राहुल के सिर पर कांग्रेस अध्यक्ष का ताज कांटो भरा ही होगा
राहुल गांधी पार्टी की कमान ऐसे समय में संभाल रहे हैं जब अपने 132 सालों के इतिहास में पार्टी सबसे खास्ता हाल में है. जिस पार्टी ने देश पर पांच दशकों तक राज किया है आज लोकसभा में उसकी उपस्थिति सिर्फ 44 सीटों तक सिमट कर रह गई है.
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राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाएगा. ये ऐसा ही रहस्योद्घाटन है जैसे सूरज से रेडियोएक्टिव किरणें धरती पर आती हैं और ओजोन की परत सीएफसी के कारण खतरे में है! खैर 2014 के लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद से ही कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के माथे पर पार्टी अध्यक्ष का सेहरा बांधने की तैयारी में लगी थी. लेकिन हमेशा किसी ट्विस्ट और टर्न के साथ राहुल का पार्टी अध्यक्ष बनना टलता रहता.
लेकिन अब सारी अफवाहों को विराम मिल सकता है क्योंकि कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव कार्यक्रम को फाइनल करने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है. ये लगभग तय माना जा रहा है कि राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी की जगह पार्टी का अध्यक्ष पद संभालेंगे. फिलहाल पार्टी अपने संगठनात्मक चुनावों को पूरा करने की प्रक्रिया में व्यस्त है और सभी राज्य इकाइयों को 10 अक्टूबर तक की समय सीमा दे दी गई है. इस समय तक प्रदेश कांग्रेस समिति (पीसीसी) के सदस्यों का चुनाव करना है. इसके पूरा हो जाने के बाद पार्टी अध्यक्ष चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की जाएगी. पार्टी के अंदर से संकेत मिल रहे हैं कि अगर पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होता है तो वो इस महीने के अंत या फिर नवंबर की शुरुआत में होगा.
पार्टी संविधान के मुताबिक अध्यक्ष के चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा पार्टी की केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण करेगी. ये घोषणा 10,000 पीसीसी सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही की जाएगी जिसके 10 अक्टूबर तक होने की संभावना है. अगर राहुल गांधी के खिलाफ कोई पार्टी सदस्य अध्यक्ष पद के लिए खड़ा होता तो यही पीसीसी मेंबर पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव करेंगे.
कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी को कांग्रेस कार्यसमिति ने ही बाहर का रास्ता दिखाया था और उनकी जगह सोनिया गांधी की ताजपोशी हुई थी. हालांकि 2001 में हुए संगठनात्मक चुनावों में जितेंद्र प्रसाद ने अध्यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. लेकिन इसमें उन्हें बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था. अबतक मिल रही खबरों से ये माना जा रहा है कि राहुल गांधी निर्विरोध पार्टी के अध्यक्ष चुने जाएंगे और अपनी मां की जगह लेंगे.
क्या पार्टी के गिरते जनाधार को राहलु संभाल पाएंगे?
संभवत राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी में पावर के दो केंद्र नहीं रहेंगे. सोनिया गांधी पिछले 19 सालों से पार्टी की अध्यक्ष हैं. पार्टी के अंदर कहा जाता है कि सोनिया की कद्दावर छवि के कारण राहुल गांधी में न तो निर्णय लेने का आत्मविश्वास आ पा रहा है और न ही वो अपने मन-मुताबिक बदलाव करने के लिए ही स्वतंत्र हैं.
राहुल गांधी के साथियों का मानना है कि पार्टी की औपचारिक कमान हाथ में आ जाने के बाद राहुल गांधी में आत्मविश्वास के साथ-साथ वो पार्टी में जिन बदलावों की बात करते थे उसे लागू कराने की ताकत आ जाएगी. इसके साथ ही राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने से पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं और महिलाओं में भी नई जान आ जाएगी. अभी पार्टी के युवा कार्यकर्ता और महिलाएं निर्णय लेने की प्रक्रिया से अपने आप को दूर पाते हैं.
राहुल गांधी पार्टी की कमान ऐसे समय में संभाल रहे हैं जब अपने 132 सालों के इतिहास में पार्टी सबसे खास्ता हाल में है. जिस पार्टी ने देश पर पांच दशकों तक राज किया है आज लोकसभा में उसकी उपस्थिति सिर्फ 44 सीटों तक सिमट कर रह गई है. राजनीतिक तौर पर पार्टी का आधार खिसकता ही जा रहा है. आज के समय में पार्टी की सरकार सिर्फ 5 राज्यों में है, जबकि भाजपा की सरकार 14 राज्यों में.
जिस पार्टी की मजबूती कभी उत्तर भारत का हिंदी बेल्ट हुआ करता था वहां उनकी हालत बद से बदतर हो गई है. यूपी में कांग्रेस 1989 से सत्ता से बाहर है. वहीं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले 15 सालों से वो सरकार बनाने का इंतजार ही कर रही है. इसी तरह आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में भी अपना आधार पाने की कोशिश में लगी हुई है.
अध्यक्ष पद संभालने के बाद से राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी की हार का सिलसिला बंद करने का होगा. इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होंगे और राहुल गांधी के सामने यहां जीतने की बड़ी चुनौती है. हिमाचल में पांच साल राज करने के बाद अब कांग्रेस को अपनी जड़ें बचाने की नौबत आ गई है. दूसरी तरफ गुजरात में मोदी-शाह की जोड़ी को उनके ही गढ़ में मात देना एवरेस्ट चढ़ने के बराबर है.
पार्टी के अंदर भी राहुल गांधी को जान फूंकनी होगी. उन्हें ये समझना होगा कि सिर्फ उनके अध्यक्ष बनने से चीजें नहीं बदलेंगी, बल्कि उन्हें पार्टी में सचमुच पॉजीटिव बदलाव लाने होंगे. और ये बदलाव लाने के लिए काम भी करना होगा. पार्टी में नए चेहरों को लाना होगा. साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होगा कि उन लोगों का जनता से संपर्क भी बहुत अच्छा हो.
और अंत में राहुल गांधी को ये भी सीखना होगा कि पार्टी के वफादार लोगों, चाहे स्त्री हों या पुरूष, चाहे युवा हों या वरिष्ठ उनका सही इस्तेमाल कैसे करें.
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