India-China Standoff पर Donald Trump के झूठ के पीछे कुछ सच्चाई भी है
डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) का बगैर बात किये ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को मूड भांप लेना भले ही तथ्यों से परे हो, लेकिन एक भाव पक्ष जरूर है - ऐसा करके ट्रंप ने चीन को ये तो जता ही दिया है कि तनाव की स्थिति (India China Standoff) में अमेरिका किस तरफ खड़ा होगा.
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महीना होने को आया जब से लद्दाख में सेना और चीनी सैनिक आमने-सामने डटे (India China Standoff) हुए हैं. चीन की तरफ से सैनिकों की तादाद बढ़ाये जाने की खबरों के बीच भारत भी सतर्क और सेना मुस्तैद है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) तीनों सेनाओं के प्रमुखों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ मीटिंग कर चुके हैं. ये उसी समय की बात जब बगैर किसी सरहद की ओर इशारा के ही शी जिनपिंग ने चीनी सैनिकों को तैयार रहने की हिदायत दी थी.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने भारत और चीन के बीच जारी तनाव को लेकर अपनी तरफ से मध्यस्थता की पेशकश की है. ट्रंप ऐसी पेशकश भारत और पाकिस्तान के बीच भी कर चुके हैं, कश्मीर को लेकर. मुद्दा अपनी जगह है, लेकिन ये तो तय है कि डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन के प्रति अपनी विदेश नीति साफ कर दी है - और इसमें समझने वाली बात भी बस इतनी ही है कि ट्रंप का ताजा रूख भारत के लिए फायदेमंद है या नुकसानदेह?
ट्रंप को मोदी के मूड का पता कैसे चला?
लगता है डोनाल्ड ट्रंप के मन में भी कहीं न कहीं बराक ओबामा की तरह शांति का नोबल पुरस्कार लेने की ख्वाहिश है. शांति का मसीहा बनने के चक्कर में ही तो वो उत्तर कोरियाई शासक किम जॉन्ग उन से मिलने चले गये थे.
मुमकिन है वो चाहते हों कि दुनिया उनको शांति के मसीहा के तौर पर याद करे, इसीलिए कभी कश्मीर पर तो कभी भारत और चीन के बीच मध्यस्थता का प्रस्ताव रख देते हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि अमेरिकी विशेषज्ञ भी ट्रंप की इन बातों को बुरा नहीं मानते, ऐसा उनके रिएक्शन से पता चलता है. वे भी मान कर चलते हैं - बोल दिये होंगे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई बातचीत को लेकर डोनाल्ड ट्रंप के दावे पर भारत ने आधिकारिक तौर पर तो कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट से तो यही मालूम होता है कि भारत और चीन को लेकर डोनाल्ड ट्रंप सफेद झूठ बोल रहे हैं. ये भी साफ है कि कोरोना वायरस को लेकर चीन की भूमिका से खफा डोनाल्ड ट्रंप को तो बस किसी मौके की तलाश है और ऐसी हालत में ट्रंप के अभिलाक्षणिक गुणों के हिसाब से ऐसी टिप्पणियां अचरज भी नहीं पैदा करती हैं.
न्यूज एजेंसी ANI ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बातचीत 4 अप्रैल को हुई थी - उसके बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. आखिरी बार दोनों नेताओं में Hydroxychloroquine को लेकर बात हुई थी.
दरअसल, पत्रकारों ने ट्रंप से पूछा था कि भारत और चीन की सरहद पर जो तनाव का दौर चल रहा है उसकी उनको कितनी फिक्र है? ट्रंप का जवाब था, 'मैं आपको बता रहा हूं कि मैंने प्राइम मिनिस्टर मोदी से इसके बारे में बात की है... चीन के साथ जो कुछ चल रहा है, उसे लेकर वो अच्छे मूड में नहीं हैं.'
ट्रंप ने तनावपूर्ण माहौल को लेकर कहा, 'भारत और चीन में विवाद बड़ा है. दोनों मुल्कों के पास करीब 1.4 अरब की आबादी है और दोनों देशों की फौज बहुत ही ताकतवर हैं. भारत खुश तो नहीं है - और लगता है चीन भी खुश नहीं है.'
डोनाल्ड ट्रंप ने मध्यस्थता की पेशकश के साथ ही साफ कर दिया है कि वो किसकी तरह हैं
अब सवाल ये है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात किये बगैर ही डोनाल्ड ट्रंप को ये कैसे मालूम हो गया कि चीन की हरकतों से उनका मूड ऑफ है. ऐसा तो तभी होता है जब दो दोस्तों में बहुत ही ज्यादा भावनात्मक लगाव हो. वैसे ट्रंप कहते तो रहते हैं कि उनकी प्रधानमंत्री मोदी से अच्छी दोस्ती है. दोस्ती तो मोदी की ट्रंप के पूर्ववर्ती बराक ओबामा से भी बहुत अच्छी रही है.
अगर ट्रंप अपनी तरफ से सिर्फ इतना ही कहे होते कि मोदी का मूड अच्छा नहीं होगा और ये बात वो अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं, तो भी लोग ट्रंप को फेकने वाला समझने से परहेज करते, लेकिन वो बार बार ऐसा समझने से चूक जाते हैं. दूसरों की कौन कहे अमेरिकी लोग भी ऐसा ही मानते हैं.
जाने-माने रणनीतिक और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ एशले जे टेलिस इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में कहते हैं, 'डोनाल्ड ट्रंप जो कुछ भी करते हैं, वो क्यों करते हैं, उसे समझा पाना बहुत कठिन है. लेकिन शांतिदूत होने की संभावना का विचार उन्हें लगातार लुभाता है. मैं इसे गंभीरता से नहीं लूंगा. मुझे लगता है कि ये राष्ट्रपति की एक और आवेग में दी गई प्रतिक्रिया है. ट्रंप के कहने का मतलब है.'
जो बात ट्रंप ने कही है वो भले ही हवा हवाई हो. जिस तरह का दावा ट्रंप ने किया है वो भले ही झूठा हो, लेकिन इससे जो मैसेज निकलता है वो महत्वपूर्ण जरूर लगता है. किसी भी विवाद की स्थिति में मध्यस्थ वही होता है जो न्यूट्रल होता है. हो सकता है कश्मीर के मामले में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान भी ऐसा मानते हों, लेकिन शी जिनपिंग ऐसा सोचते भी होंगे, सवाल ही पैदा नहीं होता.
जो खुलेआम चीन को कोरोना वायरस के लिए पूरी दुनिया में जिम्मेदार ठहराता रहा हो. जो शी जिनपिंग पर ये आरोप भी लगा चुका हो कि ये चीन ही है जो उनके दोबारा राष्ट्रपति बनने में रोड़ा डालने की कोशिश कर रहा है क्योंकि वो बिलकुल नहीं चाहता कि ऐसा संभव हो सके. जो चीन के खिलाफ अपने मित्र देशों को भड़का रहा हो जिसका सीधा असर चीन के कारोबार और उसकी बदौलत अर्थव्यवस्था पर पड़े - वैसे किसी शख्स से निष्पक्षता की उम्मीद चीन भला कैसे करेगा. स्थिति तो ये है कि निष्पक्ष नहीं बल्कि, अमेरिका को चीन अपने खिलाफ ही मान कर चल रहा होगा. ऐसा मानने के पीछे उसके पास आसान तर्क भी हैं.
अब अगर ऐसा है तो चीन तो यही मानेगा न कि अमेरिका निश्चित तौर पर भारत के पक्ष में ही खड़ा होगा. अगर वो भारत के साथ चीन कोई रणनीतिक या सामरिक साजिश रचता है तो अमेरिका उसके पक्ष में खड़े होने या तटस्थ रहने की जगह खिलाफ ही खड़ा नजर आएगा. अमेरिका के चीन के खिलाफ खड़े होने का मतलब तो भारत का सपोर्ट ही हुआ.
ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि उसी प्रेस मीट में डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महान और सज्जन पुरुष भी बताया है. अगर ये सब भी झूठा हो तो भी ट्रंप के मुंह से मोदी की ऐसी तारीफ सुन कर शी जिनपिंग का मन को सिहर ही उठेगा, डर न सही गुस्से से ही सही.
मोटे तौर पर देखें तो डोनाल्ड ट्रंप ने सरहद पर तनाव की स्थिति में चीन के खिलाफ भारत का खुलेआम सपोर्ट किया है - और डिप्लोमेटिक नजरिये से देखा जाये तो ये सब पूरी तरह भारत के पक्ष में ही तो जाता है.
फिर इतना तो कह ही सकते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के केस में शब्दों पर नहीं भावनाओं पर गौर करना चाहिये! है कि नहीं?
ट्रंप की पहल से फायदा होगा या नुकसान
सीधे सीधे तो न फायदा होने वाला है - और न ही नुकसान. नुकसान की संभावना इसलिए नहीं लगती क्योंकि ये बात आई गयी और खत्म भी हो गयी जैसी ही है. ट्रंप ऐसा कोई पहली बार तो कर नहीं रहे हैं. ऐसी बहुत सी बातें ट्रंप करते हैं जिसे लोग 'भेड़िया आया... ' वाले किस्से की तरह एक कान से सुन कर दूसरे कान से बाहर कर देते हैं. बाहरी लोग ही नहीं, अमेरिकी भी ऐसा ही मानते हैं. फायदा इसलिए नहीं होगा क्योंकि न तो भारत और न ही चीन, दोनों में से कोई भी इस बात के लिए रजामंदी नहीं देने वाला. वैसे ट्रंप को भले ही कोई फायदा न हो लेकिन इसमें भारत के लिए फायदे वाली बात ये है कि अमेरिका ने ये इशारा तो कर ही दिया है कि तनाव बढ़ने की स्थिति में वो किस तरफ रहने वाला है.
अमेरिका कोरोना वायरस पर चीन के रूख से पहले से भी हद से ज्यादा खफा है. डोनाल्ड ट्रंप अब भी यही मानते हैं कि वुहान लैब में ही कोरोना वायरस पैदा हुआ है - और चीन काफी समय तक दुनिया को इस मुद्दे पर गुमराह करता रहा है. इससे जुड़ी बात एक तो ये भी है कि खुद डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस को बहुत दिनों तक हल्के में लेते रहे. कभी कहते कोरोना से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला तो कभी दावा करते सब कुछ ही दिन में सामान्य हो जाएगा - ये सब सोचते और करते करते अमेरिका की हालत क्या हो चली है पूरी दुनिया देख रही है.
डोनाल्ड ट्रंप तो कोरोना वायरस को चीनी वायरस कह कर ही बुलाते रहे हैं, वो तो G 20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की पहल रही कि ये समय वायरस की जन्म स्थान को लेकर बहस में वक्त बर्बाद करना का नहीं है, बल्कि महामारी से सबको निजात कैसे मिले ये सोचने का है. चीन के लिए ये बड़ा सपोर्ट था लेकिन शी जिनपिंग शायद इस बात की अहमियत भूल गये. नतीजा ये हुआ है कि जो देश थोड़ा आगे बढ़ चुके थे वे फिर से चीन के खिलाफ लामबंद होते जा रहे हैं.
जी 20 सम्मेलन के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने शी जिनपिंग से बात भी की थी और कोरोना के खिलाफ मिल कर लड़ाई लड़ने को कहा था, लेकिन चीन का रवैया कहां बदलने वाला. चीन भी तो एक जगह नहीं बल्कि हर जगह बवाल की जड़ बना हुआ है. इसमें एक मामला 1000 विदेशी कंपनियों के चीन से कारोबार समेटने की तैयारी को लेकर भी है. हॉन्ग कॉन्ग को लेकर चीन में बने नये कानून से अलग ही नाराजगी है. अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जापान तक हॉन्ग कॉन्ग के मुद्दे पर चीन के खिलाफ एकजुट होकर एक तरफ खड़े हो चुके हैं.
जहां तक डोनाल्ड ट्रंप की पेशकश का सवाल है, भारत और चीन दोनों ही ने एक तरीके से खारिज कर दिया है. भारत ने आधिकारिक तौर पर कुछ कहा तो नहीं है, लेकिन जो भी कहा है उसमें संकेत को साफ तौर पर पढ़ा जा सकता है. चीन का सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स भी कह रहा है - दोनों देशों को ऐसी किसी मदद की जरूरत नहीं है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव की बातों पर जरा गौर कीजिये - 'हमलोग शांतिपूर्ण समाधान के लिए चीन से संपर्क में हैं.'
इसी बीच न्यूज एजेंसी पीटीआई की खबर के मुताबिक चीन न कहा है, भारत के साथ सीमा पर स्थिति पूरी तरह स्थिर और नियंत्रण में है.
काफी दिनों से लद्दाख और सिक्किम की सरहदों पर अपनी हरकतों के बावजूद चीन की तरफ से सरहद पर स्थिति स्थिर और नियंत्रण में बताया जाना और ये कहना कि दोनों मुल्कों में से किसी को भी किसी तरह की मध्यस्थता की जरूरत नहीं है - क्या डोनाल्ड ट्रंप के स्टैंड से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता?
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