दलित के घर 'छापामार' भोजन !
हाल ही में अलीगढ़ के लोहागढ़ में यूपी मिनिस्टर सुरेश राणा एक दलित के घर भोजन करके आए हैं. ये दलित थे रजनीश कुमार जी. रजीनश कुमार जी की मानें तो उनके घर अचानक ये लोग आ गए और बरतन, खाना, पानी तक बाहर से लेकर आए. आकर खाना खाया और फिर चलते बने.
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भगवान राम ने शबरी के बेर खाए थे और लोगों को ये पाठ पढ़ाया था कोई छोटा बड़ा नहीं होता. सभी इंसान बराबर हैं. बस भाजपा-कांग्रेस-सपा-बसपा अब पूरी तरह से इसी सीख पर चल रहे हैं. बड़ी खुशी हो रही है ये देखकर की सभी पार्टियां दलितों को अपना भाई बता रही हैं और उनके घर भोजन भी किया जा रहा है. भई, भारत एक धार्मिक देश है और देर से ही सही सभी पार्टियां धर्म की राह पर ही तो चल रही हैं. पर शास्त्रों की एक अहम सीख ये बड़े नेता भूल रहे हैं. वो सीख है किसी के घर बिना बुलाए भोजन करने नहीं जाना चाहिए.
अजी, चौंकिए मत. बात पूरी सच है. हाल ही में अलीगढ़ के लोहागढ़ में यूपी मिनिस्टर सुरेश राणा एक दलित के घर भोजन करके आए हैं. ये दलित थे रजनीश कुमार जी. रजीनश कुमार जी की मानें तो उनके घर अचानक ये लोग आ गए और बरतन, खाना, पानी तक बाहर से लेकर आए. आकर खाना खाया और फिर चलते बने.
Lohagadh(Aligarh): Rajnish Kumar, Dalit man at whose house UP Minister Suresh Rana had dinner yesterday says, 'I didn't even know they are coming for dinner,they came suddenly.All food.water and cutlery they had arranged from outside' pic.twitter.com/TIXMVtV825
— ANI UP (@ANINewsUP) May 2, 2018
ये तो गजब बात हुई. मतलब दलितों के अच्छे दिन सिर्फ दिखाने के लिए आए हैं. अरे किसी के घर जा रहे हैं तो कम से कम बता कर तो जाएंगे ही. अब इसे पब्लिसिटी स्टंट कहा जाए तो गलत नहीं होगा.
Ram aur Shabri ka samvaad 'Ramayana' mein hai. Aaj jab Gyan Ji ki Maa ne mujhe roti parosi to unhone kaha 'mera uddhar ho gaya'. Kisi Raja ke yahan bhojan kiya hota toh shayad unki Maa ne ye na kaha hota: UP Minister Rajendra Pratap after eating at a Dalit's house in Jhansi y'day pic.twitter.com/UrYHqsBIi7
— ANI UP (@ANINewsUP) May 2, 2018
एक और मिनिस्टर झांसी में राम और शबरी की कहानी सुनाते हुए दलितों के घर खाना खा आए.
2019 के नजदीक आते-आते लगभग हर पार्टी अब अपना वोट बैंक मजबूत करने पर जुटी हुई है. इसी कड़ी में भाजपा के नेता जगह-जगह दलितों के घर खाना खा रहे हैं. हालांकि, इसकी शुरुआत तो राहुल गांधी ने ही की थी जब उन्होंने कलावती के घर खाना खाने की बात कही थी. याद है कई सालों पहले का राहुल गांधी का वो भाषण? लगभग 1 दशक पहले राहुल गांधी ने दलितों के घर जाना, रात गुजारना और खाना खाना शुरू कर दिया था. उस समय कलावती रातों-रात देश की ब्रेकिंग न्यूज बन गई थीं जिनके घर राहुल ने खाना खाया था. लोगों के बीच जाकर लोगों की दलीलें सुनना और अपनापन दिखाना राहुल की रणनीति हुआ करती थी. अब ये लगभग हर पार्टी की आजीविका बनती जा रही है.
जहां तक भाजपा की बात है तो पार्टी किसी भी तरह से कोई भी निशाना चूकना नहीं चाहती. अंबेडकर की मूर्ती को भगवा रंगना हो या फिर अंबेडकर के नाम के आगे 'रामजी' लगाने का स्टंट भाजपा दलितों को लुभाने में लगी हुई है. जब ये बातें काम नहीं आईं तो अब घर-घर जाकर खाना खाने का स्टंट सामने आने लगा है.
एक समय पर दलितों के घर खाना खाने की आलोचना करने वाली पार्टी और पार्टी प्रेसिडेंट अमित शाह भी दलितों के घर भोजन का हथकंडा अपना चुके हैं. 2017 विधानसभा चुनावों के पहले दलितों और अतिपिछड़ों को लुभाने के लिए बीजेपी के तरफ से इसे यूनिक फॉर्मूला माना जा रहा था. सेवापुरी विधानसभा के जोगियापुर गांव में अमित शाह और भाजपा के अन्य नेताओं ने दलितों के घर की रसोई से बना खाना खाया था और सभी दलित बंधुओं के साथ मिलकर एकता की मिसाल दी थी. ये घर था गिरजा प्रसाद बिदं और अकबाल नारायण बिदं.
दलितों के घर भोजन करते अमित शाह: फाइल फोटो
इसके बाद दलित राजनीति का जो नूमना 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में देखने को मिला वो एक मिसाल है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठा कर बीजेपी ने जो संदेश देना चाहा, लगता है सब मिट्टी में मिल गया. भाजपा की ये कोशिश जिस तरह नाकाम रही उस तरह पार्टी ने बाकी तरीके जोर-शोर से अपनाने शुरू कर दिए.
हाल ही में, योगी आदित्यनाथ भी दलितों के घर भोजन का एक नमूना पेश कर आए हैं. योगी आदित्यनाथ के पीआर मशीनरी ने इस बात को फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के कंधई-माधोपुर गांव में एक दलित घर में खाना खाते हुए भगवाधारी मुख्यमंत्री की तस्वीरों को सभी समाचार पत्रों ने प्रमुखता से छापा. और इस खबर को भी बड़ी ही प्रमुखता फैलाया गया कि मुख्यमंत्री ने स्थानीय ग्रामीणों के साथ एक चौपाल का भी आयोजन किया था.
दलितों के घर भोजन करते योगी आदित्यनाथ
लेकिन जिस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया वो ये कि आदित्यनाथ ने मेजबानी के लिए जिस घर को चुना वो एक संपन्न दलित परिवार था. एक आम दलित परिवार के घर की परिस्थिति से अगल उस घर में हर चीज मौजूद थी. भले ही मुख्यमंत्री ने अपना भोजन करने के लिए फर्श पर बैठना चुना, लेकिन ये एक ऐसा घर था जहां एक मिडिल क्लास परिवार के घर का हर आराम स्पष्ट रूप से उपलब्ध था. इसे भी एक तरह का राजनीतिक स्टंट ही माना गया.
दलितों का गुस्सा भाजपा के खिलाफ SC/ST एक्ट बंद के दौरान ही देखने को मिल गया था. भारत बंद का आहवाहन करने वाले दलितों की वजह से ही 2014 में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल सका था. अब वो भरोसा टूट रहा है और भाजपा के सभी दांव उल्टे पड़ते से दिख रहे हैं.
मायावती ने तो पहले ही भाजपा की कोशिशों को दिखावे की राजनीति का नाम दे दिया है. उसपर अखिलेश भी बयानबाज़ी में कहीं पीछे नहीं हैं. मौका चुनावों का है और 2019 सिर पर खड़ा हुआ है और किसी भी मुहाने पर कोई भी पर्टी दलित वोट बैंक की अहमियत को नजरअंदाज नहीं कर सकती. ऐसे में भाजपा से नाराज दलितों को मनाने के लिए नेताओं को कम से कम छापेमारी की तरह भोजन करने वाली पॉलिटिक्स से आगे बढ़ना होगा.
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