2024 के सफर में उपचुनाव जनमत संग्रह तो नहीं, लेकिन राह तो सही ही दिखाते हैं
आजम खान (Azam Khan) को मिली सजा स्थगित हो गयी तो ये समाजवादी पार्टी के लिए भी बहुत बड़ी राहत होगी. हाल में हुए और 5 दिसंबर को होने जा रहे उपचुनावों के नतीजे (Bypoll Results) उसके लिए बहुत मायने रखते हैं - और अगले आम चुनाव (General election 2024) के नतीजों की तरफ इशारा करते हैं.
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आजम खान (Azam Khan) की विधानसभा सीट पर इलेक्शन कमीशन चुनाव कराने की घोषणा कर चुका है. मैनपुरी लोक सभा और रामपुर सहित छह विधानसभा सीटों पर 5 दिसंबर को वोटिंग होनी है - जबकि वोटों की गिनती हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा के साथ ही 8 दिसंबर को ही होगी. नतीजे भी उसी दिन आने की संभावना है.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद अगर रामपुर जिले के एमपी-एमएलए कोर्ट ने सजा को स्थगित कर दिया तो उपचुनाव रुक भी सकता है. मतलब, आजम खान अदालत का फैसला आने तक विधायक बने रह सकते हैं. और अगर फैसला पक्ष में आया, फिर क्या कहने.
अव्वल तो समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता आजम खान की विधानसभा सदस्यता खत्म कर दी गयी है, लेकिन उनके सुप्रीम कोर्ट चले जाने के बाद बहुत बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था - और उसी की वजह से थोड़ी उम्मीद कायम है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने समाजवादी पार्टी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से यूपी सरकार से कहा कि आखिर आजम खान को अयोग्य ठहराने की क्या जल्दी थी? बेंच का कहना था, 'आपको कम से कम उनको कुछ मोहलत देनी चाहिये थी.'
भड़काऊ भाषण केस में 27 अक्टूबर को आजम खान को दोषी ठहराया गया था. फिर रामपुर कोर्ट ने तीन साल की कैद की सजा सुनाई थी - अगले ही दिन यानी 28 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय ने आजम खान को सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहरा दिया था. यूपी विधानसभा के प्रमुख सचिव ने बताया था विधानसभा सचिवालय ने रामपुर सदर सीट को खाली घोषित कर दिया है.
आजम खान के केस की पैरवी कर रहे कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट में यूपी विधानसभा सचिवालय के भेदभावपूर्ण फैसले पर सवाल उठाया था. पी. चिदंबरम की दलील थी कि आजम खान को तो सजा सुनाये जाते ही अयोग्य घोषित कर दिया गया, लेकिन खतौली से बीजेपी विधायक विक्रम सैनी को दो साल की सजा सुनाये जाने के बाद अयोग्य ठहराने में वैसी ही तत्परता नहीं दिखायी गयी. चिदंबरम की यही दलील आजम खान को राहत दिलाने में कुछ देर के लाइफ सपोर्ट सिस्टम बन गयी. बहरहाल, विक्रम सैनी को अयोग्य घोषित किये जाने के बाद चुनाव आयोग खतौली विधानसभा सीट पर भी 5 दिसंबर को ही उपचुनाव कराने जा रहा है.
महीने भर के अंतर पर हो रहे उपचुनावों के नतीजे (Bypoll Results) गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के हिसाब से अहम तो हैं ही, अगले आम चुनाव (General election 2024) के लिहाज से देखा जाये तो भी काफी महत्वपूर्ण लगते हैं. हाल के उपचुनावों के नतीजों पर गौर करें तो आंकड़ों के अनुसार भारी तो बीजेपी ही नजर आती है, लेकिन बिहार के मोकामा, महाराष्ट्र और तेलंगाना के नतीजे अलग ही किस्सा सुना रहे हैं - और वे बीजेपी की चिंता के बड़े कारण भी हो सकते हैं.
एक महीना और एक दर्जन उपचुनाव
करीब एक महीने के अंतराल पर चुनाव आयोग देश की दर्जन भर सीटों पर उपचुनाव करा रहा है. 3 नवंबर को देश भर में सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो चुके हैं - और 6 नवंबर को सभी सीटों के नतीजे भी आ चुके हैं.
और अब 5 दिसंबर को भी 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, जबकि नतीजे गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के रिजल्ट के साथ ही 8 दिसंबर को आएंगे - हालांकि, रामपुर कोर्ट का फैसला आने तक यूपी की रामपुर विधानसभा सीट पर घोषित उपचुनाव को लेकर संदेह की स्थिति बनी हुई है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग को वोटिंग कराने के लिए रामपुर कोर्ट के फैसला का इंतजार करना होगा. सबसे बड़ी अदालत के आदेश पर फिलहाल नोटिफिकेशन होल्ड कर लिया गया है.
उपचुनावों के नतीजे निश्चित तौर पर बीजेपी के फेवर में लगते हैं, लेकिन आगे की राह आसान भी नजर नहीं आ रही है - ये भी सच है.
जिन सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, वे हैं - उत्तर प्रदेश में खतौली, बिहार में कुरहानी, राजस्थान में सरदारशहर, ओडिशा में पदमपुर और छत्तीसगढ़ की भानप्रतापपुर विधानसभा सीट. अगर रामपुर सीट पर भी उपचुनाव हुए तो यूपी की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे.
विधानसभा के साथ ही मैनपुरी लोक सभा सीट पर भी उपचुनाव की घोषणा हुई है. बेशक खतौली विधानसभा सीट बीजेपी के हिस्से की रही है, लेकिन मान कर चलना होगा कि मैनपुरी और रामपुर के साथ साथ समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव की नजर निश्चित तौर पर टिकी होगी.
हालिया नतीजे क्या कहते हैं
3 नवंबर को 6 राज्यों की 7 सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजे आये तो बीजेपी के हिस्से में सबसे ज्यादा 4 सीटें आयी थीं, लेकिन उनमें वे तीन सीटें नहीं शामिल रहीं जहां पहले से ही असली लड़ाई समझी जा रही थी - हां, बीजेपी को दो सीटों का फायदा जरूर दर्ज किया गया. बीजेपी को जिन चार सीटों पर जीत हासिल हो पायी, वे हैं - उत्तर प्रदेश की गोला गोकर्णनाथ, बिहार की गोपालगंज, ओडिशा की धामनगर और हरियाणा की आदमपुर विधानसभा सीट.
देश की जिन सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ, उनमें 2-2 सीटों पर BJP और कांग्रेस का कब्जा था, जबकि तीन सीटें शिवसेना, आरजेडी और बीजेपी के हिस्से की रहीं. मुंबई की अंधेरी ईस्ट सीट पर तो बीजेपी ने पहले ही घुटने टेक दिये थे. बहाना मनसे नेता राज ठाकरे की चिट्ठी रही हो, या फिर एनसीपी नेता शरद पवार की अपील बीजेपी ने अपना उम्मीदवार पहले ही वापस ले लिया था - और उद्धव ठाकरे की शिवसेना प्रत्याशी ऋतुजा लटके की जीत पहले से ही पक्की मानी जा रही थी.
दो राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आये उपचुनावों के नतीजे नंबर के हिसाब से भले ही बीजेपी के पक्ष में नजर आते हों, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना की ही तरह, बिहार में लालू और तेजस्वी यादव के राष्ट्रीय जनता दल और तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस ने अपने अपने इलाकों में बीजेपी को घुसपैठ का मौका नहीं ही दिया है.
ऐसे में जबकि बीजेपी गुजरात और हिमाचल प्रदेश में सत्ता में वापसी की लड़ाई लड़ रही है, उपचुनावों के नतीजे बाकी राजनीतिक दलों के साथ साथ उसे भी मैसेज तो दे ही रहे हैं. महाराष्ट्र में सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी ने जितने जुगाड़ किये थे, मुंबई की अंधेरी ईस्ट सीट के लिए कम पापड़ नहीं बेले थे.
बीजेपी ने अपना उम्मीदवार भी उतार दिया था और उद्धव ठाकरे की टीम के टारगेट पर भी आ गयी थी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को सपोर्ट कर सत्ता में हिस्सेदार बनी बीजेपी पर उद्धव ठाकरे के साथियों ने आरोप लगाया कि उनकी उम्मीदवार को चुनाव न लड़ने देने के लिए बीएमसी की मदद ली गयी.
अंधेरी ईस्ट से चुनाव जीत चुकीं ऋतुजा लटके बीएमसी की कर्मचारी थीं. चुनाव लड़ने के लिए उनका इस्तीफा मंजूर होना जरूरी था. बीएमसी के अफसरों ने तकनीकी खामी बता कर दोबारा इस्तीफा जमा कराया लेकिन नामांकन की तारीख नजदीक आने के बावजूद इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया - आखिरकार, बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर बीएमसी ने नामांकन की अवधि खत्म होने से ठीक पहले ऋतुजा लटके का इस्तीफा मंजूर किया.
अव्वल तो यही सत्ता पक्ष के लिए बड़ा झटका था, लेकिन ऋतुजा लटके के नामांकन दाखिल कर देने के बाद लगा बीजेपी को हार की चिंता सताने लगी. उपचुनाव शिवसेना विधायक रमेश लटके के निधन के कारण हो रहा था - और ऋतुजा को लोगों की सहानुभूति मिलने की काफी संभावना थी. फिर बीजेपी का रास्ता निकाला गया - और राज ठाकरे और शरद पवार ने बीजेपी की मदद में उम्मीदवार वापस लेने को लेकर सलाह भरी अपील कर दी.
तेलंगाना को लेकर बीजेपी किस तरह तैयारी कर रही है, सबको पता है ही. हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पहले से ही बड़े नेताओं का दौरा शुरू हो चुका था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेलंगाना में परिवारवाद की राजनीति के नाम पर केसीआर को लगातार घेर रहे हैं. बिहार चुनाव खत्म होने के बाद अमित शाह ने नगर निगम चुनाव में मोदी को छोड़ बीजेपी के सारे बड़े नेताओं को उतार कर इरादा पहले ही जाहिर कर दिया था - फिर मुनुगोड़े उपचुनाव में हार से ही संतोष करना पड़ा है.
तेलंगाना का रिजल्ट बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस के लिए भी संदेश लिये हुए है. राहुल गांधी भी मोदी-शाह से कम प्रयास नहीं कर रहे हैं. और तेलंगाना को तो राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के रूट में भी शामिल किया गया है - फिर भी मुनुगोड़े उपचुनाव में कांग्रेस को बीजेपी के बाद तीसरी पोजीशन ही हासिल हो सकी है.
मैसेज सबके लिए साफ है. बीजेपी और कांग्रेस के साथ साथ केसीआर की टीआरएस के लिए भी - केसीआर, उनका परिवार और पार्टी सभी मजबूती से अपने इलाके की हिफाजत में जुटे हुए हैं.
अंधेरी और मुनुगोड़े से कहीं ज्यादा बड़ा झटका तो बीजेपी के लिए बिहार की मोकामा विधानसभा सीट पर मिला है. नीतीश कुमार के महागठबंधन का मुख्यमंत्री बन जाने के बाद बिहार में जंगलराज को मुद्दा बनाने में भी अकेली पड़ी बीजेपी ने मोकामा विधानसभा उपचुनाव के लिए बाहुबल की राजनीति में भी भरोसा जताया था, लेकिन नाकामी ही हाथ लगी.
मोकामा में छोटे सरकार के नाम से मशहूर अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी आरजेडी की उम्मीदवार बनीं तो बीजेपी ने इलाके के एक और बाहुबली ललन सिंह की पत्नी को टिकट थमा दिया. बीजेपी को इस बार ललन सिंह के साथ साथ बाहुबली सूरजभान का भी साथ मिला हुआ था - लेकिन अनंत सिंह आगे किसी की भी कोई तरकीब काम नहीं आ सकी.
तस्वीर से पर्दा पूरी तरह तो 8 दिसंबर को सारे चुनाव नतीजे आने के बाद ही हटेगा, लेकिन बीजेपी नेतृत्व को एक मैसेज तो समझ ही लेना चाहिये कि 2024 में मोदी लहर का फिर से फायदा भले ही मिल जाये - लेकिन तब तक होने वाले विधानसभा चुनावों में सिर्फ ब्रांड मोदी से ही काम नहीं चलने वाला है.
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