरल हुआ था. वीडियो में रामदेव कह रहे थे, 'मरते हैं ऐसे ही... ले ऑक्सीजन की कमी पड़ रही है... भगवान ने सारा ब्रह्मांड भर रखा है ऑक्सीजन से... ले तो ले बावड़े, बाहर सिलेंडर ढूढ़ रहे हैं - अपने भीतर दो सिलेंडर लगा रखे हैं भर ऑक्सीजन!'
रामदेव का ये तंज और नाराजगी भरा बयान भी उसी दौरान आया था जब पतंजलि आश्रम में काफी लोगों के कोरोना संक्रमित होने की खबर आयी थी, लेकिन रामदेव ने जोरदार तरीके से खंडन करते हुए खबरों को गलत बताया था. ठीक वैसे ही जैसे पतंजलि के प्रोडक्ट पर एक किताब में सवाल उठाया गया तो बाबा ने अर्जी देकर कोर्ट से कुछ दिन के लिए पाबंदी लगवा ली, लेकिन बाद में बाबा कोई सबूत पेश नहीं कर पाये और मुकदमा खारिज हो गया. किताब में ऐसे कई विवरण दर्ज हैं जो बताते हैं कि कैसे पतंजलि के उत्पादों में सब कुछ ठीक नहीं होता.
कोरोना संक्रमण की खबर के बाद से ही स्वामी रामदेव को काफी एक्टिव देखा गया है - और ऑक्सीजन के लिए जूझ रहे लोगों को बेवड़ा कहने के बाद अब एलोपैथी पर वैसे ही सवाल उठाने लगे हैं जैसे मल्टीनेशनल कंपनियों के प्रोडक्ट पर तब तक उठाते रहे जब तक वैसे ही प्रोडक्ट पतंजलि ने मार्केट में नही ला दिये. मैगी के मुरीद भी तो जानते ही हैं कि कैसे बच्चों और बड़ों का फेवरेट नूडल अचानक जहरीला नजर आने लगा था, लेकिन बाद में सब कुछ वैसे ही सामान्य हो गया.
ऐसा क्यों लग रहा है जैसे स्वामी रामदेव भी बीजेपी के ही डैमेज कंट्रोल कैंपेन का हिस्सा बन चुके हैं - लोगों में सरकार के खिलाफ मन में इलाज मुहैया न करा पाने की जो धारणा बन चुकी है, उसी पर तो रामदेव सवाल उठा रहे हैं.
ऐसा क्यों लगता है, जैसे रामदेव कह रहे हों, 'क्यों एलोपैथी के इलाज के पीछे भाग रहा है बावड़े जिससे इलाज के बाद भी लोगों को बचाया नहीं जा सकता.' आइडिया तो अच्छा है, जो इलाज मुहैया न कराने को लेकर सरकार पर सवाल उठ रहे हैं - उस इलाज की पद्धति पर ही सवाल उठा दो. लोगों का गुस्सा डायवर्ट तो किया ही जा सकता है ऐसे - वैसे भी पब्लिक मेमरी तो शॉर्ट मानी ही जाती है.
जेपी नड्डा भले कह चुके हों को बीजेपी केंद्र में एनडीए के सात साल 26 मई को पूरे होने पर जश्न नहीं मनाएंगे, लेकिन किसान संगठन उस दिन काला दिवस मनाने जा रहे हैं. ऐसे महामारी के माहौल में जश्न टालने का फैसला तो बढ़िया है, लेकिन मुश्किल तो ये है कि पश्चिम बंगाल से भी बढ़ कर बीजेपी के लिए यूपी चुनाव 2022 अहम है - और चुनाव की तारीख धीरे धीरे करीब आ रही है.
सवाल है कि अगर हालात नहीं सुधरे या और भी खराब हो गये तो क्या पार्टी हर हाल में चुनाव कराना ही चाहेगी या 2022 के विधानसभा चुनाव टाल देने के लिए चुनाव आयोग से आग्रह करेगी?
एक तरफ चुनाव है और दूसरी तरफ लोगों की जिंदगी. अब ये फैसला भी बीजेपी नेतृत्व को ही करना है कि पार्टी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है - लोगों की जान या चुनाव?
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