Sonia Gandhi resignation news: कांग्रेस तो अपने भीतर का 'चुनाव' भी हार रही है!
कांग्रेस पार्टी (Congress Party) का जो हाल चुनावों (Elections) में है वही हाल पार्टी के भीतर भी है. हाल में पार्टी के कई किलों में फूट पड़ी और पार्टी के कद्दावर नेता खुद पार्टी के खिलाफ चले गए. अब पार्टी के लिए जरूरी है कि पहले अपने आप से लड़े और फिर चुनाव लड़े.
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कांग्रेस पार्टी (Congress Party) हमेशा सुर्खियों में छायी रहती है. कभी आपसी फूट चर्चा का विषय होती है तो कभी आंतरिक मतभेद. कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या इस वक्त खुद उसके घर की लड़ाई है जो समय समय पर सामने आ ही जाया करती है. अब कांग्रेस फिर से चर्चा में है. पार्टी के 23 काबिल नेताओं ने कांग्रेस की सुप्रीम लीडर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को पत्र लिखकर पार्टी में कुछ बदलाव की मांग कर दी है. कांग्रेस ने कार्यसमिति (CWC meeting) की बैठक भी बुला ली है और माना जा रहा है कि इस बैठक में इसी पत्र को केन्द्र में रखकर कुछ फेरबदल पर चर्चा की जा सकती है. इस बैठक में कांग्रेस कुछ बदलावों पर तो जोर ज़रूर देगी और ऐसा लग रहा है कि इसमें राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की ज़्यादा चलने वाली है. हाल ही में गांधी परिवार से जुदा किसी कांग्रेस अध्यक्ष की बातचीत जोरों पर थी. प्रियंका और राहुल गांधी खुद भी चाहते हैं कि पार्टी की कमान कोई ऐसा नेता संभाले जो पार्टी के बुजुर्ग और युवा नेताओं के बीच तालमेल बिठा सके और उसका खास प्रभाव उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), बिहार (Bihar) जैसे राज्यों में हो.
माना जा रहा है कि सोनिया के इस्तीफे के बाद पार्टी की कमान फिर राहुल के हाथों में आएगी
प्रियंका गांधी का पूरा जोर उत्तर प्रदेश की सियासत में कांग्रेस को पुराने रंग में घोलने का है. प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मजबूती के साथ खड़ा करने के लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं और इसमें उनका साथ प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भरपूर तरीके से दे रहे हैं. हालांकि इतना आसान नहीं है उत्तर प्रदेश की सियासत में उस तरह से लौटना लेकिन बसपा की हालत और सपा की अंदरुनी लड़ाई का पूरा फायदा कांग्रेस उठाने को तैयार है.
राहुल गांधी किसी राज्य से हटकर देश के मुद्दों पर अपने आपको फोकस दे रहे हैं. जिसतरह प्रियंका लगातार योगी सरकार को घेर रही हैं ठीक उसी तरह राहुल गांधी भी केंद्र सरकार को हर मुद्दे पर घेर रहे हैं. ऐसे में स्थिति इतनी तो साफ है कि दोनों का अपना अलग अलग ऐजेंडा है. राज्य और केन्द्र की हालत पर नज़र रखने के लिए तो यह ऐजेंडा तैयार है लेकिन पार्टी की अंदरूनी लड़ाई पर नज़र रखने के लिए जिस नेता की ज़रूरत है उसकी तलाश में कांग्रेस का मंथन जारी है.
मौजूदा वक्त में यह ज़िम्मेदारी सोनिया गांधी पर है जो बीमार रहती हैं लेकिन उनके इशारे पर पार्टी के बुजुर्ग और युवा नेता एक हो जाते हैं. सोनिया गांधी इस काम के लिए सबसे योग्य हैं लेकिन उनकी बीमारी ने उनके काम पर असर डाल दिया है. वह अपना काम पार्टी के शीर्ष नेता सुरजेवाला और अहमद पटेल के ज़रिए करा रही हैं.
ऐसे नेताओं की पकड़ इतनी मजबूत नहीं मानी जा रही है इसीलिए कई बार इन लोगों के हाथ सिर्फ और सिर्फ असफलता ही हाथ लगी है.अब कांग्रेस एक ऐसे नेता की तलाश में जुटी हुयी है जो इस काम को बेहतरीन तरीके से अंजाम दे सके. पार्टी को नेतृव्य पद के लिए सबसे मंझे औऱ सुलझे हुए नेता का चुनाव करना है. जिसका काम महज पार्टी को अपने तरीके से बचाकर रखना होगा.
सियासी हमले करने और केन्द्र और राज्य सरकार को घेरने के लिए संगठन बनाया ही जा चुका है अब पार्टी को अंदरूनी लड़ाई को रोकने के लिए भी एक संगठन जल्द ही तैयार करना होगा. तब ही ज़मीन पर कुछ असर नज़र आएगा वरना आपसी लड़ाई का सबसे ज़्यादा नुकसान भी कांग्रेस को ही झेलना पड़ेगा. कांग्रेस पार्टी का संगठन तो हर जिले में है लेकिन उन संगठनों में बदलावों की काफी हद तक ज़रूरत है.
पार्टी बुजुर्ग और युवाओं को साथ ही लेकर चलना चाहती है जिसके लिए पार्टी को इन दोनों के बीच तालमेल बैठाने वाले ऩेता की आवश्यकता तो है ही. कांग्रेस पार्टी के लिए चुनाव लड़ना जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी उसे अपने अंदर के मतभेदों से लड़ना भी है. वरना कब कौन सा राज्य मध्य प्रदेश बन जाए और कौन सिंधिया जैसे किले को भेदकर आपकी सरकार गिरा दे, तो आप लोकतंत्र की दुहाई देने के सिवाय कुछ न कर पाएंगें.
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