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Updated: 22 सितम्बर, 2015 07:43 PM
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पत्रकार राजदीप सरदेसाई का पत्र- 

प्रिय देवेंद्र जी 

यह खत वैसे तो अगले महीने आपकी सरकार के एक साल पूरा करने के लिए एक बधाई भरा प्राइवेट मेल होना चाहिए था, लेकिन महाराष्ट्र में हाल में हुई घटनाओं के कारण कोई भी उत्सव मनाने की जगह आत्मनिरीक्षण करने और एक जोरदार सार्वजनिक बहस शुरू करने की जरूरत है. 

मैंने आपको पहली बार 2010 में आदर्श जमीन घोटाले पर एक टेलिविजन बहस के दौरान देखा था. मैं भ्रष्टाचार पर आपकी बहस के कौशल और सख्त और बिना समझौतेवाला स्टैंड लेने से प्रभावित हुआ था. यही कारण है कि जब पिछले साल आप मुख्यमंत्री बने तो मैंने इसे एक सकारात्मक संकेत की तरह देखा. एक ऐसा राज्य जहां का राजनीतिक वर्ग भ्रष्टाचार और अनैतिक राजनीति का प्रतीक बन गया है, आप कुछ अलग करने की उम्मीद बनकर उभरे. विचारों और ऊर्जा से लबरेज एक 44 साल के मुख्यमंत्री के उभार ने राज्य की राजनीति में स्वागतयोग्य पीढ़ियों के बदलाव की उम्मीद जगाई. निराशाजनक बात है कि एक साल पहले, आपके मुख्यमंत्री बनने पर जिस उत्साह के साथ स्वागत किया गया था उसकी तुलना बढ़ती हुई सनक के साथ की जा रही है.  

अपनी सरकार द्वारा हाल ही में लिए गए तीन निर्णयों का उदाहरण लीजिए. पहला, मुबंई में चार दिनों के लिए मीट बैन करने की अविवेकी सलाह. हां, जैन पर्यूषण त्योहार के दौरान मीट की ब्रिकी पर बैन की इसी तरह की कोशिशें अतीत में आपके पूर्ववर्ती कर चुके थे लेकिन आपकी सरकार ने इस बैन का दायरा मुंबई के उपनगर मीरा-भयंदर के बाहर फैलाने की कोशिश की. लोगों के दबाव के बाद आपको बैन की अवधि घटाकर दो दिन करनी पड़ी लेकिन इस प्रक्रिया ने आपको लोगों की आलोचना के केंद्र में ला खड़ा किया.

पहले, बीफ बैन, अब मीट पर बैनः गुड गवर्नेंस को फूड गवर्नेंस के साथ भ्रमित क्यों करना? महाराष्ट्र में ब्राह्माणों का केवल एक छोटा सा तबका ही पूरी तरह शाकाहारी है. आपकी सहयोगी पार्टियों शिवसेना और एमएनएस ने अपनी प्रतिक्रिया में इस बात की पु्ष्टि की है कि महाराष्ट्र की बड़ी आबादी मांसाहारी है. इसलिए शुरुआत से ही यह निर्णय अभिशप्त था और यह निजी स्वतंत्रता को तवज्जो देने वाले बढ़ते हुए शहरी मध्यमवर्ग को आपसे दूर ही करेगा. 

मैं जानता हूं कि आप स्वंयसेवक हैं और अपनी जड़ें नागपुर से होने पर आपको गर्व है, और आपके परिवार का आरएसएस के साथ एक पुराना रिश्ता रहा है. लेकिन पिछले साल महाराष्ट्र के लोगों ने आपको आरएसएस का सांस्कृतिक एजेंडा लागू करने के लिए वोट नहीं दिया था. जिसमें भारतीय संस्कृति के नाम पर आपके किचेन में क्या पकाए जाए इसको लेकर जबरन निर्देश जारी करने की कोशिश हो. 

दूसरा निर्णय जो चिंता का कारण बना, वह है मुंबई पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया का अचानक ट्रांसफर, जबकि उनके तय प्रमोशन में एक महीने से भी कम समय बचा था. राकेश मारिया का ट्रांसफर हाईप्रोफाइल शीना बोरा मर्डर केस की जांच के दौरान किया गया, जोकि इसे और संदेहास्पद बना देता है. हम इस बात पर बहस कर सकते हैं कि क्या किसी पुलिस कमिश्नर को एक मर्डर मिस्ट्री में इस तरह निजी रुचि लेनी चाहिए, लेकिन बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के एक चर्चित ऑफिसर को हटाने से पुलिसबलों को एक गलत संदेश दिया गया. 

इससे भी खराब बात, मीडिया द्वारा सवाल उठाए जाने पर एक बार फिर आपकी सरकार ने पलटी मारते हुए कहा कि मारिया डीजी, होमगार्ड्स की अपनी नई पोस्ट के बावजूद जांच का काम जारी रखेंगे. तो, पहले आप एक अधिकारी को सीढ़ियों से धक्का मारते हैं, उसकी जगह उसका उत्तराधिकारी बिठाते हैं (जोकि निस्संदेह एक बेहतरीन अधिकारी है), और इसके बाद दोहरा रिपोर्टिंग स्ट्रक्चर बनाते हैं. पिछली कांग्रेस-एनसीपी सरकारों द्वारा बनाए गए ट्रांसफर-पोस्टिंग इंडस्ट्री के कारण मुंबई पुलिस की साख दांव पर लग गई थी, और अब आपने ऐसे संकेत देकर उन्हें हतोत्साहित करने का काम किया है. 

आपकी सरकार द्वारा लिया गया तीसरा हैरान करने वाला निर्णय है, राजद्रोह के मामले में गिरफ्तारी करते समय पुलिस द्वारा फॉलो किए जाने वाले दिशानिर्देश के बारे में जारी किया गया हालिया सर्कुलर. सर्कुलर के मुताबिक, 'उन शब्दों, संकेतों या प्रस्तुतियों को राजद्रोह माना जाएगा अगर वे उस व्यक्ति के खिलाफ हैं जिसे सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर दिखाया गया है.' क्या हम तर्कपूर्ण सरकारी विरोध को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के साथ भ्रमित कर रहे हैं? विडंबना यह है कि आप पिछली महाराष्ट्र सरकार द्वारा आईटी ऐक्ट के सेक्शन 66A के गलत प्रयोग की सबसे ज्यादा आलोचना करने वालों में से एक थे, जिससे फेसबुक पर 'आपत्तिजनक' पोस्ट के कारण गिरफ्तारियां हुई थीं. 

इन विवादों ने उन मुद्दों को दबा दिया है जोकि इस समय आपकी सरकार का एकमात्र एजेंड होनी चाहिए थीः राज्य के बड़े हिस्से में कृषि संकट समाप्त करना. पहले, विदर्भ और अब मराठवाड़ा में सूखे जैसे हालात पैदा हो गए हैं. फसलों के बर्बाद होने के कारण इस साल जनवरी से अब तक 600 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. पीने के पानी की अनुपलब्धता का फायदा टैंकर माफिया उठा रहे हैं. यहां तक कि किसान अपने बूढ़े जानवरों तक को भी अविवेकी बीफ बैन के कारण बेच नहीं सकते हैं. 

पिछले हफ्ते सूखे पर एक टेलिविजन प्रोग्राम के दौरान मैंने अभिनेता नाना पाटेकर से उनकी भावनाएं प्रकट करने को कहा. नाना ने हाल ही में 100 से ज्यादा किसानों की विधवाओँ को चेक दिए हैं, आंखों में आंसू भरकर उन्होंने कहा कि त्रासदी के पैमाने को देखकर वह हिल गए हैं. अफसोस की बात है, सरकारी तंत्र ने उतनी तेजी से काम नहीं किया जितना उसे करना चाहिए था. मुझे पता है कि आपने सूखा प्रभावित जिलों के लिए बड़े पैमाने पर बड़ी परियोजनाएं प्रस्तावित की हैं लेकिन इस समय इससे कहीं ज्यादा किए जाने की जरूरत है. 

पिछले एक दशक के दौरान महाराष्ट्र ने सिंचाई परियोजनाओं के लिए 70 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा आवंटित किए हैं लेकिन इस दौरान कुल सिंचाई क्षेत्रों में इनमें से महज 0.1 फीसदी का ही उपयोग किया गया है. सिंचाई परियोजनाओं की असफलता एक घोटाले का हिस्सा है और अपने चुनाव प्रचार में आपने इसके दोषियों को सजा दिलाने का वादा किया था. लेकिन यह वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है. 

हमारे प्रधानमंत्री की तरह ही आप भी पिछले साल भ्रमणशील रहे हैं: पूरी दुनिया की कई यात्राएं कीं. क्या मैं आपसे निवेदन कर सकता हूं कि अगले कुछ महीने आप महाराष्ट्र में किसानों की जरूरतों पर ध्यान देते हुए बिताएं. मेरे प्लेट में खाने की या शीना मर्डर केस में क्या होता है इसकी चिंता मत कीजिए, किसानों की पीड़ा से आपके रातों की नींद उड़ जानी चाहिए. 

पोस्ट स्किप्टः आपकी सरकार की अव्यवस्थित प्राथमिकताओं पर सवाल उठाते हुए मैं कहना चाहता हूं कि टैबलॉइड मीडिया का एक वर्ग भी बराबर का दोषी है. एक घिनौनी मर्डर स्टोरी प्राइम टाइम न्यूज का प्रमुख केंद्र बन गई. किसान की मौत नोटिस भी नहीं की जाती.

मुख्‍यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का जवाबी खत-
 
प्रिय राजदीप,
 
आमतौर पर मैं वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा लिखे गए खुले खत का जवाब नहीं देता हूं लेकिन इस बार मैंने सोचा कि अगर मैंने जवाब नहीं दिया तो गियोबेल्स का नियम- झूठ को कई बार चिल्लाकर बोलिए तो वह सच बन जाता है- कायम रह जाएगा. आपका खत इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे मीडिया का एक वर्ग, बिना सही जानकारी के एक एजेंडे के तहत सरकार पर हमला करता है.
 
पहले मुझे आपके द्वारा उठाए गए पहले मुद्दे पर कुछ स्पष्टीकरण देने दीजिए. मेरी सरकार ने मीट पर बैन लगाने का निर्णय नहीं लिया है. सरकार की तरफ से किसी भी स्थानीय संस्था को एक भी नया आदेश नहीं दिया गया है. 2004 में कांग्रेस की सरकार ने पर्यूषण पर्व के दौरान एक कसाई घर को दो दिन बंद करने का निर्णय लिया था. उस समय यह संदेश सभी नगरपालिकाओं को दिया गया था. तभी से मीरा-भयंदर समेत सभी नगरपालिकाओं ने इसे लागू करना शुरू कर दिया. मुंबई और मीरा-भयंदर जैसी नगरपालिकाओं ने अपनी शक्तियों के अंतगर्त बैन को अतिरिक्त दिनों तक लागू करने का प्रस्ताव अपना लिया, जोकि मुबंई के मामले में 1994 से ही हो रहा है. आश्चर्यजनक तौर पर आपमें से किसी ने भी हमारे सत्ता में आने तक इसका विरोध नहीं किया. निश्चित तौर पर आप पिछली सरकार की छद्म-सेकुलर छवि के साथ सहज थे, भले ही वह कितनी भ्रष्ट और काम करने में फेल रही हो.
 
यह संभव है कि आप यह जानते हों लेकिन यह आपके एजेंडा को सूट नहीं करता है.
 
राकेश मारिया के मामले में, आप भ्रमित लगते हैं. आपकी पोस्ट स्क्रिप्ट कहती हैं कि शीना बोरा मर्डर केस को मीडिया में जितनी तवज्जो मिली वह नहीं मिलनी चाहिए थी. तो आपने शहर के पुलिस कमिश्नर के ट्रांसफर के साथ जोड़कर इस पर लिखने की क्यों सोची? एक पुलिस चीफ जांच अधिकारी नहीं होता है बल्कि वह सिर्फ पर्यवेक्षी प्राधिकारी होता है. मैं आपको बताना चाहूंगा कि वरिष्ठ लोगों का कुछ दिन पहले प्रमोशन करना कोई नई परंपरा नहीं है. ऐसे निर्णय इस बात को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं कि पद की जिम्मेदारी संभालने जा रहे नए व्यक्ति को वर्तमान स्थितियों को समझने का समय मिल सके. सितंबर और अक्टूबर का महीना त्योहारों से भरा पड़ा है, जिनमें गणेश उत्सव, ईद और नवरात्रि शामिल हैं.
 
अगर सरकार ने सोचा कि त्योहारों के बीच में पुलिस कमिश्नर को बदलने से अच्छा है कि त्योहारों का सीजन शुरू होने से पहले ही उस पद पर किसी नए व्यक्ति की नियुक्ति कर दी जाए तो इसमें गलत क्या है? हालांकि मैं मानता हूं कि अधिकारियों की कोई जाति और धर्म नहीं होता है, तो सवाल उठाया जा सकता था कि अल्पसंख्यक समुदाय के अहमद जावेद और पिछड़ी जाति के विजय कांबले जैसे दो सीनियर और उतने ही काबिल अधिकारियों को दरकिनार करते हुए मारिया को मुंबई पुलिस कमिश्नर क्यों बनाया गया. तो मैं कहना चाहूंगा कि सरकार ने सोचा कि उस समय मारिया उस स्थिति में ज्यादा अनुकूल थे.  
 
राजद्रोह पर आपकी सोच को एक पक्षपाती दिमाग का एक क्लासिक प्रॉडक्ट कहा जा सकता है. मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि क्या राज्य सरकार को माननीय हाईकोर्ट द्वारा पुलिस को दिए गए निर्णय को सूचित करना चाहिए या नहीं? एक बार फिर से इस मामले में कोई भी निर्णय हमारी सरकार द्वारा नहीं लिया गया है. हाईकोर्ट में एक केस के बारे में तब की कांग्रेस नीत सरकार द्वारा हलफनामा दाखिल किया गया था और कोर्ट ने राजद्रोह की प्रासंगिकता के विस्तार और दायरे की व्याख्या करते हुए एक विस्तृत निर्णय दिया था और साथ ही इसकी सूचना पुलिस को भी दिए जाने का निर्देश दिया था. सरकार ने इस निर्णय का ईमानदारी के साथ मराठी में अनुवाद करके इसे एक आधिकारिक सर्कुलर द्वारा सभी पुलिस स्टेशनों तक पहुंचाया. सर्कुलर का हर एक शब्द निर्णय का अनुवाद ही है. श्रीमान, सरदेसाई आप शायद इस मामले को समझने के लिए इतने विस्तार में जाना नहीं चाहेंगे क्योंकि आप अपने वामपंथी एजेंडे का पूरे जोश और आवेग के साथ अनुसरण करना जारी रखना चाहते हैं.
 
यह स्पष्ट है कि जल संरक्षण के लिए हमारी सरकार द्वारा शुरू किए गए प्रयासों के बारे में एक शब्द का भी जिक्र करने में आपको कितनी तकलीफ हुई, इन योजनाओं में द फ्लैगशिप प्रोग्राम ऑफ जलयुक्त सीवर योजना-महाराष्ट्र को सूखा मुक्त बनाने के लिए. यह प्रोग्राम बहुत ही सफल रहा है. लोगों के उदार योगदान-300 करोड़ रुपये से ज्यादा-की मदद से हमें छह महीने के भीतर 6000 गांवों में 1 लाख ऐसे कार्यों को पूरा करने में मदद मिली है. परिणाम सामने हैं. कम बारिश के बावजूद गांवों में वितरित पानी का भंडारण है और जल स्तर में बढ़ोतरी हुई है. इस बात की तारीफ भारत के 'जलपुरुष' राजेंद्र सिंह ने स्टॉकहोम में आयोजित वाटर कॉन्फ्रेंस में की. यह प्रोग्राम किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करके फसलों को सुरक्षित बनाने के लिए सुरक्षा प्रदान करेगा.  
 
यह बहुत ही दुखद है कि आप जैसे लोग उस काल्पनिक स्थिति के लिए परेशान हो जाते हैं कि आपकी थाली में मीट का टुकड़ा होगा कि नहीं, जबकि मेरा अन्नदाता उसके पास खाने के लिए कुछ न होने के कारण घातक कदम उठा रहा है. इसीलिए राज्य ने 60 लाख किसानों के लिए खाद्य सुरक्षा योजना लागू करने का निर्णय लिया है, जिसमें उन्हें 2 रुपये प्रति किलो की दर से गेहूं और 3 रुपये रुपये प्रति किलो की दर से चावल दिया जाएगा. 15 वर्षों के खराब शासन से मिली किसानों की आत्महत्या की बदनाम विरासत एक चुनौती है, जोकि मुझे सोने नहीं देती है. लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि हमारी सरकार द्वारा शुरू की गई पहल अपना मकसद पूरा करने में कामयाब होगी.
 
मीट पर बैन हो या न हो एक आम आदमी अपनी थाली में रोटी और चावल की उम्मीद करता है. और मैं किसी भी और चीज से ज्यादा इस बारे में चिंता करता हूं. श्रीमान सरदेसाई आपके खत का कंटेंट आपके प्रोफेशन का हिस्सा हो सकता है लेकिन मेरे जवाब का संकल्प है मेरा मिशन और मैं इसे पूरा करूंगा. मेरे जीवन का मंत्र है 'प्रदर्शन या विनाश' और सिर्फ समय ही मेरे भाग्य का फैसला करेगा.
 
सादर और बिना किसी द्वेष के
देवेंद्र फडनवीस, मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र

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