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Updated: 03 जून, 2020 07:48 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) का G7 summit के लिए न्योता बड़े मौके से मिला है. G7 देशों की राजनीति, सामरिक रणनीति और कारोबार भले ही भारत के ज्यादा काम न आ पाये, लेकिन भारत के लिए वो मंच महत्वपूर्ण हो सकता है - और कुछ नहीं तो भारत G7 के मंच से चीन (China) को कूटनीतिक तौर पर वैसे ही घेर सकता है, जैसे संयुक्त राष्ट्र के मंच से पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और G20 के मंच से कोरोना वायरस के खिलाफ दुनिया के तमाम मुल्कों को आपसी मतभेद छोड़ कर महामारी के खिलाफ एकजुट होकर जंग लड़ने की हौसलाअफजाई.

G7 देशों की मीटिंग सितंबर में होनी थी - और अब साल 2020 के आखिर में होने की संभावना जतायी जा रही है. डोनाल्ड ट्रंप ने ये समझाते हुए मीटिंग स्थगित कर दी थी कि मौजूदा माहौल में इसे अपग्रेड करना जरूरी हो गया है. डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि जी7 में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले और भी देश शामिल हों.

फिर डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के बीच फोन पर बात भी हुई है, जिसमें तमाम मुद्दों के बीच जी7 को लेकर भी चर्चा हुई है - ये भी मान कर ही चलना होगा कि चीन को लेकर शी जिनपिंग के मन में भी कुछ न कुछ चल ही रहा होगा.

ट्रंप को मोदी का शुक्रिया और शुभकामनाएं

भारत और चीन सीम पर तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मध्यस्थता का ऑफर किया था, जिसे भारत ने तो ठुकराया ही चीन ने भी बोल दिया कि न तो ऐसी कोई स्थिति है और न ही ऐसे किसी के मध्यस्थता की जरूरत है. भारत ने ट्रंप के प्रस्ताव को ठुकराया क्या - अमेरिकी राष्ट्रपति के उस दावे की भी हवा निकाल दी जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के साथ बातचीत और मूड ऑफ होने का दावा किया गया था.

जी7 को लेकर ट्रंप का प्रस्ताव बिलकुल ताजा है और इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही ट्वीट कर बातचीत की पुष्टि की है. 25 मिनट तक हुई इस बातचीत में दोनों नेताओं के बीच अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद हिंसा, भारत और चीन सीमा पर तनाव, कोरोना वायरस महामारी और WHO में सुधार जैसे मुद्दों चर्चा हुई.

समूह 7 देशों के संगठन में फिलहाल अमेरिका के अलावा कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और यूनाइटेड किंगडम हैं. अब डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि इसमें भारत के साथ साथ रूस, साउथ कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी शामिल हों.

भारत ने तो डोनाल्ड ट्रंप का सपोर्ट किया है, लेकिन रूस ने बड़ा झटका दिया है. रूस ने ट्रंप के प्रस्ताव को खारिज करते हुए जी7 में शामिल होने से इंकार कर दिया है. रूस का कहना है कि ये गुजरे जमाने का संगठन है. रूस ने भी बात वही कही है जो डोनाल्ड ट्रंप मानते हैं. आखिर ट्रंप भी तो जी7 को पुराने जमाने का संगठन मानते हैं तभी तो इसे जमाने के हिसाब से विस्तार देना चाहते हैं.

putin and xi jinpingG7 को लेकर रूस के पेंच फंसाने के बात तो अमेरिका को भारत की ज्यादा जरूरत होगी

एकबारगी तो ऐसा लगता है जैसे रूस ने जी7 में शामिल होने से इंकार करके मौके का फायदा उठाया है. ऐसा करके रूस ने एक तरीके से चीन का सपोर्ट भी तो किया है - और ये बात अमेरिका के खिलाफ जाती है. अमेरिका और चीन के रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे हैं. WHO की फंडिंग रोकने अमेरिकी फैसले के पीछे डोनाल्ड ट्रंप की चीन से नाराजगी ही है. रूस ने कहा भी है कि चीन के बगैर कोई भी अंतर्राष्ट्रीय मंच अधूरा है.

अब तो धीरे धीरे साफ भी होने लगा है कि डोनाल्ड ट्रंप G20 के प्रभाव को देखते हुए ये सब कर रहे हैं - और रूस का इंकार करना, साथ ही ये कहना कि वो जी 20 में ही बने रहना चाहता है, उन सारे शक शुबहे को साफ कर रहा है जो कूटनीति के विशेषज्ञों के मन में उठ रहे हैं. अमेरिका जी 20 के प्रभाव को कम करने या खत्म करने का इरादा कर चुका है, लेकिन रूस ने पेंच फंसा दिया है.

अमेरिका, रूस और चीन के आपसी हित अलग अलग है, लेकिन भारत को ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिये. भारत के लिए ये एक बड़ा मौका है और उसका इस्तेमाल भी करना चाहिये. कोरोना वायरस से आई महामारी से लड़ाई के मकसद से दुनिया के मुल्कों को एकजुट करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने सार्क और जी20 के सम्मेलन की पहल की थी - और ये वर्चुअल सम्मेलन हुआ भी. जी20 में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र ने एक और पहल की और सभी ने सराहा भी कि वक्त कोरोना के जन्मस्थान पर बहस करने का नहीं, बल्कि, एकजुट होकर महामारी से मानवता को निजात दिलाने की है.

उम्मीद की जानी चाहिये कि जब तक जी7 सम्मेलन की तारीख आएगी - दुनिया कोरोना वायरस के साथ जीना अच्छे से सीख चुकी होगी.

राहुल गांधी का मोदी से सवाल

लद्दाख में भारत और चीनी सैनिकों के बीच झड़प की पहली खबर 5-6 मई को आई थी - और अब तो रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का भी बयान आ गया है कि LAC पर चीनी फौज की गतिविधियां चल रही हैं.

सरहद पर जारी तनाव के बीच राहुल गांधी ने पूछा है कि क्या भारत सरकार इस बात की पुष्टि कर सकती है कि कोई चीनी सैनिक भारत सीमा में नहीं घुसा है? राहुल गांधी ने अपने ट्वीट के साथ एक मीडिया रिपोर्ट को भी शेयर किया है. राहुल गांधी से पहले कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला भी जानना चाह रहे थे कि चीनी सेना द्वारा भारतीय सीमा में घुसपैठ के दुस्साहस पर मोदी सरकार क्यों मौन बैठी है?

विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस कोरोना वायरस की महामारी के बीच मोदी सरकार खिलाफ आक्रामक तो रही ही है, भारत-चीन तनाव पर भी राहुल गांधी का सवाल वैसे ही विपक्षी हक जताने का हिस्सा लगता है. वैसे चीनी राजदूत से मुलाकात को लेकर राहुल गांधी खुद भी सवालों के घेरे में रहे हैं. ये मुलाकात जुलाई, 2017 में हुई थी. पहले तो रणदीप सुरजेवाला ने मीडिया की खबरों को फेक न्यूज के तौर पर खारिज करने की कोशिश की, लेकिन जब घिर गये तो ये कहते हुए बचाव का रास्ता खोज लिया कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मुलाकात सिर्फ चीनी राजदूत से ही नहीं, बल्कि भूटान के राजदूत से भी हुई थी - और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन से भी.

इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि चीन के साथ कूटनीतिक और मिलिट्री लेवल पर बातचीत जारी है और नरेंद्र मोदी सरकार कहीं भी कोई भी समझौता नहीं करने वाली है.

भारत-चीन तनाव के बीच इकनॉमिक टाइम्स ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें लद्दाख सीमा पर चीन की तरफ से करगिल जैसी चाल चलने की बात है. रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च के दूसरे हफ्ते में एक जवान के कोरोना संक्रमित का शिकार होने पर ऐहतियाती उपायों के तहत सुरक्षाबलों के जमावड़े पर रोक लगा दी गई थी. अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट मे बताया गया है कि कोरोना को फैलने से रोकने के लिए लद्दाख में होने वाला अभ्यास भी स्थगित करने का फैसला इसमें शामिल था.

कहने को तो चीन ने भी एक महीने के लिए अपने अभ्यास स्थगित कर दिया था, लेकिन बीच में ही चीन ने गलवान घाटी और पैंगोंग शो झील के करीब फिंगर एरिया में सैनिकों को तैनात भी कर दिया. चीन की इस चाल के बाद भारत भी अलर्ट मोड में आ गया और कोविड 19 प्रोटोकाल की परवाह न करते हुए लेह में तैनात सैनिकों को मोर्चे पर भेज दिया.

एक इंटरव्यू में राजनाथ सिंह बोले, 'एक मतभेद हुआ है - और अच्छी-खासी संख्या में चीन के लोग भी आ गये हैं, लेकिन भारत को भी अपनी तरफ से जो कुछ करना चाहिए, भारत ने किया है.'

राजनाथ सिंह ने अमित शाह वाली बात ही दोहरायी कि कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर बातचीत के जरिये विवाद को सुलझाने की कोशिश जारी है. इस सिलसिले में दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण मीटिंग 6 जून को होने वाली है.

राजनाथ सिंह का ये बयान भारत और चीन के बीच मौजूदा तनाव पर आधिकारिक पुष्टि के तौर पर देखा जा सकता है. समझा जाता है कि जैसे डोकलाम विवाद को लेकर तब भारत और चीन में सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बात हुई थी, इस बार भी पहले उसी रास्ते समस्या का हल खोजने की कोशिश हो रही है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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