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Updated: 01 मार्च, 2018 05:46 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बात छह साल पहले की है. महीना अक्टूबर का था और जगह पुड्डुचेरी. शहर के एक छोटे कारोबारी को उसके एक ट्वीट के लिए पुलिस ने तड़के उठाया लिया. पुलिस ने कोर्ट में पेश कर कस्टडी की मांग की लेकिन अदालत ने जमानत मंजूर कर ली. असल में अपराध जमानती था. अपराध ट्विटर पर एक बड़े कारोबारी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी का था, और उस बड़े कारोबारी का नाम था - कार्ति चिदंबरम.

ये बात उन दिनों की है जब कार्ति चिदंबरम बहुत ताकतवर हुआ करते थे. इतने ताकतवर कि एक शिकायत पर पुलिस ने बड़ी ही फुर्ती से रवि श्रीनिवासन नाम के शख्स को धर दबोचा. तब रवि इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लिए काम करने वाले वॉलंटियर थे. ये वही संगठन है जिसके बैनर तले अरविंद केजरीवाल काम करते रहे और आगे चल कर संगठन के लोग ही आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य बने.

सत्ता के इर्द गिर्द बातें राजनीति से प्रेरित नहीं तो क्या होंगी

सीबीआई की गिरफ्त में आये कार्ति चिदंबरम के खिलाफ एक्शन को कांग्रेस बदले की राजनीति से प्रेरित कार्रवायी बता रही है. अगर ऐसा है तो रवि श्रीनिवासन के खिलाफ जो एक्शन हुआ वो क्या सिर्फ कानून के अपने से काम करने का सरल और स्वाभाविक तरीका था. कार्ति केस में कठघरे में खड़ी सत्ताधारी बीजेपी यही तो समझा रही है. पब्लिक भी ये सब जानती समझती है - और वक्त आने पर अपने फैसले बदलती और सुनाती रहती है.

karthi chidambaramतब की बात और थी...

रवि श्रीनिवासन ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू से बातचीत में बताया था, "सुबह 5 बजे, मुझे जगाया गया और CB-CID के लोगों ने मुझे घर से बाहर निकाला और बताया कि मेरे ट्वीट्स के लिए मुझे गिरफ्तार किया गया है."

ये गिरफ्तारी कार्ति चिदंबरम की शिकायत पर हुई थी. शिकायत में रवि के ट्वीट को कार्ति के खिलाफ अपमाजनक टिप्पणी बताया गया. इल्जाम रहा कि ऐसा रवि ने तीन बार किया.

ये वाकया तभी का है जब कार्ति के पिता पी. चिदंबरम केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री हुआ करते थे. रवि श्रीनिवासन ने अपने ट्वीट में आरोप लगाया था कि 'ऐसी रिपोर्ट मिली हैं कि कार्ति चिदंबरम ने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से भी ज्यादा संपत्ति बनाई है.' बाद में रवि श्रीनिवासन को कोर्ट ने इस मामले से बरी कर दिया.

कार्ति तो बस बहाना हैं

राजनीतिक पारी से इतर देखें तो पी. चिदंबरम बेहतरीन वकील भी हैं. कार्ति के केस की बारिकियों को समझते हुए चिदंबरम ने हर संभव एहतियाती कदम उठाये और गिरफ्तारी के बाद भी जमानत के लिए कानूनी पैरवी तक में आगे रहे. घर पर सीबीआई रेड के बाद वो मैदान में मीडिया के जरिये बेटे का बचाव तो करते ही रहे - अदालत में केस के लिए जिरह भी बढ़ चढ़ कर किया.

p chidambaramराजनीतिक बदला और कार्रवाई, मगर कहां तक?

मुश्किल ये है कि जांच एजेंसियां जिस तरह से केस को लेकर एक एक कदम बढ़ा रही हैं - बहुत दूर ही सही लपेटे में तो वो भी नजर आ रहे हैं. कार्ति की गिरफ्तारी के लिए सीबीआई ने इंद्राणी मुखर्जी के बयान को आधार बनाया है. कार्ति पर INX मीडिया को विदेशी निवेश में गैर-वाजिब मंजूरी दिलाने के एवज में रिश्वत लेने का आरोप है. ये रिश्वत कथित तौर पर कार्ति ने घटना के समय केंद्रीय मंत्री रहे अपने पिता के नाम पर लिये. सीबीआई ने इंद्राणी का ये बयान मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 के तहत लिया है. इंद्राणी ने सीबीआई को बताया है कि कार्ति ने क्लीयरेंस के लिए उनसे ₹ 6.5 करोड़ की घूस मांगी थी. INX मीडिया के मालिकान इंद्राणी और पीटर मुखर्जी शीना बोरा केस और दूसरे मामलों में कानूनी शिकंजे में बुरी तरह फंसे हुए हैं.

सीबीआई की स्ट्रैटेजी को समझें तो ऐसा लगता है एजेंसी इंद्राणी के जरिये कार्ति और कार्ति के बहाने चिदंबरम तक पहुंचने का रास्ता तलाश रही है. इससे और कुछ हो न हो सरकार की आर्थिक नीतियों से लेकर तमाम मुद्दों पर हमलावर रहे चिदंबरम को चुप तो कराया ही जा सकता है. चिदंबरम के चुप होने का असर विपक्ष पर पड़ना लाजिमी है. तरीके, बहाने और रणनीतियां जो भी हों सीधा फायदा तो फिलहाल सरकार को ही मिलनेवाला है. ऐसा भी नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा तोता करार दी गयी सीबीआई के दुरुपयोग की कहानी पहली बार गढ़ी जा रही हो. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी तो यही कहते रहे कि उनके खिलाफ सीबीआई ही चुनाव लड़ रही है. मायावती और मुलायम सिंह यादव के नाम तो ऐसे आरोपों के मेन किरदारों के रूप में लिये जाते रहे हैं.

एक साधे सब सधे

दरअसल, भ्रष्टाचार के इन आरोपों के जरिये मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने की तैयारी है. हाल के दिनों में देखें तो राहुल गांधी और उनके साथी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाने लगे हैं. बात राफेल डील की हो या अमित शाह के बेटे के बिजनेस की, कांग्रेस नेता पूरे जोर शोर से उछाल रहे हैं. कार्ति केस के बहाने चिंदबरम और फिर कांग्रेस के घिरे होने का प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह चुनावों में भी पूरा फायदा उठाना चाहेंगे.

कर्नाटक चुनाव इसका सबसे बड़ा नमूना है. कांग्रेस ने बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा को टारगेट करना शुरू किया तो प्रधानमंत्री मोदी ने सिद्धारमैया को ही निशाने पर ले लिया. मोदी ने कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार को 'सीधा-रुपैया' सरकार करार दिया है. बात सिर्फ कर्नाटक चुनाव तक ही नहीं थमने वाली. आगे 2019 और उससे पहले के चुनाव भी इसी रणनीति का हिस्सा हैं.

और चुनावों से पहले तो बजट सत्र का बाकी हिस्सा. बजट सत्र का दूसरा चरण होली बाद 5 मार्च को शुरू होने जा रहा है. सरकार को भी मालूम है कि पीएनबी स्कैम और उसके आपराधिक किरदारों नीरव मोदी, मेहुल चौकसी के साथ ही विजय माल्या से लेकर ललित मोदी तक विपक्ष नाम ले लेकर शोर मचाएगा ही. सरकार अपना काम कर रही है. केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि कानून अपना काम कर रहा है. जांच एजेंसियां भी बखूबी जानती हैं कि कानून कैसे अपना काम करता है. ये वक्त का तकाजा नहीं तो और क्या है, जांच ऐजेंसियों से बेहतर भला कौन जानता है कि कानून के किस सबक को कहां इस्तेमाल करना है. सुप्रीम कोर्ट ने तो सीबीआई को तोता ही कहा था, कभी कभी तो ये भी समझ में नहीं आता कि तोता कब और कैसे घोड़ा बन जाता है - "राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड़ जाता था..."

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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