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Updated: 18 जनवरी, 2018 04:30 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों - मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा के लिए विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी है. बीजेपी तो इन राज्यों में चुनाव की तैयारियों में बहुत पहले से ही जुटी है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व की ओर से अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला. इन तीन राज्यों में चुनाव फरवरी में होने हैं, लेकिन कांग्रेस का फोकस कर्नाटक पर है जहां चुनाव की संभावना मई में है.

ऐसा क्यों लगता है जैसे मेघालय में भी राहुल गांधी की उतनी ही दिलचस्पी है जितनी हिमाचल प्रदेश में देखने को मिली थी. एक साथ हुए दो राज्यों में चुनाव के बावजूद राहुल का जोर गुजरात पर ही ज्यादा नजर आया. राजनीति की दृष्टि से कांग्रेस मेघालय की अहमियत जो भी समझ रही हो, नंबर के हिसाब से तो मेघालय भी उतना ही महत्वपूर्ण है.

तारीख तो आ गयी

नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों में दो फेज में चुनाव होंगे. चुनाव आयोग के मुताबिक त्रिपुरा में 18 फरवरी को जबकि मेघालय और नगालैंड में 27 फरवरी को वोटिंग होगी. सभी राज्यों के वोटों की गिनती 3 मार्च को होगी और नतीजे भी साथ ही आएंगे. 2013 में त्रिपुरा में 14 फरवरी को जबकि मेघालय और नगालैंड में 23 फरवरी को वोट डाले गए थे - और नतीजे 28 फरवरी को आये थे.

तीनों ही राज्यों में विधानसभा की 60-60 सीटें हैं जहां चुनाव होंगे और सभी राजनीतिक कार्यक्रमों की चुनाव आयोग वीडियोग्राफी कराएगा. तारीखों के ऐलान के साथ ही तीनों ही चुनाव आचार संहिता लागू हो गयी.

modi, shahनजर 2019 पर...

मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि चुनावों में EVM के साथ VVPAT का भी इस्तेमाल किया जाएगा - और उम्मीदवारों ईवीएम चेक करने का भी मौका मिलेगा, बशर्ते ऐसा वे चाहते हों.

कुछ समय से आशंका जतायी जा रही है कि सीमापार से उग्रवादी नगालैंड चुनाव में हिंसक घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं - और यही वजह है कि वहां विधानसभा चुनाव टालने की मांग की जा रही थी. चुनाव आयोग ने 1643 किलोमीटर लंबी भारत-म्यांमार सीमा पर गश्त बढ़ाने को कहा है - साथ ही, बॉर्डर चेकपोस्ट पर भी सीसीटीवी कैमरे लगाये जाने की बात कही है.

नॉर्थ ईस्ट में पहले असम और फिर मणिपुर की सत्ता पर काबिज होने के बाद बीजेपी अब मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में भी वही कहानियां दोहराना चाहती है. चाहे मेघालय असम की तरह हो या फिर त्रिपुरा और नगालैंड मिजोरम की तरह.

मेघालय : मेघालय में कांग्रेस का शासन है और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मुकुल डी संगमा बैठे हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस को 60 में से 29 सीटों पर जीत मिली थी.

नगालैंड : नगालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट की सरकार है और मुख्यमंत्री शुरहोजेली लीजीत्सु हैं. इस सरकार को बीजेपी का समर्थन हासिल है. 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां नगा पीपुल्स फ्रंट को 38 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

त्रिपुरा : त्रिपुरा में लेफ्ट की सरकार है जहां दो दशक से माणिक सरकार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कुंडली मार कर बैठे हुए हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में सीपीएम ने त्रिपुरा की 49 सीटों पर जीत हासिल की थी. सीपीआई के खाते में महज 1 सीट आई जबकि अलावा कांग्रेस को यहां 10 सीटों पर कब्जा जमा लिया. ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि किसी भी राज्य में सीपीएम और बीजेपी में सीधी टक्कर में आमने सामने हैं - और त्रिपुरा इसका गवाह बनने जा रहा है.

त्रिपुरा में बीजेपी का ट्रंप कार्ड और यूपी कनेक्शन

वैसे बीजेपी की चुनावी तैयारियों को लेकर हाल में एक विवाद भी सामने आया. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के कथि‍त रूप से बीजेपी की एक चुनाव रणनीति की बैठक में शामिल होने को सीपीएम ने 'स्तब्ध' करने वाली खबर बताया - और गृह मंत्री राजनाथ सिंह से जवाब मांगा है.

वोटिंग की तारीखों के ऐलान से बहुत पहले से ही बीजेपी तैयारियों में जुट गयी थी - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के अलावा अमित शाह भी अपनी पूरी टीम के साथ दौरा कर आये. बीजेपी ने अपने चुनाव अभियान में तेजी लाने के मकसद से 31 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी की दो रैलियां आयोजित करने वाली है.

फिलहाल त्रिपुरा विधानसभा में बीजेपी का जीरो बैलेंस है लेकिन बीजेपी नेताओं का मानना है कि पिछले चुनाव में ऐसी 30 सीटें देखी गयीं जहां लेफ्ट उम्मीदवारों की जीत का फासला तीन हजार से भी कम रहा. बीजेपी को भरोसा है कि इस बार वो ऐसी सारी सीटें अपनी झोली में बटोर सकती है.

त्रिपुरा के लिए बीजेपी ने हिमंत बिस्व सरमा को प्रभारी बनाया है, जिन्हें असम में बीजेपी की सरकार बनवाने का क्रेडिट हासिल है. त्रिपुरा में बीजेपी की नजर हिंदू वोटबैंक पर टिकी है - खासकर नाथ संप्रदाय को मानने वाले वोटरों पर. त्रिपुरा में तकरीबन 35 फीसदी आबादी नाथ संप्रदाय से है.

त्रिपुरा के लिए बीजेपी के पास एक ट्रंप कार्ड है जिसका नाम है - योगी आदित्यनाथ. अब अगर मन में ये सवाल हो सकता है कि यूपी के सीएम त्रिपुरा में ट्रंप कार्ड कैसे हो सकते हैं?

yogi adityanathत्रि्पुरा में बीजेपी के ट्रंप कार्ड

दरअसल, योगी आदित्यनाथ पूरे देश में नाथ संप्रदाय के प्रमुख हैं. योगी को लेकर यहां के लोग खासे उत्साहित हैं. वैसे तो योगी आदित्यनाथ बीजेपी के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों में भी प्रचार कर चुके हैं लेकिन त्रिपुरा में वो बीजेपी के लिए सबसे बड़े स्टार साबित हो सकते हैं. योगी नाथ संप्रदाय की गोरक्षनाथ पीठ के महंथ हैं. त्रिपुरा में गोरक्षनाथ के दो मंदिर हैं, एक अगरतला में और दूसरा धर्मनगर में.

त्रिपुरा में इस संप्रदाय को मानने वाले ओबीसी कोटे में आते हैं, लेकिन उन्हें आरक्षण का फायदा नहीं अब तक नहीं मिल पाया है. एससी और एसटी को मिल रहे 48 फीसदी आरक्षण के कारण माणिक सरकार अब तक हाथ खड़े किये हुए हैं. यही वजह है कि आबादी के एक तिहाई लोगों को योगी आदित्यनाथ से कुछ ज्यादा ही उम्मीद जग चुकी है.

गुजरात के बाद कर्नाटक, बाकी सब?

अब तक कांग्रेस के रवैये को देखकर तो यही लगता है कि वो मेघालय को भी हिमाचल प्रदेश की ही तरह लेकर चल रही है. संभव है किसी दौरे में राहुल गांधी रैली के मंच से ऐलान करें कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री कैंडिडेट मुकुल डी शर्मा ही होंगे. ठीक वैसे ही जैसे हिमाचल की रैली में वीरभद्र सिंह का नाम लेते ही ताली बजी, लेकिन बाद में ऐसी कोई जरूरत ही नहीं रह गयी.

राहुल गांधी का जितना जोर कर्नाटक पर नजर आ रहा है, नॉर्थ ईस्ट को लेकर अभी वैसा कुछ नहीं दिखा है. कर्नाटक में चुनाव मई में होने की उम्मीद है और फरवरी में राहुल गांधी तीन दिन के कर्नाटक दौरे पर जाने वाले हैं.

rahul gandhiपहले गुजरात, अब कर्नाटक पर जोर...

कांग्रेस के लिए इन चुनावों को लेकर एनसीपी का फैसला भी बड़ा झटका है. यूपीए में शामिल एनसीपी ने पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों में अकेले चुनाव में उतरने का ऐलान किया है. एनसीपी महासचिव प्रफुल्ल पटेल ने बताया - 'पार्टी मेघालय की 60 में से 42 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करेगी.' एनसीपी ने छह उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने के साथ ही अपना चुनाव अभियान शुरू भी कर दिया है.

वैसे एनसीपी जैसा ही कदम जेडीयू ने भी उठाने का फैसला किया है. केंद्र में एनडीए और बिहार में बीजेपी के साथ सरकार में शामिल जेडीयू ने नगालैंड में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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