हिंदुत्व की गंगा तो तेलंगाना में भी बह रही है, लेकिन दिशा उलटी है!
तेलंगाना चुनाव (Hindutva Politics in Telangana) में तो लगता है जैसे सारे ही राजनीतिक दलों ने अपनी पॉलिटिकल लाइन से यू-टर्न ले लिया है - बीजेपी (BJP) मुस्लिम वोटर को रिझा रही है, तो कांग्रेस (Congress) हर विधानसभा क्षेत्र में राम मंदिर बनवाने का ऐलान कर चुकी है.
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कर्नाटक में पहले विधानसभा के चुनाव होने हैं, और तेलंगाना (Hindutva Politics in Telangana) में साल के आखिर में, लेकिन राजनीति से पहले धर्मयुद्ध शुरू हो चुका है. हालांकि, ये धर्मगुरुओं के बीच नहीं बल्कि नेताओं के बीच चल रहा है - कर्नाटक में भी और तेलंगाना में भी.
तेलंगाना में तो जैसे उलटी गंगा बह रही है. हां, कर्नाटक में वैसा ही माहौल है जैसा चुनावों से पहले पूरे देश में देखने को मिलता है - कर्नाटक में टीपू सुल्तान पर वैसे ही राजनीति होती रही है, जैसे महाराष्ट्र में सावरकर को लेकर बवाल मचा हुआ था.
टीपू सुल्तान विवाद को बनाये रखने के लिए बीजेपी (BJP) हनुमान को मुकाबले में खड़ा कर चुकी है. हनुमान पर राजनीति तो आप पहले भी देख ही चुके हैं. चुनाव जीतने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हनुमान जी को थैंक्यू बोलते हैं. चुनावों के दौरान हनुमान चालीसा पढ़ते हैं - जबकि चुनावों में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हनुमान को दलित तक बता डालते हैं.
तेलंगाना चुनाव से काफी पहले ही मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव हनुमान के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर चुके हैं. हनुमान जी के एक मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए कह चुके हैं कि पैसे की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी - और बीजेपी पूछ रही है कि कर्नाटक में लोगों को हनुमान भक्तों की जरूरत है या टीपू के वंशजों की?
कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष नलिन कुमार कतील लोगों को समझाते हैं, 'हम भगवान राम... हनुमान जी के भक्त हैं... हम हनुमान जी की प्रार्थना और पूजा करते हैं... और हम टीपू के वंशज नहीं हैं... आइये टीपू के वंशजों को घर वापस भेजें.'
अचानक बीजेपी नेता को जोश आ जाता है. कहने लगते हैं, 'मैं यहां के लोगों से पूछता हूं कि क्या आप भगवान हनुमान की पूजा करते हैं या टीपू की? फिर क्या आप उन लोगों को जंगल भेजेंगे जो टीपू के कट्टर अनुयायी हैं?'
और फिर मौके पर ही चुनौती भी दे डालते हैं, 'मैं एक चैलेंज देता हूं... जो लोग टीपू के कट्टर अनुयायी हैं, उन्हें इस उपजाऊ धरती पर जीवित नहीं रहना चाहिये.'
लेकिन कर्नाटक की बीजेपी सरकार के एक मंत्री तो और भी ज्यादा आगे बढ़ जाते हैं और कांग्रेस (Congress) नेता सिद्धारमैया को खत्म करने तक की बात बोल जाते हैं. मांड्या की एक सार्वजनिक सभा को संबोधित में उच्च शिक्षा मंत्री सीएन अश्वथ नारायण कहते हैं, "आप टीपू चाहते हैं या सावरकर? हम इस टीपू सुल्तान को कहां भेजें? निंजे गौड़ा ने क्या किया? आपको उन्हें उसी तरह खत्म करना चाहिये.'
पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अश्वथ नारायण पर उनको मारने के लिए लोगों को उकसाने की कोशिश का आरोप लगाया है और मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई से गुजारिश की है कि वो अपने मंत्री को फौरन बर्खास्त करें. अश्वथ नारायण अब मुकर रहे हैं. कह रहे हैं कि उनकी बातों को गलत तरीके से लिया गया. बीजेपी के मंत्री का कहना है कि खत्म करने से उनका आशय चुनावी तरीके से खत्म करने से रहा.
हिंदुत्व को लेकर कांग्रेस और बीजेपी की ये लड़ाई तो हर चुनाव में देखने को मिलती ही है. त्रिपुरा चुनाव से पहले जब अमित शाह बीजेपी के अभियान की शुरुआत की तो राहुल गांधी को संबोधित करते हुए अयोध्या में राम मंदिर बन जाने की तारीख भी बता दी थी - और तेलंगाना में देखें तो पाते हैं कि राहुल गांधी के ही फेवरेट नेता रेवंत रेड्डी हिंदुत्व की उलटी गंगा बहाने की कोशिश कर रहे हैं.
तेलंगाना कांग्रेस अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने ऐलान किया है कि अगर उनकी पार्टी चुनाव जीत कर सत्ता में आयी तो 100 विधानसभा क्षेत्रों में राम मंदिर बनवाएगी - अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर कांग्रेस हमेशा ही बीजेपी के निशाने पर रही है, लेकिन तेलंगाना में तो कांग्रेस बीजेपी का वोट बैंक ही हड़प लेना चाहती है.
कांग्रेस का मंदिर एजेंडा
तेलंगाना में चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की शुरू से ही कोशिश हो रही है. बीजेपी अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी आयोजित करने से लेकर लगातार तेलंगाना पर काम कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को परिवारवाद की राजनीति पर घेरते रहे हैं, और केसीआर अपनी पार्टी का नाम टीआरएस से बदल कर बीआरएस करने के बाद दिल्ली पर चढ़ाई की तैयारी कर रहे हैं. मकसद कुल मिलाकर सत्ता पर कब्जा बरकरार रखने का है.
उपचुनावों में तो न कांग्रेस चल पायी, न ही बीजेपी - तेलंगाना चुनाव में हिंदुत्व का एजेंडा क्या रंग दिखाने वाला है?
और कांग्रेस भी अपनी तरफ से काफी कोशिश कर रही है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस की 'हाथ से हाथ जोड़ो' शुरू करते हुए कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी ने तो ऐसा दावा कर डाला है कि बीजेपी भी उसकी काट खोजने के लिए परेशान हो रही होगी.
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर कांग्रेस हमेशा ही बीजेपी नेतृत्व के निशाने पर रही है. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह तमाम चुनावी रैलियों में किस्से सुनाते रहे हैं कि कैसे कांग्रेस ने मंदिर निर्माण में रोड़े अटकाने की कोशिश की थी. त्रिपुरा की धरती से राम मंदिर निर्माण पूरा होने की तारीख राहुल गांधी का नाम लेकर बताने के पीछे अमित शाह का मकसद भी वही रहा.
लेकिन रेवंत रेड्डी ने राहुल गांधी की तरफ से अमित शाह को जवाब देने का फैसला पहले ही कर लिया है - ये भी जान लेना चाहिये कि जिस नेता ने ऐसी पहल की है, उसकी पृष्ठभूमि भी संघ और बीजेपी की रही है. रेवंत रेड्डी कभी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में हुआ करते थे, जिसके अभियानों की झलक अक्सर जेएनयू और कई विश्वविद्यालयों में देखने को मिलती रहती है.
बीजेपी की मुश्किल ये है कि कांग्रेस की तरफ से हिंदुत्व कार्ड वही नेता खेल रहा है जिसकी शुरुआती ट्रेनिंग संघ और बीजेपी की छत्रछाया में हो रखी है - रेवंत रेड्डी. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से कांग्रेस में लाने के बाद राहुल गांधी ने रेवंत रेड्डी को तेलंगाना की कमान सौंप दी थी. रेवंत रेड्डी को तेलंगाना कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने का स्थानीय स्तर पर काफी विरोध भी हुआ. बिलकुल वैसे ही जैसे महाराष्ट्र में नाना पटोले को लेकर अब भी हो रहा है. कांग्रेस में आने से पहले नाना पटोले बीजेपी के सांसद हुआ करते थे.
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी सभी के धार्मिक स्थलों पर जाते रहे, लेकिन तेलंगाना में 'हाथ से हाथ जोड़ो' अभियान की शुरुआत रेवंत रेड्डी ने भद्राचलम में सीता राम मंदिर से की - और वहीं से कांग्रेस का हिंदुत्व कार्ड भी खेल दिया.
कांग्रेस की मुहिम शुरू करते हुए रेवंत रेड्डी ने कहा, 'जैसे भद्राचलम में राम मंदिर बनाया गया था... हमारी पार्टी के नेताओं ने मुझसे कहा कि पूरे 100 विधानसभा क्षेत्रों में राम मंदिर होना चाहिये.' तेलंगाना में 119 विधानसभा क्षेत्र हैं.
कांग्रेस नेता ने बताया कि अगर उनकी सरकार बनी तो हर विधानसभा क्षेत्र में 10 करोड़ की लागत से राम मंदिर बनाने पर विचार करेगी. बोले, 'हम इस पहल पर एक हजार करोड़ रुपये खर्च करने पर विचार करेंगे.'
अब तक तो कांग्रेस में सॉफ्ट हिंदुत्व के प्रयोग ही देखे जाते रहे, ये पहली बार है कि किसी कांग्रेस नेता ने मंदिर के एजेंडे पर खुल कर बात आगे बढ़ायी है. राहुल गांधी को कांग्रेस ने जनेऊधारी हिंदू और शिवभक्त तक के रूप में पेश किया, लेकिन कभी कोई राम मंदिर बनवाने की ऐसी पहल नहीं देखी गयी.
राहुल गांधी यूपी विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे के खिलाफ बहुत कुछ बोले थे. यहां तक की महंगाई पर बुलायी गयी कांग्रेस की रैली में भी हिंदुत्व और हिंदुवादियों का फर्क समझाते हुए संघ, बीजेपी और मोदी-शाह को टारगेट करते रहे, लेकिन जो पासा रेवंत रेड्डी ने तेलंगाना में फेंका है कहीं नहीं देखने को मिला है.
रेवंत रेड्डी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी निशाने पर लेते हुए समाज को धार्मिक आधार पर बांटने का इल्जाम लगाया है, और दावा किया है कि उनकी नेता सोनिया गांधी ने समाज को एक रखने की कोशिश की है. ध्यान रहे भारत जोड़ो यात्रा की बुनियाद ही कांग्रेस ने संघ और बीजेपी पर नफरत फैलाने के आरोपों के साये में की थी.
केसीआर भी केजरीवाल की राह पर
हनुमान चालीसा पढ़ते पढ़ते दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गुजरात पहुंच कर नोटों की कीमत बढ़ाने के लिए लक्ष्मी और गणेश की तस्वीरें छापने के सुझाव देने लगे - अयोध्या जाकर तो वो जय श्रीराम बोल ही चुके हैं - और धीरे धीरे अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं.
हाल फिलहाल केसीआर और केजरीवाल को काफी करीब आते महसूस किया जा रहा है. केजरीवाल के साथ दिल्ली से पंजाब तक की यात्रा करने के बाद केसीआर आम आदमी पार्टी के नेता को हैदराबाद बुलाकर रैली भी करा चुके हैं - और लगता है उसका असर भी होने लगा है.
ऐसा लगता है केजरीवाल ने केसीआर को भी हनुमान भक्त बना दिया है, तभी तो वो कोंडागट्टू के आंजनेय स्वामी मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए एक हजार करोड़ रुपये का पैकेज देने की घोषणा कर चुके हैं.
हाल ही में कोंडागट्टू पहुंचे केसीआर ने विशेष तौर पर पूजा अर्चना की और मंदिर के आस पास के इलाकों का पैदल चल कर ही निरीक्षण भी किया. केसीआर के साथ उनके कई साथी नेता और अधिकारी भी रहे.
अधिकारियों को हिदायत देते हुए केसीआर ने कहा कि 750-800 एकड़ में मंदिर का विस्तार और विकास किया जाना चाहिये. साथ ही, अफसरों को हिदायत दी कि एक ऐसा हाल बनाया जाना चाहिये जहां एक साथ 50 हजार लोग आ सकें - और पूजा कर सकें.
और बीजेपी का मुस्लिम कार्ड!
वैसे तो बीजेपी हैदराबाद का नाम बदल कर भाग्यनगर कर देने की पक्षधर है, लेकिन तेलंगाना में मुस्लिम वोटर पर कुछ ज्यादा ही मेहरबानी दिखा रही है. आपको याद होगा कि हैदराबाद में बीजेपी की कार्यकारिणी से खबर आयी थी कि प्रधानमंत्री मोदी ने नेताओं और कार्यकर्ताओं को पसमांदा मुसलमानों तक पहुंच बनाने की सलाह दी थी. और तभी से बीजेपी ऐसे कार्यक्रम भी चला रही है.
दाऊदी बोहरा समुदाय के बीच हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी को देखा जाना उसी राजनीतिक पहल का हिस्सा रहा है, लेकिन क्या तेलंगाना को लेकर क्या बीजेपी अपना हिंदुत्व एजेंडा खूंटी पर टांग चुकी है. जैसे 2019 के आम चुनाव से पहले राम मंदिर एजेंडे को होल्ड कर लिया था.
कांग्रेस की राम मंदिर बनाने की पहल और केसीआर के हनुमान मंदिर प्रोजेक्ट से बेपरवाह, बीजेपी तेलंगाना में हैंडलूम के कारीगरों पर कहीं ज्यादा मेहरबान नजर आ रही है. तेलंगाना में हैंडलूम के काम में लगे बुनकरों की अच्छी तादाद है - और बीजेपी की नजर ऐसे बुनकरों पर ही है. ये बुनकर ज्यादातर मुस्लिम समुदाय से हैं.
बीजेपी के तेलंगाना अध्यक्ष बंदी संजय कुमार ने घोषणा की है कि अगर तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आयी तो सरकार सारे ही हैंडलूम प्रोडक्ट खरीद लेगी. बीजेपी नेता ने जियो-टैगिंग की सुविधा के साथ ही बुनकरों को दो बेडरुम वाले घर भी देने का वादा किया है - और मौजूदा सरकार से जल्द से जल्द पूरे प्रदेश में हैंडलूम बुनकर कोआपरेटिव सोसाइटी का चुनाव कराने की भी मांग की है.
निश्चित तौर पर तेलंगाना में कांग्रेस की कोशिश बीजेपी का एजेंडा हथियाने की कोशिश एक प्रयोग जैसा है. जैसे यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी ने महिला कार्ड खेला था. यूपी चुनाव से पहले ये भी देखा गया कि कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद अखिलेश यादव और मायावती के बीच उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में परशुराम की मूर्ति बनवाने की होड़ मची रही, लेकिन जब चुनाव हो रहे थे तो किसी के मुंह से भी वैसी बातें तक सुनने को नहीं मिलीं.
गुजरात और कर्नाटक में राहुल गांधी हिंदुत्व पर खूब प्रयोग कर चुके हैं, लेकिन फिर कुछ ऐसा कर देते हैं कि सारे किये कराये पर पानी फिर जाता है. 2018 के चुनाव में कर्नाटक के मठों और मंदिरों का भ्रमण करते करते राहुल गांधी ने एक दिन ये दावा भी कर डाला था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिंदुत्व का कोई ज्ञान ही नहीं है.
तेलंगाना में तो ऐसा लग रहा है जैसे सभी राजनीतिक दल अपनी असली पॉलिटिकल लाइन से अलग जाकर हिंदुत्व के राजनीतिक प्रयोग कर रहे हैं - सवाल ये है कि ये प्रयोग तेलंगाना तक ही सीमित रहेगा या धर्म के प्रति विचारधारा से समझौते का जो संकेत मिल रहा है, आगे भी देखने को मिलेगा?
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