कश्मीर घाटी में आतंकी और बाहर आजाद-सोज़ जैसे नेताओं की बातों में फर्क क्यों नहीं दिखता...
कश्मीर घाटी में सेना द्वारा लिए जा रहे एक्शन पर जिस तरह सैफुद्दीन सोज और गुलाम नबी आजाद जैसे नेता बयान दे रहे हैं, कहना गलत नहीं है कि आतंकी और ये नेता अपने विचारधाराओं की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं.
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"हम पाकिस्तान से विलय नहीं चाहते पर हमें आजादी चाहिए. भारत सरकार को हुर्रियत और अलगाववादियों से बात करनी चाहिए" : सैफुद्दीन सोज
"जम्मू कश्मीर में सेना के ऑपरेशन में आंतकियों से ज्यादा आम लोगों की जानें जाती है. अब जबकि भाजपा जम्मू कश्मीर में ऑपरेशन ऑल आउट की बात कर रही है तो लाजमी है इससे बड़े पैमाने पर आम लोगों की हत्याएं होंगी. ऐसे सैन्य अभियानों में जितने आतंकी मरते हैं, उससे कहीं ज्यादा आम लोगों की 'हत्याएं' होती हैं" : गुलाम नबी आजाद
"कश्मीर में राज्यपाल शासन में हजारों लोगों का नरसंहार होगा. हमारी और गुलाम नबी आजाद की राय एक ही है. जम्मू-कश्मीर में 8 लाख सेना की फौज लोगों पर जुल्म ढा रही है. वहां की अवाम को सेना कुचल रही है लेकिन अवाम ने ऑपरेशन ऑल-आउट को भी नाकाम कर दिया. सीजफायर महज ड्रामा बनकर रह गया. सीजफायर का अमन-चैन से कोई मतलब नहीं था, बल्कि इसमें लोगों को निशाना बनाया गया. कश्मीर में आजादी की लड़ाई को कुचलने में नाकाम रहा हिंदुस्तान हताश हो गया है. शुजात बुखारी की हत्या ने सेना की गंदी साजिश का पर्दाफाश कर दिया. हिंदुस्तान समर्थक कुछ नेता कश्मीर में जंगी अपराध की बात तो करते हैं लेकिन अपने स्वार्थी सियासी एजेंडे के लिए. उनका एजेंडा कश्मीर की अवाम को कहां तक गुलामी में धकेल रहा है यह जगजाहिर है." : मोहम्मद शाह, प्रवक्ता, लश्कर ए तैयबा
इन तीनों बयानों में जो बात कॉमन है, उसे अलग से समझाने की जरूरत नहीं है. इनमें भारत की सेना और सरकार को हत्यारा बताया गया है. और कश्मीर को आजाद किए जाने की भावना जाहिर होती है. 2019 के आम चुनाव को कम वक़्त बचा है. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो मुद्दा बन रही हैं और जिनपर सियासत हो रही है. बात जब चुनावी मुद्दे की हो तो कश्मीर और आतंकवाद हमेशा से ही देश के राजनीतिक दलों का मनपसंद मुद्दा रहा है. कश्मीर को लेकर सियासत तेज है. एक तरफ जब सरकार आतंकवाद के खात्मे के लिए ऑपरेशन ऑल आउट जैसी अहम मुहिम चला रही है लाजमी है विपक्ष इसकी आलोचना करे और इस अहम मसले पर बेतुके बयान दे.
बात आगे बढ़ाने से पहले आपको बताते चलें कि जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में सुरक्षाबलों ने चार आतंकियों को मार गिराया है. सुरक्षाबलों को इस बात की पुख्ता जानकारी मिली थी कि आतंकी वहां छुपे हुए हैं, जिसके बाद उन्होंने पूरे इलाके की घेराबंदी की. इस दौरान आतंकियों ने अपने को घिरा देख कर सुरक्षाबलों पर फायरिंग शुरू कर दी, जिसके बाद सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए चार आतंकियों को मार गिराया.
खबर है कि घाटी में सेना ने 4 आतंकियों को मार गिराया है
इस ऑपरेशन में सुरक्षाबल के एक जवान की भी मौत हुई है. खबर ये भी है कि इस कार्रवाई में कई स्थानीय नागरिक भी घायल हुए हैं. सुरक्षाबलों से मिली जानकारी के मुताबिक मारे गए सभी आतंकी इस्लामिक स्टेट जम्मू कश्मीर (ISJ&K) से संबंधित हैं.
Terrorists reportedly affiliated to Islamic State of Jammu and Kashmir (ISJK), tweets SP Vaid, DGP J&K on terrorists killed in an ongoing encounter in Anantnag's Srigufwara area. (file pic) pic.twitter.com/xWYQUXYFDs
— ANI (@ANI) June 22, 2018
गौरतलब है कि रमजान के दौरान सीजफायर पर लगे प्रतिबंध के हट जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में भारतीय जवान आतंकियों पर लगातार कार्रवाई कर रहे हैं. एक ऐसे वक़्त में जब सरकार और सेना अपना काम कर रही है वहां विपक्ष का इस कार्रवाई पर अंगुली उठाना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है. कहना गलत न होगा कि इस कार्रवाई पर जिसे सबसे ज्यादा आघात पहुंचा होगा वो और कोई नहीं बल्कि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद होंगे, जिन्होंने बीते दिनों ही ये कह कर सबको सकते में डाल दिया था कि सेना ऑपरेशन ऑल आउट के नाम पर घाटी के आम नागरिकों का 'नरसंहार' करेगी. अब जबकि इस कार्यवाई में कुछ स्थानीय नागरिकों को हल्की फुल्की चोटें आई हैं कहना गलत नहीं है कि एक बार फिर गुलाम नबी आजाद जैसे लोगों को मौका मिल गया होगा सरकार और सेना की आलोचना करने का.
कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद पहले ही सेना पर बयान देकर उसका मनोबल तोड़ चुके हैं
अब जब सरकार और सेना की आलोचना का दौर चल रहा है तो ऐसे में हमें एक और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के बयान पर गौर करना चाहिए जो गुलाम नबी आजाद से भी दो हाथ आगे निकल गए हैं और जिन्होंने देश की जनता के सामने कांग्रेस के चाल, चरित्र और चेहरा दिखा दिया है. हम बात कर रहे हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज की. पूर्व केंद्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज ने कहा है कि हम पाकिस्तान से विलय नहीं चाहते पर हमें आजादी चाहिए.
Musharraf said Kashmiris don't want to merge with Pakistan, their first choice is independence. The statement was true then and remains true now also. I say the same but I know that it is not possible: Saifuddin Soz, Congress pic.twitter.com/pmtWIxhN16
— ANI (@ANI) June 22, 2018
कश्मीर पर विवादित बयान की सीरीज में सोज ने अपने बयान को निजी बयान बताते हुए जहां एक तरफ कश्मीर की भारत से आजादी की बात कही तो वहीं उन्होंने ये भी कहा कि उनके इस बयान से पार्टी को कोई लेना देना नहीं है. मतलब साफ है सोज़ खुद मुजाहिदीन बन गए और पार्टी को बचा लिया. कश्मीर मसले पर सोज़ ने ये मांग रखी है कि भारत सरकार को हुर्रियत और अलगाववादियों से बात करनी चाहिए. ध्यान रहे कि मामले ने तूल तब पकड़ा जब राज्यपाल एनएन वोहरा ने जम्मू और कश्मीर को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी और सोज़ ने ये बयान जारी किया.
सवाल ये है कि सोज किस मुंह से अलगाववादियों से मिलने की बात कर रहे हैं
सोज इतने पर रुक जाते तो भी ठीक था. मामला तब और पेचीदा बन गया जब उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के एक बयान का समर्थन करते हुए कहा कि, 'मैं उनकी बातों से इत्तेफाक रखता हूं कि कश्मीर में रहने वालों को अगर मौका मिले तो वे भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने की बजाय आजाद होना ज्यादा पंसद करेंगे.' उन्होंने कहा कि मुशर्रफ ने लगभग 10 साल पहले जो बयान दिया था, वह जम्मू-कश्मीर के मौजूदा हालातों पर ठीक बैठता है'.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में सोज ने अपना दावा पेश करते हुए कहा है कि 1953 से लेकर अबतक भारत की कई अलग-अलग सरकारें बड़ी गलतियां करती आई हैं. इस दौरान देश की बागडोर कांग्रेस के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के हाथ भी रही. सोज ने बताया कि तब से लेकर अबतक कश्मीरी अपने को देश से अलग-थलग महसूस करते आ रहे हैं. सोज के ये दावे उनकी लिखी एक किताब का हिस्सा हैं जो जल्द ही बाजार में आने वाली है.
यूपीए-1 के कार्यकाल में केन्द्रीय मंत्री का पदभार संभल चुके सोज़ ने अपनी आने वाली किताब में ये भी कहा है कि केंद्र सरकार को कश्मीर की समस्या सुलझाने के लिए मुख्य दलों के पास जाने से पहले हुर्रियत कॉफ्रेंस के लोगों से बात करनी चाहिए. ज्ञात हो कि हुर्रियत घाटी का वो अलगाववादी धड़ा है जो कश्मीर की आजादी की मांग करता रहा है.
कहना गलत नहीं है अब वो वक़्त आ गया है जब आजाद और सोज जैसे लोगों को देशहित के बारे में सोचना होगा
कश्मीर न्यूज सर्विस को दिए गए एक अन्य बयान में सैफुद्दीन सोज़ ने कश्मीर मसले पर अपनी बात रखते कहा है कि 'मेरे खयाल से जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावना कारगर साबित हुई जिसे देखते हुए मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने प्रदेश में सरकार से अलग होने का फैसला किया.' साथ ही सोज ने ये भी माना है कि, उनके (मोदी-शाह) दिमाग में संयुक्त विपक्ष का भय बैठ गया है कि कांग्रेस 2019 से पहले विपक्ष के साथ गठबंधन करेगी जो पीएम मोदी के लिए काफी मुश्किल साबित होगा.
बहरहाल, जिस तरह देश की सुरक्षा के सन्दर्भ में सोज और आजाद जैसे लोग बिगड़े तेवर दिखाते हुए सेना के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैला रहे हैं ये भी कहना गलत नहीं है कि स्थिति न सिर्फ गंभीर है बल्कि ये भी दर्शा रही है कि घाटी के नेता खुद नहीं चाहते कि घाटी आतंक से मुक्त हो और वहां खुशहाली और अमन सुकून आए.
अंत में बस इतना ही कि जिस तरफ सेना एक के बाद एक आतंकियों को जहन्नुम भेज रही है, हो सकता है ऐसी ख़बरों से आजाद और सोज़ जैसे नेताओं का मुंह बंद हो गया हो या फिर हो ये भी सकता है इन "आतंकियों" को सेना के हाथों मरता देख लाशों पर सियासत करने वाले इन नेताओं को दुःख हुआ हो और इन्हें गहरा आघात पहुंचा हो.
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