बीजेपी की राह में रेड्डी बंधु रोड़ा बने तो कर्नाटक में कांग्रेस को फायदा मिल सकता है
कर्नाटक (Karnataka Election 2023) में होने जा रहे चुनावी मुकाबले को जनार्दन रेड्डी (Reddy Brothers) और ज्यादा दिलचस्प बनाने वाले हैं. रहेंगे तो वो वोटकटवा वाली भूमिका में ही लेकिन बीजेपी (BJP) को नुकसान तो हो ही सकता है - और ऐसा हुआ तो कांग्रेस को फायदा होगा ही.
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कर्नाटक (Karnataka Election 2023) से भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध की खबर आयी थी. लेकिन जांच पड़ताल के बाद पुलिस ने 12 जनवरी के वाकये को सुरक्षा में चूक का मामला नहीं माना. और ऐसा होने के कम से कम दो कारण लगते हैं. एक तो ये कि प्रधानमंत्री को माला पहनाने की कोशिश करने वाला छठी क्लास का एक बच्चा था - और दूसरा ये कि कर्नाटक में बीजेपी (BJP) की ही सरकार है.
हो सकता है, बसवराज बोम्मई की जगह सिद्धारमैया या कांग्रेस के डीके शिवकुमार या जेडीएस के एचडी कुमार स्वामी होते तो, वे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी जैसा मैसेज अपने अधिकारियों से पा सकते थे - 'अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक जिंदा लौट पाया!'
26वें राष्ट्रीय युवा महोत्सव का उद्घाटन करने कर्नाटक पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी का रोड मोजी एयरपोर्ट से रेलवे स्पोर्ट्स ग्राउंड की तरफ बढ़ रहा था, तभी एक बच्चा माला लेकर मोदी की तरफ दौड़ा. एसपीजी के जवानों ने फौरन ही बच्चे के हाथ से माला ले ली और उसे भगा दिया. बाद में पुलिस ने बच्चे के दादा सहित पूरे परिवार से पूछताछ की, लेकिन फिर छोड़ भी दिया.
कर्नाटक में जल्दी ही विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं. लेकिन उससे पहले त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में चुनाव होंगे. 2023 के आखिर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम सहित कुल 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. चुनावी राजनीति के हिसाब से देखें तो उसके बाद सीधे 2024 में आम चुनाव कराए जाएंगे.
निश्चित तौर पर बीजेपी नेतृत्व का फोकस अभी नॉर्थ ईस्ट पर है, क्योंकि त्रिपुरा में भी कर्नाटक की ही तरह सत्ता में वापसी का दबाव है. अभी तक तो ऐसा ही लगता है कि त्रिपुरा और कर्नाटक दोनो ही राज्यों में बीजेपी के सामने चुनौतियां करीब करीब एक जैसी ही हैं. त्रिपुरा में तो बीजेपी 2018 में पहली बार सत्ता में आयी, लेकिन कर्नाटक में तो 2007 से ही आती जाती रही है.
कर्नाटक में स्थिति थोड़ी अलग भी है, क्योंकि बीजेपी की चुनाव जीत कर सत्ता में आने से ज्यादा ऑपरेशन लोटस के जरिये सरकार बनाने की गारंटी ज्यादा होती है. अब तक चार बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा दो बार तो अपने ऑपरेशन लोटस की बदौलत ही मुख्यमंत्री बने हैं.
बीजेपी की ताजा मुसीबत, 2008 में ऑपरेशन लोटस के पहले एक्सपेरिमेंट में मददगार रहे जी. जनार्दन रेड्डी (Reddy Brothers) बनते लगते हैं. तब चुनावों में बीजेपी बहुमत से तीन सीट दूर रह गयी थी. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने जनार्दन रेड्डी की मदद से कांग्रेस के तीन और जेडीएस के चार विधायकों को इस्तीफा देने के लिए राजी कर लिया. इस्तीफा देकर वे विधायक बीजेपी में शामिल हो गये. उपचुनाव हुआ और 7 में से पांच फिर से चुनाव जीत कर बीजेपी विधायक बन गये - और बहुमत के नंबर 113 की जगह 115 विधायकों के सपोर्ट येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बन गये. बीजेपी के सफल ऑपरेशन लोटस में असली भूमिका तो जनार्दन रेड्डी और रेड्डी बंधु के नाम से मशहूर उनके दो भाइयों ने निभायी थी, लेकिन जाहिर है श्रेय तो नेता को ही मिलता है. येदियुरप्पा ऑपरेशन लोटस के जनक माने जाते हैं और रेड्डी बंधुओं की राजनीति अभी भ्रष्टाचार के आरोपों से उबर नहीं पायी है.
बीजेपी सत्ता में तो पूरे कार्यकाल यानी 2008 से 2013 तक रही, लेकिन इस दौरान तीन मुख्यमंत्री भी बदलने पड़े. अब वही जनार्दन रेड्डी कल्याण राज्य प्रगति पक्ष नाम से नयी पार्टी बना चुके हैं और विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं - जनार्दन रेड्डी की चुनावी रणनीति और उनके सीमित प्रभाव से ऐसा तो नहीं लगता कि वो कोई कमाल करने वाले हैं, लेकिन ये तो तय है कि कम मार्जिन वाली सीटों पर नतीजों में उलटफेर तो कर ही सकते हैं.
वोटकटवा ही सही, नुकसान तो हो ही सकता है
रेड्डी बंधुओं के लिए छवि शुरू से ही बड़ी चुनौती रही है. अपनी छवि सुधारने की शुरुआती कोशिश ने ही लोगों का उनके प्रति भरोसा भी बढ़ाया था. जी. जनार्दन रेड्डी तीनों भाइयों में सबसे बड़े हैं और माइनिंग से जुड़े जो भी कारोबार हैं, वही देखते हैं.
कर्नाटक में वोटकटवा बनने जा रहे जनार्दन रेड्डी से ही बीजेपी को सबसे बड़ा खतरा है
जनार्दन रेड्डी के दो और भाई हैं. करुणाकर रेड्डी और सोमशेखर रेड्डी. दोनों फिलहाल बीजेपी में हैं. और रेड्डी बंधुओं करीबी माने जाने वाले श्रीरामुलु मौजूदा बीजेपी सरकार में मंत्री भी हैं. चुनाव मैदान में उतरने का संकेत अभी सिर्फ जनार्दन रेड्डी ने ही दिया है, आने वाले दिनों में बाकियों का क्या रुख रहता है वो देखने वाली बात होगी.
हाल ही में जनार्दन रेड्डी ने अपना नया राजनीतिक दल बनाया है. कल्याण राज्य प्रगति पक्ष - और अभी अभी कर्नाटक सरकार ने सीबीआई को रेड्डी और उनकी पत्नी की संपत्तियों को जब्त करने की अनुमति भी दी है.
लेकिन कर्नाटक सरकार के इस फैसले को जनार्दन रेड्डी के खिलाफ सीधे सीधे नहीं कहा जा सकता. सीबीआई ने पहले भी कर्नाटक की बीजेपी सरकार से रेड्डी की संपत्तियां जब्त करने की अनुमति मांगी थी. जब बीजेपी सरकार ने अनुमति नहीं दी तो सीबीआई कोर्ट चली गयी, और अब अदालत के ही आदेश पर एक्शन हो रहा है.
करोड़ों के अवैध खनन के मामले में जनार्दन रेड्डी जेल भी जा चुके हैं और जमानत देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने उनके अपने ही इलाके बेल्लारी सहि आंध्र प्रदेश के अनंतपुर और कडप्पा जाने पर भी रोक लगाई गयी थी. उनके बेल्लारी जाने पर रोक तो हटा ली गयी है, लेकिन चुनाव लड़ने पर पाबंदी है. समझा जाता है कि वो गंगावती से चुनाव लड़ सकते हैं.
रेड्डी बंधु 1999 में उस वक्त चर्चा में आये जब बीजेपी नेता सुषमा स्वराज कांग्रेस उम्मीदवार सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं. तभी सुषमा स्वराज को थाई यानी मां कह कर बुलाने नवाले रेड्डी बंधु बीजेपी के करीब होते गये. रेड्डी बंधुओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते ही सुषमा स्वराज ने नाता तोड़ लिया था. लेकिन बाद में वो बीजेपी नेता येदियुरप्पा के करीब हो गये. भ्रष्टाचार के आरोप तो येदियुरप्पा पर भी लगे ही हैं - और जेल चले जाने के चलते मुख्यमंत्री की कुर्सी तक छोड़नी पड़ी है.
अब जनार्दन रेड्डी की जो स्ट्रैटेजी समझ में आयी है, उसके मुताबिक वो खुद तो चुनाव लड़ेंगे ही बीजेपी के अंसतुष्टों को भी चुनाव लड़ाएंगे. बेल्लारी के साथ साथ विजयनगर, कोप्पल, रायचूर, यादगिर, बीदर में भी जनार्दन रेड्डी का खासा प्रभाव समझा जाता है.
वैसे तो सुना है कि रेड्डी बीजेपी ही नहीं बल्कि कांग्रेस में भी टिकट काट दिये जाने वाले नेताओं को साथ लेंगे, अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को अच्छा खासा फंड भी देने का प्लान कर चुके हैं - जाहिर है ये सारे ही उम्मीदवार वोटकटवा की ही भूमिका निभाएंगे, लेकिन जहां जीत हार का अंतर कम हो वहां बीजेपी की लुटिया तो डुबो ही सकते हैं.
कर्नाटक में एक खास ट्रेंड भी देखने को मिला है. सत्ताधारी दल से अलग होकर कोई भी नेता अपनी अलग पार्टी बनाता है तो वो पार्टी चुनाव हार जाती है. 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले बीएस येदियुरप्पा ने भी अपनी पार्टी बनायी थी. कर्नाटक जनता पक्ष, जिसे बाद में बीजेपी को ही तोहफे के तौर पर दे दिया - बाकी चीजें छोड़ दें तो एक सच तो रहेगा ही कि येदियुरप्पा के चलते ही बीजेपी को तब सरकार गंवानी पड़ी थी.
जनार्दन रेड्डी के नये कदम से बीजेपी को खतरा इसलिए भी लगता है क्योंकि येदियुरप्पा का कोई पहला मामला नहीं था. कांग्रेस नेता एस. बंगारप्पा ने 1983 में अपनी नयी पार्टी बनायी - क्रांति रंगा दल. और नतीजा ये हुए की बंगारप्पा के सपोर्ट से ही पहली बार कर्नाटक गैर कांग्रेसी जनता पार्टी की सरकार बनी थी.
वोटकटवा ही सही, जनार्दन रेड्डी की पार्टी से बीजेपी को नुकसान तो हो ही सकता है - और नुकसान का सीधा फायदा कांग्रेस ही उठाएगी.
प्रियंका गांधी का महिला कार्ड भी तो है?
कर्नाटक चुनाव का पूरा दारोमदार तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के कंधों पर ही है, लेकिन उनको मजबूत सपोर्ट देने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा भी चुनावी मैदान में धावा बोलने वाली हैं. निश्चित तौर पर ऐसा करने से पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के झगड़े का असर कम हो सकता है, ऐसी उम्मीद तो कांग्रेस नेतृत्व को करनी ही चाहिये.
प्रियंका गांधी 16 जनवरी को कर्नाटक में महिला सम्मेलन करने वाली हैं. ये रैली राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के समापन से कुछ ही दिन पहले कांग्रेस की नयी मुहिम का हिस्सा लगती है. 26 जनवरी, 2023 से 26 मार्च, 2023 तक कांग्रेस 'हाथ से हाथ जोड़ो अभियान' चलाने जा रही है, जिसके तहत राज्यों की राजधानियों में महिला यात्रा भी निकाली जानी है.
जो संकेत मिल रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस कर्नाटक में भी यूपी की तरह महिला कार्ड खेलने की तैयारी में है. कर्नाटक की मौजूदा विधानसभा में 11 महिला विधायक हैं. छह कांग्रेस से और तीन बीजेपी से. एक मनोनीत सदस्य हैं.
कर्नाटक महिला कांग्रेस ने महिलाओं को कम से कम 30 टिकट देने की मांग की है. बताते हैं कि राज्य के 74 विधानसभा क्षेत्रों से 100 से ज्यादा महिलाओं के आवेदन मिले हैं. महिला कांग्रेस की मांग यूपी के मुकाबले देखें तो काफी कम लगती है. यूपी चुनाव 2022 में प्रियंका गांधी की पहल पर कांग्रेस ने 40 फीसदी महिला उम्मीदवार ही चुनाव में उतारे थे.
2024 की झलक दिखेगी कर्नाटक में
कर्नाटक चुनाव में मुकाबला तगड़ा कराने वाले फैक्टर बढ़ते ही जा रहे हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो कर्नाटक जाकर पहले ही अपना इरादा जता चुके हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के हाथ मिला लेने का भी कुछ तो असर होगा ही - और मल्लिकार्जुन खड़गे की मदद के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर जो एक्शन प्लान बन रहा है, वो भी बीजेपी के लिए नजरअंदाज करने वाला तो नहीं ही है.
अगर कर्नाटक में बन रही राजनीतिक समीकरणों पर ध्यान दें तो ये कुछ कुछ 2024 के आम चुनाव के पायलट प्रोजेक्ट जैसा भी लगता है. ये ऐसे समझ सकते हैं कि सत्ता में बीजेपी है. बीजेपी को सबसे बड़ी चुनौती तो कांग्रेस की तरफ से मिलने वाला है, लेकिन ऐन उसी वक्त एक बिखरा हुए विपक्ष से भी बीजेपी को चुनौती मिल रही है.
एक बिखरा विपक्ष हमेशा ही बीजेपी की राह आसान करने वाला होता है. लेकिन ऐसा तभी होता है जब हर सीट पर पूरा विपक्ष लड़े और बीजेपी के खिलाफ एकजुट वोट किसी को न मिले. ऐसी स्थिति ही बीजेपी की जीत की गारंटी दे देती है.
वही विपक्ष अगर एक साथ मिल कर लड़े तो बीजेपी के लिए मुसीबत हो सकती है, लेकिन ये भी है कि हकीकत में ऐसा होने से रहा. अब तक तो ऐसा कोई संकेत नहीं ही मिल सका है. लेकिन कर्नाटक में जो लड़ाई नजर आ रही है वो काफी अलग है.
विपक्ष बिखरा जरूर है, लेकिन पूरा विपक्ष हर सीट पर लड़ने जा रहा हो, ऐसा भी नहीं लगता. कांग्रेस का मकसद सत्ता में वापसी करना है, लिहाजा वो तो कर्नाटक की सभी 224 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है, लेकिन बाकी राजनीतिक दलों के साथ ऐसा ही हो, लगता नहीं है.
बाकी राज्यों की तरह अरविंद केजरीवाल भी कुछ चुनी हुई सीटों पर ही चुनाव लड़ेंगे. दिल्ली से बाहर आम आदमी पार्टी अब तो ऐसा ही करती है. जेडीएस नेता कुमारस्वामी का जोर भी उन इलाकों पर ही होगा, जहां उनका प्रभाव क्षेत्र ज्यादा है. कुमारस्वामी और केसीआर का गठबंधन भी उन सीटों पर ही चुनाव लड़ सकता है जहां तेलुगु भाषी आबादी बसी हुई है. ऐसे इलाके में दोनों का अलग अलग कोई प्रभाव नहीं हो सकता, लेकिन मिलकर कुछ न कुछ तो कर ही सकते हैं.
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