रिटायर होने के बाद भी मुद्दा हैं प्रणब और येचुरी अप्रासंगिक
नागपुर में दिए भाषण पर प्रणब मुखर्जी की आलोचना करने वाले सीताराम येचुरी को समझना चाहिए कि प्रणब जैसी सियासत करने में उन्हें अभी एक लम्बा वक्त लगेगा.
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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी चौतरफा आलोचना का शिकार हो रहे हैं. वजह है उनका संघ शिक्षा वर्ग-तृतीय वर्ष समापन समारोह' के लिए बतौर चीफ गेस्ट नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय जाना और वहां भाषण देना. ध्यान रहे कि 30 मिनट तक दिए गए इस भाषण में प्रणब मुखर्जी ने कई ऐसी बातें कहीं. जो ये बताने के लिए काफी थीं कि यूं ही प्रणब मुखर्जी को राजनीति का मजबूत खिलाड़ी नहीं कहा जाता.
कहना गलत नहीं है कि इस भाषण के बाद प्रणब ने अपने आलोचकों का मुंह बंद किया है
यदि प्रणब के भाषण को ध्यान से सुनें और उन्हें देखें तो ये कहना कहीं से भी गलत न होगा कि चूंकि अपने जीवनकाल में प्रणब ने कई प्रधानमंत्रियों को आते-जाते हुए देखा साथ ही वो कांग्रेस की कई पीढ़ियों को दशकों से देख चुके हैं अतः ये राहुल गांधी या किसी अन्य कांग्रेसी से ज्यादा 'कांग्रेस' हैं.
जिस तरह की राजनीति का परिचय प्रणब ने दिया है वैसी राजनीति करने में माकपा और येचुरी दोनों को अभी लंबा वक़्त लगेगा
अब अगर ऐसे व्यक्ति की कोई आलोचना करे और ये कहे की उन्हें संघ के मंच पर ऐसा करना था, वैसा करना था तो ये बात सुनने में अजीब है. माकपा नेता सीताराम येचुरी ने प्रणब मुखर्जी की नागपुर यात्रा के सम्बन्ध में ट्वीट कर कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी यदि संघ को उसका इतिहास याद दिलाते तो अच्छा होता. हालांकि माकपा ने बहुलतावादी और समग्र समाज को असल भारत के रूप में उल्लेखित करने के लिए उनके भाषण की जमकर तारीफ की और किसी भी तरह की कंट्रोवर्सी से बचने का प्रयास किया.
In the "history capsule" delivered by Pranab Mukherjee at the RSS headquarters, the absence of Mahatma Gandhi and his assassination speaks volumes.
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) June 7, 2018
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाषण पर प्रतिक्रिया देते हुए माकपा के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी ने प्रणब से सवाल किया कि उन्होंने संघ के मंच पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का कहीं भी जिक्र नहीं किया. वहीं इस यात्रा पर प्रतिक्रिया देते हुए भाकपा नेता डी राजा का कहना है कि प्रणब को आरएसएस के कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए था लेकिन प्रणब दा ने अपने भाषण में जो कुछ कहा, उनसे उसी की उम्मीद थीं.
He would have done well to remind the RSS of its own history - banned thrice by Congress governments, first time by Sardar Patel, following Mahatma Gandhi's assassination. "RSS men expressed joy and distributed sweets after Gandhiji’s death", Patel wrote to Golwalkar.
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) June 7, 2018
माकपा की तरफ से आ रही इन प्रतिक्रियाओं और आलोचनाओं के बाद एक बात तो साफ है कि या तो इन्होंने प्रणब का भाषण सही से नहीं सुना या फिर इनकी राजनीतिक सूझबूझ इस योग्य नहीं हुई है कि वो प्रणब और नागपुर यात्रा के दौरान दिए गए उनके भाषण को समझें. जल्दबाजी में चूक होती हैं, शायद प्रणब की आलोचना के लिए माकपा के लोग जल्दबाजी में थे. चलिए हम एक बार फिर प्रणब मुखर्जी के भाषण के कुछ अहम बिंदु पेश कर दें जिसे यदि माकपा के लोग ठंडे दिमाग से सोचें तो बात काफी हद तक साफ और उनकी चिंता दूर हो जाएगी.
Our national identity has emerged after a long drawn process of confluence and assimilation, the multiple cultures and faiths make us special and tolerant: Pranab Mukherjee at RSS's Tritiya Varsh event in Nagpur pic.twitter.com/CbRNQ7QYyx
— ANI (@ANI) June 7, 2018
As Gandhi ji explained Indian nationalism was not exclusive nor aggressive nor destructive: Dr Pranab Mukherjee at RSS's Tritiya Varsh event in Nagpur pic.twitter.com/Zu7fscr97V
— ANI (@ANI) June 7, 2018
It was this very nationalism that Pandit Nehru so vividly expressed in the book 'Discovery of India', he wrote, "I am convinced that nationalism can only come out of the ideological fusion of Hindu, Muslims, Sikhs and other groups in India.": Dr Pranab Mukherjee in Nagpur pic.twitter.com/hetZaDD1w6
— ANI (@ANI) June 7, 2018
प्रणब के 30 मिनट के इस भाषण में यदि माकपा इन्हीं 3 ट्वीट्स का गहनता से अवलोकन कर लें तो उसकी शंका दूर हो जाएगी और उसे इस बात का एहसास हो जाएगा कि प्रणब ने जो दाब खेला उसे खलेने में अभी माकपा या इस तरह की किसी दूसरी पार्टी को अभी लम्बा वक़्त लगेगा. साथ ही यदि वो संघ को किनारे कर राजनीति करने की कल्पना कर रहे हैं तो उन्हें जान लेना चाहिए कि वर्त्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है. यदि उन्हें राजनीति करनी है तो हर कीमत पर संघ को साथ लेकर ही राजनीति करना पड़ेगा.
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