नसीमुद्दीन सिद्दीकी क्या राहुल गांधी को भी मायावती जैसा भरोसा दिला पाएंगे?
फिलहाल तो यूपी कांग्रेस और नसीमुद्दीन को एक दूसरे की बहुत ज्यादा जरूरत है. जिस तरीके से नसीमुद्दीन सिद्दीकी का विरोध हो रहा है, उनका भी हाल कहीं बाबू सिंह कुशवाहा जैसा तो नहीं होने जा रहा?
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2019 को लेकर कांग्रेस को नसीमुद्दीन सिद्दीकी से वैसी ही उम्मीदें हैं जैसी मायावती ने 2017 के विधानसभा चुनावों में पाल रखा था - और आखिरकार उन पर पानी फिर गया. कांग्रेस की भी नजर दलित-मुस्लिम वोट बैंक पर है, जिस दम फैक्टर को लेकर मायावती ने चुनाव लड़ा और लगातार हार से पीछा नहीं छूटा.
आगे जो भी हो, नसीमुद्दीन को लेकर कांग्रेस में जो रिएक्शन हो रहा है वो दोनों में से किसी के लिए भी अच्छा नहीं कहा जाएगा. कांग्रेस में शामिल होने से पहले नसीमुद्दीन का जिस तरह विरोध हो रहा था वो अब भी थमा नहीं है. अब तो सोशल मीडिया पर टिप्पणी के लिए कांग्रेस के दो नेताओं को अनुशासन समिति ने नोटिस भी थमा दिया है.
नसीमुद्दीन से उम्मीद
बीएसपी से निकाले जाने के बाद मायावती के खिलाफ नसीमुद्दीन सिद्दीकी के तेवर तकरीबन वैसे ही देखे गये जैसे अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध कपिल मिश्रा के. दोनों ही नेताओं के आरोपों में दो ही कीवर्ड सुने गये थे - रिश्वत और भ्रष्टाचार. कांग्रेस में शामिल होने के बाद नसीमुद्दीन ने बीएसपी नेता को पूरी इज्जत बख्शी - नो कमेंट्स!
कहीं नसीमुद्दीन को लेकर नेताओं में असुरक्षा की भावना तो नहीं...
दरअसल, कांग्रेस को यूपी में ऐसे नेताओं की तलाश है जिनका अपना जनाधार हो और वो बीजेपी के खिलाफ मुखर और आक्रामक हों. इसकी बड़ी वजह गुजरात में उसे मिली कामयाबी है. यही वजह है कि मध्य प्रदेश के लिए भी वो गुजरात के तीन युवा नेताओं अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल का इस्तेमाल करने वाली है. वैसे हार्दिक का तो कहना है कि राहुल गांधी उन्हें पसंद जरूर हैं लेकिन वो उन्हें अपना नेता नहीं मानते. अपनी पसंद भी उन्होंने बता दी है - प्रियंका गांधी.
जिग्नेश मेवाणी को आगे कर कांग्रेस यूपी में भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर रावण को भी साथ लेना चाहती है. जिग्नेश की दिल्ली रैली में जोर भी चंद्रशेखर की रिहाई पर ही था.
नसीमुद्दीन के बाद जिन नेताओं के संपर्क में कांग्रेस नेता हैं उनमें से एक समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव भी हैं. नसीमुद्दीन कांग्रेस के कुछ नेताओं के आंख की किरकिरी क्यों बने हुए हैं अभी साफ नहीं हो पाया है. कहीं ऐसा तो नहीं कि नसीमुद्दीन के आने से उनके अंदर असुरक्षा की भावना पनपने लगी है?
नसीमुद्दीन का विरोध
कांग्रेस की अनुशासन समिति ने संगठन सचिव संजय दीक्षित और सचिव अवधेश सिंह को नोटिस देकर जवाब मांगा है. यूपी कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर इनकी टिप्पणी को अनुशासनहीनता माना है.
दीक्षित की दलील है कि नसीमुद्दीन मायावती सरकार के समय हुए सभी बड़े घोटालों में शामिल रहे और ऐसे दागी नेता को कांग्रेस में जगह कैसे मिलनी चाहिये. दीक्षित ने सवाल उठाया है कि जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी साफ सुथरी और सिद्धांतों वाली राजनीति को लेकर आगे बढ़ रहे हैं तो दूसरी पार्टी के रिजेक्टेड नेताओं को पार्टी में लेने का क्या मतलब है.
अवधेश सिंह ज्यादा खफा नसीमुद्दीन के खिलाफ ठाकुर समुदाय में भरा पड़ा गुस्सा है. ये नसीमुद्दीन ही थे जिन्होंने मायावती के खिलाफ बीजेपी नेता दयाशंकर की टिप्पणी के बाद लखनऊ में बवाल किया था. तब दयाशंकर की बेटी को लेकर बीएसपी नेताओं की टिप्पणी से यूपी में ठाकुर वर्ग बहुत नाराज हुआ था. बाद में मोर्चा संभाला दयाशंकर की पत्नी स्वाति सिंह ने जो फिलहाल योगी सरकार में मंत्री हैं.
अवधेश सिंह का कहना है कि नसीमुद्दीन को ठाकुर वर्ग कभी भी स्वीकार नहीं करेगा. अब दोनों नेता राहुल गांधी से मिल कर अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे हैं.
नोटिस को लेकर एक्शन और रिएक्शन जो भी हो - लेकिन दोनों नेताओं ने जो सवाल उठाये हैं क्या राहुल गांधी उन्हें नजरअंदाज कर पाएंगे? वैसे यूपी के नेताओं ने नसीमुद्दीन को लेकर राहुल गांधी की मंजूरी नहीं ली होगी, ऐसा नहीं लगता. बगैर मंजूरी के तो इतना बड़ा फैसला तो होने से रहा. हां, आलाकमान को क्या समझा कर ये कदम उठाया गया ये बात अलग है. जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है तो 2014 में घोटालों के चलते ही कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होने के साथ ही बुरी तरह शिकस्त भी झेलनी पड़ी थी.
फिलहाल तो हालत ये है कि कांग्रेस को जितनी जरूरत नसीमुद्दीन की है, नसीमुद्दीन को भी कांग्रेस की उतनी ही जरूरत है. 2019 से पहले कांग्रेस नसीमुद्दीन को वैसे ही पार्टी में शामिल की है जैसे 2012 में बीजेपी ने बाबू सिंह कुशवाहा को हाथों हाथ लिया था - खूब शोर शराबे के साथ यूपी बीजेपी के नेताओं ने उन्हें पार्टी में एंट्री दिलायी - जब बवाल शुरू हुआ तो कुशवाहा ने तत्कालीन अध्यक्ष नितिन गडकरी को खुद ही पत्र लिख कर सदस्यता खत्म करने की अर्जी डाल दी. तब से कुशवाहा के जेल जाने और आने का खेल खत्म नहीं हो पाया है. वैसे जिस तरीके से कांग्रेस में नसीमुद्दीन सिद्दीकी का विरोध हो रहा है, उनका भी हाल कहीं बाबू सिंह कुशवाहा जैसा तो नहीं होने जा रहा?
कांग्रेस को लेकर नसीमुद्दीन ने खास तौर पर दो बातें कहीं - एक, जब तक जीवित रहूंगा कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के लिए खून पसीना एक करता रहूंगा - और दूसरा, कांग्रेस ही इकलौती ऐसी पार्टी है, जिसने कभी भारतीय जनता पार्टी से हाथ नहीं मिलाया. क्या नसीमुद्दीन की नयी पारी में वैसा दिन भी आएगा जब वो मायावती जैसा भरोसा राहुल गांधी का भी जीत पाएंगे?
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