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Updated: 04 अगस्त, 2017 09:46 PM
खुशदीप सहगल
खुशदीप सहगल
  @khushdeepsehgal
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पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ़ को पनामा लीक मामले में कुनबे की कथित करतूतों को लेकर इस्तीफ़ा देना पड़ा. ऐसी नौबत क्यों आई? क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान ख़ान इन दिनों पाकिस्तान में विपक्ष के बड़े नेता हैं. इमरान ने शरीफ़ परिवार के कथित भ्रष्टाचार को लेकर लगातार दबाव बनाया हुआ था. साथ ही दूसरी विपक्षी पार्टियों को भी साथ में लामबंद कर रखा था. इस घेराबंदी के आगे घाघ राजनेता शरीफ़ को भी मात खानी पड़ी. आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट ने भी शरीफ़ को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य करार दे डाला.

पाकिस्तान को छोड़िए, दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका को लीजिए. अमेरिका में बीते साल हुए राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन डोनल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन के बीच मुकाबले में आखिर तक कोई दावे के साथ नहीं कह सकता था कि जीत किसके हाथ लगेगी. अधिकतर सर्वे हिलेरी क्लिंटन के राष्ट्रपति बनने की संभावना जता रहे थे. नतीजे आए तो सब उलट गया. तमाम नेगेटिव बातों के बावजूद ट्रम्प व्हाइट हाउस में काबिज होने में कामयाब रहे.

Congress, Mahatma Gandhiराजनीति बच्चों का खेल नहीं

अमेरिका के हाल-फिलहाल के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो वहां डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी, दोनों के बीच ही हमेशा दिलचस्प लड़ाई होती रही है. हिलेरी क्लिंटन-डोनाल्ड ट्रम्प मुकाबले को छोड़िए. 2000 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को याद कीजिए. तब डेमोक्रेट प्रत्याशी अल गोर लोकप्रिय वोट जीतने के बावजूद रिपब्लिकन जॉर्ज बुश से चुनाव हार गए थे. इस चुनाव में वोटों की गिनती कई दिन तक चलती रही थी. फ्लोरिडा प्रांत में वोटों की दोबारा गिनती पर क़ानूनी विवाद हुआ. अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने जॉर्ज बुश के हक़ में फैसला दिया. इस चुनाव को अमेरिकी इतिहास का सबसे विवादास्पद चुनाव माना जाता है.

यूं ही नहीं कहा जाता कि स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना अति आवश्यक होता है. विपक्ष ताकतवर रहे तो सत्ता पक्ष के निरंकुश होने की संभावना कम रहती है. दुर्भाग्य से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानि भारत में इस वक्त जो परिस्थितियां हैं, उसमें विपक्ष हाशिए में खिसकता जा रहा है. इसके लिए सत्ता पक्ष की ‘साम-दाम-दंड-भेद’ की नीतियों से कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार खुद विपक्ष का रवैया है. विपक्ष के गौण होने के लिए देश में अगर सबसे अधिक जिम्मेदार किसी पार्टी को ठहराया जा सकता है तो वो है ग्रैंड ओल्ड पार्टी यानि कांग्रेस.

Congress, Mahatma Gandhiकांग्रेस की नैया को अब बापू ही पार लगा सकते हैं

1984 लोकसभा चुनाव में 415 सीट जीतने वाली कांग्रेस 30 साल बाद 2014 में निचले सदन में महज 44 सीटों पर सिमट गई. आखिर ऐसा क्यों हुआ? होना तो ये चाहिए था कि कांग्रेस गहराई से आत्मावलोकन करती और जहां-जहां पार्टी संगठन में खामियां थीं, उन्हें दूर करती.

ऐसा नहीं कि कांग्रेस के पास जमीन से जुड़े नेता या कुशाग्र दिमाग नहीं हैं. ऐसा नहीं होता तो अमरिंदर सिंह पंजाब के कैप्टन नहीं बन पाते. या कपिल सिब्बल जैसे दिग्गज वकील जो अपने तर्कों से अब भी सुप्रीम कोर्ट में कई मुद्दों पर सरकार को बैकफुट पर जाने को मजबूर कर देते हैं. कांग्रेस की ओर से अपनी शाख पर खुद ही कुल्हाड़ी मारने की क्लासिक मिसाल 2012 में दी गई.

तब प्रणब मुखर्जी जैसे तमाम प्रशासनिक अनुभव वाले ‘संकट-मोचक’ नेता को राष्ट्रपति भवन भेज दिया गया. अब कांग्रेस के लिए ये दुर्योग ही है कि प्रणब दा के राजनीतिक पटल से अलग होते ही कांग्रेस की दुर्दशा का ऐसा दौर शुरू हुआ जो इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी की हार में भी नहीं देखा गया था. खैर इंदिरा गांधी तो तीन साल बाद ही फिर सत्ता में आ गई थीं. लेकिन क्या अब ऐसा हो पाएगा? इसका सीधा जवाब देने की स्थिति में कांग्रेस का कोई नेता भी नहीं है.

Congress, Mahatma Gandhi

पहले उत्तराखंड में, फिर गोवा में, मणिपुर में, अब गुजरात में कांग्रेस के विधायक पाला बदल कर बीजेपी का दामन थाम रहे हैं. तो ये किसका कसूर है? अहमद पटेल जैसे दिग्गज कांग्रेसी को गुजरात से राज्यसभा में पहुंचने के लिए लाले पड़े हुए हैं. तो इसका जवाब खुद कांग्रेस को ही ढूंढना है. इसके लिए विधायकों को दूसरे राज्य में ले जाकर रिसॉर्ट में ठहराने या राज्यसभा चुनाव में नोटा जैसे प्रस्ताव पर हाय तौबा मचाने से कुछ नहीं होगा. ना ही बीजेपी को घर में सेंध लगाने के लिए दोष देते रहने से स्थिति में बदलाव होगा. अगर राजनीति में कोई विरोधी है तो वो तो अपनी लकीर बड़ी करने के लिए आपकी जड़ें काटने की कोशिश करेगा ही. ये तो आप पर है कि कैसे अपने किले को बचाए रखते हैं.

कांग्रेस को ये नहीं भूलना चाहिए कि देश को आज़ादी मिलने से पहले उसका क्या स्वरूप था? ये एक मास मूवमेंट (जन आंदोलन) था. तब इसके नेताओं का अपना खुद का कोई स्वार्थ नहीं था. शायद इसीलिए बापू ने देश को आजादी मिलने के बाद कहा था कि कांग्रेस को अब डिसमेंटल (खत्म) कर देना चाहिए. बापू को पता था कि सत्ता ऐसा ज़हर है जो अपने साथ भ्रष्टाचार की बीमारी को भी साथ लाएगा.

Congress, Mahatma Gandhiकांग्रेस का क्या होगा?

कांग्रेस में दोबारा जान फूंकनी है तो ये करने का माद्दा एक शख्स में ही है. और वो हैं महात्मा गांधी. गांधी बेशक 69 साल पहले इस दुनिया को अलविदा कह गए. लेकिन गांधी जो विचार है वो अमर अजर है. कांग्रेस को देश के लोगों के दिलों में खोई हुई जगह वापस पानी है तो, गांधीगीरी से अच्छा रास्ता और कोई नहीं हो सकता. कांग्रेस को इसी रणनीति पर काम करना चाहिए कि कैसे वो लोगों के दुख-दर्द को कम कर सकती है? कैसे वो गंगा-जमुनी तहजीब, जो भारतीयता का सार रहा है, उसे मजबूत करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देती है?

अगर कांग्रेस ये सोचती है कि बीजेपी की खामियां, जन विरोधी नीतियां उसे खुद ही सत्ता में वापस ला देगी तो ये उसके मुगालते के सिवा और कुछ नहीं है. अब कोई दूसरे को हराने के लिए आपको वोट नहीं देगा. बल्कि वोट देने वाला पूछेगा कि आप में खुद ऐसा क्या है जो आपको जिताया जाए.

Congress, Mahatma Gandhi

इस फर्क को ग्रैंड ओल्ड पार्टी जितनी जल्दी समझ लेगी उतना ही उसके लिए बेहतर रहेगा. जितना वो सड़क पर गरीबों, किसान-मजदूरों, मध्यम वर्ग, नौकरीपेशा लोगों के लिए लड़ाई लड़ती दिखेगी. भ्रष्टाचारियों का गांधीगीरी से नाक में दम करेगी. बिग ब्रदर वाला रवैया छोड़ सभी विरोधी दलों को एकजुट करेगी. उतनी ही उसके लिए संभावनाएं बढ़ेंगी. अगर ऐसा नहीं किया और पार्टी मौजूदा ढर्रे पर ही चलती रही तो उसके लिए खोई हुई जमीन दोबारा पाना बहुत मुश्किल होगा.  जिस तरह कांग्रेस बुरे दौर से गुजर रही है उस पर हरियाणा का एक किस्सा याद आ रहा है. एक बार एक लड़की छत से गिर गयी. लड़की दर्द से बुरी तरह छटपटा रही थी. उसे कोई घरेलू नुस्खे बता रहा था तो कोई डॉक्टर को बुलाने की सलाह दे रहा था. तभी सरपंच जी भी वहां आ गए. उन्होंने हींग लगे न फिटकरी वाली तर्ज़ पर सुझाया कि लड़की को दर्द तो हो ही रहा है लगे हाथ इसके नाक-कान भी छिदवा दो. बड़े दर्द में बच्ची को इस दर्द का पता भी नहीं चलेगा. वही हाल फिलहाल कांग्रेस का है. 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से इतने झटके लग रहे है कि इससे ज्यादा बुरे दौर कि और क्या सोची जा सकती है.

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खुशदीप सहगल खुशदीप सहगल @khushdeepsehgal

लेखक आजतक में न्यूज़ एडिटर हैं

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