नोट पर लक्ष्मी-गणेश की फोटो से बात उठी है, तो दावेदार और भी हैं...
केजरीवाल को नोटों को लेकर आध्यात्मिक बयान क्यों देना पड़ा वजह किसी से छिपी नहीं है. लेकिन यदि उनकी बातों में दम है तो फिर मामले को सिर्फ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर तक ही क्यों सीमित रखा जाए.शिवाजी, भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, पेरियार, महाराणा प्रताप. ध्यानचंद, लता मंगेशकर जैसे लोगों में क्या ही बुराई है?
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अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कमज़ोर होते भारतीय रुपये कि सेहत सुधारने के लिए सरकार तमाम जतन कर रही है. ऐसे में एक टोटका दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी दिया. अपने एक बयान में केजरीवाल ने कहा है कि यदि भारतीय करंसी में गांधी के साथ साथ लक्ष्मी गणेश की फोटो लगा दी जाए तो स्थिति संभलेगी. केजरीवाल का इस बात को कहना भर था, विवाद हो गया है. सामने मनीष तिवारी आए हैं और दलित तुष्टिकरण करते हुए उन्होंने केजरीवाल को उन्हीं के अंदाज में जवाब दिया और पूरी बहस का सिरा ही मोड़ दिया है. केजरीवाल को टैग करते हुए कहा कि नोटों की नई सीरीज पर भीमराव अंबेडकर का फोटो क्यों न हो? उन्होंने कहा कि एक तरफ महान महात्मा और दूसरी तरफ अंबेडकर. उन्होंने ये भी कहा कि अहिंसा, संविधानवाद और समतावाद एक अद्वितीय संघ में विलीन हो रहे हैं जो आधुनिक भारतीय महापुरुषों को बड़ी सुगमता से जोड़ देती है.
नोट को लेकर केजरीवाल की बातों पर जो कुछ मनीष तिवारी ने कहा पूरी बहस ही बदल गयी है
केजरीवाल को ये आध्यात्मिक बयान क्यों देना पड़ा वजह किसी से छिपी नहीं है लेकिन यदि उनकी बातों में दम है तो फिर मामले को सिर्फ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर तक ही क्यों सीमित रखा जाए. शिवाजी, भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, पेरियार, महाराणा प्रताप. ध्यानचंद, लता मंगेशकर इन लोगों में क्या ही बुराई है?
Why not Dr BabaSahib Ambedkar’s photograph on new series of currency notes ? One side the great Mahatma the other side Dr Ambedkar. Non violence,Constitutionalism & egalitarianism fusing in a unique Union that would sum up the modern Indian genius perfectly.@ArvindKejriwal https://t.co/ZKCHLS0ETC
— Manish Tewari (@ManishTewari) October 27, 2022
जी हां बिलकुल सही सुन रहे हैं आप. जब भारतीय नोटों पर अलग अलग राज्यों, जातियों, धर्मों के कल्ट फिगर्स जोड़ने की बात शुरू हो ही चुकी है तो इन लोगों की फोटो में हर्ज ही क्या है? ध्यान रहे, पूर्व में चाहे वो तमिलनाडु के लोग रहे हों. या फिर राजस्थान का क्षत्रिय समाज. हम ऐसे तमाम आंदोलन देख चुके हैं जिनमें लोगों ने इन तमाम लोगों की तस्वीरों को नोट में लगाकर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने की बात कही थी.
चूंकि केजरीवाल ने जो कुछ किया है उसका ये बड़ा कारण गुजरात का विधानसभा चुनाव है. माना यही जा रहा है कि अपने इस बयान से केजरीवाल ने उन तमाम लोगों के दिलों में जगह बनाने की कोशिश की है, जो तमाम बातों को लेकर उनसे आहत हैं. बताते चलें कि, जिस तरह अभी बीते दिनों ही दिवाली पर केजरीवाल ने लोगों से पटाखा न जलाने का अनुरोध किया था.
केजरीवाल ने कहा था कि, यदि कोई दिल्ली में पटाखे जलाते पकड़ा गया तो उन्हें सख्त सज़ा दी जाएगी. केजरीवाल के इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रियाएं आई थीं और भाजपा समेत तमाम हिंदूवादी संगठनों ने अरविंद केजरीवाल को एंटी हिंदू का तमगा दे दिया था. लोगों ने अरविंद केजरीवाल की आलोचना करते हुए तो यहां तक कह दिया था कि आखिर तमाम बुराइयां केजरीवाल को हिंदू धर्म में ही क्यों नजर आती हैं? बतौर मुख्यमंत्री आखिर क्यों नहीं उन्होंने कभी किसी और धर्म को लेकर ऐसी बात की.
साफ़ है कि लक्ष्मी गणेश को नोटों की डिबेट में लाकर अरविंद केजरीवाल ने न केवल अपने को सच्चा और अच्छा हिंदू ह्रदय सम्राट दर्शाया है. बल्कि उस छवि को भी तोड़ने की नाकाम कोशिश की है जिसमें उन्हें मौके बेमौके हिंदू विरोधी बताया गया था. जिक्र नोटों पर तस्वीरों का हुआ है तो जैसा कि हम सभी जानते हैं भारत विविधता और विभिन्नता का देश है.
हम कहीं भी चले जाएं. हर जगह का अपना एक कल्ट फिगर है. धर्म को यदि छोड़ भी दें तो खुद सोचिये यदि सरकार ने इनकी तस्वीरें नोटों पर लगानी शुरू कर दी तो स्थिति क्या होगी? चाहे वो उत्तर प्रदेश के लोगों की भगवान श्री राम में आस्था हो या फिर बंगालियों का देवी दुर्गा के प्रति झुकाव. तमाम अलग अलग देवी देवताओं के प्रति हम भारतीयों की जैसी आस्था है कई मायनों में स्थिति अजीब हो जाएगी.
चूंकि मामले के मद्देनजर तमाम लोगों को खुद को अधिक सेक्युलर साबित करने का कीड़ा भी काट सकता है तो हो सकता है कि लोग धर्म के मामले में आपत्ति करें. ऐसे में कोई हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का फैन या फिर कोई सिने प्रेमी नोट पर भारत कोकिला लता मंगेशकर का नाम जोड़ने की भी वकालत कर सकता है. ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि क्या अंबेडकर, शिवाजी, भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, पेरियार, महाराणा प्रताप, ध्यानचंद, लता मंगेशकर जैसे लोगों के या फिर अलग अलग देवी देवताओं के, पीर फकीरों के फोटो नोटों पर छापना क्या अब भी संभव है?
उपरोक्त सवाल का जवाब न है. ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि भारत जैसा देश इतना विस्तृत है कि यहां अगर नोट पर तस्वीरें ही छपने लग गयीं तो अवश्य ही नोट छोटा पड़ जाएगा, और दावेदार बाहर ही रह जाएंगे. इसलिए चाहे वो मनीष तिवारी हों या फिर अरविंद केजरीवाल नोटों पर अलग अलग तस्वीरों की वकालत करने वाले लोगों को सोचना होगा कि वो भले ही जो कुछ कर रहे हों, तुष्टिकरण के लिए कर रहे हो लेकिन स्थिति अगर न भी हुई तो तमाम अलग अलग तस्वीरों के कोलाज से भारतीय नोट जरूर बदतर हो जाएगा.
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