चरणजीत सिंह चन्नी के बहाने सोनिया ने दलित कार्ड तो खेला, बीजेपी को मौका भी दे दिया
चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) को आगे करके सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने एक क्रेडिट तो ले ही लिया है - पंजाब को पहली बार दलित मुख्यमंत्री (Dalit CM in Punjab) देने का, लेकिन लगे हाथ बीजेपी को मीटू मुहिम को मुद्दा बनाने का मौका भी मुहैया करा दिया है.
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पंजाब में दलित आबादी उत्तर प्रदेश के मुकाबले डेढ़ गुना है - लेकिन दलित मुख्यमंत्री बनाने के लिए अरसा पहले कांशीराम को 20 फीसदी दलित वोट यूपी खींच लाया था. वजह साफ थी, यूपी में दलित वोट पंजाब जैसा बिखरा हुआ नहीं था. पंजाब में दलित आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है. पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के आसपास ही पंजाब में पंचायत चुनाव हुए थे - और जब नतीजे आये तो कैप्टन अमरिंदर सिंह तो बैठे बैठे मंद मंद मुस्कुरा ही रहे थे, लेकिन उनके समर्थक बल्ले बल्ले करते हुए भांगड़ा करने लगे थे.
किसान आंदोलन से जूझते हुए जब बीजेपी को विधानसभा चुनाव में कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था, तब नेताओं ने पैंतरा बदलते हुए नयी डिमांड रख दी - पंजाब का अगला मुख्यमंत्री दलित (Dalit CM in Punjab) समुदाय से होना चाहिये. बीजेपी ने ऐलान कर दिया है कि अगर 2022 के चुनाव जीत कर पार्टी सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री दलित समुदाय से होगा. ये सुनते ही ज्यादातर राजनीतिक दल किसानों का मुद्दा छोड़ कर दलित राजनीति में जुट गये. फिर क्या था, दलित नेताओं को मौका मिल गया और कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने नयी मुसीबत आ खड़ी हुई.
बीजेपी के दलित सीएम की डिमांड पेश करते ही अकाली नेता सुखबीर सिंह बादल ने दलित राजनीति को हवा देने के लिए मायावती की पार्टी बीएसपी के साथ चुनावी गठबंधन कर लिया - और सत्ता में आने पर दलित डिप्टी सीएम की घोषणा कर डाली.
सुखजिंदर सिंह रंधावा की तरह चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) भी कैप्टन अमरिंदर सिंह विरोधी खेमे की आवाज का हिस्सा बन चुके थे - और दलित राजनीति के उभार की संभावना देखते ही चरणजीत सिंह चन्नी ने दलित विधायकों को बुलाकर मीटिंग करने लगे - और कांग्रेस में भी दलित मुख्यमंत्री की मांग शुरू कर दी. हालांकि, ये नहीं मालूम कि तब ये सब सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के कानों तक पहुंचा भी था या नहीं?
चन्नी की ही राह पकड़ते हुए कैप्टन अमरिंदर के एक और विरोधी दलित नेता शमशेर सिंह दुल्लो भी दलित मुख्यमंत्री की मांग जोर शोर से बढ़ाने लगे. शमशेर सिंह मीडिया से बातचीत में कहने लगे कि कांग्रेस को सत्ता में वापसी करनी है तो पंजाब में किसी दलित नेता को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर देनी चाहिये.
शमशेर सिंह दुल्लो कह रहे थे, 'दलित समुदाय हमेशा ही कांग्रेस का समर्थक रहा है, लेकिन महज एक वोट बैंक बन कर रह गया है.' वो ये भी समझा रहे थे कि कांग्रेस पहले तो दलितों का ख्याल रखती थी, लेकिन बाद में पार्टी के लिए दलितों की अहमियत एक वोट बैंक से ज्यादा नहीं बची है.
एक अखबार से बातचीत में शमशेर सिंह दुल्लो की दलील थी - 'पिछले 75 साल में पंजाब में ब्राह्मण, जट्ट सिख और पिछड़े वर्ग को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल चुका है, लेकिन आबादी के हिसाब से सबसे ज्यादा नंबर होने के बावजूद दलितों को अब तक ये मौका नहीं मिल सका है - अगली बार तो दलित मुख्यमंत्री ही होना चाहिये.'
पंजाब में दलित विमर्श का हाल
मुहिम भले ही शुरू कर चुके थे लेकिन तब न चरणजीत सिंह चन्नी को उम्मीद रही होगी और न ही शमशेर सिंह दुल्लो कि तीन महीने के भीतर ही राजनीति ऐसे करवट बदलेगी कि पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वास्तव में कोई दलित नेता बैठा होगा - और वो भी कांग्रेस से ही.
और वो भी चरणजीत सिंह चन्नी ऐसे वैसे नहीं बल्कि सुखजिंदर सिंह रंधावा को पछाड़ते हुए कांग्रेस विधायक दल के नेता चुन लिये गये. नेता चुन लिये जाने की बात तो औपचारिकता और तकनीकी तौर पर कही जा सकती, बेहतर होगा ये कहना की चरणजीत सिंह चन्नी ने अपने नाम पर राहुल गांधी की मुहर लगवा ली. दस्तखत तो सोनिया गांधी ने ही किया होगा. जैसे नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनाये जाने के राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के फैसले पर किया था.
दलित राजनीति के नाम पर सोनिया गांधी ने मुफ्त में मीटू के आरोपों जैसी मुसीबत क्यों मोल ली?
सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी सूत्रों के हवाले से आयी खबरों को बयान देकर कंफर्म कर दिया है. सुखजिंदर सिंह रंधावा भी सुनील जाखड़ को पछाड़ कर और घोषित तौर पर अंबिका सोनी के इनकार के बाद फ्रंटरनर बन पाये थे.
चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब के नये मुख्यमंत्री बनाये जाने की घोषणा के बाद सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा भी, 'ये आलाकमान का फैसला है... मैं इसका स्वागत करता हूं... चन्नी मेरे छोटे भाई की तरह है... मैं बिल्कुल भी निराश नहीं हूं.'
बेशक सोनिया गांधी ने पंजाब के बदले राजनीतिक मिजाज को देखते हुए दलित कार्ड का इस्तेमाल किया है - और पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री देने के क्रेडिट की हकदार भी हैं, लेकिन हाल में लिए गये फैसलों पर गौर करें तो ज्यादातर में अहमद पटेल की कमी महसूस होती है.
कांग्रेस नेतृत्व के पंजाब में दलित कार्ड के साथ आगे बढ़ने के फैसले में प्रशांत किशोर की रणनीति की झलक मिल रही है - ये बात अलग है कि प्रशांत किशोर ने अभी तक कांग्रेस ज्वाइन नहीं किया है. हो सकता है डिले का ये फैसला खुद उनका ही हो, ये भी हो सकता है कि G-23 कांग्रेस नेताओं के शोर मचाने के चलते भी ऐसा हुआ हो.
ऐसे भी समझ सकते हैं कि पंजाब पर स्टैंड लेकर कांग्रेस नेतृत्व ने G-23 जैसे बाकी बागी नेताओं को भी आगाह करने की कोशिश की हो - क्योंकि पंजाब को अब तक कांग्रेस ने जिस तरीके से हैंडल किया है, लगता तो ऐसा ही है कि नेतृत्व की बात न सुनने और मनमानी करने वाले नेताओं की अब खैर नहीं रहने वाली है. मान कर चलना चाहिये कि ये मैसेज राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल तक भी पहुंच ही चुका होगा.
बाकियों को दरकिनार कर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला भी उसी लेवल का लगता है जैसे हाल फिलहाल के पंजाब से जुड़े कुछ फैसले - और ये सारे फैसले ऐसे हैं जिनमें प्रशांत किशोर की रणनीतिक महारत की छाप नजर आती है.
1. सिद्धू को कमान सौंपना जोखिम भरा फैसला: कैप्टन अमरिंदर सिंह के कड़े विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनाने का फैसला काफी बोल्ड निर्णय रहा. सिद्धू के पाकिस्तान प्रेम, इमरान खान से दोस्ती की शेखी बघारने और पाक आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा से गले मिलने को लेकर मचे बवाले के बावजदू सिद्धू को तवज्जो देना कांग्रेस नेतृत्व के लिए जोखिम भरा कदम रहा. फिर भी कांग्रेस नेतृत्व ने मिल जुल कर ये जोखिम उठाया.
सिद्धू को पंजाब में कांग्रेस की कमान देने के साथ ही भाई-बहन की जोड़ी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को नये नेतृत्व के तौर पर देखा भी जाने लगा है. खबर तो यहां तक आयी कि सोनिया गांधी तैयार नहीं हो रहीं थी, लेकिन बच्चों की जिद के चलते कागज पर दस्तखत कर दी थी.
2. कैप्टन के पास कांग्रेस में कोई विकल्प नहीं बचा था: कांग्रेस नेतृत्व ने सिद्धू को सूबे में पार्टी की कमान तो सौंपी ही, झगड़ा शांत न होते देख कैप्टन अमरिंदर सिंह का इस्तीफा भी मांग लिया - और वो कुछ नहीं कर पाये.
कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने जाने के साथ ही कांग्रेस नेतृत्व ने एक तीर से कई निशाने साध लिये थे और ये सिर्फ सिद्धू के विरोध की वजह से नहीं था. बड़ी संख्या में पंजाब के कांग्रेस विधायकों ने लिख कर विरोध प्रकट किया था.
3. दलित मुख्यमंत्री देने का श्रेय कांग्रेस को: कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के साथ कांग्रेस नेतृत्व ने विधायकों की नाराजगी तो दूर करने की कोशिश भी की है और सत्ता विरोधी लहर की काट भी काफी हद तक निकाल ली है.
और सबसे बड़ी बात तो ये है कि चुनाव नतीजे चाहे जो भी हों, पंजाब को दलित मुख्यमंत्री देने का श्रेय तो कांग्रेस का हक हो ही गया. ये भी देखिये कि सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाये जाने को लेकर कड़े विरोध की बात करने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह के तेवर भी नरम नजर आ रहे हैं.
कैप्टन के बदले सुर भी सुन लीजिये, 'चरणजीत सिंह चन्नी को मेरी शुभकामनाएं... मुझे उम्मीद है कि वो पंजाब जैसे सरहदी सूबे को सुरक्षित रखने और सीमा पार से बढ़ते सुरक्षा खतरे से हमारे लोगों की रक्षा करने में सक्षम होंगे.'
कह सकते हैं कि चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का नया मुख्यमंत्री बनाने का कांग्रेस का फैसला भी बीजेपी के गुजरात में चेंज ऑफ गार्ड जैसा ही है, लेकिन मुश्किल तो ये है कि सिर मुड़ाते ही ओले भी पड़ने लगे.
चन्नी को आगे करके कांग्रेस नेतृत्व ने भी अब सत्ता विरोधी लहर की काट खोज ली है. विधायकों के विरोध को शांत कर दिया है. सिद्धू के साथ तकरार वाला माहौल भी अब खत्म हो चुका - और चुनाव से पहले ही करीब करीब हारी हुई कांग्रेस एक बार फिर जीत की ओर बढ़ चली है क्योंकि सामने मैदान खाली है - सी-वोटर के सर्वे में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को जो मार्क्स मिले थे उसके पीछे बड़ी वजह कांग्रेस के कलह और गुटबाजी ही थी, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने वे सारी चीजें एक साथ खत्म कर दिया है.
बड़े दिनों बाद कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से कोई ढंग का फैसला दिखायी दे रहा है - और इसीलिए शक हो रहा है कि इसके पीछे हो न हो प्रशांत किशोर की ही रणनीति हो - क्योंकि गांधी परिवार के हालिया फैसले में ऐसी दूरगामी सोच वाले फैसले जैसी झलक तो देखने को नहीं ही मिली है.
वैसे भी प्रशांत किशोर जिसे जिताते हैं, बाद में नया क्लाइंट मिलते ही हरा भी देते हैं - उनका ट्रैक रिकॉर्ड तो यही कहता है. कैप्टन अमरिंदर सिंह को ये एहसास तो उसी दिन हो गया होगा जब प्रशांत किशोर का वो चर्चित असमर्थता भरा थैंकयू वाला लेटर मिला होगा.
बीजेपी तो मुद्दा बनाएगी ही
लेकिन कहा क्या जाये. कांग्रेस का हाल भी तारक मेहता का उल्टा चश्मा वाले जेठालाल जैसा ही लगता है. कांग्रेस नेतृत्व अभी पंजाब को दलित सीएम देने का जश्न मना ही रहा होगा कि बीजेपी ने धावा बोल दिया है.
बीजेपी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने राहुल गांधी को 'वेल डन' तो करीब करीब कांग्रेस नेता सुनील जाखड़ वाले अंदाज में ही बोला है, लेकिन बीजेपी के आगे के आक्रामक रूख का संकेत भी दे दिया है.
In the last few days, Congress in Rajasthan passed a bill to register child marriages, giving it legitimacy and robbing young girls of their growing up years, and now has elevated a #MeToo accused as CM of Punjab.
Let’s wait for Rahul Gandhi to pontificate on women empowerment…
— Amit Malviya (@amitmalviya) September 19, 2021
मीटू मुहिम के दौरान आरोपों के घेरे में आने पर एमजे अकबर को विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. ये भी संयोग की ही बात है कि ये दोनों ही विवाद भी तभी शुरू हुए जब दोनों ही नेता देश से बाहर थे.
कैप्टन सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री रहे चरणजीत सिंह चन्नी पर तीन साल पहले एक सीनियर महिला आइएएस अफसर को अश्लील मैसेज भेजने की वजह से काफी विवाद हुआ था. विदेश यात्रा से लौटने के बाद चन्नी ने ये तो माना कि महिला अफसर को मैसेज भेजा था, लेकिन कहा कि ऐसा गलती से हो गया था. बाद में पूछे जाने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कहा था कि वो मामला खत्म हो चुका है.
पंजाब महिला आयोग ने राज्य सरकार को नोटिस भेज कर जवाब भी मांगा था - और अब अमित मालवीय वो वाकया याद दिला कर राहुल गांधी को ललकार रहे हैं - देखे अब कैसे वो महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं. जाहिर है आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी इसे मुद्दा तो बनाएगी ही.
ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस के पास और कोई दलित नेता नहीं था. जो प्रस्ताव सोनिया गांधी को भेजा गया था उसका अनुमोदन करने वाले राजकुमार वेरका को भी दलित होने के नाते ही मुख्यमंत्री पद का दावेदार समझा जा रहा था - अगर कांग्रेस नेतृत्व ने थोड़ा और सोच समझ लिया होता तो कम से कम चरणजीत सिंह चन्नी की तरह सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने शुरू तो नहीं ही होते.
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