Delhi Violence: दिल्ली में हुए बवाल और हिंसा पर जिम्मेदारी किसकी है ?
Delhi riots-violence: नागरिकता संशोधन कानून के विरोध (Anti CAA Protest) की आग एक बार फिर तेज हो गई है जिससे एक के बाद एक मौतें हो रही हैं और दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा धू-धू करके जल रहा है. इन सबको देखकर सवाल ये उठता है कि दिल्ली में जो कुछ भी हुआ आखिर उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
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यह दिल्ली पुलिस (Delhi Police) है, हर गली में इंटेलीजेंस होती है. इस इलाके में पहले भी पत्थरबाजी की घटनाएं हुई हैं, गृह राज्य मंत्री खुद आशंका जाता रहे हैं कि हिंसा (Delhi riots-violence) की साज़िश थी. इंटेलिजेंस सिस्टम हाइपर एक्टिव था. दिल्ली पुलिस की लोकल इंटेलीजेंस यूनिट, उसके मुखबिर, बड़े अफसरों को मिलने वाली अंधाधुंध सोर्स मनी से फैलाया गया नेटवर्क, आईबी का समानांतर नेटवर्क. इतना ही नहीं दिल्ली में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की तरह बीट सिस्टम तहस नहस नहीं हुआ है. हर पुलिसवाले की जिम्मेदारी होती है कि वो अपनी बीट की जानकारी रखे. वह जानता है कि किस घर में कौन लोग रहते हैं? कौन नया आया है? कहां से आया है? कौन कहां कैसा धंधा करता है? ट्रंप की विजिट है यह भी पहले से पता था. जाहिर बात है रॉ भी लगातार जानकारियां इकट्ठी कर रही होगी. यह सभी एजेंसियां लगातार दिल्ली पुलिस को इनपुट भेजती हैं. इस पूरे नेटवर्क के बावजूद इतनी बड़ी हिंसा फ़ैल गई. कौन मानेगा कि सूचना ठीक से नहीं मिली होगी.
दिल्ली में इंटेलिजेंस कितनी बुरी तरह विफल हुआ है बीच सड़क पर लोगों का गोली चलाना बता देता है
यह साफ है कि दिल्ली पुलिस ने इन सूचनाओं का सही इस्तेमाल नहीं किया. अब सही इस्तेमाल ना होने की दो वजहें हो सकती हैं पहली यह कि दिल्ली पुलिस बेहद नकारा है, उसकी प्रशासनिक क्षमताएं शून्य के करीब हैं. दूसरी वजह हो सकती है राजनीतिक दवाब. दिल्ली पुलिस की काबिलियत का डंका पूरी दुनिया में बजता है. उसकी तुलना स्कॉटलैंड यार्ड से की जाती है. दूसरा कारण ज्यादा अहम लगता है आगे बताते हैं.
उत्तर पूर्वी दिल्ली की हिंसक घटनाएं बताती हैं कि जिला पुलिस ने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) ठीक से लागू ही नहीं किए. हालात बिगड़ सकते हैं इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था. दो महीने पहले ही यहां CAA पर हिंसा हो चुकी है. ऐसी जटिल परिस्थितियों में कपिल मिश्रा की आग में घी झोंकने के लिए छोड़ दिया गया. उसकी गिरफ्तारी एहतियात के तौर पर की जा सकती थी. नजरबंदी भी कर सकते थे. शांति की खातिर यह बहुत जरूरी था.
इन इलाकों और शाहीन बाग़ में अंतर है. इलाकों के मुआज्जिज लोगों को बुलाकर पुलिस मीटिंग कर सकती थी. स्थानीय नेताओं की मदद ले सकती थी. उपद्रव फैलाने की आशंका में कुछ लोगों को रातों रात उठा सकती थी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
निचोड़ ये है कि प्रशासन इस हिंसा की ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकता. दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को एक महीने पहले रिटायर होना था, वे एक्सटेंशन पर चल रहे हैं वो ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकते. एलजी अनिल बैजल पुलिस के बॉस हैं और दिल्ली पुलिस के राजनीतिक मुखिया अमित शाह है. इन तीनों की ज़िम्मेदारी थी कि हालात को काबू में रखते. विफलता सीधे उनके जिम्मे आती है.
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