महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दाव पर परिवारवाद
अगर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election 2019) में सियासी अखाड़े में उम्मीदवारों को देखें तो भाजपा की हालत न तो कांग्रेस से बहुत अलग है, ना ही उसकी सहयोगी एनसीपी से. महाराष्ट्र के चुनावी मैदान में परिवारवाद के एक दो नहीं, बल्कि कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे.
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राजनीति में परिवारवाद की बात पर आए दिन बहस होती रहती है. परिवारवाद का सबसे ज्यादा आरोप लगता है देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पर. बाप-दादा के जमाने से कांग्रेस पर एक ही परिवार का कब्जा रहा है. इसी बात को भाजपा ने अपना हथियार भी बनाया, जिसने 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका भी निभाई. इसके बाद भी भाजपा और खासकर पीएम मोदी लगातार राहुल गांधी और सोनिया गांधी समेत पूरी कांग्रेस पर आए दिन हमलावर रहते हैं और परिवारवाद का आरोप लगाते हैं. लेकिन अगर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Election 2019) में सियासी अखाड़े में उम्मीदवारों को देखें तो भाजपा की हालत न तो कांग्रेस से बहुत अलग है, ना ही उसकी सहयोगी एनसीपी से. महाराष्ट्र के चुनावी मैदान में परिवारवाद के एक दो नहीं, बल्कि कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे, वो भी कई पार्टियों से. तो चलिए शुरुआत भाजपा से ही करते हैं.
महाराष्ट्र के चुनावी मैदान में परिवारवाद के एक दो नहीं, बल्कि कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे.
भाजपा में भी है परिवारवाद
पंकजा मुंडे
महाराष्ट्र के बीड जिले की पार्ली विधानसभा सीट से पंकजा मुंडे चुनावी मैदान में हैं. उनके पिता गोपीनाथ मुंडे महाराष्ट्र में भाजपा के एक बड़े नेता थे, जिनकी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नंबर-4 के मंत्री के तौर पर शपथ लेने के महज हफ्ते भर बाद ही एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी. उसके बाद उनकी बेटी पंकजा मुंडे देवेंद्र फडणवीस की सरकार में अक्टूबर 2014 में मंत्री बन गईं. यहां आपको बता दें कि मुंडे परिवार से ही धनंजय एनसीपी के नेता हैं.
एकनाथ खडसे
एक वक्त था जब एकनाथ खडसे को महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस को टक्कर देने वाला नेता माना जाता था. हालांकि, इस बार के विधानसभा चुनावों में वह सियासी मैदान से दूर हैं. लेकिन उनका दबदबा कमजोर ना पड़े इसलिए भाजपा ने वहां से उनकी बेटी रोहिणी खडसे को महाराष्ट्र के मुतईनगर विधानसभा सीट से टिकट दे दिया है. बता दें कि एकनाथ खडसे को देवेंद्र फडणवीस सरकार से 2016 में इस्तीफा देना पड़ा था, क्योंकि उन पर वित्तीय मामलों में अनियमितताएं करने का आरोप लगा था.
सुनील राणे
भाजपा के पूर्व मंत्री दत्ता राणे के बेटे सुनील राणे को भाजपा ने इस बार महाराष्ट्र की बोरिवली विधानसभा सीट का टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा है.
दूसरी पार्टियों के रिश्तेदारों को भी टिकट
भाजपा ने जीत की संभावनाएं बढ़ाने या यूं कहें कि विरोधियों को हराने और उनके वोट काटने की रणनीति पर भी खूब काम किया है. तभी तो भाजपा ने कुछ ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है जो विरोधी पार्टियों के उम्मीदवारों के रिश्तेदार हैं. इनमें से ही एक हैं नमिता मुंददा, जो एनसीपी की विधायक स्वर्गीय निमलताई मुंददा की बहू हैं. भाजपा ने उन्हें महाराष्ट्र की केज विधानसभा सीट से टिकट दिया है. आपको बता दें कि ये सीट शेड्यूल कास्ट यानी एससी के लिए रिजर्व थी.
नितेश राणे
वैसे तो नितेश राणे के पिता नारायण राणे का नाता शिवसेना से है, लेकिन इसे भी परिवारवाद में इसलिए गिना जा रहा है क्योंकि शिवसेना भाजपा के साथ गठबंधन कर के ही चुनाव लड़ रही है. नितेश राणे पूर्व कांग्रेस विधायक और सांसद हैं. उनके पिता नारायण राणे 1999 में शिवसेना में रहते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने थे. बाद में उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया और कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन की सरकार में मंत्री भी रहे, जब तक 2014 में भाजपा नहीं जीती. महाराष्ट्र चुनाव में इस बार नितेश राणे कांकावली विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
परिवारवाद की राजनीति की मास्टर है 'कांग्रेस'
अशोक चवन
कांग्रेस ने इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भोकर विधानसभा सीट से अशोक चवन को टिकट दिया है. अशोक चवन महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शंकरराव चवन के बेटे हैं. अगर इस बार कांग्रेस महाराष्ट्र चुनाव में जीतती है तो मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में अशोक चवन भी एक मजबूत नाम होंगे.
पृथ्वीराज चवन
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के जीतने पर पृथ्वीराज चवन भी मुख्यमंत्री पद के मजबूत दावेदार होंगे, जो कांग्रेस में रहते हुए मुख्यमंत्री पद पर भी रह चुके हैं. उनके पिता दाजीसाहेब चवन 1957 से 1973 तक कराद सीट से लोकसभा सांसद थे. वह जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी तीनों की सरकारों में मंत्री थे. दाजीसाहेब की 1973 में मौत के बाद उनकी पत्नी प्रेमालककी चवन ने कराद सीट से चुनाव लड़े और 1973, 1977, 1984 और 1989 के लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की. पृथ्वीराज चवन को गांधी परिवार का बेहद करीबी माना जाता है, जो इस बार कराद दक्षिण विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं.
धीरज देशमुख और अमित देशमुख
पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के दो बेटे धीरज देशमुख और अमित देशमुख कांग्रेस के टिकट पर सियासी मैदान में हैं. ये दोनों लातूर ग्रामीण और लातूर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
परिणीति शिंदे
पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की बेटी परिणीति शिंदे कांग्रेस के टिकट पर सोलापुर सेंट्रल विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं.
एक नजर एनसीपी के परिवारवाद पर
अजित पवार और रोहित पवार
शरद पवार के भतीजे अजित पवार महाराष्ट्र की बारामती विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं. वहीं दूसरी ओर, उनके पोते रोहित पवार कर्जत वानखेड़े विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
संदीप क्षीरसागर
महाराष्ट्र की बीड विधानसभा सीट से एनसीपी ने संदीप क्षीरसागर को चुनावी मैदान में उतारा है, जो जयदत्त क्षीरसागर के भतीजे हैं. आपको बता दें कि पहले जयदत्त क्षीरसागर एनसीपी में नेता थे. बाद में उन्होंने शिवसेना का दामन थाम लिया. 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद वह देवेंद्र फडणवीस सरकार में मंत्री भी बने.
भाई-बहन आमने सामने
महाराष्ट्र की श्रीवर्धन विधानसभा सीट पर भाई-बहनों की लड़ाई हो रही है. पूर्व राज्य मंत्री सुनील तटकरे की बेटी अदिति तटकरे एनसीपी के टिकट पर अपने ही चचेरे भाई अवधूत तटकरे के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं. अवधूत भी पहले एनसीपी में ही थे, लेकिन चुनावों से कुछ समय पहले ही उन्होंने शिवसेना का दामन थाम लिया है.
भुजबल भी हैं चुनावी मैदान में
एनसीपी की दो सीटों पर भुजबल चुनावी मैदान में हैं. पूर्व उप मुख्यमंत्री छगन भुजबल येओला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि पंकज भुजबल नंदगांव से सियासी अखाड़े में उतरे हैं.
शिवसेना भी इस बार उतरी सियासी अखाड़े में
इसे परिवारवाद तो नहीं कह सकते, लेकिन उससे कम भी नहीं है. अभी तक शिवसेना सियासी अखाड़े में नहीं उतरती थी और एक रिंगमास्टर की तरह पार्टी चलाती थी. ये पहली बार है कि ठाकरे परिवार से कोई शख्स सीधे तौर पर चुनावी मैदान में उतरा है. आपको बता दें कि उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे वर्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
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