कब तक चलेगी बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार?
ऐसा नहीं है कि दोनों दलों में पहली बार तनाव देखने को मिल रहा है. बल्कि गठबंधन के शुरुआत से ही ये बेमेल सा लगता है. इनके लिए कहा जाता है कि ये दो ध्रुवों के मेल जैसा है.
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जम्मू और कश्मीर के शोपियां जिले में दो युवकों की मौत के मामले में सेना के जवानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से एक बार फिर राज्य की गठबंधन वाली सरकार में शामिल पीडीपी और बीजेपी आमने-सामने हैं. सेना के जवानों पर FIR किए जाने से नाराज भाजपा के नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि- "ये क्या मजाक है? सरकार को गिराओ. महबूबा से कहो कि एफआईआर वापस लें या उनकी सरकार जाएगी." बता दें कि शनिवार को जम्मू कश्मीर के शोपियां में पत्थर बरसा रही भीड़ पर आत्मारक्षा में की गई फायरिंग में दो लोगों की मौत हो गई थी. जिसके बाद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस घटना की जांच के आदेश दिए थे. बाद में पुलिस ने 10वीं गढ़वाल यूनिट के खिलाफ रणबीर पैनल कोड की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या की कोशिश) के तहत मामला दर्ज किया था.
क्या हमारी सेना को आत्मरक्षा का भी अधिकार नहीं मिलना चाहिए?
राज्य सरकार के इस कदम से नाराज बीजेपी के विधायकों ने सोमवार को विधानसभा में प्रोटेस्ट किया और केस को वापस लेने की मांग की. लेकिन मुख्यमंत्री ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था. बीजेपी की ये मांग थी कि- 'ऐसे संवेदनशील मामले की पहले जांच होनी चाहिए, ना कि एकदम से एफआईआर दर्ज कर दी जाय.' मुख्यमंत्री मुफ़्ती ने कहा कि "उन्हें नहीं लगता कि इस कदम से सेना के मनोबल पर कोई असर पड़ेगा. सेना एक संस्थान है और इसने प्रशंसनीय कार्य किये हैं. लेकिन गलत लोग कहीं भी हो सकते हैं. हम सभी को एक ही ब्रश से पेंट नहीं कर सकते." उन्होंने कहा कि "अगर किसी ने गलती की है तो उसे सजा मिलनी चाहिए. और इस मामले में पहले रक्षा मंत्री से मैंने बात भी की थी."
वैसे हमने देखा है की किन मुश्किल परिस्थितियों में सेना वहां काम करती है. ऐसे में सेना को यह विशेषाधिकार है कि वह आत्मरक्षा करे. कुछ ऐसा ही मामला मेजर लीतुल गोगोई का भी था, जिसमें सेना उनके साथ खड़ी रही.
ऐसा नहीं है कि दोनों दलों में पहली बार तनाव देखने को मिल रहा है. बल्कि गठबंधन के शुरुआत से ही ये बेमेल सा लगता है. इनके लिए कहा जाता है कि ये दो ध्रुवों के मेल जैसा है. हमने देखा है कि कैसे दोनों दल के नेता कई मौकों पर पत्थरबाजों से निपटने के तौर तरीकों पर एक दूसरे पर हमला करते रहे हैं. इसके अलावा दोनों दलों का संविधान की धारा 370 को लेकर अलग मत है.
साल 2015 में हमने देखा था कि कैसे दोनों दलों के बीच जम्मू और कश्मीर के अलगाववादी नेता मसरत आलम की जेल से रिहाई के समय काफी तनाव बढ़ गया था. इस मामले में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से रिपोर्ट भी मांगी थी और दोनों दलों के बीच खूब बयानबाजी हुई थी.
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