गुरदासपुर में कांग्रेस ने बीजेपी को शिकस्त जरूर दी है, लेकिन क्रेडिट के हकदार राहुल नहीं
गुरदासपुर में कांग्रेस की जीत का श्रेय पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को मिलना चाहिये जो सरकार बनाने के छह महीने बाद तक असर बरकरार रखे हुए हैं.
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गुरदासपुर में कांग्रेस की जीत भी वैसी ही है जैसी गुजरात में अहमद पटेल की रही. हिमाचल प्रदेश और उसके बाद गुजरात चुनाव में भी कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा. गुरदासपुर में करीब दो लाख के अंतर से सुनील जाखड़ की जीत से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह तो बढ़ेगा ही. फिर भी गुरदासपुर और गुजरात राज्य सभा चुनाव में बहुत फर्क है.
राहुल, सोनिया को दिवाली गिफ्ट
पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने गुरदासपुर में कांग्रेस उम्मीदवार सुनील जाखड़ की जीत को राहुल गांधी के लिए दिवाली गिफ्ट बताया है. रिजल्ट आने के बाद सिद्धू ने मीडिया से कहा, ‘‘हम लोगों ने पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लाल रिबन में पैक करके दिवाली का उपहार भेंट किया है, क्योंकि यह आगे की राह तय करेगा…’’
ये कांग्रेस का जोश बढ़ाने वाली जीत है
सिद्धू ठीक कह रहे हैं. यहां तक तो ठीक है कि ये राहुल गांधी के लिए दिवाली गिफ्ट है, लेकिन इसका क्रेडिट उन्हें नहीं मिल सकता. इस जीत का क्रेडिट पूरी तरह पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को मिलना चाहिये जो सरकार बनाने के छह महीने बाद तक अपना वही असर बरकरार रखे हुए हैं. वैसे पंजाब विधानसभा के लिए राहुल गांधी ने प्रचार जरूर किया था लेकिन वो जीत भी कांग्रेस को कैप्टन अमरिंदर सिंह के चलते ही हासिल हो पायी.
जीत में सुनील जाखड़ की भूमिका
सुनील जाखड़ को विधानसभा चुनाव के बाद मई में ही पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था. चुनावों से पहले प्रताप सिंह बाजवा को हटाकर कैप्टन अमरिंदर को कांग्रेस की कमान सौंपी गयी. बाजवा राहुल गांधी की पंसद थे, लेकिन कैप्टन के अड़ जाने और बात नहीं मानी जाने पर पार्टी टूटने के खतरे से आलाकमान को उनकी मांग पूरी करनी पड़ी.
वैसे ये प्रताप सिंह बाजवा ही थे जिन्होंने तीन बार से सांसद विनोद खन्ना को 2009 में हराकर गुरदासपुर सीट जीती थी. लेकिन 2014 में विनोद खन्ना ने बाजवा को करीब सवा लाख वोटों से हराकर सीट अपने नाम कर ली. विनोद खन्ना के निधन के कारण ही इस सीट पर उपचुनाव हुआ था.
बीजेपी की हार क्यों?
बीजेपी की हार के वैसे तो कई कारण माने जा रहे हैं, लेकिन आलाकमान का खास रुचि न लेना और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का भी दूरी बनाये रखना भी कारणों में शामिल है. वैसे बादल के बारे में कहा गया कि सेहत साथ न देने के चलते वो चुनाव प्रचार नहीं कर सके. लेकिन ये सब छोटी वजहें मानी जा सकती हैं.
बड़ी वजहों में से एक रही खुद बीजेपी उम्मीदवार स्वर्ण सिंह सलारिया की छवि. बलात्कार का आरोप लगने के बाद उनकी स्थिति वैसे ही कमजोर हो गयी थी. हालांकि, सलारिया ने आरोप को गलत बताया था. बावजूद इसके साफ सुथरी छवि वाले सुनील जाखड़ के सामने उन्हें इसका ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा. ऊपर से अकाली नेता सुच्चा सिंह पर लगे रेप के आरोप ने बाकी बची कसर पूरी कर दी.
गुरदासपुर अरसे से बीजेपी का गढ़ रहा है, लेकिन विधानसभा के नतीजों ने साफ कर दिया कि हवा का रुख बदलने लगा है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी 23 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और महज तीन सीटें जीत पायी. दूसरी तरफ कांग्रेस ने गुरदासपुर की नौ में सात सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमा लिया. गुरदासपुर उपचुनाव में 56 फीसदी वोट पड़े थे और सबसे बुरी खबर आम आदमी पार्टी के लिए जिसे तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा है.
63 साल के सुनील जाखड़ पूर्व लोक सभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के बेटे हैं. बलराम जाखड़ का 2016 में 92 साल की आयु में निधन हो गया था. सुनील जाखड़ पहली बार 2002 में पंजाब के अबोहर क्षेत्र से विधानसभा के लिए चुने गए थे. 2007 और 2017 में भी उन्होंने इसी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े और जीत दर्ज की.
इस जीत का एक पक्ष ये भी है कि लोक सभा में कांग्रेस एक नंबर बढ़ गया है. जाहिर है बीजेपी का एक नंबर कम हो गया है जो अकेले उतना फर्क नहीं डालता जितने उसके दूरगामी असर हो सकते हैं. कांग्रेस की जीत में बीजेपी के उम्मीदवार की छवि के अलावा मोदी सरकार की किसानों के खिलाफ नीतियों और जीएसटी से व्यापारी तबके की नाराजगी भी हो सकती है.
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