कांग्रेस की ये इफ्तार पार्टी धार्मिक कम सियासी ज्यादा है
इस बार की इफ्तार पार्टी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं. और हर राजनैतिक दल अल्पसंख्यकों के वोट पाने के खातिर इफ्तार पार्टी देकर ये दिखाने में लगे हैं कि वो ही उनके सच्चे शुभ-चिंतक हैं.
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बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी के अल्पसंख्यक विभाग के द्वारा कांग्रेस दो साल बाद 13 जून यानी बुधवार को इफ़्तार पार्टी दे रही है. लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की इस इफ़्तार पार्टी की चर्चा सियासी गलियारों में तेज है. और खासकर जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जिस तरह से संघ के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गए उसके बाद शुरू में उन्हें इफ्तार पार्टी में आमंत्रित नहीं किया गया लेकिन मीडिया में खबर आने के बाद कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पार्टी की ओर से सफाई देते हुए कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रणब मुखर्जी को निमंत्रण दिया था और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है. दिल्ली के ताज होटल में होने वाले इस इफ्तार में विपक्ष के बड़े-बड़े चेहरों को भी आमंत्रित किया गया है. यानी इफ्तार पार्टी धार्मिक से ज़्यादा राजनैतिक आयोजन.
दो साल के बाद कांग्रेस दे रही है इफ्तार पार्टी
लेकिन अहम सवाल ये कि हमारे देश में राजनैतिक नेताओं द्वारा ये आयोजित इफ्तार पार्टियां क्या हिंदुओं और मुसलमानों के बीच किसी भी भावनात्मक एकता को मजबूत कर पाती हैं? ये पार्टियां पांच सितारा होटलों या भव्य स्थानों के बजाए गरीब मुसलमानों के घर पर क्यों नहीं आयोजित की जातीं? अगर नेतागण मुस्लिमों के लिए इतने ही चिंतित रहते हैं तो इफ्तार का ही इंतजार क्यों? इफ्तार का आयोजन तो भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय से ही मनाया जा रहा है लेकिन इन मुस्लिम भाइयों की स्थिति में सुधार क्यों नहीं हुआ?
दो सालों के बाद कांग्रेस की इफ्तार पार्टी
कांग्रेस दो सालों से इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं कर रही थी. कारण माना गया 'मुस्लिम-परस्त' छवि से निकलने के लिए रणनीति के तहत. खासकर जब से 2014 के लोकसभा के चुनावों में हार के बाद बनी अंटोनी समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि हार के लिए ज़िम्मेदार पार्टी से ज्यादा अल्पसंख्यकवाद की वजह से हुई थी. बताया जा रहा है कि इस बार भी इफ्तार पार्टी का आयोजन कांग्रेस अध्यक्ष की तरफ से नहीं बल्कि पार्टी के अल्पसंख्यक विभाग की तरफ से किया जा रहा है.
हमारे देश में राजनीतिक पार्टियां इफ्तार पार्टियों का आयोजन करके खुद के लिए धर्मनिरपेक्ष होने का सर्टिफिकेट हासिल करना चाहते हैं. इस बार की इफ्तार पार्टी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं. और हर राजनैतिक दल अल्पसंख्यकों के वोट पाने के खातिर इफ्तार पार्टी देकर ये दिखाने में लगे हैं कि वो ही उनके सच्चे शुभ-चिंतक हैं. इसी क्रम में कांग्रेस की इफ्तार पार्टी से पहले बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) और आरजेडी, दिल्ली में केजरीवाल तो मुंबई में भाजपा ने इफ्तार पार्टियों का आयोजन कर चुके हैं.
इस प्रकार से कह सकते हैं कि राजनीति का इफ्तार से गहरा संबंध है तथा इफ्तार पार्टियां सभी दलों का एक सियासी औजार बनकर रह गई हैं. भाजपा हमेशा से ही कांग्रेस पर तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है लेकिन इस बार उसने भी मुंबई में इफ्तार पार्टी का आयोजन किया. शायद वो भी सेक्युलर छवि बनाने के मूड में है. वहीं कांग्रेस भाजपा को मुस्लिम विरोधी होने का डर दिखाकर अल्पसंख्यकों के वोट हासिल करती रही है.
इस बार कांग्रेस की इस इफ्तार पार्टी का भी मक़सद साफ है- केवल और केवल राजनैतिक. अब चूंकि इस इफ्तार में जिस तरह विपक्ष के बड़े-बड़े दिग्गज नेता भाग ले रहे हैं उससे परिदृश्य साफ है कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ये मुस्लिम समाज तक संदेश पहुंचाने की कवायद है कि ये लोग ही उसके असली शुभ-चिंतक हैं ना की भाजपा. आखिर हो भी क्यों नहीं, लोकसभा के 543 में से लगभग 40 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 21 से 30 फीसदी तक है. ऐसे में हर राजनीतिक पार्टी मुस्लिमों को अपने पक्ष में करने के लिए इफ्तार के पावन पर्व को भुनाने की कोशिश करती रही है.
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