Common Minimum Programme जरूरी भी है और उद्धव सरकार के लिए खतरा भी!
उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के शपथ ग्रहण समारोह (swearing in ceremony) से पहले ही Common Minimum Programme पेश किया जाएगा. ये कॉमन मिनिमम प्रोग्राम ही है, जो नई सरकार का आधार भी है और उद्धव सरकार के लिए मुसीबत का सबब भी बन सकता है.
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महीने भर से भी अधिक दिनों से महाराष्ट्र में चल रहा सियासी ड्रामा आखिरकार खत्म होने की कगार पर आ गया है. पेंच इस बात को लेकर फंसा था कि महाराष्ट्र (Maharashtra) में किसकी सरकार बनेगी. शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस ने साफ कर दिया था कि वह सरकार बनाएंगे, लेकिन Common Minimum Programme को लेकर तीनों में कोई सहमति नहीं बन पा रही थी. इसी बीच 23 नवंबर की सुबह अजित पवार के समर्थन ने भाजपा ने अचानक सरकार बना ली. इसके खिलाफ शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस (Shiv Sena-NCP-Congress) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जा पहुंच और फ्लोर टेस्ट (Floot Test) का दिन मुकर्रर कर दिया. उधर शरद पवार (Sharad Pawar) ने सारी ताक झोंक कर अजित पवार (Ajit Pawar) को मनाने में कामयाबी हासिल कर ली. फिर क्या था, पहले अजित पवार ने इस्तीफा दिया और फिर अल्पमत में पहुंच चुकी भाजपा की सरकार के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने इस्तीफा दे दिया. अब शाम को उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं. इस शपथ ग्रहण समारोह (swearing in ceremony) से पहले ही उद्धव सरकार की ओर से वो Common Minimum Programme भी पेश किया जाएगा, जिस पर सहमति बनने के बाद सभी दल सरकार बनाने पर राजी हुए हैं. ये Common Minimum Programme ही है, जो नई सरकार का आधार भी है और उद्धव सरकार के लिए मुसीबत का सबब भी बन सकता है.
उद्धव सरकार अपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में जो नीतियां लाएगा, पता नहीं वह सबको पसंद कैसे आएंगी...
पोर्टफोलियो का बंटवारा कर सकता है खेल
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे होंगे, ये तो तय हो गया. चलिए कांग्रेस और एनसीपी से एक-एक डिप्टी सीएम भी तय समझिए, लेकिन बाकी का क्या? विधायक तो बहुत सारे हैं, लेकिन सरकार में उतने पद तो होते नहीं हैं. अगर किसी एक ही पार्टी की सरकार बन रही होती है तो उन विधायकों को मनाना आसान होता है, जिन्हें कोई पद या जिम्मेदारी नहीं दी जा पाती है, लेकिन जब सरकार गठबंधन की होती है तो ये सबसे बड़ी चुनौती होती हैं. महाराष्ट्र में गठबंधन भी 3 पार्टियों का है. उसमें भी विरोधी विचारधारा वाली. यानी एक तो करेला, ऊपर से नीम चढ़ा. अब पोर्टफोलियो के बंटवारे के बाद जिन नेताओं को कुछ नहीं मिलेगा वह क्या करेंगे? कहीं कर्नाटक की यादें ना ताजा कर दें. वैसे अभी तक महाराष्ट्र में सब कुछ बिल्कुल वैसे ही हो रहा है, जैसे कर्नाटक में हुआ था.
कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का संस्पेंस
शिवसेना ने अब तक किसी को भनक नहीं लगने दी है कि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम क्या होगा. यानी किसी को नहीं पता कि ये नई सरकार किन वादों के साथ नई सरकार बनाएगी. सवाल ये भी उठ रहा है कि जिन नीतियों को लेकर नई सरकार आगे बढ़ेगी, वह कितने लोगों के पसंद आएंगी? आखिर शिवसेना हमेशा से हिंदुत्व की बातें करती रही है तो फिर अब हिंदुत्व विरोधी छवि वाली कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना नीतियों पर भी तो असर डालेगा और इस असर का सीधा असर विधायकों पर पड़ना तय है. शपथ ग्रहण से पहले कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का संस्पेंस तो खुल जाएगा, लेकिन विधायकों के मन में क्या चलना शुरू होगा, वो सस्पेंस न जाने कब खुलेगा और जब खुलेगा, तो न जाने क्या गुल खिलाएगा.
बगावत की नौबत ना आ जाए
जिस तरह 2018 में कर्नाटक की सरकार बनी थी, ठीक वैसे ही महाराष्ट्र में सरकार बनने जा रही है. वहां भी विरोधी पार्टियों ने मोदी को हराने के लिए हाथ मिलाया, भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली गई और फिर इस्तीफा दिया गया और फिर साल भर बाद सरकार गिर गई. महाराष्ट्र में अब तक सब कुछ कर्नाटक की तरह हुआ है, लेकिन आगे क्या होगा ये देखना दिलचस्प रहेगा. कहीं कर्नाटक की तरह ही महाराष्ट्र में भी विधायक बगावत पर ना उतर जाएं. वैसे भी, सरकार गिराने के लिए चंद विधायक ही काफी होंगे.
सरकार गिराना कोई बड़ी बात नहीं !
जिस तरह कर्नाटक में 14 विधायकों ने इस्तीफा दिया और कांग्रेस-जेडीएस के गठबंधन की सरकार गिर गई, ठीक उसी तरह 14-15 विधायक अगर कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना की सरकार में से इस्तीफा दे देंगे, तो इनकी सरकार भी औंधे मुंह जमीन पर गिरी नजर आएगी. हां, ये बात सही है कि भाजपा को सरकार बनाने के लिए 40 विधायक चाहिए, लेकिन अगर सरकार गिरानी हो तो मामूली गुणा-भाग से ही गिराई जा सकती है. बता दें कि महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा ने 105, कांग्रेस ने 44, शिवसेना ने 56 और एनसीपी ने 54 सीटें जीती हैं. यानी आने वाले दिनों में भाजपा उन नाराज विधायकों को अपनी ओर खींचने या कम से कम इस्तीफा दिलवाने की कोशिश जरूर करेगी, जो उद्धव ठाकरे के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और पोर्टफोलियो के बंटवारे से खुश नहीं होंगे. खैर, अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन वक्त जैसे-जैसे बीतेगा, महाराष्ट्र सरकार के कई रहस्य परत दर परत खुलते जाएंगे. आप तो बस आराम से बैठिए और इस सियासी ड्रामे का लुत्फ उठाइए.
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