Prashant Kishor के लिए कांग्रेस का माहौल जेडीयू से कितना अलग होगा
प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) अगर कांग्रेस ज्वाइन कर लेते हैं तो मुख्यधारा की राजनीति में उनकी दूसरी पारी होगी. देखना ये है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ उनका अनुभव नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के साथ जेडीयू में काम करने से कितना अलग होता है.
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प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) नये जोश के साथ नयी पारी की तैयारी में जुटे हैं. अपनी ये इच्छा प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे वाले दिन ही लाइव टीवी पर जाहिर कर दी थी - आगे ये काम मैं नहीं करने जा रहा हूं.
और तभी ये संकेत दे दिया था कि चुनाव कैंपेन की जगह वो मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा बनना चाहते हैं. ऐसा दो तरीके से संभव है. एक, अपना नया राजनीतिक दल बना कर - और दो, किसी स्थापित राजनीतिक दल का हिस्सा बन कर.
प्रशांत किशोर ने पहले जेडीयू ज्वाइन किया था. जेडीयू में प्रशांत किशोर को उपाध्यक्ष बनाया गया था जहां नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बाद पार्टी में उनकी नंबर दो की पोजीशन हुआ करती थी, लेकिन वो लंबा नहीं चल सका था.
प्रशांत किशोर को जेडीयू ज्वाइन कराते वक्त नीतीश कुमार ने कहा था - ये पार्टी के भविष्य हैं. बातचीत में प्रशांत किशोर जेडीयू की अपनी पारी को पूरी तरह फेल बताते हैं. वो किसी और को कभी दोष देते नहीं दिखे. जीवन के एक बुरे अनुभव की तरह जिक्र करते हुए वो अपनी ही नाकामी के दौर पर देखते हैं - और ये बताना भी नहीं भूलते कि वैसा ही मौका आगे मिला तो भी जरूरी नहीं कि प्रोजेक्ट सफल हो ही.
कांग्रेस के एंट्री गेट तक पहुंच चुके प्रशांत किशोर के लिए आगे की राह कैसी होगी, फिलहाल ये बड़ा सवाल है. कांग्रेस में प्रशांत किशोर को जिन चुनौतियों से जूझना है, वे जेडीयू के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं. आइये समझने की कोशिश करते हैं कि कांग्रेस में प्रशांत किशोर की पारी कैसी हो सकती है? क्योंकि बातचीत फिलहाल भले ही सोनिया गांधी के साथ चल रही हो कांग्रेस में प्रशांत किशोर काम तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ ही करना है.
1. नापसंद करने वाले नेताओं की चुनौती
किसी राजनीतिक दल का हिस्सा बनने की बात अलग है, लेकिन प्रशांत किशोर के मामले में अक्सर यही देखा गया है कि जिस किसी के लिए भी वो काम करते हैं, उनको नापसंद करने वाले नेताओं की लंबी कतार लग जाती है. कांग्रेस के भी कई नेता पहले से ही कहते रहे हैं कि प्रशांत किशोर के पास कोई जादुई छड़ी नहीं है.
और प्रशांत किशोर के साथ शुरू से ही ऐसा ही अनुभव रहा है. चुनाव कैंपेन को लेकर प्रशांत किशोर ने प्रजेंटेशन तो पहले भी बहुतों के सामने दिया था, लेकिन ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे जिनके मुंह से, गुजरात के मुख्यमंत्री रहते पहली बार उनको हां सुनने को मिला था. ये तब की बात है जब मोदी 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रहे थे.
प्रशांत किशोर के लिए नीतीश कुमार के मुकाबले राहुल गांधी के साथ काम करना मुश्किल हो सकता है
मुख्यमंत्री की तीसरी पारी के बाद जब मोदी ने दिल्ली का रुख किया तो प्रशांत किशोर पहले से ही उनके साथ थे, लिहाजा काम जारी रहा. प्रशांत किशोर के लिए मुश्किल शुरू हुई 2014 के कैंपने के सफल हो जाने के बाद. प्रशांत किशोर तभी सेटल हो जाना चाहते थे, लेकिन बीजेपी के ही कई नेता उनको पसंद नहीं करते थे. प्रशांत किशोर चाहते थे कि बीजेपी में उनको कोई बड़ा पद मिले, लेकिन बात नहीं बन पायी.
करीब साल भर बाद ही बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले थे और प्रशांत किशोर का कैंपेन एक्शन प्लान नीतीश कुमार को पसंद आ गया. एक बार फिर प्रशांत किशोर सफल हुए - और बात यहां तक पहुंची कि वो जेडीयू में नंबर 2 वाली कुर्सी पर काबिज हो गये.
भला बरसों से जीतोड़ मेहनत कर रहे जेडीयू के सीनियर नेताओं को ये पैराशूट एंट्री कैसे हजम होती. तब तक नीतीश कुमार के बाद पार्टी के कर्ताधर्ता आरसीपी सिंह और ललन सिंह हुआ करते थे और नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को उनके ऊपर लाकर बिठा दिया था.
दोनों नेताओं ने हाथ मिलाया और मिशन में लग गये. प्रशांत किशोर को युवाओं को जेडीयू से जोड़ने का काम दिया गया - और जब 2019 का आम चुनाव आया तो प्रशांत किशोर को कैंपेन के काम से ही दूर कर दिया गया.
अब किसी शख्स से वही काम छीन लिया जाये जिसका वो अकेला एक्सपर्ट हो तो वो क्या करेगा? तभी से वो काम की तलाश करने लगे. धीरे धीरे जगन मोहन रेड्डी, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के काम मिलते गये - और सीएए आंदोलन के दौरान प्रशांत किशोर की बयानबाजी को बहाना बना कर जेडीयू से बाहर कर दिया गया.
बेशक प्रशांत किशोर को भी एक ठिकाने की तलाश थी, लेकिन नीतीश कुमार ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए ही उनके साथ को औपचारिक स्वरूप देने की कोशिश की थी. तब भी नीतीश कुमार, लालू यादव और बीजेपी नेतृत्व के बीच फंसे हुए थे. आज भी नीतीश कुमार की स्थिति जस की तस बनी हुई है.
प्रशांत किशोर और कांग्रेस की डील फाइनल होने वाली है और सोनिया गांधी भी प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार की ही तरह साथ में खड़े देखना चाहती होंगी - बड़ा सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी को भी ये सब उतना ही पसंद है.
2. राहुल और नीतीश का फर्क कैसे समझें?
राहुल गांधी और नीतीश कुमार में सबसे बड़ा फर्क तो यही है कि एक को राजनीति में दिलचस्पी ही नहीं है, जबकि दूसरे को चाणक्य के तौर पर देखा जाता है. वैसे भी चाणक्य कोई यूं ही नहीं बन जाता.
नीतीश कुमार को प्रशांत किशोर इसलिए भी पसंद आते थे क्योंकि चुनाव के बाकी प्रबंधन को तो वो संभालते ही थे, बीच बीच में संकटमोचक की भूमिका भी निभाते रहे. जब भी लालू यादव के साथ उनके टकराव की नौबत आती, प्रशांत किशोर ही रास्ता निकालते. चाहे वो सीटों पर समझौता हो या फिर कोई और बात.
अब अगर राहुल गांधी राजनीति में ही दिलचस्पी नहीं लेते तो गठबंधन और बाकी सौदेबाजी में उनका कहां तक इंटरेस्ट हो सकता है. जब ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दोस्त के कांग्रेस छोड़ने की राहुल गांधी को परवाह न हो, जब पंजाब में कांग्रेस की सत्ता गंवा देने को लेकर भी कोई मलाल न हो - तो क्या उम्मीद की जा सकती है.
सोनिया गांधी ने प्रशांत किशोर पर फीडबैक के लिए जो पैनल बनाया था, राहुल गांधी उसका भी हिस्सा नहीं थे. प्रियंका गांधी को जरूर शामिल किया गया था. जब लगातार इतनी महत्वपूर्ण मीटिंग चल रही थी तब भी वो विदेश यात्रा पर निकल गये.
बताया जा रहा है कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस ज्वाइन कराने पर अंतिम फैसला सोनिया गांधी को लेना है, लेकिन उससे पहले एक बार राहुल गांधी की राय जरूर जानना चाहेंगी - सबसे बड़ी बात ये है कि प्रशांत किशोर को राहुल गांधी के साथ ही काम करना है और ये अपनेआप में एक बड़ी चुनौती है.
3. गठबंधन का मामला कैसे सुलझाएंगे
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस नेतृत्व को कुछ राज्यों में अकेले और कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन करने की सलाह दी है - मुश्किल ये है कि कुछ राजनीतिक दलों से कांग्रेस के सीनियर नेताओं को परहेज है और कुछ तो गांधी परिवार को ही फूटी आंख नहीं सुहातीं.
आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को गांधी परिवार बिलकुल भी नहीं पसंद करता. इसलिए नहीं कि पंजाब में केजरीवाल ने कांग्रेस सत्ता छीन ली है. और इसलिए भी नहीं कि केजरीवाल ने पहली सरकार भी दिल्ली में कांग्रेस के सहयोग से ही बनायी थी.
2019 के आम चुनाव के दौरान भी अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन की काफी कोशिशें की, लेकिन तब शीला दीक्षित के नाम पर राहुल गांधी टाल गये. ऐसा ही रास्ता कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में भी अख्तियार किया था.
हाल फिलहाल तो ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही लग रहा है. दरअसल, ममता बनर्जी के विपक्षी खेमे से कांग्रेस को अलग रखने की कोशिशों से गांधी परिवार बेहद नाराज है. वैसे 13 विपक्षी दलों की तरफ से केंद्र सरकार को भेजे गये पत्र पर ममता बनर्जी की दस्तखत में प्रशांत किशोर का ही असर देखा जा रहा है.
आप और टीएमसी की तरह ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस के खिलाफ भी कांग्रेस का पहले से ही रिजर्वेशन देखा जा रहा है. 2019 में केसीआर ने गैर-बीजेपी के साथ साथ गैर-कांग्रेस विपक्षी मोर्चे की कोशिश की थी - और एक बार भी अपने मुंबई दौरे में उद्धव ठाकरे और शरद पवार से मिल कर वैसा ही संकेत दिया है.
4. फ्री-हैंड का पैमाना क्या होगा?
प्रशांत किशोर के लिए कांग्रेस में पद और जिम्मेदारियों को लेकर तो विचार विमर्श जारी है ही, उनकी अपनी भी कुछ शर्ते हैं - और सबसे बड़ी शर्त है, फ्री-हैंड देने की. प्रशांत किशोर जिस किसी भी क्लाइंट के साथ काम करते हैं, ये उनकी पहली शर्त होती है.
बाहर रह कर चुनाव कैंपेन की बात और होती है, लेकिन किसी राजनीतिक दल का हिस्सा बन कर ऐसी छूट मिलना काफी मुश्किल है. जब राहुल गांधी चाह कर भी प्रशांत किशोर को विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस में नहीं ला पाये, तो कांग्रेस नेता बन कर प्रशांत किशोर कितने मनमाफिक काम कर पाएंगे कहना मुश्किल है. विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर की राहुल और प्रियंका गांधी से हुई मुलाकात के बाद ही कांग्रेस नेताओं ने अपने अपने तरीके से विरोध जताना शुरू कर दिया था.
प्रशांत किशोर चाहते हैं कि वो सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष को रिपोर्ट करें. फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी काम कर रही हैं और अगर चुनाव बाद राहुल गांधी ये पद मंजूर करते हैं तो उनको करना होगा.
कांग्रेस नेताओं की तरह लगता नहीं कि राहुल गांधी से प्रशांत किशोर को कोई समस्या है, लेकिन वो कई पावर सेंटर को बारी बारी रिपोर्ट नहीं करना चाहते. और ये भी मुश्किल लगता है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष बन जाने के बाद भी क्या प्रियंका गांधी वाड्रा अलग से कोई शक्ति केंद्र नहीं रहेंगी.
बताते हैं कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के G-23 नेताओं से भी विधानसभा चुनावों से पहले मुलाकात की थी. हो सकता है, उनमें प्रशांत किशोर के कांग्रेस में आने का विरोध करने वाले नेता भी शामिल हों और वो खुद मिलकर उनके मुखालफत की वजह जानने की कोशिश कर रहे हों.
ऐसे ही नेताओं के हवाले से आई एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रशांत किशोर चाहते हैं कि गांधी परिवार पर भी एक व्यक्ति एक पद का नियम लागू हो. अगर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाये तो अध्यक्ष की जिम्मेदारी कोई और निभाये. इसके लिए एक व्यवस्था ये समझायी जा रही है कि राहुल गांधी कांग्रेस के संसदीय दल का नेता बन जायें और अध्यक्ष गांधी परिवार से अलग का हो.
राहुल गांधी तो ये शुरू से ही चाहते हैं कि अध्यक्ष कोई गांधी परिवार से अलग का ही हो, लेकिन वो रबर स्टांप होना चाहिये. आखिर उनको कैसे अच्छा लगेगा कि बगैर अध्यक्ष जो काम फिलहाल वो कर रहे हैं, वो कोई और करने लगे - ऐसे में प्रशांत किशोर को कितना फ्री-हैंड मिलेगा, कैसे अंदाजा लगाया जाये.
5. कांग्रेस में कब तक टिक पाएंगे?
जेडीयू का ट्रैक रिकॉर्ड प्रशांत किशोर का पीछा नहीं छोड़ रहा है. सोनिया गांधी और प्रशांत किशोर के साथ एक मीटिंग में कांग्रेस के कई और भी नेता मौजूद थे. तभी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रशांत किशोर से उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जानने की कोशिश की.
सोनिया गांधी की मौजूदगी में प्रशांत किशोर से अशोक गहलोत का सवाल था - वो पार्टी में कब क रहेंगे?
अशोक गहलोत के सवाल पर प्रशांत किशोर ने जो जवाब दिया वो कांग्रेस से उनके जुड़ने की सबसे बड़ी शर्त भी लगती है - 'ये आप पर निर्भर है कि आप मेरी कितनी सुनते हैं!'
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