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Updated: 08 दिसम्बर, 2021 09:09 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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CDS जनरल बिपिन रावत (CDS Bipin Rawat) के एक दुर्भाग्यपूर्ण हेलीकॉप्टर हादसे (Helicopter Crash) का शिकार होने के बाद पूरा देश मर्माहत है - और अपने बहादुर फौजी लीजेंड को पूरा देश उनकी उपलब्धियों और उनकी बातों के जरिये याद कर रहा है.

जनरल बिपिन रावत जिस हेलीकॉप्टर में सवार थे, वो स्पेशल फोर्सेस का सबसे पसंदीदा चॉपर माना जाता रहा है. ये Mi-17v5 ही है जिसका 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक में भी इस्तेमाल हुआ था, लेकिन अफसोस तमिलनाडु के कुन्नूर में वो क्रैश हो गया.

एमआई 17 हेलिकॉप्टर में जनरल बिपिन रावत के साथ उनकी पत्नी मधुलिका रावत और स्टाफ सहित 14 फौजी सवार थे. जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी सहित 13 लोग हादसे की भेंट चढ़ गये - और सिर्फ एक व्यक्ति को ही बचाया जा सका है.

2020 में देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बने जनरल बिपिन रावत को देश के दुश्मनों के खिलाफ हमेशा ही आक्रामक तेवरों में देखा गया - और कई बार तो उनकी बातें राजनीति में दखल देती पायी गयीं - हालांकि, ऐसी बातों को उनकी तरफ से हमेशा ही खारिज किया जाता रहा.

जम्मू-कश्मीर से जुड़े धारा 370 का मुद्दा रहा हो, CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून का मामला हो या फिर चीन और पाकिस्तान को लेकर, जनरल बिपिन रावत ने शायद ही किसी को बख्शा हो, लेकिन असम के मुस्लिम नेता बदरुद्दीन अजमल की पार्टी AIUDF पर उनकी टिप्पणी ने ये बहस जरूर छेड़ दी थी कि राजनीति (Political Statements and Controversies) को लेकर एक फौजी की लक्ष्मण रेखा क्या होनी चाहिये?

एक फौजी का राजनीतिक बयान!

जनरल बिपिन रावत अवैध प्रवासियों के बारे में बात कर रहे थे और तभी बोल पड़े, 'असम के AIUDF नाम के राजनीतिक संगठन को देखना होगा'. फिर जनरल बिपिन रावत ने बीजेपी के शून्य से शिखर तक पहुंचने के सफर की तुलना की - और ये तब की बात है जब वो आर्मी चीफ हुआ करते थे.

general bipin rawatफौजी भी लीडर ही होता है और राजनीति भी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं तय कर सकती - जनरल बिपिन रावत की बातें तो यही बताती हैं!

बवाल तो मचना ही था. AIUDF एक मुस्लिम लीडरशिप वाली पार्टी है - और जब देश का सबसे बड़ा फौजी अफसर उस पार्टी पर कोई टिप्पणी जब केंद्र में सत्ता उस पार्टी के हाथ में हो जिसे उसके ठीक अपोजिट पोल पर समझा जाता हो, फिर तो विवाद होना तय ही है. हुआ भी वही.

फरवरी, 2018 में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी को लेकर कहा था, 'एआईयूडीएफ नाम की एक पार्टी है... आप देखें तो बीजेपी के मुकाबले उस पार्टी ने बड़ी तेजी से तरक्की की है... अगर हम जनसंघ की बात करें... जब बीजेपी के मात्र दो सांसद हुआ करते थे - और अब वो जहां है, असम में AIUDF का ग्रोथ उससे कहीं ज्यादा तेज है.'

बदरुद्दीन अजमल ने जनरल बिपिन रावत की टिप्पणी पर रिएक्ट करते हुए चौंकाने वाला राजनीतिक बयान करार दिया था - सवाल उठाया था - सेना प्रमुख (तब जनरल बिपिन रावत आर्मी चीफ रहे) को चिंता क्यों है कि बीजेपी की तुलना में लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर आधारित एक राजनीतिक पार्टी तेजी से बढ़ रही है?

नेता कौन और कैसा होता है?

CAA को लेकर पूरे देश में काफी विरोध प्रदर्शन हुए थे और काफी संख्या में लोग पुलिस एक्शन के शिकार हुए थे. यूपी में तो योगी आदित्यनाथ सरकार ने विरोध प्रदर्शन करने वालों के नाम और पते लिख कर चौराहों पर टांग दिया था - और उनके खिलाफ सरकारी संपत्ति के नुकसान को लेकर वसूली के भी आदेश दिये थे.

योगी के एक्शन की ही तरह जनरल बिपिन रावत के बयान पर भी विवाद हुआ था. जनरल रावत का कहना रहा, 'जो हम देख रहे हैं... कई यूनिवर्सिटी और कॉलेज के छात्र हजारों की तादाद में भीड़ का नेतृत्व कर रहे हैं... हमारे शहरों में हिंसा और आगजनी कर रहे हैं... ये लीडरशिप नहीं है - नेता वो होता है जो आपकी सही दिशा में ले जाता है और सही सलाह देता है.'

नेता को कैसा होना चाहिये, इसे लेकर जनरल बिपिन रावत की राय लोगों को हजम नहीं हुई और ज्यादा विरोध होने पर उनको सफाई भी देनी पड़ी थी - 'सेना राजनीति से दूर रहती है... सेना का काम है - जो सरकार है उनके आदेश के अनुसार काम करना.'

देखा जाये तो जनरल बिपिन रावत के बयानों आपत्ति भी उसी बात को लेकर रही जो वो अपनी सफाई में कहा करते थे, लेकिन ये नहीं समझ में आता कि जो बात वो अपनी सफाई में कहते हैं - क्या बोलते वक्त ऐसी बातें वो भूल जाते हैं?

धारा 370 के असर पर रावत की राय

2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के बाद फोन और इंटरनेट पर कई महीने तक पाबंदी लगी रही, हालांकि, बाद में धीरे धीरे चरणबद्ध तरीके से चालू भी किया गया. ऐसी सुविधाओं को लोगों के मानवाधिकार के साथ जोड़ कर सवाल भी उठाये जाते रहे.

घाटी के हालात को सामान्य बताने पर भी जनरल बिपिन रावत के बयान की आलोचना हुई. जनरल रावत ने कहा था कि सभी फोन लाइनें काम कर रही हैं और लोगों को कोई परेशानी नहीं है - जम्मू-कश्मीर में संचार व्यवस्था दुरूस्त है.

जून, 2018 में, करीब साल भर पहले जनरल बिपिन रावत ने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को लेकर कहा था कि ये सब गंभीरता से लेने वाली बातें नहीं हैं. ये रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार हनन को लेकर थी.

ह्यूमन राइट्स को लेकर सेना के रिकॉर्ड को काफी बेहतर बताते हुए जनरल बिपिन रावत ने कहा था, 'मुझे नहीं लगता कि हमें इस रिपोर्ट को गंभीरता से लेना चाहिए... कई रिपोर्ट दुर्भावना से प्रेरित होती हैं.'

ढाई मोर्चे पर फतह की बात और दुश्मनों पर असर

'ढाई मोर्चे' को लेकर भी जनरल बिपिन रावत का बयान खासा चर्चित रहा - और उसे लेकर चीन और पाकिस्तान के मीडिया में भी रिएक्शन हुआ था.

जनरल बिपिन रावत ने चीन और पाकिस्तान के अलावा आतंकवाद की आंतरिक चुनौतियों को आधा माना था - और इसीलिए ढाई मोर्चे की बात करते हुए कहा था कि देश की सेना मुकाबले के लिए हर तरह से सक्षम है. चीन को लेकर जनरल बिपिन रावत का कहना रहा कि अगर उत्तरी सीमा पर संघर्ष की नौबत आयी तो पश्चिमी सरहद पर पाकिस्तान उसका फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है.

हेलीकॉप्टर हादसे के 24 घंटे पहले ही CDS रावत ने कोरोना वायरस को लेकर भी बहुत बड़ी आशंका जतायी थी. बिम्सटेक के सदस्य देशों से जुड़े आपदा प्रबंधन को लेकर आयोजित कार्यक्रम में दुनिया को आगाह किया कि महामारी जैविक युद्ध में तब्दील हो सकती है - और ऐसी स्थिति से मुकाबले के लिए सभी देशों को पहले से तैयार हो जाना चाहिये. आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे ने भी कोरोना वायरस के नये वैरिएंट के तेजी से पैर फैलाने को लेकर चेतावनी दी.

जंग में सब जायज होता है

जंग में सब जायज होता है और मेजर लीतुल गोगोई के जम्मू-कश्मीर में एक व्यक्ति को ह्यूमन शील्ड के तौर इस्तेमाल के मामले में भी जनरल बिपिन रावत का नजरिया भी ऐसा ही देखने को मिला था. एक अन्य मामले मेजर लीतुल गोगोई के खिलाफ कोर्ट मार्शल की कार्यवाही भी हुई थी.

एक इंटरव्यू में जनरल बिपिन रावत ने कहा था, 'नियम तो तब के लिए होते हैं जब दुश्मन आपसे आमने-सामने मुकाबला करे, लेकिन इस तरह की जंग में आपको इनोवेटिव तरीके ही अपनाने पड़ते हैं.' जनरल बिपिन रावत का कहना था कि कश्मीर में सेना जिन परिस्थितियों को फेस कर रही है वो डर्टी वॉर की कैटेगरी में आता है - और ऐसा हालात में अलग तरीके अपनाने ही पड़ते हैं.

जनरल बिपिन रावत ने लीडरशिप की जो मिसाल पेश की है, लगता है वो ये भूल जाते रहे कि एक फौजी की कोई लक्ष्मण रेखा भी होती है जिसके जरिये राजनीति से दूर रखने की कोशिश होती है, लेकिन वो बहुत मायने नहीं रखती. 

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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