Coronavirus का वुहान लैब कनेक्शन बयां कर नितिन गडकरी ने नया महाज़ खोला है
कोरोना वायरस के वुहान के लैब (Coronavirus made in Wuhan Lab) में पैदा किये जाने की थ्योरी को लेकिन अब भारत भी खुल कर मैदान में उतर रहा है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने इस अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) इल्जाम को सपोर्ट कर चीन को सही मैसेज दिया है.
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कोरोना वायरस धीरे धीरे चीन को बड़ी बर्बादी की तरफ ले जाने लगा है. कोरोना वायरस के चलते चीन में जान-माल का अब तक जो नुकसान हुआ वो तो हुआ ही - आगे की राह ज्यादा ही दुरूह नजर आ रही है. चीन को भी ये बात अच्छी तरह मालूम हो चुकी है कि वो अमेरिका और यूरोप के निशाने पर तो है ही, एशिया के भीतर भी उसका बहुत बुरा हाल होने वाला है. चीन की तरफ से हालिया हरकतें मुख्य मुद्दे से ध्यान हटाकर बरगलाने का सीधा प्रयास है.
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का चीन को लेकर बयान ऐसे दौर में काफी महत्वपूर्ण लगता है. नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने कोरोना वायरस वुहान शहर के लैब (Coronavirus made in Wuhan Lab) से निकलने की बात कह कर चीन को सीधे सीधे दुनिया के उसी कठघरे में खड़ा कर दिया है जहां वो पहले से ही निशाने पर है. जिस तरीके से चीन खुद ही सबको पछाड़ कर आगे बढ़ने के लिए बुने जाल में उलझता जा रहा है, भारत के लिए मौका भी बेहतरीन है कि चीन को तरीके से सबक सिखाते हुए उसे अपनी हदों में रहने की हिदायत भरी चेतावनी दी जाये.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) तो शुरू से ही कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहते आ रहे हैं, ये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक पहल रही कि जी 20 सम्मेलन में ये बोल कर चीन को राहत दिला दी कि वक्त ये देखने का नहीं कि वायरस पैदा कहां हुआ बल्कि उससे मुकाबला कैसे करना है इसके लिए है. वीडियो कांफ्रेंसिंग में प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद चीन को बड़ा सपोर्ट मिला और उसके बाद डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच बात भी हुई - और बताया गया कि दोनों मिल कर कोरोना से जंग लड़ेंगे. लेकिन ये लंबा नहीं चला और डोनाल्ड ट्रंप फिर से चीन के पीछे लग गये कि वो उनके दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने में रोड़े अटका रहा है.
चीन की कोशिश निवेशकों को गुमराह करने की है
हाल फिलहाल चीन जोरदार चर्चा है कि करीब 1000 कंपनियां कोरोना वायरस के चलते चीन से अपना कारोबार समेटने की तैयारी में हैं. कंपनियों को इसके लिए कोविड-19 से पैदा स्थिति के सुधरने का इंतजार है. भारत की कई यूपी सहित कई राज्य सरकारों के श्रम कानूनों में संशोधन के पीछे मकसद भी ऐसी ही कंपनियों को लुभाना है. योगी आदित्यनाथ ने तो इसके लिए तीन स्पेशल डेस्क भी बना चुके हैं. यूपी के मजदूरों को वापस लाकर 20 लाख रोजगार तैयार करने का लक्ष्य यूपी सरकार ने रखा है.
1000 कंपनियों के कारोबार समेटने की तैयारी को चीन की बौखलाहट स्वाभाविक है और जाहिर है वो अपने तरीके से इसे काउंटर करने की पुरजोर कोशिश भी कर रहा है. अमेरिका और यूरोप की ये कंपनियां भारत के साथ ही साथ इंडोनेशिया, वियतनाम, ताइवान और मलेशिया में संभावनाएं तलाश रही हैं. यही वजह है कि चीन किसी न किसी तरीके से भारत सहित अन्य मुल्कों को विवाद में उलझाने की कोशिश कर रहा है.
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक इंटरव्यू में कहा है, 'जहां तक मुझे पता है अगर ये वायरस नैसर्गिक होता तो वैज्ञानिकों को इसके बारे में पता होता. ये लैब में तैयार हुआ वायरस है.' साफ है नितिन गडकरी भी चीन को यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि अब तक जो इल्जाम अमेरिका कोरोना वायरस को लेकर चीन पर लगाता रहा है, भारत को भी उस पर शक करने की कोई वजह नहीं समझ आ रही है. मतलब, ये कि भारत भी एक तरीके से चीन को कोरोना वायरस दुनिया भर में फैलाने के लिए जिम्मेदार मान रहा है. नितिन गडकरी के बयान को प्रधानमंत्री मोदी के जी 20 सम्मेलन में दखल से आगे बढ़ कर देखना होगा. वो तब की बात थी, ये नया दृषिकोण है.
वैसे तो प्रधानमंत्री मोदी ने तब भी ये तो कहा नहीं था कि भारत कोरोना वायरस को लेकर अमेरिकी आरोपों से इत्तफाक नहीं रखता. प्रधानमंत्री मोदी ने तो बस इतना ही कहा था कि किसी मुद्दे पर अटके रहने की जगह जरूरत के हिसाब से आगे बढ़ कर देखना चाहिये. मतलब, प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के मामले में इतना स्कोप तो छोड़ ही दिया था जिसे अब नितिन गडकरी आगे बढ़ा रहे हैं.
नितिन गडकरी कहते हैं, 'ये प्राकृतिक वायरस नहीं है. ये आर्टिफिशियल वायरस है और अब पूरी दुनियाभर के देश इसकी वैक्सीन की खोज में लगे हुए हैं. अब तक वैक्सीन उपलब्ध नहीं हो पाया है, मगर उम्मीद है कि जल्द से जल्द इसकी वैक्सीन आ जाएगी और उसके बाद इस समस्या का समस्या का समाधान भी हो जाएगा.'
सख्त संदेश के बाद चीन को सबक सिखाना भी जरूरी हो गया है
ये चीन को मैसेज ही है. चीन को किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिये कि भारत को चीन की हरकतों को लेकर किसी तरह का भ्रम बना हुआ है. वैसे चीन ने कब कोई भी ऐसा मौका छोड़ा है जब वो भारत के खिलाफ पेंच फंसाने से बाज आया हो. पाकिस्तान तो उसके लिए दोस्त से भी अच्छा दोस्त है और इन दिनों नेपाल को भी अपने झांसे में लेने की कोशिश कर रहा है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट में लिखा है, 'इस बात का भी शक है कि लिपुलेख दर्रे के करीब सड़क पर नेपाल के साथ विवाद को भी पेइचिंग का मौन समर्थन हो. साउथ चाइना सी में चीन की नौसेना का आक्रामक अभ्यास चल रहा है. चीनी तटरक्षकों के हमले में वियतनाम की मछली मारने की एक नाव ध्वस्त हो गई... चीन का टोही जहाज इंडोनेशिया के करीब देखा गया है.'
फिर तो शक की कोई गुंजाइश बनती भी नहीं कि चीन एशिया में जगह जगह अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहा है ताकि अमेरिकी और यूरोपीय निवेशकों को दूसरें देशों में कारोबार की संभावनाएं तलाशने पर जोखिम लगने लगे - और थक हार कर वे भले इंतजार करें लेकिन चीन में ही बने रहें.
लद्दाख और सिक्किम दोनों जगह भारत और चीन की फौज में झड़प की खबरें आई हैं - और सिक्किम में तो एक फौजी ने चीन के मेजर को ऐसा सबक सिखाया है कि वो ताउम्र शायद ही भूल पाये.
चीन को सबक सिखाने का ये सही मौका है
चीन की ताजा हरकतों पर गौर करें तो डोकलाम विवाद काफी छोटा लगेगा. हाल ही में पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर एक इलाके में भारत और चीन के करीब 200 सैनिक आमने-सामने आ गये. पूरी रात तनाव का माहौल रहा और तड़के झड़प भी हो गयी. फिर जैसे तैसे दोनों तरफ के बड़े अफसरों ने बातचीत कर मामले को ठंडा किया.
वैसा ही वाकया उत्तरी सिक्किम के नाकू ला सेक्टर में भी देखा गया. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां गश्त के दौरान आमने-सामने आ जाने पर सैनिकों ने एक-दूसरे पर मुक्कों से वार किये. वहां भी मामला तभी शांत हो पाया जब दोनों तरफ के सीनियर अफसर दखल दिये.
मुगुथंक का वायका भी मिलता जुलता है लेकिन एक भारतीय फौजी ने चीन के एक अफसर की सारी हेकड़ी एक झटके में उतार दी. द क्विंट ने बहादुर लेफ्टिनेंट की दिलेरी पर बड़ी ही दिलचस्प रिपोर्ट प्रकाशित की है. हुआ ये था कि चीन के सैनिक भारतीय सैनिकों पर मुगुथंग में पीछे हटने को ये कहते हुए चिल्लाने लगे कि ये भारत का इलाका नहीं है. ये सुनते ही एक लेफ्टिनेंट का गुस्सा बर्दाश्त के बाहर हो गया, 'क्या बोला सिक्किम हमारा इलाका नहीं है?'
जैसे ही चीन का एक मेजर चिल्लाते हुए एक भारतीय कैप्टन की ओर बढ़ा लेफ्टिनेंट ने ऐसा घूंसा मारा कि मेजर के नाक से खून बहने लगा और वो बुरा तरह तिलमिला उठा. बाद में दोनों तरफ से बीच बचाव की कोशिश हुई और बड़ी मुश्किल से मामला शांत कराया जा सका.
सच तो ये है कि चीन को ऐसे ही सबक सिखाते रहने की जरूरत है. चीन इस वक्त बुरी तरह घिर चुका है. कोरोना वायरस को लेकर अमेरिकी पहल पर कई देश चीन के खिलाफ प्रस्ताव लाने की भी तैयारी में हैं. निवेशकों के चीन छोड़ने की तैयारी को लेकर चीन हद से ज्यादा परेशान है.
लॉकडाउन के दौरान ही भारत ने भी मेक इन इंडिया को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने की तैयारी कर ही ली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो कह ही दिया है कि लोकल को वोकल और फिर ग्लोबल बनाना है - 20 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज भी मोदी सरकार ने इसी मकसद से लाया है. अब जिस तरीके से MSME को प्रोत्साहित करने की सरकार की कोशिशें चल रही हैं और राज्य सरकारें श्रम कानूनों में संशोधन कर रही हैं, भारत जिन चीजों के लिए चीन पर निर्भर हुआ करता रहा वे अपने यहां ही तैयार होने लगेंगी. भारत के प्रति अब तक चीन ने जो भी संयम दिखाया है उसके पीछे बाजार पर उसकी नजर रही है वरना, अपनी तरफ से मुश्किलें खड़े करने से तो वो कभी भी पीछे नहीं हटा है.
चाहे वो पाकिस्तान को शह दे या फिर नेपाल या श्रीलंका के जरिये भारत के खिलाफ साजिश रचता फिरे. बांग्लादेश के मामले में बस उसकी दाल ज्यादा नहीं गल पाती कोशिशें चाहे जितनी कर ले.
भारत कैसे भूल सकता है कि पुलवामा आंतकी हमले के बाद जब मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने की प्रक्रिया चल रही थी तो चीन ने अपनी तरफ से क्या क्या नहीं किया. जब चारों तरफ से घिर गया और देखा कि भारत को ज्यादातर मुल्कों का सपोर्ट हासिल है तब जाकर शांत हुआ. अच्छा तो यही होगा कि चीन को इस बार ऐसे घेरा जाये कि भविष्य में वो अच्छे पड़ोसी की तरह पेश आने से ज्यादा की जुर्रत करने की सोचे भी नहीं.
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