कहीं जेडीयू के अवसान की पटकथा तो नहीं लिख रही भाजपा?
बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा अपने किसी नेता को चुनेगी एवं धीरे धीरे जेडीयू सत्ताहीन, नेतृत्वहीन, और जनाधारहीन होता चला जायेगा. गौरतलब है, कि बिहार की जनता ने पिछले चुनावों के परिणाम मात्र से नीतीश की स्वीकार्यता का संदेश दे दिया था, एवं नीतीश कुमार जैसा कुर्सी प्रिय व्यक्ति कभी भी अपनी राजनैतिक पारी का अंत हार और निराशा के साथ होते नहीं देखना चाहेगा.
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सुशासन की सरकार ने पिछले 15 वर्षों से अधिक बिहार में राज कर लिया है. ऐसे में बिहार के माननीय मुख्यमंत्री को भारत के बड़े नेताओं में एक माना जा रहा है. माना भी क्यों ना जाए, लालू यादव जैसे बड़े नेता को हराकर इन्होंने बिहार से गुंडाराज समाप्त किया था. शुरुआती समय में बिहार की शिक्षा और सुरक्षा दोनों को दुरुस्त कर एक कुशल राजनेता एवं लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में उभरकर सामने आए. समय समय पर अपनी नीतियों एवं राजनैतिक अनुभवों से सभी को प्रभावित भी किया. जब-जब अवसर पाए तब-तब दल बदल का भी पूरा फायदा उठाया लेकिन सत्ता हाथ से नहीं जाने दी. अपने एक राजनैतिक प्रयोग में तो सत्ता गंवा कर भी बड़ा कार्ड खेल गए और रातों रात जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी भी थमा दी. बिहार जैसे प्रदेश में शिक्षकों को मानव श्रृंखला बनाने के लिए खड़ा कर दिया, और साथ में दारूबाजों को पकड़ने की ड्यूटी भी लगा दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
अब इतने बड़े अनुभव, एवं उपलब्धियों के बाद राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएं तो निरंतर बढ़ती ही हैं. देश के वर्तमान प्रधानमंत्री ने भी कभी किसी प्रदेश को मुख्यमंत्री के रूप में संभाला था, तो वैसे सपने वर्तमान राजनीति में एक मुख्यमंत्री को आने तय थे. ऐसे में माननीय ने संगठन विस्तार भी शुरू कर दिया था.
हाल ही में हुए चुनाव में बिहार राज्य के बाहर भी पार्टी ने झंडा मजबूत किया. मणिपुर चुनाव में पार्टी ने 6 सीटें जीतकर राष्ट्रीय पार्टी बनने की ओर अपने कदम बढ़ा दिया है. ऐसे में बीच की उड़ती खबर कि राष्ट्रपति की दावेदारी में हैं नीतीश आखिर कैसे एक व्यक्ति को बहुत कुछ सोचने के लिए नहीं बदल सकती.
ये खबर ना मानो भारत की राजनीति में एक अलग ही भूचाल है. कुछ लोगों ने इसका मजाक उड़ाया, तो कुछ लोगों ने इसे महज मुंगेरी लाल के सपने से जोड़ा, लेकिन अपनी दूरदृष्टि और कुशल राजनीतिक नीतियों के साथ देश की बागडोर हाथ में रखते हुए 12 राज्यों में मुख्यमंत्रियों एवं 4 राज्यों की सरकार में शामिल बीजेपी के लिए यह किसी बड़े राजनैतिक अवसर से कम नहीं था.
भाजपा यह निरंतर देख रही है कि जेडीयू विकास के पथ पर है, ऐसे में सहयोगी दल होने के बाद भी भाजपा के लिए जेडीयू एक चुनौती सी रही है. बयानों में छोटे भाई और बड़े भाई के दावों के बाद भी नीतीश ने अपनी मर्जी से पाला बदला, भाजपा की नीतियों का विरोध किया, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तथा मणिपुर में अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा, बिहार की संसद में कई बार भाजपाई खेमे के अध्यक्ष महोदय को लताड़ा, और कई मामलों पर चुटकी ली.
नीतीश ने भाजपा और लोजपा के साथ पर भी टिपण्णी करते हुए, इन दोनों को एक दूसरे से जुदा कर ही दिया. ऐसे में वह भाजपा जिसने साहनी की नाव को रातों रात डूबा दिया, जिस राज्य में चाहा वहां सरकार बनाया, और जिस दांव को भी खेला सफल होने के लिए खेला, और बिहार की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भी खुद को स्थापित किया उसके लिए यह पीड़ादायक तो था ही.
ऐसे में वीआईपी के तीन विधायकों को अपने साथ मिला कर, अतिमहत्वाकांक्षी उप मुख्यमंत्री का सपना देखने वाले मुकेश साहनी को सड़क पर ला ही दिया था, लगे हाथ नीतीश कुमार के सपनों को पूरा करते करते इनकी राजनीतिक विरासत को समाप्त करने की ओर भी अपना कदम बढ़ा चुकी है.
एक व्यक्ति हेतु पार्टी, संगठन, जनाधार से ऊपर की कोई चीज है, वह उसका स्वसम्मान है, ऐसे में कुर्सी की ही इच्छा रखने वाले, एवं कुर्सी के लिए बार बार पाला बदलने वाले नीतीश कुमार भले ही मीडिया मंचों पर राष्ट्रपति बनने वाली बात से नजरें फेर रहे हों, वास्तविकता तो यह है कि उन्हें इस मुकाम तक पहुंचने की दबी इच्छा है.
ऐसे में उन्होंने मीडिया से बातों बातों में ही अपने राज्यसभा तक पहुंचने की इच्छा जाहिर कर दी.संकेत साफ है, कि राष्ट्रपति ना सही उप राष्ट्रपति तक पहुंचने के सपने को नीतीश साकार होते देखना चाहते हैं. ऐसे में अगर वे बिहार के मुख्यमंत्री पद को छोड़ कर राज्यसभा की ओर रुख करते हैं, एवं उप राष्ट्रपति के पद पर आसीन होकर, राज्यसभा की अध्यक्षता करते हैं तो निश्चित रूप से यह जेडीयू के अवसान की तैयारी है.
ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा अपने किसी नेता को चुनेगी एवं धीरे धीरे जेडीयू सत्ताहीन, नेतृत्वहीन, और जनाधारहीन होता चला जायेगा. गौरतलब है, कि बिहार की जनता ने पिछले चुनावों के परिणाम मात्र से नीतीश की स्वीकार्यता का संदेश दे दिया था, एवं नीतीश कुमार जैसा कुर्सी प्रिय व्यक्ति कभी भी अपने राजनैतिक पारी का अंत हार और निराशा के साथ होते नहीं देखना चाहेगा, ऐसे में नीतीश कुमार पार्टी एवं संगठन के पूर्व सम्मान ही चुनेंगे एवं जल्द ही उपराष्ट्रपति बनने की स्वीकृति भी दे सकते हैं.
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